राम-जन्म भूमि अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में सप्ताह में पांच दिन सुनवाई चल रही है. जज साहब ने शुक्रवार को रामलला के वकील से पूछा था कि क्या भगवान राम का कोई वंशज अयोध्या में है या नहीं. इस पर वकील ने इसकी कोई जानकारी नहीं होने की बात कही थी. अब इस पर जयपुर से दीया कुमारी ने ट्वीट किया है कि हम भगवान राम के वंशज हैं. जयपुर की गद्दी भगवान राम के पुत्र के कुछ वंशजों की राजधानी है. राजपरिवार के पोथी खाने में इससे संबंधित दस्तावेज मौजूद हैं.
सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या विवाद पर सुनवाई के दौरान राम के वंशजों का प्रश्न सामने आने के बाद जयपुर राजघराने की पूर्व महारानी ब्रिगेडियर भवानी सिंह की पत्नी पद्मिनी देवी के निर्देश पर सिटी पैलेस के कपड़द्वार में सुरक्षित रखे रिकॉर्ड को सार्वजनिक किया गया. इसमें अयोध्या और राम जन्म भूमि के पुराने मानचित्र हैं. प्राचीन दस्तावेजों के अनुसार भगवान राम के पुत्र कुश के नाम पर कुशवाहा वंश की नींव पड़ी. इस वंश की वंशावली के आधार पर 62वें वंशज दशरथ थे, 63वें वंशज राम और 64वें वंशज कुछ थे. 289वें वंशज आमेर-जयपुर के सवाई जय सिंह, ईश्वरी सिंह, सवाई माधो सिंह और पृथ्वी सिंह थे. भवानी सिंह 307वें वंशज थे.
सुप्रीम कोर्ट में इस तथ्य को मान्यता मिलेगी या नहीं, कह नहीं सकते, लेकिन जयपुर में मौजूद प्राचीन दस्तावेजों के अनुसार जिस जमीन पर राम जन्म भूमि स्थल बताया जाता है, वह जयपुर के कच्छवाहा वंश के अधिकार में थी. 1707 में औरंगबेज की मौत के बाद सवाई जय सिंह द्वितीय ने देश के हिंदू धार्मिक इलाकों में बड़ी-बड़ी जमीनें खरीदी थीं और वहां निर्माण कार्य करवाए थे. इसी के तहत 1717 से 1725 के दौरान अयोध्या में राम जन्म स्थान मंदिर बनवाया था.
इतिहासकार आर नाथ ने कपड़द्वार में रखे 9 दस्तावेजों और 2 मानचित्रों के आधार पर अपनी किताब स्टडीज इन मीडिवल इंडियन आर्कीटेक्चर में लिखा है कि अयोध्या में कोट राम जन्मस्थान सवाई जय सिंह द्वितीय के अधिकार में रहा था. पद्मिनी देवी ने बताया कि ब्रिगेडियर भवानी सिंह ने 1992 में ही मानचित्र सहित अन्य दस्तावेज अदालत को सौंप दिए थे. जिम्मेदार नागरिक होने के नाते यह हमारा फर्ज था.
आर नाथ का दावा है कि राम जन्मस्थान जयसिंह पुरा में है. इसकी जमीन औरंगजेब की मौत (1707) के बाद 1727 में हासिल की गई थी. जय सिंह को इस जमीन पर निर्माण की अनुमति दी गई थी. प्राचीन मानचित्र में अयोध्या में हवेली, सरईपुर और कटला भी दर्शाए गए हैं. अवध के तत्कालीन नायब नाजिम कल्याण राय का हुकुमनामा भी है. सवाई जयसिंहपुरा परकोटे से घिरा था. जय सिंह ने सरयू नदी पर धार्मिक अनुष्ठान भी करवाया था. मानचित्र में अयोध्या के विहंगम दृश्य दर्शाए गए हैं. सारे निर्माण कार्य आठ साल में पूरे किए गए थे. किला महल औऱ रामकोट भी जयसिंहपुरा में शामिल था. इसमें धनुषाकार प्रवेशद्वार था. भगवान राम की खड़ाऊ का स्थान भी था. जानकीजी का स्नानागार और नौ मंजिला महल था. सप्तसागर महल में राम के शिक्षा ग्रहण करने का स्थान और सीता का अग्निकुंड भी था.
जयसिंहपुरा की जमीन के पट्टे और अनेक दस्तावेज कपड़द्वार में सुरक्षित हैं. खरीद के पेटे जयपुर रियासत ने रकम का भुगतान किया था, इसके दस्तावेज भी हैं. सवाई जय सिंह ने जमीन खरीदने के बाद सुरक्षा के लिए परकोटा बनवाया था. सारा इलाका सैन्य सुरक्षा से घिरा था और इसमें किसी अन्य व्यक्ति को निर्माण की अनुमति नहीं थी. यहां का किला कोट रामचंद्रपुरा सरयू तट से करीब 40 फीट ऊंचाई पर बनाया गया था. इससे पहले सवाई जय सिंह ने राम जन्म स्थान का जीर्णोद्धार करवा दिया था. हिंदू शैली के मंदिर में तीन शिखर भी बनवाए थे. पूरा निर्माण कार्य हिंदू धर्म शास्त्रों के आधार पर करवाया गया था.
1776 में तत्कालीन नवाब आसफउद्दौला राजा भवानी सिंह को हुक्म दिया था कि अयोध्या और इलाहाबाद स्थित जयसिंहपुरा में कोई दखल नहीं किया जाएगा. ये जमीनें हमेशा कच्छवाहा वंश के अधिकार में रहेगी. इसके बाद अब इस जमीन की क्या स्थिति है, इसको लेकर कोर्ट में विवाद चल रहा है. इस विवाद में जयपुर में मौजूद दस्तावेजों का भी उल्लेख होना चाहिए.
जयपुर राजघराने की पूर्व राजमाता पद्मिनी देवी का कहना है कि अयोध्या के राम जन्म भूमि विवाद का जल्दी समाधान होना चाहिए. कोर्ट ने पूछा है कि भगवान राम के वंशज कहां हैं, इसलिए हम सामने आए हैं. हम उनके वंशज हैं. दस्तावेज सिटी पैलेस के पोथीखाने में मौजूद हैं. हम नहीं चाहते कि वंश का मुद्दा बाधा पैदा करे. राम सबकी आस्था के प्रतीक हैं. दीया कुमारी ने कहा कि दुनिया भर में राम के वंशज हैं. इसमें हमारा परिवार भी शामिल है, जो भगवान राम के बेटे कुश का वंशज है. यह इतिहास की खुली किताब की तरह है.
इतिहास में कुशवाहा वंश सूर्यवंशी राजपूतों की एक शाखा बताया जाता है. इसे मिलाकर क्षत्रियों के कुल 36 वंशों के प्रमाण मिलते हैं. इनमें दस सूर्यवंशी, दस चंद्रवंशी, 12 ऋषि वंसी और चार अग्निवंशी क्षत्रिय हुआ करते थे. समय गुजरने के साथ ही चौहान वंश 24 अलग वंशों में बंट गया. इसके बाद क्षत्रियों के कुल 62 वंश माने जाते हैं. इन्हीं में से एक कुशवाहा वंश है, जिसे कच्छवाहा भी कहते हैं. कच्छवाहा राजपूतों की देश भर में 65 खापें हैं.