Politalks.News/Delhi. यह बात सुनने में भले ही कुछ अजीब सी लगे लेकिन अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) खुद मोदी सरकार के खिलाफ खड़ा होने जा रहा है. आपको ये जानकर हैरानी होगी कि राष्ट्रीय स्वयंकसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े भारतीय मजदूर संघ ने केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ बिगुल बजाने का फैसला किया है. दरअसल, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में विनिवेश को लेकर विपक्ष की ओर से आलोचनाओं का सामना कर रही मोदी सरकार को अब अपनों का भी विरोध झेलना पड़ रहा है. आरएसएस से जुड़े भारतीय मजदूर संघ ने केंद्र सरकार के इस कदम का विरोध करने के लिए 28 अक्टूबर को देशव्यापी प्रदर्शन का ऐलान किया है. पिछले सात साल में शायद ये पहला मौका होगा कि RSS के किसी प्रकल्प ने मोदी की ‘विराट राजनीतिक‘ छवि के सामने आवाज उठाने की हिम्मत दिखाई है.
यहां तक की प्रबुद्धजनों में इस बात को लेकर यही चर्चा रही है कि RSS मोदी सरकार के खिलाफ नहीं बोल रहा है. जबकि वो संघ के नीतियों के खिलाफ कई नीति निर्माण कर चुके हैं. बात करें किसान आंदोलन की तो किसान संघ के अस्तित्व पर बन आई है. ऐसा ही पहले हुआ जब रिटेल में FDI के मुद्दे पर मजदूर संघ का ना बोलना चर्चा का विषय बना रहा. जबकि UPA सरकार के दौरान संघ ने इस मुद्दे पर भारत बंद तक करवा दिया था. हालांकि अब कुछ मजदूर संघ के इस फैसले को लेकर चर्चाएं हो रही है कि देर आए दुरुस्त आए!
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इस पूरे मामले पर भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) के ऑल इंडिया सेक्रेटरी गिरीशचंद्र आर्य ने कहा कि, ‘बीएमएस की समन्वय समिति ने सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के विनिवेश के सरकार के फैसले का विरोध करने का फैसला किया है. आंदोलन के लिए पहचान रखने वाले सभी ट्रेड यूनियनों को सरकार की इस नीति का विरोध करना चाहिए, लेकिन उन्होंने चुप रहना चुना, ऐसी स्थिति में हमने राष्ट्रव्यापी धरने का फैसला किया है’.
गिरीशचन्द्र आर्य ने आगे कहा कि, ‘इस बात से फर्क नहीं पड़ता है कि सत्ता में कौन है. सार्वजनिक क्षेत्र के लिए हमारा रुख समान रहना चाहिए. यह महसूस करना चाहिए कि सार्वजनिक क्षेत्र बहुत अच्छा लाभांश देता है केंद्र सरकार इसे क्यों बेचना चाहती है?’ आर्य ने कहा कि, ‘उन्होंने एनएचपीएल, बीएसएनएल और बीएचईएल सहित स्टील, .पावर, टेलिकॉम, बैंक, इंश्योरेंस सेक्टर के लोगों को आमंत्रित किया है’.
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मोदी सरकार को आड़े हाथ लेते हुए बीएमएस के गिरिशचन्द्र ने आगे कहा कि, ‘सरकार विनिवेश के मोर्चे पर विफल रही. सरकार निजीकरण के मोर्चे पर भी विफल रही. सरकार ऐसे अर्थशास्त्रियों की मदद से काम कर रही है जो इन कदमों को बढ़ावा देते हैं. वह देश के बारे में कुछ नहीं जानते हैं. हमारी वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण खुद कहती हैं सरकार बिक्री नहीं कर रही है. मैं मनाता हूं कि इस कदम से सरकार पट्टे पर डाल रही है’.
यहां हम आपको याद दिला दें कि, ‘1 फरवरी को केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वित्त वर्ष 2021-22 का बजट पेश करते हुए कहा था कि, ‘सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के रणनीतिक विनिवेश की नीति को मंजूरी दी है, जो सभी गैर-रणनीतिक और रणनीतिक क्षेत्रों में विनिवेश के लिए एक स्पष्ट रोडमैप प्रदान करेगी’.
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वहीं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सफर पर अगर नज़र डालें तो संगठन के भीतर ही कई तरह के अंतर्विरोध रहे हैं. हालांकि ये अंतर्विरोध कई बार वैचारिक तौर पर भी सामने आया जब सत्ता की सोच तले संघ ने खुद को नतमस्तक कर दिया. मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ही अगर बात कर लें तो जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे उसी समय 2002 में गोधरा दंगे हुए और तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी ने उन्हें राजधर्म का पालन करने की नसीहत तक दी. मोदी को मुख्यमंत्री पद से वाजपेयी हटाना चाहते थे लेकिन उस समय संघ ने जिस रूप में मोदी का साथ दिया और गोवा में जो कुछ हुआ वो भी किसी से छुपा नहीं है.
वो ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आज मोदी के विशालकाय व्यक्तित्व के सामने खुद को बोना होता देख रहा है. क्योंकि इस दौर में जब संघ की नीतियों के उलट ही उसके राजनैतिक स्वयंसेवक की नीति हो गई है तो वैसे में उसकी भूमिका किस रूप में होगी? ये काफी गंभीर सवाल है, लेकिन लोगों को लगता है कि जब संघ के स्वयंसेवक की सत्ता है तो उसे क्या खतरा होगा लेकिन थोड़ा गहराई से सोचने पर स्थिति उलट जान पड़ती है.