Politalks.News/Delhi. दिल्ली के सियासी गलियारों में आजकल एक ही बात की चर्चा है कि क्या कांग्रेस पार्टी में बगावत का झंडा बुलंद करने वाले G-23 नेताओं ने सरेंडर कर दिया है? क्या अब ये नेता आलाकमान से लड़ने के मूड में नहीं हैं. क्या ये सभी आलाकमान के कामकाज से खुश हो गए हैं या उन्हें कुछ हासिल होने की उम्मीद हो गई है. सूत्रों की माने तो असलियत यह है कि उनको पार्टी से बाहर कोई संभावना नहीं दिख रही है. भारतीय जनता पार्टी में जाने से भी उन्हें कुछ हासिल होने वाला नहीं है. उनकी उम्मीदें ममता बनर्जी से जरूर हैं लेकिन वहां भी इन नेताओं को अपनी उपयोगिता साबित करनी होगी. ममता बनर्जी उन्हीं नेताओं को पार्टी में ले रही हैं, जिनका कोई जमीनी आधार हो. जबकि इस ग्रुप में भूपेन्द्र हुड्डा को छोड़ दें तो किसी के पास जनाधार जैसा कुछ नहीं है. तो चाहते और ना चाहते हुए भी उन्हें कांग्रेस का हाथ थामे रहना पड़ेगा.
G-23 ग्रुप के अगुवाई करने वाले नेता आनंद शर्मा को लेकर दिल्ली के सियासी गलियारों में चर्चा है कि, ‘आनंद शर्मा के पास हिमाचल प्रदेश में वोट होता है या जमीनी पकड़ होती और ममता बनर्जी को वहां राजनीति करनी होती तो वे उनको अपनी पार्टी में ले सकती थीं. लेकिन न तो आनंद शर्मा के पास वोट (जनाधार) है और न ममता को हिमाचल में राजनीति करनी है. साथ ही मजे की बात यह है कि आनंद शर्मा इतने बड़े वकील भी नहीं हैं कि ममता उनको अभिषेक सिंघवी की तरह राज्यसभा भेजने में मदद करें. ममता ने सिंघवी को साथ रखा हुआ है इसलिए उन्हें कपिल सिब्बल की भी जरूरत नहीं है.
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सियासी जानकारों का कहना है कि गुलाम नबी आजाद ममता बनर्जी की योजना में फिट हो सकते हैं, लेकिन अभी उनके बारे में बात नहीं हुई है. वहीं आजाद की उम्र को लेकर भी बनर्जी उन पर दांव खेलने के बचेंगी. जी-23 का नेतृत्व कर रहे तीनों नेताओं में से आजाद की राज्यसभा खत्म हो गई है और सिब्बल और आनंद शर्मा की अगले साल खत्म हो जाएगी. सिब्बल तो जैसे तैसे बिहार, झारखंड जैसे राज्य से उच्च सदन में फिर पहुंच जाएंगे लेकिन शर्मा का फिर राज्यसभा में जाना मुश्किल है. तभी तीनों नेता अब आलाकमान की लाइन पर आ गए दिख रहे हैं. आपको बता दें कि ये तीनों नेता पिछले साल यानी 2020 के अगस्त में संगठन चुनाव की मांग कर रहे थे और चुनाव अगस्त-सितंबर 2022 तक टल गया और इनके मुंह से आवाज नहीं निकली.
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हालही में CWC की बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव अगले साल अगस्त-सितंबर में कराने के प्रस्ताव का इन तीनों दिग्गजों ने स्वागत किया. कांग्रेस कार्य समिति की बैठक के बाद गुलाम नबी आजाद ने तुरंत सफाई भी दी कि, ‘उन्होंने सोनिया गांधी के नेतृत्व पर कभी सवाल नहीं उठाया‘. इससे पहले कार्य समिति की बैठक में बाकी सदस्यों के साथ जी-23 के नेताओं ने भी राहुल को अध्यक्ष बनाने के प्रस्ताव का स्वागत और समर्थन किया. G-23 नेताओं के बदले हुए सुर देश के सियासी गलियारों में चर्चा का विषय बने हुए हैं.