समय से पहले नीतीश कुमार ने छोड़ी कुर्सी, करीबी आरसीपी सिंह को बनाया अध्यक्ष, जानिए इनसाइड स्टोरी

अरुणाचल प्रदेश में बीजेपी द्वारा जदयू के विधायकों को तोड़ने के बाद नाराज नीतीश ने दो टूक अंदाज में कहा है कि, 'मुझे अब सीएम नहीं रहना, एनडीए गठबंधन जिसे चाहे मुख्यमंत्री बना दे, बीजेपी का ही सीएम हो, मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता मुझे किसी पद का मोह नहीं है

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Politalks.News/Bihar Politics. बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सबसे विश्वासपात्र आरसीपी सिंह को रविवार को जनता दल (यूनाइटेड) का नया राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया गया है. नीतीश कुमार को 2019 में तीन वर्षों के लिए जद (यू) का अध्यक्ष चुना गया था, लेकिन उन्होंने राज्यसभा के सदस्य रामचंद्र प्रताप सिंह के लिए डेढ़ साल पहले ही यह पद छोड़ दिया है. इसके पीछे की इनसाइड स्टोरी हम आपको बताएंगे, लेकिन उससे पहले आपको बता दें कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जदयू की राष्‍ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के दौरान बड़ा बयान देते हुए दो टूक अंदाज में कहा है कि, ‘मुझे अब सीएम नहीं रहना, एनडीए गठबंधन जिसे चाहे मुख्यमंत्री बना दे. बीजेपी का ही सीएम हो, मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता मुझे किसी पद का मोह नहीं है.’ अरुणाचल प्रदेश में जदयू के छः विधायकों के बीजेपी में शामिल होने के बाद आए नीतीश कुमार के इस बयान ने बिहार की सियासत को तेज कर दिया है.

आपको बता दें, रविवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जदयू के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष के चुनाव के बाद हुई बैठक को संबोधित कर रहे थे. सीएम नीतीश कुमार ने आगे कहा मुझे पद की कोई चाहत नहीं, इच्छा नहीं कि पद पर रहें. चुनाव परिणाम आने के बाद मैंने अपनी यह इच्छा गठबंधन के समक्ष जाहिर भी कर दी थी, पर दबाव इतना था कि मुझे फिर से काम संभालना पड़ा. नीतीश ने कहा कि हम स्वार्थ के लिए काम नहीं करते, आज तक हमने कभी किसी तरह का कोई समझौता नहीं किया.

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हाल ही में अरुणाचल प्रदेश में जदयू के छह विधायकों के भाजपा में चले जाने के घटनाक्रम का जिक्र करते हुए नीतीश कुमार ने कहा कि क्या हुआ अरुणाचल में, छह के जाने के बाद भी वहां जदयू का एक विधायक डटा रहा. नीतीश ने कहा कि पार्टी की ताकत को समझिए, हमें सिद्धांतों के आधार पर ही लोगों के बीच जाना है. सीएम ने कहा को नफरत का माहौल बनाया जाता है लेकिन हमलोग नफरत के खिलाफ हैं. हमने एक-एक काम लोगों के हित के लिए किया है लेकिन सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों को गुमराह किया जा रहा.

जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद से खुद को मुक्त किए जाने पर बोलते हुए नीतीश कुमार ने कहा कि, “हमने पार्टी छोड़ा नहीं है, रात-दिन पार्टी के काम में लगे रहते हैं. व्यस्तता की वजह से पार्टी के अध्यक्ष पद का काम ठीक से नहीं देख पा रहे थे. हमारी इच्छा है कि पार्टी के संगठन का विस्तार होना चाहिए, इसके लिए लोग दूसरे राज्यों में समय दें. इस दिशा में काफी काम होना चाहिए. मैंने जानबूझकर यह किया है ताकि ज्यादा से ज्यादा समय लोगों को दे सकें.”

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अब सवाल उठता है कि आख़िर नीतीश कुमार ने आरसीपी को ही क्यों चुना, जबकि उनका कुल जमा संसदीय इतिहास मात्र दस वर्षों का हैं और पार्टी में कई नेता आरसीपी से काफ़ी वरिष्ठ हैं. जानकारों की मानें तो इसका एक ही कारण है, वो ना केवल नीतीश कुमार के स्वजातीय कुर्मी जाति से हैं बल्कि नीतीश का उनके ऊपर ‘भरोसा और विश्वास’ होना है. इसलिए आरसीपी, वो चाहे 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी की करारी हार हो या इस बार विधानसभा चुनाव में दुर्गति या इससे पूर्व एक मार्च को पार्टी रैली का फ़्लॉप हो जाना, नीतीश कुमार ने उनकी हर ख़ामी या विफलता पर आगे आकर ख़ुद ज़िम्मेवारी लेते रहे हैं. इसका कारण है कि वो उनके साथ वर्षों से काम कर रहे हैं और आईएएस भी रहे हैं जो नीतीश कुमार के पसंद के लिए सर्वोत्तम गुण है.

इसके साथ ही, जब 2014 में जब लोकसभा चुनाव में पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा था तो नीतीश कुमार ने नैतिक जिम्मेदारी स्वीकार कर मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था और जीतनराम मांझी को कुर्सी सौंप दी थी. इस बार के विधानसभा चुनाव में पार्टी को अपेक्षित सफलता नहीं मिली तो फिर तरह- तरह की आशंकाएं उनके समर्थकों के मन में घर कर रही थी. इसके पीछे सच्चाई भी थी और नीतीश कुमार की खामोशी बहुत कुछ बयां कर रही थी. नितीश कुमार के अध्यक्ष पद की कुर्सी छोड़ने का दूसरा बड़ा कारण यही माना जा रहा है.

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आपको बता दें कि पटना में जदयू की दो दिवसीय राष्‍ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई. कल रविवार को बैठक का दूसरा और अंतिम दिन था. वहीं बैठक के बाद जदयू के प्रधान महासचिव केसी त्‍यागी ने एक प्रेस कॉन्‍फ्रेंस में कहा कि जदयू ने अरूणाचल प्रदेश की घटना पर क्षोभ व्‍यक्‍त किया है. जदयू के छह विधायकों को भाजपा ने मंत्रिमंडल में शामिल करने की बजाय उन्‍हें अपने दल में ही शामिल कर लिया है, यह अच्‍छा नहीं किया. हमें इसपर बेहद दुख है, यह गठबंधन की राजनीति के लिए अच्‍छा संकेत नहीं है.

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