नागौर लोकसभा सीट एक बार फिर से काफी हॉट बनी हुई है. वजह – दो दिग्गज जाट परिवारों का फिर से द्वंद्व. इस चुनावी जंग में आमने सामने होने वाले चेहरे पुराने हैं लेकिन पहचान नयी है. यही इस बार की चुनावी जंग में नया है और रोचक भी. फर्क सिर्फ इतना है कि पिछली बार तक कांग्रेस से चुनाव लड़ती आई ज्योति मिर्धा इस बार भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर मैदान में है. वहीं पिछले चुनाव में एनडीए गठबंधन में शामिल हनुमान बेनीवाल ने इस मर्तबा इंडिया गठबंधन से ताल ठोक रखी है. यही वजह है कि दोनों के सुर भी बदले-बदले हैं. चार महीने पहले जो एक-दूसरे को कोस रहे थे, इस बार उनकी वाहवाही में कसीदे पढ़ रहे हैं. यही सियासत है.
नागौर परम्परागत रूप से जाट राजनीति का प्रमुख गढ़ माना जाता है इसलिए दोनों ही पार्टियां यहां जाट उम्मीदवार पर ही दांव खेलती आई है. यही वजह है कि यहां जीतने का कोई सेट पैटर्न नहीं है. इस बार भी दोनों जाट समुदाय से हैं. लिहाजा जाट वोटों का ध्रुवीकरण ही संसद ही राह तय करेगा. इस सीट पर मिर्धा परिवार का वर्चस्व रहा है. पूर्व केंद्रीय मंत्री और किसान नेता नाथूराम मिर्धा सर्वाधिक छह बार यहीं से जीतकर संसद पहुंचे हैं. नाथूराम की पोती ज्योति मिर्धा भी यहीं से सांसद रह चुकी हैं. नाथूराम मिर्धा के पुत्र भानुप्रकाश मिर्धा भी एक बार उपचुनाव में विजयी हो चुके हैं.
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पिछले कुछ सालों में समाज के युवाओं को साधकर हनुमान बेनीवाल किसान नेता के रूप में पहचान बना चुके हैं. वे यहां से लगातार चार बार विधायक और एक बार सांसद रहे हैं. इस बार बेनीवाल कांग्रेस के ‘परम्परागत’ वोट बैंक को जोड़ने में जुटे हैं. बात करें बीजेपी की तो यहां ज्योति मिर्धा भी एक तरफ से मोदी के चेहरे पर ही चुनाव लड़ रही है. मिर्धा तोड़फोड़ करने में माहिर हैं और कांग्रेस की कमजोर नब्ज पर भी उनकी पैनी नजर है. इसके विपरीत हनुमान बेनीवाल की इस क्षेत्र में अच्छी खासी पकड़ है. हालांकि इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि पिछले लोकसभा चुनावों में ज्योति मिर्धा रालोपा के हनुमान बेनीवाल से केवल दो लाख वोटों के अंतर से हारी थी. मिर्धा परिवार का क्षेत्र में वर्चस्व होने का फायदा ज्योति को एक बार फिर से मिल सकता है.
कांग्रेस का गढ़ रहा है नागौर
बीते दशकों में नागौर कांग्रेस और परंपरागत तौर पर जाट राजनीति का अभेद गढ़ माने जाते हैं. कई दशकों तक नागौर संसदीय क्षेत्र कांग्रेस की विजय स्थली रहा है. यहां से 11 बार कांग्रेस प्रत्याशी विजयी हो चुके हैं. तीन बार भाजपा प्रत्याशियों को जीत मिली है. वर्ष 2019 के चुनाव में यह सीट बीजेपी के समर्थन से आरएलपी के खाते में गई थी. हनुमान बेनीवाल जीत हासिल कर लोकसभा पहुंचे थे. यहां कुल 21.46 लाख वोटर्स हैं जिनमें से 11.09 पुरूष और 10.37 लाख महिला मतदाता हैं. यहां जाट समुदाय सर्वाधिक संख्या में है. उसके बाद मुस्लिम, राजपूत, एससी और मूल ओबीसी के मतदाता निवास करते हैं. इस सीट पर मिर्धा परिवार का लंबे समय तक वर्चस्व रहा है. नागौर से 6 बार के सांसद रह चुके नाथूराम मिर्धा भी जाट परिवार से आते हैं. इस समुदाय में मिर्धा परिवार का दबदबा माना जाता है. वे पांच बार कांग्रेस और एक बार निर्दलीय विजयी हो चुके हैं.
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नागौर संसदीय क्षेत्र में 8 विधानसभा सीटें आती हैं. नागौर, लाडनूं, परबतसर और मकराना कांग्रेस के पास है. वहीं नावां और जायल से बीजेपी विधायक हैं. खींवसर से हनुमान बेनीवाल तो डीडवाना में युनूस खान निर्दलीय विधायक हैं. बीजेपी सरकार में पूर्व मंत्री रहे युनूस खान अभी ‘साइलेंट’ मोड पर हैं. वे खुलकर किसी के साथ नहीं दिख रहे.
सर्वे में बेनीवाल आगे, पिक्चर क्लियर नहीं
पॉलिटॉक्स द्वारा कराए एक सर्वे के मुताबिक नागौर की जंग इंडिया गठबंधन के हनुमान बेनीवाल जीत रहे हैं. उन्हें 78 फीसदी वोट मिले हैं जबकि ज्योति मिर्धा को केवल 22 फीसदी. इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि राजस्थान की 25 की 25 सीटों पर नरेंद्र मोदी ही चुनाव लड़ रहे हैं. उम्मीदवार चाहें अलग हो लेकिन चेहरा और गारंटी एक ही है. ऐसे में नागौर में पिक्चर अभी क्लियर नहीं है. सभी पार्टियों का माइक्रो मैनेजमेंट चल रहा है.
हाल में विधानसभा चुनाव में हनुमान बेनीवाल के सामने खींवसर से कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ने वाले तेजपाल मिर्धा के नेतृत्व में 400 से अधिक पार्षदों, पंचायत समिति सदस्यों, ब्लॉक अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, महासचिव, सचिव, यूथ कांग्रेस अध्यक्षों ने सामूहिक रूप से इस्तीफा देकर बीजेपी की सदस्यता ग्रहण कर ली थी. तेजपाल इस सीट पर हनुमान बेनीवाल से गठबंधन के विरोध में थे. इसके बाद से नागौर में सियासी घटनाक्रम बदल गए हैं. अब तेजपाल मिर्धा खुलकर मैदान में आ गए हैं और हनुमान बेनीवाल को हराने के लिए ऐडी चोटी का जोर लगा रहे हैं. वहीं ज्योति मिर्धा को मोदी की छवि का भी सहारा है. वहीं जाट युवाओं में हनुमान बेनीवाल पॉपुलर हैं. कांग्रेस का साथ मिलने से उन्हें अल्पसंख्यक वर्ग का समर्थन भी मिल रहा है. ऐसे में कहीं न हनुमान बेनीवाल एक बार फिर ज्योति मिर्धा पर भारी पड़ते दिख रहे हैं.