नागौर के बारे में कहा जाता है कि जिस पर ना करें कोई गौर, वो है नागौर, लेकिन राजस्थान की इस सीट पर इन दिनों सबकी नजर है. कांग्रेस ने यहां से ज्योति मिर्धा को मैदान में उतारा है जबकि बीजेपी ने गठबंधन के तहत यह सीट राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी यानी आरएलपी को दी है. आरएलपी के मुखिया हनुमान बेनीवाल खुद नागौर से ताल ठोक रहे हैं.
आपको बता दें कि हनुमान ने पहले कांग्रेस से हाथ मिलाने की कोशिश की, लेकिन बात नहीं बनी तो बीजेपी से राष्ट्रवादी इश्क हो गया. बेनीवाल इधर बीजेपी के साथ हुए और उधर चुनाव आयोग ने आरएलपी से बोतल चुनाव चिन्ह छीन लिया. आयोग ने आरएलपी को चार टायरों की जोड़ी का चुनाव चिन्ह आवंटित किया है. बेनीवाल इन टायरों पर सवार होकर दिल्ली पहुंचने का दावा कर रहे हैं.
बाबा यानी नाथूराम मिर्धा की पोती ज्योति मिर्धा और हनुमान बेनीवाल के बीच अदावत पुरानी है. ज्योति मिर्धा लगातार तीसरी बार यहां से चुनाव लड़ रही हैं जबकि बेनीवाल दूसरी बार मैदान में हैं. दोनों के बीच आरोप-प्रत्यारोप तेज हो गए हैं. ज्योति ने हनुमान को कलयुगी भाई और बहरूपिया तक करार दे दिया है जबकि बेनीवाल कह रहे है कि ज्योति पर्यटक प्रत्याशी हैं और वे हार क डर से मानसिक संतुलन खो चुकी हैं.
काबिलेगौर है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में बेनीवाल ने निर्दलीय लड़ते हुए डेढ लाख से ज्यादा वोट लेते हुए ज्योति को हराने में अहम भूमिका निभाई थी, लेकिन इस बार बीजेपी और आरएलपी का गठबंधन ज्योति को फायदा पहुंचाता हुआ दिख रहा है. इलाके की राजनीति के जानकार यह मानते हैं कि बेनीवाल के चुनाव लड़ने से गैर जाट जातियां, खासतौर पर राजपूत ज्योति मिर्धा की ओर रुख कर सकते हैं.
ऐसे में नागौर का चौधरी कौन होगा, इसका फैसला जाट मतदाता करेंगे. अब देखना रोचक होगा कि जाट हनुमान बेनीवाल के साथ जाते हैं या फिर ज्योति मिर्धा के साथ. फिलहाल दोनों के बीच मुकाबला बराबरी का है. विश्लेषकों के अनुसार नागौर सीट पर मुकाबला कांटे का है. जीत-हार का अंतर 25 से 50 हजार तक रहने की संभावना है.
हनुमान बेनीवाल और ज्योति मिर्धा ने चुनाव प्रचार में पूरी ताकत झोंक रखी है. दोनों को भीतरघात का सामना करना पड़ रहा है. ज्योति को महेंद्र चौधरी, चेतन डूडी और रिछपाल मिर्धा की नाराजगी भारी पड़ सकती है तो हनुमान को सीआर चौधरी, यूनुस खान और गजेंद्र सिंह खींवसर से खतरा है.
नागौर में सीएम अशोक गहलोत के नामांकन सभा में बेनीवाल को लेकर दिए गए बयान की खूब चर्चा हो रही है. गहलोत ने कहा था कि मैंने हनुमान को खूब समझाया पर वो कहां मानने वाला था. हमारे साथ आता तो मंत्री भी बन सकते थे, लेकिन अब उन्हें जीवनभर पछताना होगा.’ ज्योति मिर्धा के लिए ससुराल पक्ष हरियाणा के पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा और रोहतक सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने पूरा जोर लगा रखा है.
पूरे नागौर में चर्चा टक्कर होने की हो रही है. हालांकि दोनों के समर्थक अपनी-अपनी जीत के दावे कर रहे हैं. ऐसे में परिणाम को लेकर कयास ही लगाया जा सकता है. दोनों के लिए मुकाबला करो या मरो जैसा है. हनुमान के लिए खोने के लिए ज्यादा कुछ नहीं है, क्योंकि वे विधायक हैं. यदि ज्योति मिर्धा चुनाव हारीं तो उनकी सियासी लौ ही बुझ जाएगी.