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जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव की चुनावी बिसात बिछ गयी है. कांग्रेस, बीजेपी सहित अन्य प्रमुख पार्टियों ने अपने अपने उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी कर दी है. इसी बीच बीजेपी की पहली लिस्ट बदले जाने पर कार्यकर्ता एवं स्थानीय नेताओं ने हंगामा किया है. हालांकि यहां बात हो रही है जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री मेहबूबा मुफ्ती की, जो अपनी पार्टी पीडीपी से अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान कर रही हैं. अगर गौर किया जाए जम्मू कश्मीर और यूपी की सियासत पर, जो यहां दोनों राज्यों के राजनीतिक समीकरण एक जैसे नजर आते हैं. खासतौर पर मेहबूबा मुफ्ती और बसपा सुप्रीमो मायावती की सियासी तासीर एकदम मैच करती हैं. दोनों में एक बार और कॉमन है कि दोनों नेता अल्पमत में होते हुए मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठी और दोनों को ही बीजेपी ने समर्थन दिया.

जिस तरह से यूपी में मायावती के मुख्य प्रतिद्वंद्वी सपा प्रमुख अखिलेश यादव हैं, उसी तरह जम्मू कश्मीर में मुफ्ती के निशाने पर नेशनल कांफ्रेंस के प्रमुख उमर अब्दुल्ला रहते हैं. यूपी में कांग्रेस अखिलेश यादव और जम्मू कश्मीर में उमर अब्दुल्ला के सहारे खड़ी है. मुख्य विपक्षी पार्टी दोनों ही जगह भारतीय जनता पार्टी है. दोनों राज्यों की राजनीति में एक बात और कॉमन है. अखिलेश यादव और मायावती ने बीती बहुत सी बातें भुलाकर 2019 के आम चुनाव के दौरान यूपी में गठबंधन किया था और वैसे ही जम्मू-कश्मीर के गुपकार घोषणा पत्र में अब्दुल्ला और मुफ्ती भी हाथ में हाथ डाले साथ खड़े नजर आये थे लेकिन अब हालत ये हो गई है कि दोनो मैदान में एक दूसरे के जानी दुश्मन नजर आने लगे हैं.

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जम्मू कश्मीर में उमर अब्दुल्ला के बहाने महबूबा मुफ्ती परोक्ष रूप से कांग्रेस को ही टारगेट कर रही हैं जबकि यूपी में मायावती तो सीधे राहुल गांधी और प्रियंका गांधी पर धावा बोल देती हैं. यह एक माइनर का फर्क देखने को मिल सकता है. हालांकि कश्मीर में मुफ्ती ओर अब्दुल्ला के बीच कुत्ते बिल्ली की लड़ाई का खेल चल रहा है. एक तरफ मुफ्ती अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान कर रही है, वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस गठबंधन को समर्थन देने की बात भी कर रही है. वहीं अब्दुल्ला ने पीडीपी प्रमुख पर स्वयं के एजेंडे को नकल करने का आरोप लगाया है.

नेशनल कांफ्रेंस नेता उमर अब्दुल्ला का कहना है कि उनकी पार्टी और पीडीपी के एजेंडे में ज्यादा अंतर नहीं है. पीडीपी का जिक्र करते हुए उब्दुल्ला ने कहा, ‘वो कह रहे हैं कि अगर गठबंधन उनका एजेंडा स्वीकार करता है, तो अपने उम्मीदवार नहीं उतारेंगे…आपने पहले ही हमारे एजेंडा को अपने मैनिफेस्टो में शामिल कर लिया है… अब हमारे एजेंडा और आपके एजेंडा में ज्यादा अंतर नहीं है, तो ऐसे में आप उम्मीदवार न उतारें… और आइये, हम जम्मू-कश्मीर के लिए एक बेहतर भविष्य का निर्माण करें.’

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जिस तरह से मायावती बीजेपी और कांग्रेस को एक जैसा बताती है. अपनी चुनावी रैलियों में मायावती को कई बार कहते हुए सुना गया है कि दोनों पार्टियों में कोई खास फर्क नहीं है. एक नागनाथ है तो दूसरी सांपनाथ. लेकिन मायावती जिस तरह से चुनावों में अपने उम्मीदवार उतारती हैं, साफ नजर आता है कि वो बीएसपी से ज्यादा किसी और फायदा पहुंचाना चाहती हैं. ऐसा ही कुछ जम्मू कश्मीर में मेहबूबा मुफ्ती के साथ भी होते दिख सकता है. दोनों को ही ये पता है कि खुदके दम पर सत्ता हासिल करना संभव नहीं है. यही वजह है कि यूपी में जिस तरह मायावती पर बीजेपी की मदद करने के आरोप लगते रहे हैं,

उसी तरह से मेहबूबा को भी बीजेपी की टीम बी बताया जा सकता है. लक्षण भी कुछ इसी तरह के लग रहे हैं. वो सियासी गलियारों में कहते हैं ​न ‘रिश्ता वही है, बस सोच नई है.’ अब देखना ये होगा कि जम्मू कश्मीर में होने वाले विधानसभा चुनावों में मेहबूबा मुफ्ती अपने दम पर चुनाव लड़ती हैं या फिर बसपा की मायावती की तरह कहीं पर निगाहें और कहीं पर निशाना वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए नजर आती हैं.

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