लोकसभा चुनाव 2019 के पांच चरणों का मतदान समाप्त हो गया है. अब सियासी दलों के साथ आमजन भी इस गुणा भाग में जुट गए हैं किस पार्टी को कितनी सीटें मिल सकती है. पॉलिट़ॉक्स न्यूूज़ ने भी वोटिंग ट्रेंड, जानकारों और विभिन्न राज्यों के संभावित परिणाम के आधार पर तह में जाकर संभावित जनादेेश तक पहुंचने की कोशिश की है. इसमें जो बात निकलकर आई है, वो यह है कि इस बार शायद ही किसी सियासी दल को पूर्ण बहुमत मिले. सबके जेहन में बस अब एक ही सवाल है कि अब तक 424 सीटों पर हुआ मतदान क्या कहता है और शेष बची 118 सीटों पर क्या होने वाला है.

एक-दो राज्यों को छोड़कर इस बार मतदान में कोई लहर नहीं दिखी. लहर अगर थी भी तो वह साइलेंंट चल रही होगी, लेकिन पिछली बार की तरह ओपन किसी को नजर नहीं आई. ऐसे में जानकार इसे अंडरकरंट मान रहे हैं. आपको बता दें कि बिना लहर वाले मतदान में वोटर्स सुुस्त रहते हैं. वह वोट इसलिए डालने में रुचि नहीं दिखाता कि उसे वोट देने का कारण नहीं दिखता. लहर वाले मतदान में वोटर्स बेहद एक्टिव रहते हैं और बदलाव की जबरदस्त इच्छा उसकी मंशा होती है.

नहीं दिख रही लहर
इस बार मतदान प्रतिशत के आधार पर लहर गायब होने या लहर रहित चुनाव जैसे फैक्टर का आकलन करना जल्दीबाजी हो सकता है. यानि न तो इस चुनाव में मोदी लहर दिख रही है और न ही मोदी विरोधी लहर दिखती है. 2014 और 2019 के तीन-चार चरणों के हुए मतदान प्रतिशत का आकलन करेंगे तो कईं चीजें निकलकर सामने आएगी. इस बार फर्स्ट फेज में कुल 69.50 फीसदी मतदान हुआ जो 2014 की तुलना में महज 1.5 फीसदी ज्यादा था. दूसरे चरण में बराबर 69.44 वोट पड़े. तीसरे चरण में 2014 की तुलना में 1.8 फीसदी प्रतिशत बढ़कर 68.40 फीसदी वोट पड़े. पांचवें फेज़ में 62.22 फीसदी मतदान हुआ है.

भारत के लोकसभा चुनाव में 1977 में बदलाव की लहर के साथ पहले की तुलना में 5 फीसदी अधिक मतदान हुआ. 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या की सहानुभूति लहर और 2014 में मोदी लहर के चलते पहले की तुलना में 8 फीसदी ज्यादा वोटिंग हुई. अब तक के चरण में उन राज्यों में अच्छा मतदान हुआ है जहां क्षेत्रीय दल प्रभावी हैं. बीजेपी का वोटर मुखर होकर मतदान करता है जबकि क्षेत्रीय दलों के समर्थक कम मुखर होते हुए भी अपने दल के लिए वोटिंग करते हैं.

दो चरणों में क्या होगा?
चुनाव अभी भी खुला हुआ है जहां अभी मतदान बाकी है, वहां कुछ भी हो सकता है. स्थानीय मुद्दे और स्थानीय नेताओं की पकड़ चुनाव को मोड़ सकती है. बीजेपी शासित राज्यों में इस बार मोदी 100 में से 100 नंबर नहीं ला पाएंगे क्योंकि इन सीटों पर क्षेत्रीय दलों का आधार बेहद मजबूत है. लिहाजा बीजेपी को इस नुकसान का अनुमान हो चुका है और पार्टी इसकी भरपाई बंगाल, उड़ीसा और नॉर्थ ईस्ट राज्यों से पूरा करने में जुट गई है.

बन रहे तीन समीकरण
• पहला समीकरण या आकलन यह मान लिया जाए कि बीजेपी इस चुनाव में 225 से 240 के बीच सीटें जीतेगी. बहुमत के लिए बची सीटों की भरपाई एनडीए के सहयोगी घटक दल करेंगे. अगर ऐसा होता है तो नरेंद्र मोदी की प्रधानमंत्री के तौर पर वापसी निश्चित है.
• दूसरा समीकरण यह बन रहा है कि अगर बीजेपी 180 से 200 सीटों के बीच अटक जाती है तो ऐसे हालात में सत्ता की चाबी अन्य क्षेत्रीय पार्टियों के पास होगी, जो नरेंद्र मोदी के अलावा कोई दूसरा लचीला प्रधानमंत्री बनाने की डिमांड करेंगे. सूत्रों के मुताबिक संघ ने भी बीजेपी की सिंगल 200 सीटें आने की खुफिया रिपोर्ट तैयार की है. संघ नेता राम माधव भी एक विदेशी मीडिया को दिए गए इंटरव्यू में सहयोगी दलों के भरोसे सरकार बनाने का संकेत भी दे चुके हैं. हालांकि अमित शाह एंड टीम को अभी भी 250 सीटें जीतने की उम्मीद है.
• तीसरा समीकरण यह है कि गैर एनडीए और गैर यूपीए दल 150 सीटें जीतें और इमरजेंसी के बाद हुए 1977 जैसी स्थिति बने. तब इंदिरा गांधी को हटाने के लिए सारे क्षेत्रीय नेता, जनता पार्टी के साथ हो गए थे. जब देश में कोई ताकतवर नेता राजनीति को अपनी शर्तों पर परिभाषित करने लगता है और बाकी नेताओं के कद बहुत छोटे हो जाते हैं, तब इस तरह की स्थितियां उत्पन्न होती हैं. इस मामले में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि काफी हद तक मिलती है. यदि इस चुनाव के बाद ऐसा होता है तो देश को गैर यूपीए-एनडीए वाली सरकार देखने को मिल सकती है.

इन तमाम बन रहे समीकरणों के मद्देनजर कांग्रेस और बीजेपी ने गैर यूपीए और एनडीए दलों से संपर्क साधना शुरु कर दिया हैै. टीआरएस, वाइएसआर और बीजद से दोनों दलों के नेता टच में हैं. बीजेपी मजबूरी में ही सही लेकिन टीडीपी और बसपा से संपर्क साध सकती है.

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