Thursday, January 16, 2025
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लालू प्रसाद यादव राजनीति के अनगिनत किस्सों के जन्मदाता हैं

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बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव का आज 72वां जन्मदिन है. राजद के कार्यकर्ता उनका जन्मदिन धूमधाम से मना रहे हैं. इस खास रिपोर्ट में हम लालू के जीवन से जुड़े कुछ रोचक किस्सों के बारे में बता रहे हैं. लालू यादव का जन्म 11 जून, 1947 को बिहार के गोपालगंज जिले के फूलवरिया गांव में यादव परिवार के घर हुआ. लालू ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गोपालगंज में हासिल की. प्रारंभिक शिक्षा पूर्ण करने के बाद वो कॉलेज शिक्षा हासिल करने के राजधानी पटना आ गए. पटना के बीएन कॉलेज से लालू यादव ने लॉ में स्‍नातक तथा राजनीतिशास्‍त्र में स्‍नातकोत्तर की डिग्री हासिल की.

लालू यादव ने अपनी राजनीति की शुरुआत छात्र नेता के रूप में की. वो 25 साल की उम्र में पटना छात्रसंघ के अध्यक्ष चुने गए. इसी दौरान बिहार में जयप्रकाश नारायण का आंदोलन चल रहा था. लालू जेपी से प्रभावित थे इसलिए जेपी आंदोलन से जुड़ गए. आंदोलन के दौरान उनकी नजदिकियां जयप्रकाश नारायण, राजनारायण, कर्पुरी ठाकुर तथा सतेन्‍द्र नारायण सिन्‍हा जैसे राजनेताओं से बढ़ी. लालू में नेतृत्व की गजब क्षमता को देखते हुए जनता पार्टी ने उन्हें महज 29 वर्ष की उम्र में छपरा लोकसभा क्षेत्र से टिकट थमा दिया. लालू कांग्रेस विरोधी लहर पर सवार होकर संसद पहुंचे लेकिन जनता पार्टी की सरकार अपने पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पायी.

लालू यादव 1980 में सोनेपुर विधानसभा से जनता दल के टिकट पर विधायक चुने गए. अब बिहार के भीतर लालू की छवि बड़े यादव नेता के तौर पर उभरने लगी थी. देश के बड़े नेताओं की नजर भी उपर पड़ने लगी. 1985 का विधानसभा चुनाव लालू के लिए खुशियां लेकर आया. जनता दल को चुनाव में सरकार बनाने के लिए बहुमत तो नहीं मिला लेकिन लालू यादव को बिहार विधानसभा में सरकार से मुकाबला करने के लिए नेता विपक्ष का पद दिया गया. लालू भांप गये थे कि वो मुख्यमंत्री की कुर्सी के बहुत नजदीक है.

1990 के विधानसभा चुनाव में जनता दल सबसे बड़े दल के रुप में उभरा. पार्टी को विधानसभा की 122 सीटों पर जीत मिली. ज्यादा सीटें जीतने का कारण मुख्यमंत्री पद पर जनता दल का ही हक था. जनता दल के भीतर मुख्यमंत्री पद के चेहरे की तलाश होने लगी. दो दावेदार सामने आए. पहला नाम था राम सुंदर दास और दूसरा लालू यादव. प्रधानमंत्री वीपी सिंह की तरफ से जनता दल के भीतर से मुख्यमंत्री का चुनाव करने के लिए पर्यवेक्षक बनाकर चौधरी अजित सिंह और जार्ज फर्नांडिस को भेजा गया.

पर्यवेक्षकों ने पहले आपसी सहमति से मुख्यमंत्री के चुनाव के प्रयास किए लेकिन लालू वोटिंग के लिए अड़ गए. वोटिंग हुई तो लालू यादव को श्याम सुंदर दास से अधिक विधायकों का समर्थन हासिल हुआ. लालू जनता दल के विधायक दल के नेता चुने गए. लालू कुछ अलग थे तो उनका मुख्यमंत्री पद का शपथ ग्रहण भी अलग हुआ. पहली बार बिहार के राजनीतिक इतिहास में किसी नेता ने राजभवन के बाहर मुख्यमंत्री पद की शपथ ली.

लालू के नेतृत्व में जनता दल ने 1995 में बहुमत हासिल किया. स्वाभाविक था कि लालू के नाम पर चुनाव लड़ा गया था तो इस बार आसानी से लालू का मुख्‍यमंत्री बनना तय था. 1997 में लालू ने जनता दल से अलग होकर राष्ट्रीय जनता दल पार्टी का गठन किया. लालू यादव से जुड़े चारा घोटाले को लेकर सीबीआई ने आरोप पत्र दाखिल कर दिया था. जिस वजह से लालू यादव ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. उनके स्थान पर उनकी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाया गया. हालांकि राबड़ी के मुख्यमंत्री बनने से पूर्व 6 दिनों के लिए नीतीश कुमार की सरकार बनी लेकिन वो चल नहीं पायी.

1999 के चुनाव में लालू का जादू मतदाताओं के सिर एक बार फिर चढ़कर बोला. नई-नवेली पार्टी राजद सत्ता में काबिज हुई लेकिन इस बार लालू नहीं उनकी पत्नी राबड़ी देवी मुख्यमंत्री बनी. लेकिन 21वीं सदी लालू की सियासत के लिए सुखद नहीं रही. उनकी पार्टी राजद 2005 के बाद सत्ता के शीर्ष पर वापसी की बांट जोह रही है.

हालांकि 2015 के विधानसभा चुनाव में राजद ने जेडीयू के साथ मिलकर सत्ता में वाससी की लेकिन सत्ता के शीर्ष पर नीतीश कुमार काबिज हुए. लालू के पुत्र तेजस्वी को सरकार में उपमुख्यमंत्री बनाया गया. माना गया कि राजद की राजनीति की सुखद दिन एक बार फिर शुरु हो गए है. लेकिन 2018 में नीतीश कुमार राजद को गच्चा दे गए और सरकार से इस्तीफा देकर बीजेपी के समर्थन से सरकार बना ली.

हाल में हुए लोकसभा चुनाव में भी राजद को करारी हार का सामना करना पड़ा है. पार्टी के हालात इन चुनावों में इतने खराब रहे कि उसका खाता तक नहीं खुल सका. लालू की बेटी मीसा भारती को भी पाटलिपुत्र से हार का सामना करना पड़ा. इन चुनावों के नतीजे राजद के लिए किसी झटके से कम नहीं है.

लालू यादव को भ्रष्टाचार से जुड़े विभिन्न मामलों में 25 साल से ज्यादा की सजा सुनाई जा चुकी है. वो झारखंड के रांची में सजा काट रहे हैं. हालांकि वर्तमान में सेहत बिगड़ने के कारण इन दिनों उन्हें रांची के सरकारी अस्पताल (रिम्स) में रखा गया है, जहां वे हफ्ते में सिर्फ तीन लोगों से मिल सकते हैं.

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