राजस्थान के शेखावाटी की झुंझुनूं लोकसभा सीट, वही संसदीय क्षेत्र है जहां विधानसभा चुनाव से पहले ‘मोदी तुझसे बैर नहीं-वसुंधरा तेरी खैर नहीं’ का नारा सियासी फिजा में तैरा था. यहां के मतदाताओं ने इस नारे को सही साबित करते हुए वसुंधरा राजे से बैर निकाल लिया. झुंझुनूं की आठ विधानसभा में से सिर्फ दो पर कमल खिला. बीजेपी का आकलन है कि वसुंधरा से नाराज लोगों का गुस्सा निकल चुका है. लोकसभा चुनाव में मोदी के नाम से वोट मिलेंगे.

बीजेपी ने झुंझुनूं की सांसद संतोष अहलावत का टिकट काटकर मंडावा विधायक नरेंद्र खींचड़ को मौका दिया है. खींचड़ विशेष रूप से तैयार करवाए गए ‘मोदी रथ’ पर सवार होकर जनता से वोट मांग रहे हैं. प्रचार के दौरान बीजेपी प्रत्याशी वोटर्स से कह रहे हैं कि पीएम भी नरेंद्र हैं और तुम्हारा प्रत्याशी भी नरेंद्र है. यदि दिल्ली में मोदी की सरकार बनानी है तो झुंझुनूं में नरेंद्र को चुनिए.

आपको बता दें कि झुंझुनूं सैनिक, कारोबारी, किसान और सरकारी कर्मचारी बाहुल्य वाला जिला है. लिहाजा रिटायर्ड सैनिक और उनका परिवार मोदी, राष्ट्रवाद और वन रैंक-वन पेंशन के आधार पर बीजेपी के पक्ष में झुका दिखाई दे रहा है. हालांकि कई रिटायर्ड फौजी मोदी के सर्जिकल स्ट्राइक पर सियासत करने से खुश भी नहीं हैं, लेकिन फिर भी वो मोदी को हीरो मान रहे हैं. झुंझुनूं की सियासत किसान और जवानों की धुरी पर ही घुमती है, जहां राष्ट्रवाद औऱ कर्ज माफी दो बड़े चुनावी मुद्दे बनते दिखाई दे रहे हैं.

भीतरघात दोनों दलों के लिए सिरदर्द
बात करें अंदरूनी कलह की तो झुंझुनूं सीट पर भीतरघात दोनों प्रत्याशियों के लिए सिरदर्द साबित हो रही है. बीजेपी ने मौजूदा सांसद संतोष अहलावत का टिकट काटकर नरेंद्र खीचड़ को मैदान में उतारा है. ऐसे में अहलावत और उनके संबंधी पूर्व विधायक शुभकरण चौधरी नरेंद्र की राह में रोड़ा साबित हो सकते हैं. उधर कांग्रेस ने पहली बार ओला परिवार को दरकिनार करते हुए 5 बार विधायक रहे श्रवण कुमार को इस बार टिकट दिया है. इससे विधायक बृजेंद्र ओला और फतेहपुर विधायक हाकिम अली पर सबकी नजरें बनी हुई हैं.

जानकारों की मानें तो बृजेंद्र ओला ने अपने समर्थकों को गुपचुप जो संदेश देना था, वो दे दिया है. हाकिम अभी चुप हैं. वे चाहकर भी मुस्लिम वोट कांग्रेस से दूर नहीं करवा पाएंगे. उनकी एक मजबूरी यह भी है कि ऐसा करने का प्रयास करते ही अगले चुनाव में उनके टिकट और जीत, दोनों पर संकट के बादल मंडरा जाएंगे. हालांकि फतेहपुर से बाकी जातियों के वोट बटोरना भी श्रवण कुमार के लिए चुनौती है. मंडावा से खुद नरेंद्र विधायक हैं इसलिए उनको लीड मिलने की पूरी संभावना है.

इसके अलावा, यहां यह भी चर्चा है कि नरेंद्र से हारने वाली कांग्रेस प्रत्याशी रीटा चौधरी भी चाहती हैं कि नरेंद्र चुनाव जीत जाए क्योंकि फिर उपचुनाव होने से रीटा को मौका मिल सकता है. पूर्व पीसीसी चीफ चंद्रभान भी अभी तक श्रवण के समर्थन में प्रचार करते नहीं नजर आए हैं. सूरजगढ़ से श्रवण कुमार चुनाव हारे थे. यहां से बीजेपी विधायक सुभाष पूनिया के लिए बढ़त बनाए रखना जरूरी हो गया है. बाकी सभी विधायक जेपी चंदेलिया, जितेंद्र कुमार और राजकुमार पूरी तरह से श्रवण के लिए दिन-रात एक किए हुए हैं. वहीं, बसपा विधायक राजेंद्र गुढा भी अंदरखाने कांग्रेस के साथ दिखाई दे रहे हैं.

बीजेपी एक बार खोल सकी खाता
शेखावाटी की झुंझुनूं सीट वैसे तो कांग्रेस का मजबूत किला रही है, लेकिन पिछली बार मोदी लहर में यहां पहली बार बीजेपी का कमल खिल गया. संतोष अहलावत ने शीशराम ओला की पुत्रवधू राजबाला ओला को करीब 2 लाख 34 हजार वोटों से चुनाव हराया. इस बार भी बीजेपी की यहां से जीत होती है तो सिर्फ मोदी मैजिक के बलबूते ही होगी जहां मुकाबला फिलहाल काफी रोचक होने की उम्मीदें है. श्रवण कुमार ने विधायक के तो चुनाव खूब लड़े हैं, लेकिन सांसद का चुनाव पहली बार लड़ रहे हैं इसलिए उन्हें जीतने के लिए बहुत ज्यादा जोर लगाना होगा. सियासी उठापठक में माहिर श्रवण कुमार के दांव-पेंचों पर सबकी नजर है.

झुंझुनूं के अन्य सियासी समीकरण
झुंझुनूं भी राजस्थान की राजनीति का जाट लैंड है, इसीलिए दोनों ही दलों ने जाट उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं. ऐसे में जाटों के वोट आधे-आधे दोनों उम्मीदवारों के जाने के आसार है. मुस्लिम मतदाता यहां पर काफी निर्णायक है लेकिन एससी और जनरल वर्ग का झुकाव बीजेपी के पक्ष में दिखाई दे रहा है. जानकार मानते है कि जातियों के आधार पर किसी का पलड़ा भारी होने का अनुमान नहीं लगाया जा सकता क्योंकि यहां कि जनता बेहद समझदार और पढ़ी-लिखी है. यहां का मतदाता सोच-समझ कर अपना वोट इस्तेमाल करता है.

एक नज़र पिछले आंकड़ों पर भी
बात करें साल 2014 के लोकसभा चुनावों की तो झुंझुनूं सीट पर बीजेपी के संतोष अहलावत 4 लाख 88 हजार 182 वोट लेकर विजयी रहे. कांग्रेस प्रत्याशी राजबाला ओला को 2 लाख 54 हजार 347 वोट मिले और वे चुनाव हार गईं. 2009 के चुनावों में कांग्रेस के शीशराम ओला ने जीत दर्ज की थी. ओला को 3 लाख 6 हजार 330 वोट मिले. बीजेपी के दशरथ शेखावत को 2 लाख 40 हजार 958 मतों के साथ हार का सामना करना पड़ा. 2018 में हुए विधानसभा चुनाव के परिणामों पर नज़र डालें तो यहां की कुल 8 सीटों में से 5 पर कांग्रेस का कब्जा है और दो सीटें बीजेपी के पास है जबकि 1 सीट बसपा के खाते में गई. झुंझुनूं, नवलगढ़, पिलानी, खेतड़ी व फतेहपुर पर कांग्रेस प्रत्याशी विजयी रहे तो सूरजगढ़ व मंडावा सीट पर बीजेपी ने बाजी मारी. उदयपुरवाटी सीट पर बसपा प्रत्याशी जीतकर विधानसभा पहुंचे.

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