झारखंड में इस बार 5 सालों में तीसरी बार सत्ता का चेहरा बदला है. सरकार वहीं है लेकिन बदला है तो केवल चेहरा. पहले हेमंत सोरेन, उसके बाद चंपई सोरेन और फिर से हेमंत सोरेन, जिन्होंने 4 जुलाई 2024 को तीसरी बार, झारखंड के 13वें मुख्यमंत्री के रूप में मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. एक दिन पहले ही चंपई सोरेन ने सीएम पद से इस्तीफा दिया था. चंपई केवल 152 दिन झारखंड के मुख्यमंत्री रहे. उन्होंने हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद 2 फरवरी को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी और 3 जुलाई को इस्तीफा दे दिया.
अब सवाल ये है कि आखिर झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन ने मुख्यमंत्री पद पर फिर से आसीन होने में इतनी जल्दबाजी क्यों की, जबकि आगामी दो से तीन महीनों में विधानसभा चुनाव सिर पर हैं. इसके अलावा, सोरेन अभी जमानत पर ही रिहा हुए हैं. दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल का ताजा उदाहरण उनके सामने हैं जिनको जमानत के बाद फिर से जेल जाना पड़ा है. सियासी गलियारों में भी इस बात को लेकर एक राय बन रही है कि हेमंत सोरेन का ये फैसला कहीं झामुमो को भारी न पड़ जाए.
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अब ये समझना है कि क्या हेमंत सोरेन के इस फैसले से झारखंड मुक्ति मोर्चा के लिए सत्ता में वापसी संभव हो पाएगी? और ये भी समझने की कोशिश होनी चाहिये कि चंपई सोरेन के मुख्यमंत्री बने रहने से हेमंत सोरेन को किसी तरह के नुकसान की आशंका थी? विशेषज्ञों की मानें तो चंपई को सीएम रहने हेमंत सोरेन को कोई खतरा नहीं था. अपितु इस बात का तो उन्हें फायदा ही होगा. आगामी चुनावों में चंपई सोरेन की रणनीति और हेमंत सोरेन के प्रति जनता की सहानुभूति दोनों झारखंड मुक्ति मोर्चा को मिलती. अंदरखाने से खबर आई है कि चंपई सोरेन ने हेमंत सोरेन को समझाने की भी पूरी कोशिश की थी. चंपई सोरेन का मानना था कि महज दो महीने के लिए मुख्यमंत्री बदले जाने से बाहर अच्छा संदेश नहीं जाएगा.
क्या चंपई के रहने से हेमंत को था खतरा?
चंपई सोरेन ने हेमंत सोरेन को ये बोलकर भी समझाने की कोशिश की कि वो अभी अभी जमानत पर छूटे ही हैं. मतलब, ऐसी बात तो नहीं ही है कि वो अदालत से पूरे मामले में बरी कर दिये गये हों – और लगे हाथ ये आशंका भी जाहिर की कि उनके मुख्यमंत्री बनने पर राजनीतिक विरोधी सरकार को डिस्टर्ब करने के अलग अलग हथकंडे आजमा सकते हैं. हालांकि चंपई सोरेन की बातों का हेमंत सोरेन पर कोई असर नहीं हुआ. जब हेमंत अपनी बात पर अड़ गए तो मजबूरी में चंपई को सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा.
क्या घटनाक्रम में है कल्पना सोरेन का हाथ?
सियासी जानकारों में ये भी कानाफूसी है कि इस घटनाक्रम के पीछे पूरी तरह से हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन का हाथ है. दरअसल हेमंत जेल जाने से पहले शासन की बागड़ोर कल्पना को देना चाहते थे. गाण्डे से विधायक कल्पना सोरेन के नाम पर जब पार्टी में सहमति नहीं बनी, तब मजबूरी में हेमंत ने सीएम पद चंपई सोरेन को दिया. चंपई को हेमंत अपना राजनीतिक गुरू मानते हैं. अपने करीब 5 महीने के शासनकाल में चंपई की कोई शिकायत कभी हेमंत के पास नहीं पहुंची क्योंकि पार्टी के सभी विधायक और गठबंधन के नेता भी उनका सम्मान करते हैं. चंपई सोरेन का कार्यकाल भी काफी अच्छा रहा है. कभी कोई ऐसी बात नहीं हुई, जो पार्टी या सरकार के खिलाफ जाती हो.
अब बात ये निकलकर सामने आ रही है कि चंपई सोरेन को हटाकर हेमंत सोरेन खुद नहीं बल्कि पत्नी कल्पना सोरेन को मुख्यमंत्री बनाना चाह रहे थे लेकिन चंपई सोरेन ये प्रस्ताव मानने को बिलकुल राजी नहीं हुए. चंपई सोरेन ने साफ साफ बोल दिया कि हेमंत सोरेन के मुख्यमंत्री बनने से उनको कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन कल्पना सोरेन के नाम पर वो कतई तैयार नहीं होंगे.
विपक्ष ने परिवारवाद को हेमंत सोरेन को घेरा
जेल से बाहर आते ही हेमंत सोरेन के आवास पर गठबंधन सहयोगियों की बैठक की एक मीटिंग हुई थी, इस बैठक में यह फैसला लिया गया कि हेमंत को फिर से सीएम बनना चाहिए. गठबंधन में शामिल कांग्रेस, राजद और सीपीआईएम के नेताओं का भी यही मानना था. हालांकि इसका असर ये हुआ कि विपक्ष ने अभी से ही हेमंत सोरेन पर सवाल उठाना शुरू कर दिया है. झारखंड बीजेपी अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने तो बोल दिया है कि ये साफ हो गया है कि सोरेन परिवार से बाहर का कोई आदिवासी नेता ही क्यों न हो, मुख्यमंत्री तो परिवार से ही बनेगा. वहीं सांसद शिवराज सिंह चौहान ने हेमंत सोरेन से पूछा है कि आखिर चंपई सोरेन को मुख्यमंत्री पद से क्यों हटाया? सोरेन परिवार का एक ही मंत्र है – मैं ही रहूंगा और कोई नहीं. यानी, बीजेपी ने अभी से परिवारवाद की राजनीति को लेकर हेमंत सोरेन पर हमला बोल दिया है.
चंपई के मुख्यमंत्री बने रहने से होता फायदा
हेमंत सोरेन, चंपई सोरेन को मुख्यमंत्री बने रहने देते तो क्या निश्चिंत होकर चुनाव कैंपेन पर फोकस नहीं करते. चुनावी रणनीति तैयार करते, घूम-घूम कर जोर-शोर से चुनाव प्रचार करते – और कोशिश करते कि ज्यादा से ज्यादा सीटें झारखंड मुक्ति मोर्चा को मिलें. और अगर चुनाव जीत जाते तो बड़े आराम से मन करता तो खुद या कल्पना सोरेन को मुख्यमंत्री बना देते. तब तो शायद ही किसी को आपत्ति होती, या किसी की आपत्ति का कोई मतलब ही होता, फिर चाहें वो चंपई सोरेन ही क्यों न हों.
अब चंपई कोई गए गुजरे नेता तो हैं नहीं. उनका भी अपना अच्छा खासा जनाधार है. झारखंड के कोल्हन क्षेत्र से आने वाले चंपई सोरेन का इलाके में काफी मजबूत जनाधार है. इलाके की दर्जन भर से ज्यादा विधानसभा सीटों पर उनका खासा प्रभाव है. इस तरह से उन्हें पद से हटाने का जनता के संदेश गलत जा सकता है. निश्चित तौर पर चंपई इस फैसले से दुखी होंगे. भला हो चंपई सोरेन का जो बिहार के जीतनराम माँझी की तरह कुर्सी से नहीं चिपके, वर्ना लेने के देने पड़ सकते थे.
हालांकि राजनीतिक तकाजा कहता है कि हेमंत सोरेन सत्ता से दूर रहते तो अगले विधानसभा चुनाव में उन्हें और उनकी पार्टी को इसका ज्यादा फायदा मिलता. अगर हेमंत थोड़ा सा धैर्य दिखाते तो उनकी जीत अगले चुनाव में सौ प्रतिशत पक्की हो सकती थी. हो सकता है वे अब भी जीत जाएं लेकिन अगले कुछ महीनों तक उनके राज के दौरान एंटी इन्कंबेन्सी कितनी बढ़ेगी यह अभी से कहा नहीं जा सकता. इतना ज़रूर है कि जेल जाने के कारण उनके प्रति जो सहानुभूति उपजी थी, उसमें कमी आना लाज़मी है.