चौतरफा युद्धबंदी से कैसे निबटेगी मोदी सरकार? चीन, नेपाल, बांग्लादेश के बाद अब भूटान ने की ऐसी हरकत

ये हो क्या रहा है, आलतू-जलालतू आई बला को टाल तू, लेकिन कितनी बलाओं को टाले भारत, अब भूटान ने आंख दिखाते हुए रोक दिया अपनी नदियों का पानी, भूटान के बारे में कभी सोचा भी नहीं जा सकता था..

India Vs Bhutan
India Vs Bhutan

पाॅलिटाॅक्स न्यूज. आप कह सकते हैं कि यह क्या हो रहा है. एक-एक करके एक-एक पड़ौसी देश भारत के लिए हर दिन एक नई समस्या पैदा कर रहे हैं. आम भाषा में कह सकते हैं ‘आलतू-जलालतू आई बला को टाल तू’, लेकिन यहां तो बला ही बला हो रही है. लगता है सारी बलाओं ने आपस मे एक दूसरे से हाथ मिला लिया है.

खबर की यह भूमिका क्यूं, क्योंकि इसी भूमिका से ही खबर को आसानी से समझा जा सकता है. सवाल उठ सकता है कि क्या यह भारत की रणनीतिक और कूटनीतिक घेराबंदी है. क्यूं एक-एक देश की भारत से दूरी बन रही है. पाकिस्तान और चीन के बारे में तो सोचा और समझा जा सकता है. दोनों देशों से सीमा विवाद को लेकर पहले भी सैनिक टकराव हो चुके हैं. लेकिन नेपाल, बंगलादेश और अब भूटान के बारे में क्या कहिएगा?

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पहले कर लेते हैं, भारत के परम पड़ौसी मित्र भूटान की

यह बात ज्यादा पुरानी नहीं, दो साल पहले की है. जब भारत ने भूटान से अपनी दोस्ती का वादा निभाया. भूटान के क्षेत्र डोकलाम में कब्जे के इरादे से घुसी चीनी सेना के सामने भारतीय सेना डटी रही. 73 दिनों तक युद्ध जैसे चले गतिरोध के बाद चीनी सेना को भारतीय सेना के दबाव के चलते पीछे हटना पड़ा. 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भूटान यात्रा के दौरान भूटान को 45 हजार करोड़ की सहायता की घोषणा भी की. लेकिन अभी हाल ही के वाक्ये से भारत को बड़ा झटका लगा है. भूटान ने असम से जुड़े एकक्षेत्र में वहां की नदियों से बहकर आने वाले पानी को पूरी तरह रोक दिया है. ऐसा पहले कभी नहीं हुआ.

भूटान के द्वारा अचानक नदियों का पानी रोकने से आसाम के उन हजारों किसानों पर संकट आ गया है, जो नेपाल से बहकर आने वाले पानी से अपने खेतों में खेती करते थे. अब यह किसान भूटान सरकार के खिलाफ नारेबाजी कर रहे हैं, जिसे सरकार नहीं रोक पा रही है. इससे भारत भूटान संबंधों पर सीधा असर पड़ना तय हो गया है. हालांकि इस विवाद पर भारत सरकार का अभी तक कोई बयान नहीं आया है लेकिन इसे भूटान की भारत विरोधी पहल के रूप में देखा जा रहा है. क्योंकि भूटान के साथ भारत के रिश्ते हमेशा बहुत ही प्रगाड़ और मजबूत रहे हैं. जिस नदी के बहाव का भूटान सरकार ने रोका है, इस नदी का पानी सैंकड़ों वर्षों से भारत की सीमा में आता रहा है. जिस पर भूटान ने कभी भी रोक लगाने का प्रयास नहीं किया. भूटान के बाद जिक्र कर लेते हैं, नेपाल का.

अब छोटा भाई नहीं रहा नेपाल

हमारे छोटे भाई के रूप में पहचान रखने वाले नेपाल में कहा जा रहा है कि नेपाल भारत का छोटा भाई नहीं है. भारत अंग्रेजों का गुलाम देश रहा है, जबकि नेपाल पर कभी कोई राज नहीं कर सका. भारत और नेपाल के बीच समानता नहीं है. ऐसी ही बहुत सारी बातें इन दिनों नेपाल में भारत विरोधी कही जा रही है. नेपाल के रेडियों पर भारत विरोधी गाने बजाए जा रहे हैं. भारत नेपाल बॉर्डर जो कभी खुला रहता था, उस बॉर्डर पर नेपाल ने अपनी सेना की तैनातगी शुरू कर दी है.

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बिहार से सटे एक गांव में एक पुराने बांध की मरम्मत कर रहे भारतीय इंजीनियर और श्रमिकों को काम करने से रोक दिया गया. बांध की मरम्मत का काम नहीं होने से बिहार में बाढ़ का खतरा कई गुना बढ़ गया है. रही सही कसर नेपाल ने अपने नागरिकता देने के कानून में संशोधन करके पूरी कर दी. उल्लेखनीय है कि नेपाल भारत बॉर्डर की सीमा से सटे गांवों के लोगों के बीच आपसी सांस्कृृतिक ओर सामाजिक रिश्ते रहे हैं. शादी ब्याह भी होते हैं. अब नेपाल ने भारत की उन महिलाओं पर 7 साल तक नारिकता देने पर रोक लगा दी है, जो किसी नेपाल क्षेत्र के रहने वाले से शादी करेगी.

खास पहलू यह है कि नेपाल के जिन मधेशियों के लिए भारत पर चक्का जाम का आरोप लगा था और नेपाल से रिश्तों में खटास आई थी, उन मधेशियों ने भारत के खिलाफ बोलना शुरू कर दिया है.

बांग्लादेश ने भी थाम लिया चीनी हाथ

बांग्लादेश की आजादी में भारत निर्णायक भूमिका में रहा. इस बात को बांग्लादेश की हर सरकार ने सम्मान भी दिया. बांग्लादेश और भारत के बीच अच्छे राजनीतिक और व्यापारिक रिश्ते भी हैं. भारत चीन के बीच चल रहे सीमा विवाद के दौरान बांग्लादेश ने चीन की एक व्यापारिक डील को स्वीकार करके भारत को झटका दिया है.

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इस डील के तहत चीन ने बांग्लादेश से आयात सामानों पर 97 फीसदी कर को समाप्त कर दिया है. इससे बांग्लादेश और चीन के बीच व्यापार काफी बढ़ेगा, जिसका सीधा असर भारत और बांग्लादेश के व्यापार पर पढ़ेगा. विशेषज्ञों के अनुसार इसका शुरूआती समय में प्रभाव नजर नहीं आएगा लेकिन कुछ समय बाद यह भारत की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेगा.

क्या है इन देशों को लेकर सरकार की नीति

इस बात को समझ लिया जाए कि भारत के पड़ौसी देशों की ओर से लिए जा रहे निर्णयों को लेकर मोदी सरकार की क्या नीति हैं. यहां एक बात साफ हो रही है कि मोदी सरकार इन सभी देशों के प्रति चुप्पी साधकर बैठी है. नेपाल के मामले में सरकार ने तय किया है कि नेपाल को लेकर प्रतिक्रिया देने से बचा जाएगा. हो सकता है कि भारत चीन सीमा विवाद तक यही नीति बंगलादेश और भूटान के संबंध में भी रखी जाए.

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खैर, जो भी है लेकिन एक के बाद एक पड़ौसी ऐसे मुंह मोड़ रहे हैं, जैसे उनका और हमारा कोई मधुर रिश्ता ही नहीं रहा है. असल में यह सब पिछले कुछ सालों में तेजी से हुआ है. पड़ौसी देशों से इस तरह के विवाद सामने आने और उनका निराकरण नहीं कर पाने को भारत की विदेश नीति की असफलता से भी जोड़कर देखा जा रहा है. वहीं एक वर्ग इसे भारत के कमजोर होते पक्ष और चीन के बढ़ते प्रभाव के रूप में भी देख रहा है.

पाकिस्तान में हो रहा है चीनी सैनिकों का जमावड़ा

भारत के दो दुश्मन देश अब नजदीकी दोस्त बन चके हैं. जहां एक और चीन ने गलवान घाटी, देपसांग के साथ अरूणाचल प्रदेश और सिक्किम की सीमा पर युद्ध का मोर्चा खोल रखा है, वहीं पाकिस्तान में भी भारत से सटे सीमा क्षेत्रों में चीनी सैनिकों की मौजूदगी बढ़ती जा रही है. चीन पाकिस्तान में भारतीय सीमाओं के नजदीक सैन्य ठिकाने बनाने में लगा है. इसके लिए वह हजारों करोड़ रूपए का निवेश कर रहा है. चीन भारतीय सीमाओं के नजदीकी क्षेत्रों में एयरपोर्ट का भी निर्माण करवा रहा है. इसके साथ ही बड़ी संख्या में सैन्य बंकर भी बनाए जा रहे हैं.

 

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