Politalks.News/Rajasthan. पंजाब में सुलह के बाद दिल्ली आलाकमान का फोकस अब राजस्थान पर है. राजस्थान में पिछले साल सीएम अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच हुई खुली जंग को सभी ने देखा है. कई दिनों तक चले सियासी ड्रामे के बाद प्रियंका गांधी ने ‘मिठाई खिलाकर‘ सब कुछ ठीक कर लिया गया था. लेकिन अब एक बार फिर सचिन पायलट ने आलाकमान को अपने किए हुए वादों को याद दिलाया है. जिसके बाद राजस्थान के समीकरणों को सुलझाने की कोशिश हो रही है.
राजस्थान के लिए भी तैयार हुआ फॉर्मूला?
कांग्रेस के बड़े नेता सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायकों को सियासी घमासान के बाद पार्टी ने मना तो लिया था. लेकिन एक साल बीत जाने के बाद भी उनकी औऱ से उठाए गए मुद्दों पर कुछ खास हुआ नहीं है. एक साल से हाथ पर हाथ धरे पायलट के समर्थक आलाकमान के राजस्थान की ओर देखने का इंतजार ही कर रहे हैं. पायलट भी एक बार तो बोल चुके हैं कि कोरोना काल के बाद अब कोई वजह नहीं है कि सुलह कमेटी की मीटिंगों में हुए फैसलों को लागू नहीं किया जाए.
पंजाब में भी इसी तरह कैप्टन अमरिंदर सिंह और सिद्धू के बीच लगातार तनाव चल रहा था, जिसके बाद कांग्रेस आलाकमान ने ‘खिलाड़ी‘ सिद्धू को प्रदेश अध्यक्ष पद सौंपकर इस वर्चस्व की लड़ाई को शांत करवाया. अब कांग्रेस पार्टी राजस्थान में भी इसी फॉर्मूले को अपनाना चाहती है. बताया जा रहा है कि राजस्थान में 28 जुलाई के आसपास कैबिनेट विस्तार देखा जा सकता है. ये खासतौर पर पायलट गुट को खुश करने के लिए होगा. ये भी बताया जा रहा है कि कैबिनेट में पायलट समर्थक करीब 3 या 4 विधायकों को जगह मिल सकती है.
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प्रदेश कांग्रेस प्रभारी अजय माकन और संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल जयपुर में मुख्यमंत्री गहलोत को आलाकमान के फैसले से अवगत कराएंगे. जैसा की पंजाब में पार्टी नेतृत्व के फैसले पर ही अंतिम मुहर लगी, वैसे ही कांग्रेस राजस्थान में भी करना चाहती है. इस दौरान इन दोनों का दोनों ही धड़ों से मुलाकात का कार्यक्रम है. हालांकि वेणुगोपाल से जब AICC में पत्रकारों ने दौरे का कारण पूछा तो वेणुगोपाल ने कहा कि वो राजस्थान से राज्यसभा के सांसद हैं और ऑफिशियल काम से जयपुर जा रहे हैं.
ज्योतिरादित्य और जितिन प्रसाद के बाद पायलट को नहीं खोना चाहती कांग्रेस
दरअसल, कांग्रेस आलाकमान की अब भविष्य की राजनीति पर पूरी नजर है. गांधी परिवार एमपी में ज्योतिरादित्य सिंधिया और यूपी में जितिन प्रसाद की बगावत और पार्टी छोड़ने के बाद राजस्थान में पायलट की बगावत नहीं देखना चाहता. पार्टी को लेकर देशभर में एक नैरेटिव ये बन रहा है कि कांग्रेस से युवा नेताओं का मोहभंग हो रहा है. वैसे भी ओल्ड गार्ड मानी जाती रही कांग्रेस को अब नई पीढ़ी के नेताओं की ज़रूरत है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बाद राजस्थान में सचिन पायलट एकमात्र ऐसे नौजवान नेता हैं जो की क्राउड पुलर है. राजस्थान ही नहीं यूपी, उत्तराखंड सहित हिंदी बैल्ट में सचिन पायलट का जनाधार और युवाओं के साथ जुड़ाव है. राजस्थान के युवाओं में तो पायलट का जबरदस्त क्रैज है. आलाकमान गहलोत और पायलट को साथ रखना चाहता है. दोनों में से एक भी अगर छूटता है तो राजस्थान में सरकार का रिपीट होना मुश्किल है. ऐसी स्थिति में आलाकमान ना तो गहलोत को नाराज कर सकता है ना ही पायलट को नाराज कर सकता है. क्योंकि इसमें कोई दो राय नहीं कि सचिन पायलट ने पहले भी राजस्थान में मृत पड़ी कांग्रेस को सत्ता पर काबिज करवाया है.
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अब आलाकमान के वादा निभाने का है समय
कांग्रेस में पंजाब और उत्तराखंड में आलाकमान के फैसलों को ध्यान में रखते हुए माना जा रहा है कि राजस्थान में भी सीएम गहलोत को ही समझौता करना होगा. क्योंकि कांग्रेस ये कभी नहीं चाहेगी कि सचिन पायलट एक बार फिर बगावत पर उतर जाएं. चुनाव से पहले ऐसी बगावत अब कांग्रेस को काफी महंगी पड़ सकती है. तो ऐसे में मुख्यमंत्री गहलोत पर ही पार्टी का पूरा दबाव होगा. पायलट को किया वादा निभाने की बारी अब कांग्रेस आलाकमान की है. दरअसल पिछले साल जब सचिन पायलट अपने समर्थक करीब 18 विधायकों के साथ हरियाणा के होटल में ठहरे थे. राजस्थान में गहलोत सरकार और कांग्रेस पार्टी की मुश्किलें बढ़ गईं थी. सचिन पायलट जैसे जनाधार वाले युवा नेता की ऐसी खुली बगावत पार्टी के लिए एक बड़ा झटका थी. कई दिनों तक ये पॉलिटिकल ड्रामा चला, पायलट को मनाने के लिए कांग्रेस ने अपने तमाम नेताओं को लगा दिया. विधानसभा में फ्लोर टेस्ट की मांग तक हो गई, लेकिन इसी बीच पार्टी की नई क्राइसिस मैनेजर प्रियंका गांधी ने राहुल गांधी से बातचीत के बाद सचिन पायलट को मनाया और पायलट ने फ्लोर टेस्ट में शामिल होकर अपनी पार्टी को ही समर्थन दिया और गहलोत सरकार तब से सुरक्षित है.
उस दौरान आलाकमान के निर्देश पर बनी सुलह कमेटी की मीटिंगों में हुए वादों को एक साल होने आया है. अब गेंद पायलट नहीं, कांग्रेस आलाकमान के पाले में है. अब कैबिनेट विस्तार की खबरों के बीच माना जा रहा है कि कांग्रेस पार्टी पायलट को किए गए उसी वादे को पूरा करने जा रही है. यानी अगर पायलट धड़े से ज्यादा विधायकों को कैबिनेट में जगह मिलती है तो शिकायतों को पूरी तरह खत्म किया जा सकता है. हालांकि अगर ऐसा हुआ तो पंजाब की तरह यहां भी सीएम गहलोत के लिए ये एक बड़ा झटका और आने वाले चुनावों के लिए साफ मैसेज की तरह होगा. कुल मिलाकर सचिन पायलट का कद कांग्रेस पार्टी किसी भी शर्त पर कम नहीं करना चाहती है.
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राजस्थान में एक अनार सौ बीमार जैसे हैं हालात
राजस्थान सरकार में फिलहाल करीब 9 मंत्रीपद खाली हैं. जिनमें से 3 से 4 पद पायलट समर्थक विधायकों को दिए जा सकते हैं. ऐसे में सीएम अशोक गहलोत के सामने सबसे बड़ी मुश्किल ये होगी कि वो उनके अपने गुट के विधायकों को इसके लिए कैसे मनाते हैं. फिर निर्दलीयों के अलावा बसपा से हाथ का दामन थामने वाले 6 विधायक भी सीएम गहलोत से आस लगाए बैठे हैं. ऐसे में मुख्यमंत्री गहलोत के सामने ये एक बड़ी चुनौती होगी. अगर सब कुछ ठीक नहीं रहा और सीएम गहलोत अपने समर्थक विधायकों को इसके लिए नहीं मना पाए तो राजस्थान में एक बार फिर घमासान नजर आ सकता है.