दिल्ली लोकसभा क्षेत्र भले ही काफी छोटा हो लेकिन यहां की 7 संसदीय सीटें देश की सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं. मोदी के सत्ता में आने से पहले तक यहां पर कांग्रेस का एकछत्र राज रहा था. मोदी लहर के बीच 2014 और 2019 में भारतीय जनता पार्टी ने यहां की सभी सीटों पर कब्जा जमा रखा है. विपक्ष विहीन करने की तैयारी के बीच बीजेपी यहां सभी सीटों पर जीत की हैट्रिक जमाने को बेताब है. वहीं बीजेपी के पहाड़ को रोकने के लिए आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने गठबंधन बनाया है. इससे 2014 के परिणामों के हिसाब से तो आसानी से बीजेपी को मात दी जा सकती है लेकिन 2019 में दोनों पार्टियों का वोट शेयर गिरा है. ऐसे में बीजेपी को टक्कर देना मिला जुला सौदा है. हालांकि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के चलते आप को सहानुभूति भरे केवल 12 फीसदी स्विंग वोटर्स का साथ भी मिल गया तो पूरी दिल्ली से बीजेपी का सूपड़ा साफ होना तय है.
इंडिया अलांयस के तहत दिल्ली की 7 सीटों में से आम आदमी पार्टी 4 और कांग्रेस 3 सीटों पर बीजेपी के सामने चुनौती पेश कर रहे हैं. यहां बीजेपी के पास केवल और केवल नरेंद्र मोदी का चेहरा है. आप को लगता है कि केजरीवाल की गिरफ्तारी की वजह से उन्हें सहानुभूति के वोट पड़ता निश्चत है. वहीं कांग्रेस केजरीवाल की लोकप्रियता के घोड़े पर सवार है और उन्हें लग रहा है कि इसका फायदा उन्हें जरूर मिलेगा. हालांकि ये बात भी सच है कि हर किसी को लग रहा है अगर आप आदमी को डिसाइडर फैक्टर बनना है तो उसे स्विंग वोटर्स की बहुत जरूरत पड़ने वाली है.
6 फीसदी स्विंग वोटर्स से भी बदलेगा समीकरण
अगर वास्तविकता की बात की तो घट भी सकती है. अगर 2019 के बैंचमार्क के साथ जाएं और मान लें कि 6 फीसदी स्विंग वोटर्स आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के पक्ष में चले जाते हैं तो ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा. बस बीजेपी की संख्या 5 सीटों तक पहुंच जाएगी. आप और कांग्रेस को दो सीटें मिल सकती हैं. यही संख्या अगर 9 फीसदी तक पहुंचती है तो गठबंधन बाजी पलट सकता है. उस स्थिति में दिल्ली में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के हिस्से में 5 सीटें मिलने की संभावना प्रबल है. बीजेपी का आंकड़ा केवल दो सीटों पर सिमट सकता है.
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तीसरी संभावना एक अलग समीकरण बना सकती है. चूंकि राजनीति में कुछ मिनटों में कुछ भी हो सकता है. इसी आधार पर मान लिया जाए कि सत्ताधारी सरकार या फिर सहानुभूति वोटर्स के चलते 12 फीसदी स्विंग वोटर्स गठबंधन के पक्ष में शिफ्ट हो जाएं तो बीजेपी पहली बार दिल्ली में खाता तक नहीं खोल पाएगी. हालांकि वर्तमान वोट शेयर पर फोकस करें तो दिल्ली में बीजेपी को चुनौती देना इतना आसान नहीं होने वाला है.
चार सीटों पर पकड़ बना सकती है आप-कांग्रेस
2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और आप का कुल वोट शेयर करीब 47 फीसदी रहा था. वहीं बीजेपी को करीब 46 फीसदी वोट शेयर मिला. हालांकि उस समय कांग्रेस और आप ने अलग अलग चुनाव लड़ा था. 2019 में दोनों पार्टियों के वोट शेयर में खासी गिरावट आयी. बीजेपी का वोट शेयर बढ़कर 52 फीसदी और आप का वोट शेयर 35 फीसदी रहा. कांग्रेस का वोट शेयर गिरकर 12 फीसदी के करीब आ गया. हालांकि दिल्ली की चांदनी चौक, नार्थ ईस्ट दिल्ली, नई दिल्ली और ईस्ट दिल्ली के वोट शेयर में केवल 10 से 12 फीसदी मतों का अंतर रहा जिसमें बदलाव संभव है.
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चांदनी चौक और मनोज तिवारी व कन्हैया कुमार वाली नार्थ दिल्ली में अगर 6 फीसदी स्विंग वोटर्स भी गठबंधन के साथ चला गया तो यहां बीजेपी का खाली हाथ रहना निश्चित है. ईस्ट दिल्ली में भी मुकाबला 50-50 माना जा रहा है. इन सभी चार सीटों पर आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के लिए उम्मीद की किरण है. दक्षिण दिल्ली, पश्चिमी दिल्ली और नार्थ वेस्ट दिल्ली में बीजेपी भारी है क्योंकि यहां बीजेपी ने आधे से भी अधिक मार्जिन से सीटें जीती थीं. यहां बीजेपी का वोट शेयर मार्जिन 10 फीसदी से भी अधिक चल रहा है. अगर यहां स्विंग वोटर्स का 12 फीसदी हिस्सा गठबंधन को मिलता है तो बीजेपी के लिए मामला गड़बढ़ होगा.
अगड़ी वोटर्स में सेंधमारी हुई तो पलटेगा पासा
अगर दिल्ली में कोई बड़ा उलटफेर करना है तो अगड़ी जाति, पिछड़ी जाति और दलित वोटबैंक में बडे़ स्तर पर सेंधमारी करनी पड़ेगी. ऐसा इसलिए क्योंकि बीजेपी ने पिछले कुछ सालों में दिल्ली के अंदर इन सभी समुदायों के बीच में खुद को काफी मजबूत कर लिया है. अगर अगड़ी जाति की बात करें तो 2014 में दिल्ली में बीजेपी को उनका 62 फीसदी वोट मिला था. आम आदमी पार्टी को 21 और कांग्रेस को महज 10 फीसदी वोट हासिल हुआ.
वहीं 2019 में बीजेपी का अगड़ों के बीच में वोट शेयर 76 प्रतिशत तक पहुंच गया जबकि आप और कांग्रेस का मात्र 12 फीसदी पर सिमट गया. ये समीकरण बताने के लिए काफी हैं कि क्यों बीजेपी दिल्ली में सातों सीटों पर स्वीप कर रही है. बस मुस्लिम वोटर ही एक ऐसा रहा है जहां पर बीजेपी का सूपड़ा साफ दिखता है. पिछले चुनाव में तो बीजेपी 0 फीसदी मुस्लिमों का वोट हासिल हुआ. यानी किसी ने भी कमल का बटन नहीं दबाया. अब अगर गठबंधन ने अगड़ी जाति में सेंधमारी की और स्विंग वोटर्स का 6 फीसदी से अधिक हिस्सा आप-कांग्रेस को मिल गया तो बीजेपी के लिए दिल्ली का किला दूर होता नजर आएगा.