कोरोना का एपिक सेंटर बने महाराष्ट्र में गहराता सियासी संकट, शरद पवार के ‘भंवर’ में फंसी शिवसेना !

भले ही अनिल देशमुख ने तो गृह मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया, लेकिन उसके बाद अब सारा ठीकरा शिवसेना के ऊपर फूटता दिख रहा है, भारत की राजनीति के माने जाने वाले दो चाणक्य अमित शाह और शरद पवार की हाल ही में हुई सियासी मुलाकात ने इस बात को और हवा दे दी है

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Politalks.News/MaharashtraPolitics. कोरोना का एपिक सेंटर बने महाराष्ट्र में जिस तेजी से कोरोना का संकट गहराता जा रहा है, उतनी ही तेजी से सत्ता और सियासत के बदलते समीकरण के चलते सियासी घमासान गहराता जा रहा है. महाविकास अघाड़ी सरकार के सत्तारूढ़ गठबंधन को संकट में डालने वाला जो विवाद शरद पवार की पार्टी एनसीपी के नेता अनिल देशमुख से शुरू हुआ था, उसके जाल में अब शिवसेना फंसती दिख रही है. भारत की राजनीति के माने जाने वाले दो चाणक्य अमित शाह और शरद पवार की हाल ही में हुई सियासी मुलाकात ने इस बात को और हवा दे दी है. जानकारों की मानें तो अहमदाबाद में हुई अमित शाह के साथ शरद पवार और प्रफुल्ल पटेल की कथित मुलाकात के बाद महाराष्ट्र में तेजी से समीकरण बदला है. ऐसे में माना जा रहा है भले ही अनिल देशमुख ने तो गृह मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया, लेकिन उसके बाद अब सारा ठीकरा शिवसेना के ऊपर फूटता दिख रहा है.

सियासी गलियारों में चर्चा है कि अनिल देशमुख का इस्तीफा एनसीपी या शरद पवार के लिए झटका नहीं है क्योंकि वे असल में जिसे गृह मंत्री बनाना चाहते थे वह बन गया. ध्यान रहे अनिल देशमुख के इस्तीफे के बाद दिलीप वलसे पाटिल को महाराष्ट्र का नया गृह मंत्री बनाया गया है. कुछ दिन पहले ही शिव सेना के सांसद संजय राउत ने कहा था कि अनिल देशमुख एक्सीडेंटल गृह मंत्री हैं. सूत्रों की मानें तो शरद पवार असल में जितेंद्र पाटिल या दिलीप वलसे पाटिल को ही गृह मंत्री बनाना चाहते थे. इस लिहाज से अनिल देशमुख के इस्तीफे से एनसीपी को कोई नुकसान नजर नहीं आ रहा है.

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लेकिन दूसरी ओर एंटीलिया कांड से लेकर मनसुख हिरेन की मौत और करोड़ों रुपए की वसूली के आरोपों के घेरे में अब शिवसेना फंसती नजर आ रही है. केंद्रीय एजेंसियों की जांच धीरे-धीरे शिवसेना के बड़े नेताओं की ओर बढ़ रही है. मुकेश अंबानी के बंगले के बाहर विस्फोटक से भरी गाड़ी खड़ी करने और गाड़ी के मालिक मनसुख हिरेन की हत्या के आरोप में जेल में बंद पुलिस अधिकारी सचिन वाझे का बयान या उनका चिट्ठी लिखना मामूली बात नहीं है. यहां तक कि अदालत ने भी इस पर सवाल उठाया है.

इधर,जेल में बंद सचिन वाझे ने शिव सेना के नेताओं को उलझा दिया है. उसने वसूली के मामले में अनिल देशमुख के साथ साथ शिवसेना के बड़े नेता और राज्य सरकार के मंत्री अनिल परब का भी नाम लिया है और कहा कि परब ने उससे सेवा में बने रहने के लिए दो करोड़ रुपए मांगे थे. जरा सोचें, बकौल देवेंद्र फड़नवीस जिस अधिकारी की सेवा बहाल करने के लिए खुद उद्धव ठाकरे ने उनसे पैरवी की थी, उससे शिव सेना का कोई नेता दो करोड़ रुपए मांगे, क्या यह बात गले उतरती है? लेकिन केंद्रीय जांच एजेंसियों के शिकंजे में फंसे सचिन वाझे ने कहा कि परब ने उनसे दो करोड़ रुपए मांगे थे. इतना ही नहीं वाझे ने मुंबई में एनकाउंटर के लिए मशहूर रहे पुलिस अधिकारी प्रदीप शर्मा का भी नाम लिया है और यही कारण है कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी एनआईए ने दो दिन प्रदीप शर्मा से पूछताछ की. बता दें, प्रदीप शर्मा सेवा से इस्तीफा देकर शिव सेना में शामिल हो गए हैं और पिछला चुनाव उन्होंने शिव सेना की टिकट से लड़ा था. प्रदीप शर्मा शिव सेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के करीबी माने जाते हैं. ऐसे में अनिल परब और प्रदीप शर्मा का नाम लेकर सचिन वाझे ने शिवसेना की मुश्किलें बढ़ा दी हैं.

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