GitaPressControversy. केंद्र सरकार द्वारा गीता प्रेस (गोरखपुर) को 2021 का गांधी शांति पुरस्कार देने की घोषणा के बाद इस पर विवाद शुरू हो गया है. यह संस्थान इस साल अपने 100 वर्ष पूरे कर रहा है. गीता प्रेस प्रबंधक ने इस सम्मान के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ का आभार व्यक्त किया है. हालांकि पुरस्कार राशि के एक करोड़ रुपए लेने से मना कर दिया है. 18 जून को गीता प्रेस को 2021 का गांधी शांति पुरस्कार देने की घोषणा की थी. इस घोषणा के बाद से ही कांग्रेस के कुछ नेताओं ने गीता प्रेस को पुरस्कार देने का विरोध करना शुरू कर दिया है. कांग्रेस के एक नेता ने तो इसे सावरकर और नाथूराम गोडसे को सम्मान देने जैसा बताया है. इस पर बीजेपी ने भी निशाना साधते हुए कहा कि राहुल गांधी के सलाहकार से यही उम्मीद की जा सकती है. लेखक तुषार अरुण गांधी ने भी गीता प्रेस को पुरस्कार देने का विरोध किया है। उन्होंने कहा कि जिसने कभी गांधी का समर्थन नहीं किया उसे अवार्ड देना गलत है.
बीजेपी के वर्तमान सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश के बयान पर कहा कि ये राहुल गांधी के सलाहकार का बयान है. इनसे उम्मीद भी क्या कर सकते हैं. इन लोगों ने राम मंदिर निर्माण में रोड़े अटकाए. तीन तलाक कानून का विरोध किया. इससे ज्यादा शर्मनाक और क्या हो सकता है. पूरे देश को इनका विरोध करना चाहिए.
गीता प्रेस, गोरखपुर को 'गांधी शांति पुरस्कार- 2021' से सम्मानित किए जाने पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं। भारत की सनातन संस्कृति के संरक्षण एवं प्रचार प्रसार करने में गीता प्रेस का योगदान सराहनीय है। अभिनंदन!#GeetaPress
— Ravi Shankar Prasad (@rsprasad) June 19, 2023
इससे पहले गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार देने का विरोध करते हुए कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने सोशल मीडिया पर लिखा, ‘2021 के लिए गांधी शांति पुरस्कार गोरखपुर में गीता प्रेस को दिया गया है, जो इस साल अपने 100 साल पूरे कर रही है. राइटर अक्षय मुकुल ने 2015 में गीता प्रेस पर एक बहुत बेहतरीन बायोग्राफी लिखी है, जिसमें इस संगठन के महात्मा गांधी के साथ संबंधों और राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक एजेंडे पर उनके साथ चल रही लड़ाइयों का जिक्र है. उन्हें यह पुरस्कार देने का फैसला वास्तव में एक मजाक है. यह सावरकर और गोडसे को पुरस्कार देने जैसा है.’
The Gandhi Peace Prize for 2021 has been conferred on the Gita Press at Gorakhpur which is celebrating its centenary this year. There is a very fine biography from 2015 of this organisation by Akshaya Mukul in which he unearths the stormy relations it had with the Mahatma and the… pic.twitter.com/PqoOXa90e6
— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) June 18, 2023
इस विरोध पर तंज कसते हुए केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि गीता प्रेस भारत की संस्कृति और हिंदू मान्यताओं के साथ जुड़ी है. इसके ऊपर आरोप वो लगा रहे हैं, जो कहते थे कि मुस्लिम लीग सेक्युलर थी.
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वहीं गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार देने के कारणों को स्पष्ट करते हुए केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा है कि भारत की गौरवशाली प्राचीन सनातन संस्कृति और शास्त्रों को आज अगर आसानी से पढ़ा जा सकता है, तो यह गीता प्रेस के अतुलनीय योगदान के कारण है. गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार 2021 प्रदान करना उसके द्वारा किए जा रहे कार्यों का सम्मान है.
भारत की गौरवशाली प्राचीन सनातन संस्कृति और आधार ग्रंथों को अगर आज सुलभता से पढ़ा जा सकता है तो इसमें गीता प्रेस का अतुलनीय योगदान है। 100 वर्षों से अधिक समय से गीता प्रेस रामचरित मानस से लेकर श्रीमद्भगवद्गीता जैसे कई पवित्र ग्रंथों को नि:स्वार्थ भाव से जन-जन तक पहुँचाने का अद्भुत…
— Amit Shah (@AmitShah) June 19, 2023
इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी गीता प्रेस को पुरस्कार मिलने पर बधाई दी. उन्होंने कहा कि गीता प्रेस को अपनी स्थापना के 100 साल पूरे होने पर गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित किया जाना सामुदायिक सेवा में किए गए कार्यों की सराहना करना है. गांधी शांति पुरस्कार 2021, मानवता के सामूहिक उत्थान में योगदान देने के लिए गीता प्रेस के महत्वपूर्ण और अद्वितीय योगदान को मान्यता देता है, जो सच्चे अर्थों में गांधीवादी जीवन शैली का प्रतीक है.
I congratulate Gita Press, Gorakhpur on being conferred the Gandhi Peace Prize 2021. They have done commendable work over the last 100 years towards furthering social and cultural transformations among the people. @GitaPress https://t.co/B9DmkE9AvS
— Narendra Modi (@narendramodi) June 18, 2023
एक करोड़ की सम्मान राशि स्वीकार नहीं करेगा गीता प्रेस –
गीता प्रेस के बोर्ड ने यह ऐलान किया है कि वह शांति पुरस्कार को तो स्वीकार करेगा, लेकिन एक करोड़ की सम्मान राशि नहीं लेगा. गीता प्रेस के प्रबंधक लाल मणि तिवारी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ का आभार व्यक्त किया. उन्होंने कहा कि यह सम्मान हमारे लिए हर्ष की बात है. गीता प्रेस ने 100 सालों में कभी कोई आर्थिक मदद या चंदा नहीं लिया. सम्मान के साथ मिलने वाली धनराशि भी स्वीकार नहीं की. ऐसे में बोर्ड ने फैसला लिया है कि इस सम्मान के साथ मिलने वाली धनराशि भी स्वीकार नहीं की जाएगी.
दुनिया के सबसे बड़े प्रकाशकों में से एक है गीता प्रेस –
गीता प्रेस की स्थापना 1923 में हुई थी. यह दुनिया के सबसे बड़े प्रकाशकों में से एक है. गीता प्रेस सनातन-धर्म की अब तक 92 करोड़ किताबें छाप चुका है, जाे एक रिकॉर्ड है. अकेले इस साल 2 करोड़ 42 लाख किताबें छापी हैं. गीता प्रेस में फिलहाल 15 भाषाओं में 1848 प्रकार की किताबें प्रकाशित हो रही हैं. देशभर में प्रेस की 20 ब्रांच हैं. गीता प्रेस में रोजाना 70 हजार किताबें प्रकाशित हो रही हैं. रामचरितमानस पर राजनीतिक विवाद के बाद से इसकी 50 हजार किताबें ज्यादा बिकी हैं. गीता प्रेस इस साल अपनी 100वीं वर्षगांठ मना रहा है. समापन समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल होंगे. उनके कार्यक्रम की स्वीकृति मिल चुकी है, लेकिन तारीख अभी फाइनल नहीं हुई है.