पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ टीएमसी सुप्रीमो एवं सीएम ममता बनर्जी के कट्टर विरोधी रहे कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी के पर कतरने की तैयार शुरू हो गयी है. लोकसभा में पूर्व नेता प्रतिपक्ष अधीर रंजन चौधरी पश्चिम बंगाल में बीते कई सालों से कांग्रेस का सबसे बड़ा चेहरा रहे हैं. उनके विरोध के चलते ही आम चुनाव में ममता एवं कांग्रेस का गठबंधन संभव नहीं हो सका था. अब कांग्रेस ने रंजन को ‘अधीर’ करते हुए उन्हें पश्चिम बंगाल की जिम्मेदारियों से साइड लाइन कर दिया है. इतना ही नहीं, पार्टी आलाकमान ने राज्य में कांग्रेस अध्यक्ष के पद पर शुभंकर सरकार को बिठाकर एक गहरा संदेश भी दिया है.
शुभंकर सरकार का नाता कांग्रेस से काफी पुराना है. उन्हें पार्टी के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी का करीबी भी माना जाता है. उन्होंने समय-समय पर पार्टी में कई जिम्मेदारी निभाई हैं. शुभंकर सरकार को 30 अगस्त 2024 को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) का राष्ट्रीय सचिव बनाया गया था. इसके साथ ही उन्हें तीन राज्यों का प्रभारी भी नियुक्त किया था. अब उन्हें पश्चिम बंगाल कांग्रेस का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है. इसके बाद सरकार अधीर रंजन चौधरी की जगह पश्चिम बंगाल कांग्रेस की कमान संभालेंगे.
ममता की आलोचना का मिला दंड
अधीर रंजन चौधरी बंगाल में लगातार मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की आलोचना करते रहे हैं. एक तरफ राष्ट्रीय स्तर पर टीएमसी ‘इंडिया’ महागठबंधन का हिस्सा बनने जा रही थी. वहीं लोकसभा चुनाव के दौरान तत्कालीन प्रदेशाध्यक्ष अधीर रंजन ने पश्चिम बंगाल में टीएमसी और कांग्रेस के बीच गठबंधन का विरोध किया था. इसे लेकर कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने अधीर रंजन चौधरी को फटकार भी लगाई थी. इसी का नतीजा था कि आम चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन पश्चिम बंगाल में कुछ खास नहीं रहा. यहां कांग्रेस को केवल एक ही सीट पर जीत मिली है, जो है मालदा दक्षिण लोकसभा सीट जहां से ईशा खान चौधरी चुनावी मैदान में उतरी थीं. अधीर रंजन खुद अपनी सीट तक नहीं बचा पाए थे. चौधरी बहरामपुर से चुनावी मैदान में उतरे थे, लेकिन टीएमसी उम्मीदवार से हार का स्वाद चखना पड़ा.
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नतीजे सामने के आने के बाद भी अधीर रंजन चौधरी ममता बनर्जी के प्रति नरमी बरतने को तैयार नहीं थे. हालांकि पश्चिम बंगाल में कांग्रेस का खराब प्रदर्शन की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए अधीर रंजन चौधरी ने खुद अपने पद से इस्तीफा दे दिया. इसकी वजह चुनाव के दौरान टीएमसी के साथ गठबंधन न होना एवं आम चुनाव में कांग्रेस का खराब प्रदर्शन रहा. अधीर को शायद यह भी उम्मीद थी कि पार्टी उन्हें एक मौका अवश्य देगी लेकिन ऐसा हो न सका. आलाकमान ने उनके पर कतरते हुए पश्चिम बंगाल के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी शुभंकर सरकार को दे दी.
शुभंकर के सामने हैं कई विकट परिस्थितियां
शुभंकर सरकार ने कॉलेज के दिनों से ही सियासी दुनिया में कदम रखा और साल 1993 से 1996 तक वो भारतीय राष्ट्रीय छात्र संघ के राष्ट्रीय महासचिव और प्रवक्ता रहे. साल 1996 से 2004 में वो भारतीय राष्ट्रीय छात्र संघ, पश्चिम बंगाल छात्र परिषद के प्रदेश के अध्यक्ष रहे. साल 2004 से 2006 तक उन्होंने भारतीय युवा कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव की जिम्मेदारी निभाई.
शुभंकर सरकार अब तक कांग्रेस के महासचिव के रूप में काम कर रहे थे. अब उन्हें पश्चिम बंगाल में कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष की नई जिम्मेदारी दे दी है. उन पर पार्टी को फिर एक बार राज्य में खड़ा करने और टीएमसी के साथ रिश्तों को लेकर एक लाइन लेने की जिम्मेदारी होगी. हालांकि आम चुनाव के दौरान शुभंकर सरकार टीएमसी और कांग्रेस के गठबंधन के पक्ष में थे लेकिन उस वक्त उनकी चली नहीं. इस बार सरकार की इस बात पर अमल किया जाना निश्चित है.