कांग्रेस में अब नहीं बनेंगे कार्यकारी PCC चीफ और सहप्रभारी, यूथ चुनाव पर भी ब्रेक!

लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद कांग्रेस में आने वाले दिनों में कईं बड़े बदलाव देखने को मिल सकते हैं. इसके लिए पार्टी में मंथन का दौर जारी है. सूत्रों के अनुसार, हर राज्य में दो से चार कार्यकारी पीसीसी चीफ बनाने और सहप्रभारी लगाने का प्रयोग अब बंंद किया जा सकता है क्योंकि इससे पार्टी में गुटबाजी को जरूरत से ज्यादा बढ़ावा मिला है.

सहप्रभारियोंं ने भी राज्यों में अपनी अलग राजनीति शुरु कर दी थी. आलाकमान यूथ कांग्रेस और NSUI संगठन चुनाव पर भी रोक लगाने पर विचार कर रहा है.

बताया जा रहा हैै कि हर राज्य में पहले की तरह एक महासचिव को प्रभारी बनाने का ही सिस्टम लागू रहेगा. यूथ कांग्रेस और एनएसयूआई में पहले की तरह मनोनित पदाधिकारी बनाने का सिस्टम लागू किया जा सकता है. वहीं प्रोफेशनल्स, आईटी एक्सपर्ट और एनजीओ से जुड़े लोगों को अब पार्टी के कार्यक्रमों से दूर रखा जाएगा. इनकी भूमिका अब सिर्फ ऑफिस तक ही सीमित की जाएगी.

एक्टिंग पीसीसी चीफ-सहप्रभारी सिस्टम हुआ फेल
राहुल गांधी के कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष बनते ही कईं कार्यकारी पीसीसी चीफ और सहप्रभारी बनाने का प्रयोग शुरु हुआ था. हालांकि यह प्रयोग जातिगत और सियासी समीकरण साधने के लिए किया गया था लेकिन इससे पीसीसी चीफ की ताकत कमजोर हो गई. एक राज्य में बनाए गए दो से चार कार्यकारी पीसीसी चीफ के चलते प्रदेशाध्यक्ष काम करने में असहज हो गए. ऐसे में हर एक एक्टिंग चीफ ने अपनी अलग से राजनीति शुरु कर दी जिससे पार्टी कईं खेमों में बंट गई.

मुख्य प्रभारी के साथ राज्यों में दो से चार सहप्रभारी लगाने का फार्मूला भी फेल साबित हुआ. राहुल गांधी ने राष्ट्रीय सचिवों को सहप्रभारी का रोल दिया था जिससे वो उन्हें रियल ग्राउंड रिपोर्ट लाकर दें. लेकिन सहप्रभारियों ने चाटूकारिता और सेवा करनेे वाले बिना जनाधार वाले नेताओं को प्रमोट करना शुरु कर दिया. यहांं तक कि कईं सहप्रभारी तो आलाकमान को विश्वास मेंं लेकर टिकट तक बांटने के काम में लग गए.

कईं राज्यों से सहप्रभारियों पर टिकटों के बदले लेन-देन की शिकायतें भी हाईकमान को मिली. कुल मिलाकर अच्छा करने के साथ शुरु किया गया यह प्रयोग पार्टी के लिए नकारात्मक साबित हुआ. अब इस सिस्टम को पूरी तरह से समाप्त करने की सहमति करीब-करीब पार्टी में बन चुकी है.

यूथ कांग्रेस-एनएसयूआई संगठन चुनाव पर रोक
पार्टी के नेता कई दफा यूथ कांग्रेस और एनएसयूआई संगठन चुनाव पर रोक लगाने की मांग कर चुके हैं. दरअसल संगठन चुनाव का फंडा आम छात्र को राजनीति में आगे लाने के लिए शुुरु किया गया था. क्योंकि पहले सिफारिशी छात्र नेता प्रदेशाध्यक्ष और अन्य पदों पर काबिज हो जाते थे लेकिन चुनाव से सारा सिस्टम धनबल और बाहुबल में तब्दील हो गया.

अधिकतर पैसे वाले और नेता पुत्र ही चुनाव के जरिए पदों पर काबिज हो गए. वहीं निर्वाचित पदाधिकारियों ने संगठन के दिशा-निर्देश भी मानने बंद कर दिए. इसकी वजह रही कि उन्हें हटाने का अधिकार नहीं होने के चलते संगठन में अनुशासन ‘जीरो’ हो गया और संगठन निष्क्रिय.

राहुल गांधी टीम की सलाह पर भी पार्टी अध्यक्ष ने कईं प्रयोग संगठन में किए, जिसके चलतेे कईं प्रोफेशनल्स, एक्सपर्ट और एनजीओ से जुड़े लोगों को पार्टी में लिया गया. उनसे सोशल मीडिया और दफ्तर के काम को अंजाम दिलाना तक तो ठीक था. लेकिन जब ये लोग पार्टी के फैसलों में शामिल होने लगे तो रायता फैलता गया. अब भविष्य में इनका रोल सिर्फ दफ्तर तक सीमित किया जा सकता है.

तो कह सकते हैं कि पार्टी एक बार फिर पुराने ढर्रे पर लौटेगी. हालांकि अब पार्टी में सिर्फ मेहनती कार्यकर्ताओं को ही पद दिए जाने के पूरे आसार हैं. इसका क्या स्वरुप होगा, जल्द ही राहुल गांधी खुद इसका खुुलासा करेंगे.

(लेटेस्ट अपडेट्स के लिए  फ़ेसबुक,  ट्वीटर और  यूट्यूब पर पॉलिटॉक्स से जुड़ें)

Google search engine