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लोकसभा चुनाव के पहले और बाद से ही पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री बनर्जी और केंद्र सरकार में तनातनी देखी जा रही है. कभी ममता के बयानों पर खुद पीएम नरेंद्र मोदी टिप्पणी करते हैं तो वहीं दीदी भी पलटवार करती है. हाल में धार्मिक नारों के चलते पश्चिम बंगाल सुर्खियों में है. बीजेपी और केंद्र सरकार से ममता बनर्जी की अदावत अब फिर सामने आई है. ममता दीदी ने नीति आयोग का विरोध किया है. साथ ही बैठक में शामिल नहीं होने का निर्णय लिया है. दीदी ने पीएम नरेंद्र मोदी को इस संबध में पत्र भी लिखा है.

टीएमसी अध्यक्ष व पश्चिम बंगाल सीएम ममता बनर्जी ने पीएम नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर नीति आयोग के बहिष्कार की बात की है. साथ ही उन्होंने निर्णय लिया है कि वे बैठक में भी शामिल नहीं होंगी. पीएम को लिखे पत्र में दीदी का कहना है कि जब नीति आयोग के पास कोई वित्तीय शक्तियां नहीं हैं और राज्य की योजनाओं का समर्थन करने में भी वो असमर्थ है तो इस बैठक में उनके शामिल होने का कोई औचित्य ही नहीं है. बता दें कि 15 जून की नीति आयोग की पांचवी बैठक होने वाली है और पीएम नरेंद्र मोदी इस बैठक की अध्यक्षता करेंगे.

आगे ममता बनर्जी ने पत्र में पीएम को लिखा कि नीति आयोग के साथ पिछले साढ़े चार सालों से अनुभव ने उन्हें आपको पूर्व में दिए सुझाव पर वापस ला दिया है कि हमें संविधान की धारा 263 के तहत उचित संशोधनों के साथ अतंर राज्यीय परिषद् का गठन करना चाहिए. जिससे कि संविधान द्वारा मिली शक्तियों का उचित क्रियान्वयन हो सके. इससे आपसी समन्वय गहरा होगा और संघीय राजनीति को मजबूती मिलेगी.

वहीं उन्होंने यह भी लिखा कि दुर्भाग्य से योजना आयोग के स्थान पर नीति आयोग नाम के एक नए संगठन का एक जनवरी, 2015 को गठन किया गया. जिसे राज्यों की सहायता, उनकी आवश्यकता के आकलन के आधार पर कोई वित्तीय अधिकार प्रदान नहीं किए गए, जैसा कि पूर्ववर्ती योजना आयोग द्वारा किया जा रहा था. इसके अलावा, नए संगठन में राज्यों की वार्षिक योजना के समर्थन की शक्ति का भी अभाव है.

ममता बनर्जी केंद्र सरकार द्वारा नीति आयोग को समाप्त कर उसकी जगह नए संगठन बनाने के निर्णय के खिलाफ है और यही वजह है कि वे पहले भी नीति आयोग की बैठकों से दूर रही हैं. साथ ही वे राज्यों के बीच एक अतंर-राज्यीय समन्वय बनाने के लिए एक नई व्यवस्था के गठन की पैरवी करती रही हैं. बता दें कि पीएम मोदी के शपथ ग्रहण समारोह से भी दूर रहने के साथ लगातार उनकी सरकार की आलोचना करती रहती हैं. वहीं मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान भी ममता बनर्जी इसी तरह बैठकों से किनारा करती रही हैं.

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