Politalks.News/UttarakhandAssemblyElection. चुनावी तारीखों के एलान के बाद सभी चुनावी राज्यों में सियासी हलचल तेज हो चली है. देवभूमि उत्तराखंड (Uttarakhand) की बात करें तो यहां सत्ताधारी पार्टी बीजेपी (BJP) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के सहारे सत्ता में वापसी की आस लगाए बैठी है. वहीं सूबे की प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस (Congress) बीजेपी के खिलाफ मौजूद एंटी इंकमबेंसी और एक के बाद एक मुख्यमंत्री बदले जाने को लेकर जनता के विरोध का फायदा उठा प्रदेश की सत्ता में आने की तैयारी कर रही है. सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत (Harish Rawat) के रामनगर सीट से चुनाव लड़ने के एलान के बाद एक और रावत ने बगावती सुर अपना लिए है. कांग्रेस के कायर्कारी अध्यक्ष रणजीत सिंह रावत ने बड़ा दावा ठोकते हुए प्रदेश की सियासत में भूचाल ला दिया है. वहीं हाल ही में भाजपा से निष्कासित किये गये हरक सिंह रावत (Harak Singh Rawat) के कांग्रेस में शामिल होने के बाद से प्रदेश की सियासत में एक अलग ही गर्माहट पैदा हो गई है.
सबसे पहले अगर बात की जाए तो कांग्रेस पार्टी ने प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एवं हरदा के नाम से मशहूर हरीश रावत को रामनगर सीट से उम्मीदवार बना कर एक बड़े सस्पेंस को ख़त्म कर दिया. लेकिन पार्टी में छिड़ी आपसी जंग भी इससे उजागर हो गई है. कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष रणजीत सिंह रावत ने बड़ा दावा ठोकते हुए कहा कि, ‘पार्टी ने उन्हें रामनगर सीट से टिकट दिए जाने को लेकर आस्वस्त किया था, लेकिन दिया किसी और को.’ अब सियासी गलियारों में चर्चा है कि प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष बगावत कर निर्दलीय चुनाव लड़ सकते हैं. यहां तक कि उनके बेटे ने तो निर्दलीय नामांकन भरने की कवायद शुरू कर दी है.
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वहीं रणजीत सिंह रावत वो नेता हैं जिन्हें कांग्रेस पार्टी ने टिकट जारी करते समय रूठों को मनाने की ज़िम्मेदारी सौंपी थी लेकिन अब वो खुद रूठे-रूठे से नजर आ रहे हैं. इसे लेकर रावत का कहना भी है कि ‘अब पार्टी ने मुझे ही रूठों की श्रेणी में रख दिया है.’ हरदा को रामनगर से टिकट दिए जाने पर रावत ने कहा कि, ‘फिलहाल मैं अपने साथियों के साथ विचार विमर्श कर रहा हूं और जल्द ही अपने अगले कदम के बारे में खुलासा करूंगा.’
वहीं अगर बात की जाए भाजपा से निष्काषित हुए हरक सिंह रावत कि तो उन्होंने भाजपा में रहते हुए ये एलान किया था कि वह विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे. लेकिन अब रावत के सुर बदले बदले से नजर आ रहे हैं. हरक सिंह रावत ने हाल ही में एक बयान देते हुए सभी को चौंका दिया कि ‘कांग्रेस आलाकमान उन्हें जहां से चुनाव लड़वाएंगे मैं वहां से चुनाव लडूंगा और अगर मुझे टिकट नहीं भी मिलता है तो मैं पुरे प्रदेश में कांग्रेस पार्टी को मजबूत करने का काम करूँगा.’ रावत के इस बयान के सामने आने के बाद सियासी गलियारों में चर्चा होने लगी है कि क्या बहू को कांग्रेस का टिकट दिलवाने के बाद अब रावत अपने लिए भी टिकट की राजनीति करेंगे?.
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लेकिन, इसी बीच हरक सिंह ने एक बात और कही, ‘मैं बड़ी बात नहीं कर रहा हूं, लेकिन ईश्वर की मुझ पर कृपा है कि मेरे एक अनुरोध पर प्रदेश की कई सीटों पर 1000 से 25,000 वोट तक इधर उधर हो सकते हैं.’ अब हरक सिंह रावत का यह दांव दबाव की राजनीति करने वाला दांव माना जा रहा है. अब देखना यह होगा कि हरक सिंह रावत के इस बयान को क्या कांग्रेस किसी धमकी के तौर पर समझेगी? या उनकी मनचाही सीट से चुनाव का टिकट दिए जाने के दबाव के तौर पर? इस तरह की चर्चाएं शुरू हो चुकी हैं.
ऐसे में कांग्रेस आलाकमान की मुश्किलें बढ़ती जा रहे है. हरीश रावत देवभूमि में पार्टी का बड़ा चेहरा है और वो उन्हें किसी भी सूरत में नाराज कर चुनावी मैदान में नहीं उतर सकती. वहीं रणजीत सिंह रावत पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष हैं. ऐसे में अगर वे पार्टी से अलग होकर किसी अन्य दल में जाते हैं या फिर निर्दलीय चुनावी ताल ठोकते हैं तो ये हरदा और कांग्रेस दोनों के लिए मुश्किलें पैदा करने वाला होगा. वहीं पुनः घर वापसी करने वाले हरक सिंह रावत पहले तो शांत से दिख रहे थे लेकिन अब वे आलाकमान पर दबाव की राजनीति करने की तैयारी कर रहे हैं. ऐसे में कांग्रेस आलाकमान के सामने चुनाव से पहले हरीश, रणजीत और हरक तीन रावत के रूप में बढ़ी मुसीबत सामने खड़ी है. अब देखना ये होगा कि पार्टी में उठी इस सीएसी लहर को कांग्रेस की तरह शांत कर पाती है.