पंजाब कांग्रेस में CM फेस को लेकर टकराव! पार्टी के लिए मजबूरी बनी चन्नी-सिद्धू-जाखड़ की तिकड़ी

पंजाब चुनाव का घमासान, जनवरी के पहले हफ्ते में चुनाव की तारीखों की घोषणा संभव, कांग्रेस में सीएम के चेहरे को लेकर जारी घमासान, सीएम चन्नी और सिद्धू कर रहे अलग-अलग दावेदारी, जाखड़ की राय है अलग, लेकिन कांग्रेस की अलग ही मजबूरी, पार्टी को जीत के लिए SC, पॉपुलर और जनरल चेहरा चाहिए साथ-साथ

विवादों के बाद अब सीएम फेस पर रार
विवादों के बाद अब सीएम फेस पर रार

Politalks.News/Punjab. पंजाब (Punjab) सहित पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव (Assembly Election) का ऐलान कभी भी हो सकता है, लेकिन पंजाब कांग्रेस (Punjab Congress) में उपजा टकराव अब भी थमता नहीं दिख रहा है. मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी (Charanjit Singh Channi) और प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh sidhhu) अक्सर अलग-अलग रैलियों में नजर आते हैं. यही नहीं दोनों की ओर से अलग-अलग उम्मीदवारों का समर्थन भी सार्वजनिक तौर पर किया जा रहा है. सिद्धू प्रदेश में सीएम के चेहरे की घोषणा कर खुद की दावेदारी इशारों में बढ़ा रहे हैं तो चन्नी भी सभाओं में अपने लिए दूसरा मौका मांग रहे हैं. वहीं पूर्व पीसीसी चीफ सुनिल जाखड़ (Sunil Jakhar) की राय अलग ही है उनका कहना है कि, ‘कांग्रेस की परंपरा नहीं रही है कि चुनाव से पहले सीएम का चेहरा घोषित किया जाए’.

पंजाब कांग्रेस के दिग्गजों की इस रस्साकशी के चलते टिकट बंटवारे को लेकर टकराव की स्थिति पैदा हो गई है. बताया जा रहा है कि अब भी 27 सीटें ऐसी हैं, जिस पर कांग्रेस कोई फैसला नहीं ले पाई है. अब सियासी गलियारों में चर्चाओं का दौर गरम है कि पंजाब में कलेक्टिव लीडरशिप में चुनाव लड़ना कांग्रेस की मजबूरी है. लेकिन इसके फायदे हैं तो कुछ नुकसान भी उठाने पड़ सकते हैं.

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सिद्धू कह चुके- बिन दूल्हा कैसी बरात?
सीएम फेस घोषित करने की मांग करते हुए सिद्धू कह चुके हैं कि बिन दूल्हा कैसी बारात? प्रधान सिद्धू बार-बार कह रहे हैं कि, ‘पंजाब को इस बरात का दूल्हा बताना होगा. मैं कहता रहा कि बरात घूम रही है लेकिन दूल्हा कहां है? इसका नुकसान आप को हुआ. इस बार कांग्रेस में यही स्थिति है. पंजाब जानना चाहता है कि उनके लिए रोडमैप किसके पास है? कौन पंजाब को इस कीचड़ से बाहर निकालेगा? मैं आप से पूछता था, लेकिन अब लोग हमसे पूछ रहे कि पंजाब कांग्रेस की बरात का दूल्हा कौन है? सिद्धू का यह बयान उन्हें CM चेहरा घोषित करने के दबाव के लिए माना जा रहा है.

सिद्धू इशारों में कर रहे हैं खुद की दावेदारी

वहीं सिद्धू ने कल एक बार फिर खुद को सीएम पद के दावेदार के तौर पर पेश करते हुए कहा कि, ‘अगर उन पर और उनके पंजाब मॉडल पर भरोसा किया, तो आने वाले समय में पंजाब नई बुलंदियों को छुएगा’. सिद्धू गुरुवार को देवीगढ़ कस्बा की अनाज मंडी में सन्नौर इंचार्ज हरिंदरपाल सिंह हैरीमान की अगुवाई में रखी रैली को संबोधित कर रहे थे. इस मौके पर सिद्धू ने कहा कि, ‘उनकी पार्टी की सरकार दोबारा सत्ता में आई, तो पंजाब के अंदर हावी हो चुके माफिया गिरोहों का खात्मा किया जाएगा और नया पंजाब माडल लागू किया जाएगा’.

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चन्नी सभाओं में मांग रहे हैं दूसरा मौका

कांग्रेस हाईकमान पर सिद्धू का दबाव देख CM चरणजीत चन्नी भी कुर्सी की दावेदारी में कूद पड़े हैं. एक तरफ सिद्धू सीएम फेस घोषित करने की मांग कर रहे हैं तो वहीं रैलियों में सीएम चरणजीत सिंह चन्नी खुद को एक और मौका देने की मांग कर रहे हैं. चन्नी सभाओं में लोगों से खुद के लिए फिर से मौका मान रहे हैं. चुनाव रैलियों में सीएम चन्नी कह रहे हैं कि, ‘आपने बादल और कैप्टन को कई बार देखा लेकिन मुझे सिर्फ ढ़ाई महीने मिले. मैंने क्या किया, यह आप सबने देखा. अगर हमें एक मौका और मिल जाए तो क्या हो सकता है, आप समझ सकते हैं कि मैं क्या कर सकता हूं’. चन्नी लगातार अब इस बात को दोहरा रहे हैं.

जाखड़ बोले- यह कांग्रेस की परंपरा नहीं

सिद्धू-चन्नी के दावे के बीच पंजाब में कांग्रेस के बड़े हिंदू चेहरे सुनील जाखड़ की राय कुछ अलग है. जाखड़ कहते हैं कि, ‘किसी एक के चेहरे पर चुनाव लड़ना कांग्रेस की परंपरा नहीं. 2017 में कैप्टन अमरिंदर सिंह को छोड़ दें तो हमेशा कलेक्टिव लीडरशिप पर चुनाव हुआ. इस बार भी हाईकमान के आदेश पर मिलकर चुनाव लड़ा जाएगा’. जाखड़ इसलिए अहम हैं क्योंकि CM न बनाए जाने पर वह काफी वक्त तक पंजाब में पार्टी से नाराज रहे. इधर प्रदेश प्रभारी हरीश चौधरी ने चुनाव से पहले सीएम फेस घोषित करने से साफ इनकार किया है.

कांग्रेस के लिए लिए फायदा-नुकसान के साथ मजबूरी

चन्नी, सिद्धू और जाखड़ की पावर स्ट्रगल कांग्रेस के लिए फायदा-नुकसान के साथ मजबूरी भी है. पंजाब में जातीय समीकरण कांग्रेस के लिए बड़ी दिक्कत है. इसलिए कलेक्टिव लीडरशिप पर चुनाव नहीं लड़े तो वोट बैंक का गणित गड़बड़ाना तय है. सियासी जानकारों का कहना है कि अगर कलेक्टरिव लीडरशिप में चुनाव लड़ा जाता है तो जिनके समर्थक विधायक ज्यादा होंगे, उनका CM की कुर्सी पर दावा ज्यादा मजबूत होगा. इसलिए तीनों नेता अपने समर्थकों को जिताने का जोर लगाएंगे और कांग्रेस की सरकार आ जाएगी. वहीं दूसरी तरफ राजनीतिक जानकारों का यह भी कहना है कि पंजाब जैसे संवेदनशील बॉर्डर स्टेट में वोटर के मन पार्टी की अनिश्चितता की स्थिति कांग्रेस के लिए नुकसानदेह साबित होगी. नेता अपने समर्थकों की जीत के साथ दूसरे के उम्मीदवारों को हराने की भी कोशिश कर सकते हैं. इसका फायदा वह पार्टियां उठा सकती हैं, जो सीएम चेहरे को लेकर स्पष्ट हैं या फिर उनके यहां चेहरे को लेकर विवाद नहीं. एक राय यह भी है कि, कांग्रेस में 32% SC वोट बैंक हैं. ऐसे में अनुसूचित जाति के पहले CM बनाने के चरणजीत चन्नी पर खेला दांव नहीं छोड़ना चाहती.

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वहीं, पीसीसी चीफ नवजोत सिंह सिद्धू पंजाब में कांग्रेस के पॉपुलर चेहरे हैं, उन्हें भी कांग्रेस नाराज नहीं कर सकती. पंजाब में करीब 38% हिंदू वोट बैंक है और कांग्रेस के पास बड़ा चेहरा सुनील जाखड़ ही हैं. अगर जाखड़ नाराज हुए तो फिर कांग्रेस को शहरों में नुकसान हो सकता है, इसलिए तीनों को बराबर रखना कांग्रेस की राजनीतिक मजबूरी है.

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