Politalks.News/Rajasthan. राजस्थान में एक बार फिर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का जादू चल गया है. उपचुनाव में कांग्रेस ने क्लीन स्वीप करते हुए वल्लभनगर और धरियावद सीटों पर एकतरफा जीत दर्ज की है. सीएम गहलोत का असली ‘सियासी मैजिक‘ तो धरियावद में चला है, जहां कांग्रेस ने बीजेपी के परंपरागत गढ़ में सेंध लगाई है. हालांकि आपको बता दें कि इन उपचुनाव में हार-जीत से सरकार और विपक्ष की ताकत में कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है. लेकिन हार अगर करारी हो जैसे धरियावद में बीजेपी तीसरे और वल्लभनगर में चौथे स्थान पर रही है तो ‘महामंथन‘ कर ही लेना चाहिए. इधर पुराने रिकॉर्ड की तरह उपचुनाव में कांग्रेस एक बार फिर चैंपियन साबित हुई है. कांग्रेस अब दोनों उपचुनावों की जीत को गहलोत सरकार के कामकाज पर जनता की मुहर के तौर पर पेश करेगी. दोनों सीटों पर हुई करारी हार और प्रचंड जीत का आने वाले दिनों में कांग्रेस और भाजपा में दोनों ही पार्टियों की अंदरूनी सियासत पर असर पड़ेगा.
कांग्रेस ने दिखाई एकजुटता और रणनीतिक कौशल
उपचुनाव की दोनों सीट जीतने के बाद कांग्रेस का मनोबल हाई होने वाला है. विधानसभा में कांग्रेस के दल में एक सीट का इजाफा हो गया है. अब कांग्रेस की विधानसभा में 108 सीटें हो गई हैं. इसमें छह विधायक बसपा के हैं, जो कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं. इधर, कांग्रेस की जीत को लेकर सियासी गलियारों में चर्चाओं और जीत का पोस्टमार्टम किया जा रहा है. इस बात को लेकर मिक्स रिएक्शन आ रहे हैं. लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा रही कि इस चुनाव में सीएम गहलोत ने फ्रंट से लीड किया. साथ ही पूरी पार्टी ने एकजुटता दिखाते हुए चुनावी मैदान को फतह किया. वल्लभनगर में मंत्री प्रतापसिंह खाचरियावास ने तो धरियावद में मंत्री अर्जुन बामणिया और अशोक चांदना सहित कई नेता और कार्यकर्ता ग्राउंड पर दिखे. सीएम गहलोत और पीसीसी चीफ गोविंद सिंह डोटासरा लगातार चुनाव अभियान की मॉनिटरिंग करते रहे. दोनों ही प्रत्याशियों की चयन में भी कांग्रेस ने सावधानी बरती. वल्लभनगर में तो सहानुभूति कार्ड खेला गया वहीं धरियावद में लोकल अनुभव को तरजीह दी गई. इन दोनों ही प्रत्याशियों की नामांकन सभा में कांग्रेस ने जबरदस्त एकजुटता दिखाई. सीएम गहलोत, पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट, पीसीसी चीफ गोविंद सिंह डोटासरा और प्रदेश प्रभारी माकन सहित दिग्गजों ने एक मंच से कांग्रेस को जिताने की अपील की.
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कांग्रेस की जीत में सीएम गहलोत का मास्टरस्ट्रोक
अब बात करते हैं कांग्रेस की जीत के मास्टरस्ट्रोक की. धरियावद में कांग्रेस ने अनुभवी कांग्रेस नेता नगराज को मैदान में उतारा था. लेकिन अंत समय तक मुकाबले को लेकर संशय बना हुआ था. इस दौरान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने प्रचार के अंतिम दौर में धरियावद का दौरा किया. इस दौरान सीएम गहलोत बड़ा दांव खेलते हुए धरियावद पहुंचते ही दिवंगत विधायक गौतम मीणा के घर गए और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की. जादूगर के इस सियासी दांव ने कांग्रेस की धरियावद में चुनावी जीत सुनिश्चित कर दी. दरअसल गौतम लाल मीणा के पुत्र कन्हैया भाजपा से टिकट मांग रहे थे लेकिन भाजपा ने उन्हें टिकट नहीं दिया इसको लेकर स्थानीय लोगों में ‘अंडर करंट‘ था. हालांकि बीजेपी ने जोड़तोड़ से कन्हैया लाल को पार्टी का प्रदेश मंत्री बनाकर उनका नामांकन वापस उठवा दिया था, लेकिन सीएम गहलोत ने राजनीतिक संवेदना का ऐसा दांव खेला की भाजपा का खेल बिगड़ गया और वो चुनावी मैदान से बाहर हो गई.
वल्लभनगर में सहानुभूति कार्ड और भाजपा की खेमेबाजी का फायदा
तो वहीं दूसरी तरफ वल्लभनगर में कांग्रेस ने सहानुभूति कार्ड खेलते हुए दिवंगत विधायक गजेन्द्र सिंह शक्तावत की पत्नी को टिकट देकर चुनावी मैदान में उतारा था. यहां सहानुभूति कार्ड खेलने में कांग्रेस को रिस्क तो था लेकिन कांग्रेस ने रणनीतिक कुशलता दिखाई. दरअसल शक्तावत परिवार में गजेन्द्र के भाई भी टिकट की दावेदारी कर रहे थे. उन्होंने तो टिकट नहीं मिलने पर निर्दलीय उतरने का फैसला भी कर लिया था. लेकिन समझाइश के बाद कांग्रेस को बगावत का सामना नहीं करना पड़ा. वहीं कांग्रेस की जीत में यहां भाजपा में उठी बगावती फूट का ज्यादा फायदा मिला. इसके साथ ही जनता सेना और RLP ने कांग्रेस की जीत को सुनिश्चित कर दिया.
गुटबाजी ने डुबोई भाजपा की लुटिया
अब बात करते हैं भाजपा की रणनीतिक विफलता की, तो उपचुनाव की दोनों ही सीटों पर टिकट वितरण को लेकर भाजपा में अंदर ही सवाल उठ चुके हैं. धरियाावद में बीजेपी द्वारा दिवंगत विधायक गौतम लाल मीणा को बिसराना महंगा साबित हुआ. स्थानीय सूत्रों की माने तो विधायक के परिवार से टिकट नहीं देने का फैसला आत्मघाती था, कांग्रेस ने धरियावद में बीजेपी विधायक गौतमलाल मीणा के बेटे कन्हैयालाल का टिकट काटने को मुद्दा बनाकर भी बीजेपी का गणित बिगाड़ दिया. हालांकि भाजपाई दिग्गज राजेन्द्र राठौड़ ने कन्हैया को समझाइश कर बैठा तो दिया लेकिन समर्थकों की नाराजगी को दूर कर पाने में शायद पूरी भाजपा असफल साबित हुई. बगावत के बाद नेता को भले मना लिया जाए लेकिन उसके समर्थक नहीं मानते और भीतरघात के कारण चुनाव हरवा देते हैं. ऐसे में धरियावद में बीजेपी के टिकट वितरण ने ही हार तय कर दी थी. इन सबके ऊपर सीएम गहलोत द्वारा गौतम लाल मीणा के घर जाकर संवेदना दर्ज करवाने के कार्ड की भाजपा के पास कोई काट नहीं थी.
वल्लभनगर में अपनों से घिरी भाजपा!
वल्लभनगर में तो भाजपा का हर दांव ही उल्टा पड़ता गया और पार्टी तीन तरफ से बुरी तरह घिर गई. वल्लभनगर में बीजेपी का टिकट बदलने का प्रयोग पूरी तरह फ्लॉप रहा. इसका खामियाजा भाजपा को चौथे स्थान पर जाकर उठाना पड़ा. वल्लभनगर में पूर्व प्रत्याशी को उदयलाल डांगी का टिकट काटकर बीजेपी ने हिम्मत सिंह झाला को मैदान में उतारा. इस पर डांगी ने पार्टी के फैसले का विरोध जताते हुए बगावत कर दी. तो डांगी की इस बगावत को RLP के हनुमान बेनीवाल ने भुनाया. डांगी आरएलपी के बैनर पर चुनाव लड़े, भले ही जीत नहीं सके लेकिन दूसरे स्थान पर रहे, वहीं बीजेपी को यहां चौथे स्थान पर धकेल दिया. साथ ही नेताप्रतिपक्ष गुलाब चंद कटारिया और रणधीर सिंह भींडर की अदावत का नुकसान भी पार्टी को उठाना पड़ा.
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दरअसल, कटारिया भींडर की जगह उदय लाल डांगी को उतारना चाहते थे. पहले टिकट के लिए भींडर का नाम चला लेकिन कटारिया की नाराजगी के चलते फिर उन्हें जब टिकट नहीं मिला तो उन्होने जनता सेना के बैनर तले चुनावी मैदान में उतरने की घोषणा कर भाजपा की हार सुनिश्चित कर दी. भाजपा ने यहां डांगी को टिकट नहीं देकर हिम्मत सिंह झाला को टिकट दिया. टिकट वितरण के बाद नेता प्रतिपक्ष कटारिया का एक ऑडियो वायरल हुआ जिसमें वो फांसी तक लगाने की बात करते सुनाई दिए. इस तरह वल्लभनगर में भाजपा के वोट बंटे, बागी उदयलाल डांगी और रणधीर सिंह भींडर के बीच और भाजपा का चौथे स्थान पर संतोष करना पड़ा.
भाजपा में बवाल मचना तय
अब क्या होगा राजस्थान में सियासी पार्टियों में, उपचुनावों और अलवर-धौलपुर जिला प्रमुख चुनाव में मिली हार के बाद बीजेपी में बवाल मचना तय है. अब प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनियां विरोधियों के निशाने पर होंगे. पूर्व सीएम वसुंधरा राजे उपचुनावों में एक भी जगह प्रचार के लिए नहीं गईं. उनकी पुत्रवधू के बीमार होने को इसका कारण बताया जा रहा है. उपचुनावों में हार के बजाय विरोधी खेमा पार्टी के तीसरे और चौथे नंबर पर रहने को सतीश पूनियां विरोधी खेमा मुद्दा बनाएगा. यह हार विशुद्ध रूप से सतीश पूनियां के खाते में जाएगी. मैडम राजे के खेमे को अब बड़ा मुद्दा मिल गया है. बीजेपी की इस हार पर अब खींचतान बढ़ना तय माना जा रहा है. राजे समर्थक भवानी सिंह राजावत ने तो एक बयान जारी कर कह भी दिया है कि,’मैडम राजे को कमान दे दी जानी चाहिए वरना 2023 में पार्टी का और भी बुरा हाल होगा’. हालांकि कुछ भाजपा के नेताओं का कहना है कि महंगाई और किसान आंदोलन की मार भी उपचुनाव में पड़ी है.
मंत्रिमंडल पुनर्गठन और राजनीतिक नियुक्तियों का दबाव होगा कम !
इधर बात की जाए कांग्रेस की तो यहां चल रही सियासी कलह पर इस प्रचंड जीत का भी बड़ा असर पड़ने वाला है. अगर इन चुनावों में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ता तो गहलोत विरोधी खेमा सक्रिय हो जाता और बयानबाजी शुरू हो चुकी होती. क्योंकि सियासी कलह के एक साल बीत जाने के बाद भी पायलट कैंप की मंत्रिमंडल पुनर्गठन और राजनीतिक नियुक्तियों जैसी मांगों पर कयासों की तारिख पर तारिख ही मिल रही है. अब जब चुनाव में कांग्रेस ने शानदार प्रदर्शन किया है तो इसका क्रैडिट सीएम गहलोत की सरकार के कामकाज को जाएगा ही, तो ऐसे में मंत्रिमंडल विस्तार और राजनीतिक नियुक्तियों में दबाव डालने की नीति में अब पायलट कैंप को बदलाव करना होगा.