उत्तर प्रदेश की राजनीति तेजी से करवट बदल रही है. अंदर ही अंदर ऐसे समीकरण बन रहे हैं, जो भाजपा का खेल खराब कर सकते हैं. शुक्रवार को दिल्ली में हुई हुंकार रैली के बाद अब यह तो लगभग तय हो गया है कि भीम आर्मी के संस्थापक और उत्तर प्रदेश में दलित आंदोलन के पोस्टर ब्वॉय बन चुके चंद्रशेखर आजाद वाराणसी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ लोकसभा चुनाव लड़ेंगे. लेकिन अंदर की खबर यह है कि उन्हें कांग्रेस बतौर अपना पार्टी उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतार सकती है.
सूत्रों की मानें तो इस बारे में फैसला किया जा चुका है, केवल औपचारिक एलान होना बाकी है. घोषणा से पहले कांग्रेस में इस बात पर अंतिम रूप से मंथन चल रहा है कि चंद्रशेखर आजाद को कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में चुनाव मैदान में उतारा जाए या गुजरात विधानसभा चुनाव में जिग्नेश मेवाणी की तरह उन्हें समर्थन दिया जाए. कांग्रेस से जुड़े सूत्र बताते हैं कि 13 मार्च को मेरठ में कांग्रेस महासचिव और पूर्वी उत्तर प्रदेश की प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा के सामने चंद्रशेखर ने मेवाणी की तर्ज पर मैदान में उतरने की इच्छा जाहिर की है.
यदि आजाद कांग्रेस के तरकश का तीर बनते हैं तो पार्टी इससे कई निशाने साध सकती हैं. असल में उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा की ओर से नजरअंदाज किए जाने के बाद कांग्रेस के पास नई रणनीति के साथ चुनावी रण में उतरने के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं बचा है. चंद्रशेखर आजाद इस नई रणनीति की एक अहम कड़ी हैं. हालांकि कांग्रेस को एक डर जरूर है कि उत्तर प्रदेश में सवर्णों के खिलाफ आक्रामक राजनीति करने वाले चंद्रशेखर को पार्टी में शामिल करने से सवर्ण जातियों, खासकर ब्राह्मणों में गलत संदेश जा सकता है.
यही वजह है कि कांग्रेस के थिंक-टैंक ने मोदी के खिलाफ चंद्रेशखर को बतौर पार्टी उम्मीदवार न खड़ा करने की स्थिति में प्लान-बी भी बनाया हुआ है. प्लान-बी के अनुसार चंद्रशेखर को भीम आर्मी के बैनर तले निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव में उतारा जाएगा और उनके सामने कांग्रेस की तरफ से कोई उम्मीदवार नहीं होगा. इससे पार्टी दलित वोटों को भी आकर्षित कर सकेगी और सवर्ण वोटों के लिहाज से विपक्ष के पास चंद्रशेखर के बहाने सीधे कांग्रेस पर हमला करने का मौका भी नहीं होगा.
कांग्रेस की इस नई चाल से सपा और बसपा के कान खड़े हो गए हैं. बता दें कि दोनों दल यह मानकर चल रहे थे कि कांग्रेस के अकेले लड़ने से उन्हें नुकसान कम और फायदा ज्यादा होगा, लेकिन अब अखिलेश यादव और मायावती के बीच इस बात पर मंथन चल रहा है कि चंद्रशेखर की मदद से कांग्रेस न सिर्फ बसपा के दलित वोटों में बड़ी सेंध लगा सकती है, बल्कि ऐसी सूरत में असमंजस में पड़ा मुसलमान वोटर भी कांग्रेस की ओर रुख कर सकता है. यदि इसमें ब्राह्मण वोट भी जुड़ जाएं तो उत्तर प्रदेश में लड़ाई भाजपा बनाम कांग्रेस भी बन सकती है.
यही वजह है कि सपा और बसपा के रणनीतिकार कांग्रेस को गठबंधन में शामिल करने की संभावना पर फिर से चर्चा कर रहे हैं. सूत्रों के अनुसार अखिलेश यादव और मायावती के बीच कांग्रेस को सम्मानजनक सीटें देकर गठबंधन का हिस्सा बनाने की संभावनाओं पर बातचीत हुई है. दोंनों की ओर से बसपा के एक बड़े नेता ने कांग्रेस के आला नेताओं से इस बारे में संभावना तलाशने के लिए कहा है. यदि तमाम कोशिशों के बाद भी गठबंधन नहीं होता है तो सपा—बसपा वाराणसी से चंद्रशेखर आजाद को समर्थन देने के ‘प्लान—बी’ पर काम कर रहे हैं. बसपा के थिंक टैंक का मानना है कि इससे यह सियासी संदेश तो चला ही जाएगा कि मायावती को भीम आर्मी के मुखिया को उभार से कोई फर्क नहीं पड़ता. बसपा दूसरा फायदा यह होगा कि चंद्रशेखर के चुनावी मैदान में उतरने से वे वाराणसी तक ही सीमित हो जाएंगे.
अगर चंद्रशेखर वाराणसी से चुनाव लड़ते हैं और उन्हें कांग्रेस के अलावा सपा-बसपा का भी समर्थन मिलता है, तो लड़ाई बेहद दिलचस्प हो सकती है. बता दें कि वाराणसी 16 लाख मतदाता हैं, जिनमें मुस्लिम 2.5 लाख, ब्राह्मण 1.5 लाख, यादव 1.5 लाख और दलित लगभग एक लाख हैं. यदि ये सब लामबंद हो जाएं तो चौंकाने वाले नतीजे आ सकते हैं. यहां यह भी जेरेगौर है कि पिछले चुनाव में मोदी यहां से जीते जरूर मगर बिखरे विपक्ष के बावजूद अरविंद केजरीवाल को दो लाख से अधिक वोट मिले थे. जबकि प्रचंड लहर के बावजूद मोदी को करीब पांच लाख वोट मिले.
कांग्रेस चंद्रशेखर आजाद के जरिये वाराणसी में मोदी को घेरने से अलावा उनके पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बड़ा फायदा देख रही है. गौरतलब है कि सहारनपुर आंदोलन के बाद चंद्रशेखर दबंग दलित नेता के तौर पर उभरे हैं. आज की तारीख में मायावती के मुकाबले दलित युवाओं में चंद्रशेखर का ही क्रेज देखा जा रहा है. कांग्रेस को उम्मीद है कि चंद्रशेखर उनके लिए ट्रंप कार्ड साबित होंगे.
कुल मिलाकर प्रियंका गांधी की अगुवाई में कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश के सियासी समीकरणों में उथल—पुथल मचा दी है. कांग्रेस यहां अपने पुराने दलित-मुस्लिम-ब्राह्मण वोट बैंक पर फोकस कर रही है. बता दें कि उत्तर प्रदेश में आबादी के हिसाब से दलित 22, मुस्लिम 20 और ब्राह्मण 11 प्रतिशत हैं. प्रियंका की एंट्री के बाद कांग्रेस के स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं में जो उत्साह आया है, वह इस समीकरण की संभावनाओं को धरातल पर उतारने की उम्मीद जगाता है.
कांग्रेस के इस उभार से भाजपा ने अपनी रणनीति में बदलाव किया है. कल तक सहयोगी दलों को आंख दिखा रही भाजपा अब उनके सामने नतमस्तक है. अनुप्रिया पटेल की पार्टी को दो सीटें देने के लिए तैयार होना इसका उदाहरण है. चर्चा थी पटेल कांग्रेस के साथ जा सकती हैं. भाजपा प्रदेश के अंसतुष्ट खेमों को भी तवज्जो दे रही है. चुनावी मैदान में किसकी रणनीति सफल होगी यह तो नतीजे ही बताएंगे, कांग्रेस की आक्रामक रणनीति ने सूबे की सियासत को अचानक नया मोड़ दे दिया है.
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