महाराष्ट्र में चुनावी महासंग्राम का ऐलान हो चुका है. लोकसभा और हरियाणा विधानसभा चुनावों के बाद अब भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों प्रमुख पार्टियों को महाराष्ट्र में बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. राज्य में 20 नवंबर को एक चरण में मतदान होना है. यहां बीजेपी नेतृत्व में सत्ताधरी महायुति गठबंधन को हरियाणा के समान ही सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ रहा है. वहीं महाविकास अघाड़ी के समक्ष सीट बंटवारे का अहम प्रश्न खड़ा है. हालांकि हरियाणा विधानसभा चुनाव में विरोधी लहर के बावजूद बीजेपी ने एक तरफा मुकाबला अपने नाम किया है. अब सवाल ये है कि क्या महाराष्ट्र में भी कुछ ऐसा ही होने के आसान नजर आ रहे हैं?
राजनीतिक विशेषज्ञों का तो यही मानना है कि महाराष्ट्र में बीजेपी के समक्ष हरियाणा से कहीं ज्यादा मुश्किल काम है. यहां अगर महायुति को चुनावी जंग जीतनी है तो उन्हें मराठवाड़ा और विदर्भ क्षेत्रों में अपने वोट शेयर में 10 फीसदी की बढ़ोतरी करनी होगी. इसकी अहम वजह है लोकसभा चुनाव, जिसमें महाराष्ट्र में बीजेपी गठबंधन केवल 17 सीटों पर सिमट गया. महाविकास अघाड़ी ने 48 में से 30 सीटों पर अपना कब्जा जमाया. हालांकि वोट शेयरिंग के मामले में महायुति और एमवीए दोनों ही एक समान 43% रहे. हरियाणा में बीजेपी और कांग्रेस ने पांच-पांच सीटें आपस में बांटी है.
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महाराष्ट्र में 2019 के पिछले विधानसभा चुनावों के बाद से राजनीतिक परिदृश्य में भारी बदलाव आया है. महाराष्ट्र की दो मुख्य पार्टियां – शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) में विभाजन देखने को मिला है. शिवसेना और एनसीपी गुट सरकारी गठबंधन के घटक हैं और विपक्षी गठबंधन महाविकास अघाड़ी (एमवीए) में भी मौजूद हैं.
वहीं कांग्रेस ने उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना (यूबीटी) और शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी (एसपी) के साथ गठबंधन किया है और वे एमवीए का हिस्सा हैं. एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली सेना और अजित पवार की एनसीपी के साथ बीजेपी चुनावी मैदान में है.
हालांकि मराठा आंदोलन, ओबीसी आरक्षण की मांग और सोयाबीन-गन्ना किसानों में असंतोष जैसे मुद्दे महायुति को चुनौती दे सकते हैं, लेकिन हरियाणा में बीजेपी की शानदार जीत, जो लगातार तीसरी बार रिकॉर्ड बना रही है, उसे महत्वपूर्ण बढ़ावा देती है. माना जाता है कि चुनाव से पहले यहां सत्ता विरोधी लहर चल रही थी. एग्जिट पोल के नतीजों में भी सभी जगह कांग्रेस की पूर्ण बहुमत सरकार बन रही थी लेकिन अंतिम समय में कांग्रेस के नेताओं में खींचतान, सीएम बनने की होड़ और मोदी की लगातार रैलियों ने माहौल बदल दिया. नतीजा सभी के सामने है.
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हालांकि महाराष्ट्र में परिदृश्य थोड़ा सा अलग है. फिर भी चुनौतियां कांग्रेस और बीजेपी दोनों के समकक्ष सीटों के बंटवारे को लेकर बनने वाली है. एक तरफ एमवीए में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस अपने लिए ज्यादा सीटों की मांग कर रहे हैं. सबसे बड़े दल होने के नाते सीएम चेहरा कांग्रेस से होने का दावा भी किया जा रहा है जिससे उद्धव ठाकरे चिंतित हैं. वहीं महायुति में अजित पवार और एकनाथ शिंदे अपने लिए अलग अलग 80 से ज्यादा सीटें मांग रहे हैं, जबकि आधी से ज्यादा सीटों पर बीजेपी चुनाव लड़ना चाह रही है ताकि सीएम पार्टी का बनाया जा सके.
मुद्दे कई हैं लेकिन समाधान और परिणाम भविष्य के गर्भ में छिपा है. दिवाली के बाद सभी संभावनाओं पर विराम लगने की पूर्ण उम्मीद है. हालांकि नतीजा कुछ भी हो लेकिन ये तय है कि महाराष्ट्र में मुकाबला महायुति और महाविकास अघाड़ी के बीच होगा. राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) वोट कटवा पार्टी का रोल अदा करेगी. हरियाणा चुनाव की तरह कांग्रेस में आंतरिक मतभेद की संभावना कम है लेकिन गठबंधन में शामिल पार्टियों का अभी कुछ भी कहना मुश्किल है. नजरें अजित पवार पर भी टिकी है जो महायुति की सबसे कमजोर कड़ी हैं लेकिन यह चुनावी जंग है साहेब.. यहां वक्त से पहले कुछ भी अंदेशा लगाना और विपक्षी को कमजोर समझना भारी भूल हो सकती है.