Politalks.News/RajasthanPolitics. उपचुनावों से पहले प्रदेश में पूर्व मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रद्युमन सिंह की राज्य वित्त आयोग में चेयरमैन पद पर और लक्ष्मण सिंह की सदस्य के रुप में हुई राजनीतिक नियुक्ति के बाद एक बार फिर से राजनीतिक नियुक्तियों को लेकर सियासी चर्चाओं का दौर शुरू हो गया है और लंबे समय से बाट जो रहे विधायकों और कार्यकर्ताओं में फिर से आस जग गई है. हालांकि इससे पहले भी गहलोत सरकार समय-समय पर आयोगों में राजनीतिक नियुक्तियां करती आई है, लेकिन अब भी करीब 65 से ज्यादा बोर्ड, आयोग और अकादमियां आदि खाली हैं. बता दें, गहलोत सरकार के कार्यकाल के ढाई साल निकल जाने के बाद भी राजनीतिक नियुक्तियों और मंत्रिमंडल विस्तार का इंतजार खत्म नहीं हो रहा है, जिससे संगठन में असंतोष भी पनप रहा है.
प्रदेश में राजनीतिक नियुक्तियों और मंत्रिमंडल के जल्द विस्तार होने की चर्चाओं ने इसलिए भी जोर पकड़ लिया कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने मंगलवार को अपने आवास पर एससी-एसटी वर्ग के करीब एक दर्जन विधायकाें से वन टू वन मुलाकात की. इनमें खिलाड़ी लाल बैरवा, परसराम मोदरिया, बाबूलाल नागर, इंदिरा मीणा, हरीश मीणा, वेदप्रकाश सोलंकी, भरोसी लाल जाटव, लक्ष्मण मीणा सहित कुछ अन्य विधायक शामिल थे. इनमें से ज्यादातर पायलट समर्थक विधायक माने जाते हैं.
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प्रदेश में तेजी से पैर पसार रहा कोरोना का भूत अगर रोड़ा नहीं बना तो सरकार के पास ऐसा कोई बहाना नहीं बचा है जिससे राजनीतिक नियुक्तियां और मंत्रिमंडल विस्तार को रोका जा सके. ऐसे में माना जा रहा है कि उपचुनावों की वोटिंग होने के बाद राजस्थान में मंत्रिमंडल फेरदबल होने की प्रबल संभावना है क्योंकि उपचुनाव परिणामों से सरकार की सेहत पर कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है. मंगलवार को सीएम गहलोत ने एससी-एसटी के विधायकों के साथ बातचीत के दौरान राजनीतिक नियुक्ति और मंत्रिमंडल फेरबदल में हो रही देरी को लेकर अपनी राय भी रखी.
आपको बता दें, दिसंबर 2018 में गहलोत सरकार के गठन के बाद से खाली पड़े आयोगों, निगम- बोर्डों में राजनीतिक नियुक्तियां की जानी थी, लेकिन सरकार ने आधा दर्जन संवैधानिक संस्थाओं में ही राजनीतिक नियुक्तियां करने में ढाई साल का समय लगा दिया. इनमें मानव अधिकार आयोग, लोकायुक्त, सूचना आयोग, बाल आयोग, राजस्थान लोक सेवा आयोग और वित्त आयोग हैं. वहीं, दूसरी ओर महिला आयोग, अल्पसंख्यक आयोग, एससी-एसटी आयोग, ओबीसी आयोग, किसान आयोग और निशक्तजन आयोग में पद अभी खाली पड़े हैं. दरअसल, कांग्रेस सत्ता और संगठन की मंशा है कि तमाम संवैधानिक संस्थाओं में पदों को भरने के बाद प्रदेश स्तरी बोर्ड निगमों और जिला स्तर पर राजनीतिक नियुक्तियां की जाएं, लेकिन ऐसे में सवाल यह उठता है कि अगर शेष बचे संवैधानिक संस्थाओं में नियुक्तियां करने में अभी भी समय लगेगा तो फिर बोर्ड-निगमों में राजनीतिक नियुक्तियों का नंबर कब आएगा?
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वहीं सियासी संकट के बाद अविनाश पाण्डे को हटाकर राजस्थान के प्रभारी बने अजय माकन ने हाल ही में पहले राजनीतिक नियुक्तियां और उसके बाद मंत्रिमंडल विस्तार किए जाने की बात कही थी, लेकिन सूत्रों के मुताबिक सरकार सोच रही है कि पहले मंत्रिमंडल विस्तार कर दिया जाए ताकि बचे विधायकों को नाराजगी इन नियुक्तियों से दूर की जा सके. इसकी दूसरी वजह मौजूद मंत्रियों से विधाकयों की नाराजगी भी है. जिसके चलते राजनीतिक नियुक्तियों से पहले मंत्रिमंडल फेरबदल किया जा सकता है.