सुनील अरोड़ा की जगह आए सुशील चंद्रा के लिए बंगाल चुनाव के बचे चार चरण होगी पहली बड़ी चुनौती

बंगाल चुनाव को लेकर भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के बीच 'आर-पार की जंग' और तेज होती जा रही है, निर्वाचन आयोग एक स्वतंत्र संस्था मानी जाती है लेकिन हमेशा इस पर आरोप लगते रहे हैं कि यह केंद्र सरकार के दबाव में ही काम करती है, वर्ष 1990 के दशक में टीएन शेषन का कार्यकाल हमेशा याद किया जाएगा

सुनील अरोड़ा की जगह आए सुशील चंद्रा
सुनील अरोड़ा की जगह आए सुशील चंद्रा

Politalks.News/ElectionCommission. आज बात उस न्याय तंत्र की होगी जिसकी भूमिका और हर आदेश विशेष तौर पर चुनावों के दौरान सभी राजनीतिक दल मानने के लिए बाध्य होते हैं. सही मायने में इस संस्था का लोकसभा हो या विधानसभा चुनावों को स्वतंत्र और निष्पक्ष कराने में सबसे बड़ा योगदान माना जाता है. जी हां हम बात कर रहे हैं केंद्रीय निर्वाचन आयोग की. मौजूदा समय में बंगाल चुनाव को लेकर भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के बीच ‘आर-पार की जंग‘ और तेज होती जा रही है. अब इन दोनों राजनीतिक दलों की सियासी लड़ाई में निर्वाचन आयोग भी ‘झुलस‘ रहा है. बंगाल चुनाव को लेकर भाजपा और तृणमूल कांग्रेस की शिकायतों का केंद्रीय निर्वाचन मुख्यालय में शिकायतों का अंबार लगा हुआ है.

कल तक मुख्य निर्वाचन आयोग रहे सुनील अरोड़ा भी शायद दबाव में अपने फैसले स्वतंत्र होकर सुना नहीं पा रहे थे. लेकिन जाते-जाते मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को बंगाल में 24 घंटे के लिए चुनाव प्रचार पर रोक लगा गए. बंगाल विधानसभा चुनाव को लेकर भाजपा और तृणमूल कांग्रेस की शिकायतें हर दिन बढ़ती जा रही थी. ऐसे में सुनील अरोड़ा भी पीएम मोदी और ममता बनर्जी के बीच में फंस कर रह गए थे. अब मुख्य चुनाव आयुक्त के पद से रिटायरमेंट होने के बाद सुनील अरोड़ा ने राहत की सांस ली होगी. अरोड़ा ऐसे समय में रिटायर हुए हैं जब भाजपा और टीएमसी का सियासी झगड़ा चरम पर है, अरोड़ा जरूर सोच रहे होंगे कि अब नए मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा यह जिम्मेदारी संभालें, मैं अब राजनीतिक दलों के पचड़ों से दूर हो गया हूं. अब न मेरे ऊपर कोई दबाव है न कोई फैसला सुनाने की जिम्मेदारी न अधिकार.

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संभव है पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा का राजनीतिक दलों के दबाव का ‘दर्द‘ शायद कुछ समय बाद जरूर बाहर निकले, जिसमें तमाम चौंकाने वाले फैसले सुनने को मिल सकते हैं, (फिलहाल यह भविष्य की बातें हैं). बात को आगे बढ़ाने से पहले यहां हम आपको बता दें कि निर्वाचन आयोग एक स्वतंत्र संस्था मानी जाती है लेकिन हमेशा इस पर आरोप लगते रहे हैं कि यह केंद्र सरकार के दबाव में ही काम करती है. लेकिन इस सब के बीच वर्ष 1990 के दशक में टीएन शेषन का कार्यकाल हमेशा याद किया जाएगा.

टीएन शेषन के कार्यकाल में स्वच्छ एवं निष्पक्ष चुनाव सम्पन्न कराने के लिए नियमों का कड़ाई से पालन किया गया, जिसके चलते तत्कालीन केंद्र सरकार एवं ढीठ नेताओं के साथ शेषन के कई विवाद हुए. शेषन दिसंबर 1990 से लेकर दिसंबर 1996 तक देश के दसवें मुख्य चुनाव आयुक्त थे. अब बात आगे बढ़ाते हैं और जानते हैं नए मुख्य चुनाव आयुक्त की चुनौतियों को लेकर. निर्वाचन आयोग में कार्यभार संभालने से पूर्व सुशील चंद्रा केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड के अध्यक्ष रह चुके हैं. सुशील चंद्रा ने सोमवार को रिटायर हुए मुख्य निर्वाचन आयुक्त सुनील अरोड़ा की जगह ली है.

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शुभ घड़ी में मुख्य चुनाव आयुक्त का पद संभालते ही सुशील चंद्रा के लिए शुरू हुई चुनौती

आज त्योहारों के महाउत्सव और शुभ घड़ी में सुशील चंद्रा ने नए मुख्य निर्वाचन आयुक्त के तौर पर पदभार संभाल लिया है. लेकिन चंद्रा के लिए शेष बचे चार चरणों के बंगाल चुनाव पहली बड़ी चुनौती होगी. क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और टीएमसी ममता बनर्जी के एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप हर रोज लगाए जा रहे हैं. इन दोनों पार्टियों के अधिकांश फैसले निर्वाचन आयोग की ‘दहलीज‘ पर आकर न्याय की गुहार लगा रहे हैं. भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के बीच बंगाल की सियासी लड़ाई की तपिश में पिछले कई दिनों से निर्वाचन आयोग भी ‘झुलस‘ रहा है.

पीएम मोदी और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की दिल्ली स्थित मुख्य चुनाव आयोग के मुख्यालय पर शिकायतों का अंबार बढ़ता जा रहा है. पीएम मोदी और दीदी ने बंगाल में चुनावी रैली के दौरान एक दूसरे पर जन भावना भड़काने के लिए निर्वाचन आयोग से शिकायत की थी. लेकिन निर्वाचन आयोग ने ममता बनर्जी प्रचार के दौरान भड़काऊ बयान पर कार्रवाई करते हुए 24 घंटे का चुनाव प्रचार करने पर रोक लगा दी है. इसी के विरोध में आज दीदी ने तीन घण्टे का धरना भी दिया. ममता बनर्जी कोलकाता में गांधी मूर्ति के पास अकेले ही धरने पर बैठी और चुनाव आयोग के फैसले का विरोध करती रहीं. इस दौरान मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि आज तक पीएम मोदी के खिलाफ कितनी शिकायतें दर्ज की गई हैं. जबकि हर रोज पीएम मोदी हिंदू-मुस्लिम करते रहते हैं. साथ ही टीएमसी प्रमुख ने चुनाव आयोग पर पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाने का आरोप लगाया.

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बता दें कि चुनाव आयोग ने ममता बनर्जी को मुस्लिम वोटबैंक पर दिए गए उनके बयान के लिए बुधवार को 48 घंटे में जवाब देने का नोटिस थमाया था. टीएमसी का आरोप है कि चुनाव आयोग की नोटिस के पीछे बीजेपी की साजिश है. जबकि बीजेपी नेता ममता बनर्जी पर प्रचार में हिंदु-मुस्लिम वोटबैंक को लेकर बयान देने के आरोप लगाते दिख रहे हैं. अब देखना होगा फिलहाल सुशील चंद्रा बंगाल चुनाव में बचे चार चरणों को किस प्रकार निपटा पाते हैं. इसके बाद भी उन्हें अगले साल होने वाले अन्य राज्यों के विधानसभा चुनाव में कम चुनौती नहीं होगी. बता दें, सुशील चंद्रा का कार्यकाल अगले साल मई तक जारी रहेगा. नए मुख्य चुनाव आयुक्त चंद्रा की अगुवाई में आने वाले समय में गोवा, मणिपुर, उत्तराखंड, पंजाब और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. वहीं देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश सहित इन सभी राज्यों में चुनाव बेहतर ढंग से संपन्न कराना उनके लिए चुनौती रहेगी.

अब नए मुख्य चुनाव आयुक्त के बारे में जान लेते हैं. चंद्रा भारतीय राजस्व सेवा (आयकर कैडर) के 1980 बैच के अधिकारी हैं. उन्होंने आईआईटी, रुड़की से बीटेक और डीएवी, देहरादून से एलएलबी की डिग्री प्राप्त की है. चंद्रा के पहले टी एस कृष्णमूर्ति ऐसे आईआरएस अधिकारी थे जिन्हें निर्वाचन आयुक्त नियुक्त किया गया था. कृष्णमूर्ति 2004 में मुख्य निर्वाचन आयुक्त बने थे. परंपरा के अनुसार देश के 3 निर्वाचन आयुक्तों में से सबसे सीनियर अधिकारी को ही मुख्य निर्वाचन आयुक्त बनाया जाता है, उसी आधार पर चंद्रा को देश का नया मुख्य चुनाव आयुक्त नियुक्त किया गया है. वे महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में कई उच्च पदों पर रह चुके हैं. सही मायने में अब सुशील चंद्रा राजनीतिक दलों के नेताओं की समय-समय पर शिकायतों पर अपना फैसले सुनाने और आदेश देने के ‘मुखिया‘ बन गए हैं.

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