Wednesday, January 15, 2025
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बजट सत्र के बाद ईवीएम का मुद्दा जोरदार तरीके से उठाने की तैयारी

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संसद के बजट सत्र का समापन होने के बाद कांग्रेस इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) के मुद्दे पर विपक्षी पार्टियों की बैठक बुला सकती है. पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस सहित विपक्षी पार्टियों की करारी हार के कारणों की तलाश में ईवीएम की भूमिका पर भी उंगली उठ रही है. कई लोग मानते हैं कि ईवीएम में गड़बड़ी की जा सकती है. 2019 के लोकसभा चुनाव में ईवीएम के जरिए मतदान हुआ और भाजपा ने 303 सीटों पर जीत हासिल की.

लोकसभा चुनाव में बीजेपी इस अपार सफलता पर कई लोगों को आश्चर्य है. विपक्षी पार्टियां कई तरह की शंकाएं कर रही है. इसके मद्देनजर अगले चुनावों में कांग्रेस मतपत्रों के जरिए मतदान की व्यवस्था बहाल करने की मांग कर सकती है. इस संबंध में कुछ कांग्रेस नेता यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी से मिले, उन्होंने ईवीएम में गड़बड़ी का मुद्दा जोरदार तरीके से उठाने की मांग की है.

कांग्रेस के एक पदाधिकारी ने कहा कि उनकी पार्टी को जमीनी स्तर पर फीडबैक मिले हैं और पार्टी को भी लग रहा है कि ईवीएम के जरिए धांधली की जा सकती है. 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 543 सदस्यों की लोकसभा में सिर्फ 52 सीटें मिली हैं. चुनाव से पहले भी विपक्षी पार्टियों ने ईवीएम को लेकर एतराज किया था, लेकिन चुनाव आयोग ने उसे बेबुनियाद बताया. विपक्षी पार्टियां इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट भी गई थी, तब सुप्रीम कोर्ट ने फैसला किया था कि एक की बजाय पांच क्षेत्रों में ईवीएम के वोटों का वीवीपीएटी से मिलान किया जाए. बाद में विपक्षी पार्टियों ने कम से कम 50 फीसदी मतदान केंद्रों में ईवीएम के वोटों का वीवीपीएटी से मिलान करने की मांग की थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने नामंजूर कर दिया था.

कांग्रेस के एक अन्य पदाधिकारी ने अपना नाम उजागर नहीं करने की शर्त पर कहा कि इस बार पार्टी पर महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड विधानसभा चुनावों का बायकाट करने का भारी दबाव है. कई लोग मांग कर रहे हैं कि अगर चुनाव आयोग मतपत्रों से मतदान कराने की व्यवस्था बहाल नहीं करता है तो चुनाव का बहिष्कार कर दिया जाए. इस मुद्दे पर कांग्रेस अन्य सहयोगी विपक्षी पार्टियों के साथ विचार विमर्श करना चाहती है. कांग्रेस पदाधिकारी का कहना है कि इस मुद्दे पर अन्य विपक्षी पार्टियों का समर्थन भी जरूरी है. इसके बाद ही चुनाव आयोग पर दबाव डाला जा सकता है. कांग्रेस अकेले इस मुद्दे पर फैसला नहीं कर सकती है.

महाराष्ट्र में विपक्षी पार्टियां पहले ही ईवीएम के खिलाफ लामबंद हो रही हैं. महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे पिछले 14 साल में पहली बार दिल्ली जाकर मुख्य चुनाव आयोग सुनील अरोड़ा से मिले थे. उन्होंने चुनाव आयुक्त से मांग की कि अक्टूबर-नवंबर में होने वाले महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में ईवीएम की बजाय मतपत्रों के जरिए मतदान कराया जाए. उन्होंने कहा कि कई मतदाताओं को ईवीएम पर शंका है. उन्हें लगता है कि ईवीएम के जरिए उनका वोट सही उम्मीदवार को नहीं मिल रहा है. राज ठाकरे का कहना है कि ईवीएम के जरिए चुनाव में धांधली की जा सकती है.

राज ठाकरे ने मीडिया में आई खबरों का उल्लेख करते हुए कहा कि करीब 220 लोकसभा सीटों पर जितने वोट डाले गए और जितने वोटों की गिनती हुई, उसमें अंतर बताया गया है. राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के प्रमुख शरद पवार भी ईवीएम पर सवाल उठा चुके हैं. उन्होंने दावा किया कि एक बार उन्होंने एक प्रजेंटेशन के दौरान देखा था कि उनकी पार्टी को दिया गया वोट भाजपा के खाते में दर्ज हो गया. पवार ने 9 मई को सतारा में कहा था कि गुजरात और हैदराबाद में कुछ लोग उनके सामने ईवीएम लेकर आए थे. उन्होंने बटन दबाने को कहा. घड़ी के निशान पर बटन दबाया तो वह वोट कमल के निशान पर चला गया. इसके बाद 10 जून को पवार ने मुंबई में कहा था कि ईवीएम से कोई समस्या नहीं है बल्कि चुनाव अधिकारियों से है, जो ईवीएम संभाल रहे हैं. कितने वोट डाले गए और कितने वोटों की गिनती हुई, यह जांच का विषय है. इस मुद्दे पर विशेषज्ञों और अन्य विपक्षी पार्टियों के साथ विचार विमर्श की जरूरत है.

एक तरफ जहां विपक्षी पार्टियां ईवीएम पर सवाल उठा रही हैं, वहीं चुनाव आयोग का कहना है कि ईवीएम ले चुनाव कराने में गड़बड़ी की कोई संभावना नहीं है. चुनाव आयोग ने ईवीएम पर आपत्ति करने वाली पार्टियों को अपना दावा साबित करने की चुनौती दी है. चुनाव आयोग ने मतपत्रों के जरिए चुनाव कराने की व्यवस्था बहाल करने की संभावना से साफ इनकार कर दिया है. उसका कहना है कि ईवीएम के जरिए मतदान सुरक्षित है और इससे चुनाव प्रक्रिया में समय भी कम समय लगता है.

इसी महीने इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका खारिज हो चुकी है, जिसमें ईवीएम के जरिए चुनाव प्रक्रिया पर संदेह व्यक्त करते हुए लोकसभा चुनाव रद्द करने की मांग की गई थी. विश्वेषकों को संदेह है कि मतपत्रों के जरिए चुनाव की व्यवस्था फिर से बहाल होगी. एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के जगदीप छोकर का कहना है कि मतपत्रों के जरिए चुनाव की व्यवस्था बहाल करना संभव नहीं है और यह व्यावहारिक भी नहीं है. लेकिन ईवीएम पर उठ रही शंकाएं दूर करने की जरूरत है. ईवीएम-वीवीपीएटी के मिलान की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए. चुनाव प्रक्रिया को निष्पक्ष और पारदर्शी बनाने के लिए यह जरूरी भी है.

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