Thursday, February 6, 2025
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नीतीश कुमार के इशारे पर गिरिराज को घर बैठाने की तैयारी में भाजपा

Politalks News

अक्सर विवादित बयान और बात-बात में पाकिस्तान जाने की नसीहत देने वाले मोदी सरकार के मंत्री गिरिराज सिंह ने पिछले हफ्ते कहा था कि वे चुनाव लड़ेंगे तो नवादा से लड़ेंगे, वरना नहीं लड़ेंगे. भाजपा के फायरब्रांड नेता की इस धमकी का पार्टी नेतृत्व पर कोई असर नहीं हुआ. दिल्ली तो दूर, स्थानीय नेताओं तक ने गिरिराज के बयान को तवज्जो नहीं बख्शी. किसी नेता ने उनके बयान पर टिप्पणी नहीं की. इसके बाद से ही गिरिराज गहरी खामोशी की चादर ताने हुए हैं.

गिरिराज के ताजा बयानों को याद करें तो आखिरी बार वे सुर्खियों में तीन मार्च को पटना के गांधी मैदान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की साझा रैली के दौरान आए थे. तब उन्होंने कहा था कि जो इस रैली में शिरकत नहीं करेगा उसे देशद्रोही माना जाएगा. लेकिन किस्मत देखिए कि वह खुद ही उस रैली में नहीं जा सके. बाद में उन्होंने ट्वीट कर कहा कि वे बीमार होने की वजह से रैली में हिस्सा नहीं ले सके. इसको लेकर उन्हें सोशल मीडिया पर खूब ट्रोल किया गया.

रैली के बाद गिरिराज तो कई दिन तक गुमसुम रहे, लेकिन नवादा में उनकी जगह लेने की तैयारी कर रहे नेता बेधड़क बोल रहे हैं. पिछले दिनों बाहुबली नेता सुरजभान सिंह की पत्नी और मुंगेर से लोक जनशक्ति पार्टी सांसद वीणा देवी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि पार्टी उन्हें नवादा से टिकट देने जा रही है. उनके इस बयान को बचकाना समझा जाता उससे पहले ही लोजपा के प्रदेश अध्यक्ष पशुपति कुमार पारस ने साफ कर दिया कि नवादा सीट अब उनकी पार्टी के खाते में है. उन्होंने कहा कि लोजपा के कोटे की 6 सीटों में मुंगेर के बदले नवादा सीट मिली है.

पशुपति के बयान के बाद से गिरिराज के तेवर नरम हैं. वे अब कहने लगे हैं कि पार्टी जो भी फैसला लेगी वह उन्हें मंजूर होगा. अटकलें हैं कि उन्हें बिहार के लेनिनग्राद के नाम से मशहूर बेगूसराय का टिकट दिया जा सकता है. इस सीट से सीपीआई के टिकट पर छात्र नेता कन्हैया कुमार चुनाव लड़ रहे हैं. स्थानीय समीकरणों के आधार पर कहा जा रहा है कि यहां से गिरिराज की राह आसान नहीं होगी.

जबकि नवादा में जातिगत समीकरण गिरिराज के पक्ष में हैं. बता दें कि नवादा में करीब साढ़े तीन लाख भूमिहार वोटर हैं और गिरिराज भी इसी जाति से ताल्लुक रखते हैं. 2014 के चुनाव में उनकी जीत में भूमिहार वोटों की अहम भूमिका रही थी. वे इस बार भी जाति की जाजम बिछाकर संसद पहुंचना चाहते हैं, लेकिन गठबंधन में नवादा सीट के लोजपा के खाते में जाने से उनका खेल खराब हो गया है. गौरतलब है कि बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं. अमित शाह, नीतीश कुमार और राम विलास पासवान के बीच कई दौर की बातचीत के बाद यह तय हुआ कि भाजपा और जदयू 17-17 और लोजपा 6 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी.

सरसरी तौर पर देखने से यह लगता है कि गिरिराज सिंह की नवादा से उम्मीदवारी गठबंधन की भेंट चढ़ गई, लेकिन असली कहानी कुछ और है. इसे समझने के लिए मूल रूप से बिहार के मोकामा टाल इलाके के गिरिराज का सियासी इतिहास समझना जरूरी है. वे पुराने भाजपाई हैं. सांसद और मंत्री बनने से पहले गिरिराज 2002 से 2014 तक लगातार एमएलसी और सूबे की एनडीए सरकार में विभिन्न विभागों में मंत्री रहे, लेकिन नीतीश कुमार को वे कभी रास नहीं आए. साल 2013 में जब नीतीश भाजपा से अलग हुए तो उन्होंने जिन एक दर्जन मंत्रियों से विभाग छीने, उनमें गिरिराज सिंह भी एक थे.

नीतीश कुमार की नजर में गिरिराज सिंह के खटकने की वजह उनके बेतुके बयान हैं. यह जगजाहिर है कि गिरिराज अपनी बदजुबानी के लिए कुख्यात हैं. बात-बात में पाकिस्तान जाने की नसीहत देना उनका पसंदीदा तकिया कलाम है. हिंदुओं को ज्यादा से ज्यादा बच्चे पैदा करने की हिदायत देकर वह काफी सुर्खियां बटोर चुके हैं. हालांकि इस तरह के बयान भाजपा की ध्रुवीकरण की राजनीति को खाद-पानी देते हैं, लेकिन इस बार उनकी इस खासियत पर नीतीश कुमार की जिद भारी है.

असल में राजद और कांग्रेस का छोड़कर फिर से भाजपा के साथ गठजोड़ करने के बाद से नीतीश कुमार अपनी शर्तों पर राजनीति कर रहे हैं. भाजपा उनके सामने किस हद तक समर्पण कर चुकी है, इसकी अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2014 में महज दो सीटें जीतने वाली जदयू इस बार उसके बराबर 17 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. गठबंधन में बड़ा होने का सियासी संदेश देने के साथ-साथ नीतीश अपनी छवि को लेकर जरूरत से ज्यादा सावचेत हैं.

नीतीश कुमार भाजपा के साथ रहते हुए भी अपनी सेकुलर छवि पर कोई आंच नहीं आने देना चाहते. इसके लिए बिहार भाजपा के उन नेताओं को हाशिये पर धकेलना उनकी रणनीति का हिस्सा है, जो एक खास तबके के खिलाफ नफरत फैलाते हैं. सूत्रों के अनुसार नीतीश ने गिरिराज को ठिकाने लगाने का प्रण पिछले साल उस समय लिया था जब रामनवमी पर बिहार के आधा दर्जन जिलों में सांप्रदायिक हिंसा हुई. उस समय गिरिराज ने सरकार की कार्रवाई पर सवाल उठाए थे. नीतीश ने इसका हिसाब चुकता करने की योजना को अमलीजामा पहना दिया है.

सूत्रों के अनुसार नीतीश कुमार के इशारे पर ही नवादा सीट लोजपा को दी गई. उनके साथ गठबंधन की जरूरत को देखते हुए भाजपा नीतीश के कहे को दरकिनार नहीं कर पाई. यदि भाजपा गिरिराज सिंह को किसी दूसरी सीट से टिकट देती है तो नीतीश ने इसके लिए ‘प्लान-बी’ तैयार कर रखा है. यह देखना रोचक होगा कि गिरिराज सिंह इस चक्रव्यूह से बाहर निकल पाते हैं या नहीं.

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शीला दीक्षित बोलीं, ‘आतंक के खिलाफ मोदी जितने सख्त नहीं थे मनमोहन’

कांग्रेस की वरिष्ठ नेता और दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने आतंकवाद से निपटने में मनमोहन सरकार के तौर-तरीकों की आलोचना करते हुए इससे मामले में मोदी सरकार की नीतियों की सराहना की है. न्यूज 18 को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि आतंकवाद से लड़ने के मामले में मनमोहन सिंह उतने कठोर नहीं थे, जितने नरेंद्र मोदी हैं.

हालांकि शीला दीक्षित ने यह भी कहा कि नरेंद्र मोदी के ज्यादातर काम राजनीति प्रेरित होते हैं. उन्होंने कहा कि बिना राजनीतिक फायदे के मोदी कोई काम नहीं करते. चुनावी मौसम में दीक्षित के इस बयान ने राजनीति को गरमा दिया. पहली प्रतिक्रिया दिल्ली सरकार के शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया की आई. उन्होंने ट्विटर पर लिखा: 

मनीष सिसोदिया के ट्वीट को रीट्वीट करते हुए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने शीला दीक्षित के बयान पर तंज कसा. उन्होंने लिखा: 

बबाल मचने पर शीला दीक्षित ने सफाई देते हुए कहा कि अगर कोई उनके बयान को किसी और संदर्भ में लेता है, तो वह कुछ नहीं कह सकतीं.  उन्होंने ट्वीट करके भी सफाई दी. इसमें उन्होंने लिखा, ‘मीडिया मेरे इंटरव्यू को तोड़ मरोड़ कर पेश कर रहा है. मैंने कहा था कि कुछ लोगों को लग सकता है कि मोदी आतंक पर मजबूत हैं, लेकिन मुझे लगता है कि यह एक चुनावी नौटंकी है.’

दूसरे ट्वीट में दीक्षित ने लिखा, ‘मैंने यह भी कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा हमेशा एक चिंता का विषय रही है और इंदिरा जी इसे लेकर एक मजबूत नेता रही हैं.’

शीला दीक्षित की ओर से सफाई आने के बाद भी भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने उन्हें ट्वीट के जरिये धन्यवाद दिया. उन्होंने लिखा, ‘देश को पहले से पता है, लेकिन कांग्रेस पार्टी इसे स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है.’

अमित शाह के इस ट्वीट के बाद अरविंद केजरीवाल ने फिर से ट्वीट करके चुटकी ली. उन्होंने लिखा:

इस बीच शीला दीक्षित का इंटरव्यू लेने वाले पत्रकार वीर सांघवी ने ट्वीट कर लिखा कि जो कुछ शीला दीक्षित ने ट्वीट किया वो बिल्कुल सही है और इसे अलग मुद्दे से जोड़ कर न देखें. 

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कांग्रेस को झटका, सोनिया के करीबी वडक्कन ने थामा भाजपा का दामन

चुनाव की तारीखों का एलान होने के बाद सियासी गहमागहमी बढ़ गई है. नेताओं का इधर-उधर होना शुरू हो गया है. कांग्रेस के बड़े नेता टॉम वडक्कन ने भाजपा का दामन थाम लिया है. केरल से आने वाले टॉम वडक्कन कांग्रेस के प्रवक्ता थे.  उनकी गिनती सोनिया गांधी के करीबी नेताओं में होती है. वे मीडिया में कांग्रेस के बड़े चेहरे रहे हैं और कई प्रेस कॉन्फ्रेंस, टीवी डिबेट्स में कांग्रेस का रुख रखते आए हैं. फिलहाल वे राष्ट्रीय प्रवक्ता और महासचिव के पद पर थे.

वडक्कन ने आज दिल्ली स्थित भाजपा मुख्यालय में पार्टी की सदस्यता ग्रहण की. इस मौके पर केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद मौजूद थे. भाजपा में शामिल होने के बाद मीडिया से बातचीत करते हुए वडक्कन ने कहा कि उन्होंने पुलवामा हमले के बाद भारत की ओर से की गई एयर स्ट्राइक पर राहुल गांधी के रुख से दुखी होकर पार्टी छोड़ी है.

वडक्कन ने कहा, ‘कांग्रेस पार्टी की तरफ से देश की सेना पर सवाल उठाया गया, जिससे मैं काफी निराश था. पाकिस्तान स्थित आतंकवादी शिविर पर हुई एयर स्ट्राइक पर कांग्रेस की प्रतिक्रिया दुखद थी. कांग्रेस पार्टी की तरफ से देश की सेना पर सवाल उठाया गया, जिससे मैं काफी निराश था इसलिए आज मैं यहां हूं, क्योंकि देश से बड़ा कुछ नहीं है. मेरा विकास को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सोच पर पूरा विश्वास है.’

वडक्कन ने भाजपा का दामन थामते हुए कांग्रेस पर वंशवादी होने के आरोप भी लगाए. उन्होंने कहा, ‘मेरे पास कोई विकल्प नहीं था. पार्टी में कौन पावर सेंटर है, यह पता ही नहीं चल पा रहा था. कांग्रेस में यूज एंड थ्रो कल्चर है और मुझे यह स्वीकार्य नहीं है. मैंने अपने जीवन के 20 साल कांग्रेस को दिए, लेकिन मुझे सम्मान नहीं मिला. पार्टी में वंशवाद हावी होता जा रहा है.’

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भाजपा के 10 सांसदों पर लटकी तलवार, 12 को फिर मिलेगा मौका

लोकसभा चुनाव की तारीखों का एलान होने के बाद सियासी गहमागहमी बढ़ गई है. राजनीतिक दलों ने उम्मीदवारों के चयन के काम तेज कर दिया है. राजस्थान की 25 लोकसभा सीटों पर प्रत्याशियों के नाम फाइनल करने के लिए भाजपा का मंथन जारी है. सूत्रों के अनुसार पार्टी के आंतरिक सर्वे और अलग—अलग स्तर पर मिले फीडबैक के आधार 10 सांसदों के टिकट काटने का मन बना लिया है जबकि 12 को फिर से मैदान में उतारने की तैयारी की जा रही है.

जिन 10 सांसदों का टिकट संकट में है उनमें जयपुर से रामचरण बोहरा, सीकर से सुमेधानंद सरस्वती, नागौर से सीआर चौधरी, बाड़मेर से कर्नल सोनाराम, चूरू से राहुल कस्वां, झुंझुनूं से संतोष अहलावत, राजसमंद से हरिओम सिंह राठौड़, बांसवाड़ा से मानशंकर निनामा, भरतपुर से बहादुर सिंह कोली और करौली—धौलपुर से मनोज राजोरिया का नाम सामने आ रहा है.

जिन 12 सांसदों को भाजपा फिर से मैदान में उतारने की तैयार कर रही है उनमें जयपुर ग्रामीण से राज्यवर्द्धन सिंह राठौड़, बीकानेर से अर्जुनराम मेघवाल, जोधपुर से गजेंद्र सिंह शेखावत, पाली से पीपी चौधरी, जालोर—सिरोही से देवजी पटेल, बारां—झालावाड़ से दुष्यंत सिंह, चित्तौड़गढ़ से सीपी जोशी, भीलवाड़ा से सुभाष बहेड़िया, श्रीगंगानगर से निहालचंद मेघवाल, कोटा से ओम बिरला, टोंक—सवाई माधोपुर से सुखवीर सिंह जौनपुरिया और उदयपुर से अर्जुन लाल मीणा का नाम शामिल है.

जबकि अलवर, अजमेर और दौसा सीटों पर भाजपा दावेदरों की छंटनी कर रही है. गौरतलब है कि 2014 में इन तीनों सीटों पर पार्टी के प्रत्याशी जीते थे, लेकिन अलवर सांसद महंत चांदनाथ और अजमेर सांसद सांवरलाल जाट के निधन के बाद हुए उपचुनाव में इन सीटों पर कांग्रेस ने बाजी मारी. जबकि दौसा सांसद हरीश मीणा विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस में शामिल हो गए. फिलहाल वे देवली—उनियारा सीट से कांग्रेस के विधायक हैं.

पार्टी ने जिन 10 सांसदों का टिकट काटने का मन बनाया है, उन्हें इस बारे में बता दिया गया है. सूत्रों के अनुसार पिछले महीने के आखिर में पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने प्रदेश के सभी सांसदों से केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के दिल्ली स्थित सरकारी आवास पर मुलाकात की थी. इसमें शाह ने उन 10 सांसदों को दो—टूक शब्दों में कह दिया कि फील्ड से आपका फीडबैक निगेटिव आ रहा है इसलिए पार्टी आपको फिर से मैदान में उतारने का खतरा नहीं उठा सकती.

भाजपा की कोर कमेटी की बैठकों में अमित शाह की मंशा के अनुसार ही उम्मीदवारों की चयन की प्रक्रिया आगे बढ़ रही है. यानी रामचरण बोहरा, सुमेधानंद सरस्वती, सीआर चौधरी, कर्नल सोनाराम, राहुल कस्वां, संतोष अहलावत, हरिओम सिंह राठौड़, मानशंकर निनामा, बहादुर सिंह कोली और मनोज राजोरिया को फिर से मौका देने पर विचार नहीं हो रहा है. हालांकि ये सभी सांसद फिर से टिकट हासिल करने के लिए अपने—अपने स्तर पर लॉबिंग कर रहे हैं.

बता दें कि राजस्थान की 25 सीटों पर उम्मीदवार तय करने के लिए भाजपा कोर कमेटी की दो बैठकें हो चुकी हैं. बुधवार को जयपुर में हुई बैठक में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसुंधरा राजे, प्रदेश चुनाव प्रभारी प्रकाश जावड़ेकर, सह प्रभारी सुधांशु त्रिवेदी, प्रदेश प्रभारी, अ​विनाश राय खन्ना, प्रदेशाध्यक्ष मदन लाल सैनी, प्रदेश संगठन महामंत्री चंद्रशेखर, राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री वी सतीश, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ओम माथुर, केंद्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल, सीआर चौधरी, गजेंद्र सिंह शेखावत, नेता प्रतिपक्ष गुलाब चंद कटारिया, उप नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़, पूर्व प्रदेशाध्यक्ष अशोक परनामी, अरुण चतुर्वेदी, प्रदेश प्रवक्ता सतीश पूनिया और पूर्व मंत्री यूनुस खान ने हिस्सा लिया.

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एयर स्ट्राइक से बदली हवा, फलोदी सट्टा बाजार एनडीए को दे रहा 350 सीटें

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लोकसभा चुनाव की तारीखों का एलान होने के बाद देश में राजनीतिक गहमागहमी बढ़ गई है. एक ओर सत्ताधारी भाजपा फिर से सरकार बनाने के लिए एड़ी—चोटी का जोर लगा रही है, दूसरी ओर विपक्ष सत्ता में लौटने के लिए रणनीति बनाने में जुटा है. भाजपा की ओर से दावा किया जा रहा है कि पार्टी को इस बार पहले से भी ज्यादा सीटों पर जीत मिलेगी, वहीं विपक्ष जनता का मोदी सरकार से मोहभंग होने का दावा कर रहा है.

इन दावों के बीच सीटों की संख्या के अनुमान सामने आने लगे हैं. टीवी चैनलों पर ओपिनियन पोल के आंकड़े आ रहे हैं तो सट्टा बाजार में भी सुगबुगाहट शुरू हो गई है. इस बीच फलोदी सट्टा बाजार के भाव भाजपा के लिए खुशखबरी लेकर आए हैं. चुनाव की तारीखों का एलान होने के बाद आए ताजा भाव के अनुसार लोकसभा चुनाव में एनडीए को 350 सीटें मिल सकती हैं. इसमें से अकेले भाजपा को 245 से 251 सीटें मिलने का अनुमान लगाया जा जा रहा है.

काबिलेगौर है कि वायुसेना की सर्जिकल स्ट्राइक से पहले फलोदी के सट्टेबाज आम चुनावों में भाजपा को 200-230 सीटें मिलने की संभावना जताई जा रही थी और एक पर एक का भाव मिल रहा था. यानी जीतने पर एक रुपये के सट्टे पर एक रुपये का भाव दिया जा रहा था, लेकिन अब भाजपा को इन चुनावों में 245 से 251 और एनडीए को 350 से अधिक सीटें मिलने की उम्मीद की जा रही है.

वहीं, कांग्रेस की 200 या उससे अधिक सीटें जीतने की संभावना पर 10 के मुकाबले पर 1 का भाव दिया जा रहा है. यानी जीतने पर एक रुपये के सट्टे पर 10 रुपये का भाव दिया जा रहा है. एयर स्ट्राइक से पहले यह भाव सात के मुकाबले एक था. राजनीतिक विश्लेषकों का भी यह मानना है ​कि एयर स्ट्राइक के बाद बदला माहौल भाजपा के लिए फायदेमंद रहेगा.

बता दें कि जोधपुर जिले के फलोदी को चुनावी सट्टे का गढ़ माना जाता है. मुंबई और दिल्ली जैसे बड़े सट्टा बाजार भी यहां के भाव के आधार पर चलते हैं. यहां के सट्टेबाजों का यह कहना है कि अगर कांग्रेस प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करती है तो उसकी स्थिति बेहतर हो सकती है.

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कांग्रेस-भाजपा के लिए अबूझ पहेली बना अजमेर की जनता का मिजाज

साल 2009 के लोकसभा चुनाव में जब सचिन पायलट ने 20 साल से भाजपा के लिए अजेय रही अजमेर सीट पर किरण माहेश्वरी को पटकनी देकर जीत का परमच लहराया तो राजनीति के जानकार यह भविष्यवाणी करने लगे कि वे यहां से लंबी पारी खेलेंगे. इस दावे के पीछे पायलट के युवा होने, केंद्र सरकार में मंत्री बनने और किशनगढ़ हवाई अड्डा, सेंट्रल यूनिवर्सिटी सरीखे विकास कार्यों की फेहरिस्त थी, लेकिन 2014 के चुनाव में यह दावा हवा हो गया.

इस चुनाव में भाजपा ने दिग्गज नेता सांवरलाल जाट को पायलट के सामने चुनावी मैदान में उतारा. नतीजा आया तो पायलट बुरी तरह चुनाव हार गए. मोदी लहर और जाट के सामने न तो पायलट का विकास कार्ड काम आया, न युवा होने का फायदा मिला और न ही प्रदेश अध्यक्ष होने के रुबते का कोई असर पड़ा. सांवरलाल जाट की जीत इतनी एकतरफा थी कि पायलट को अजमेर की आठों विधानसभा सीटों में से एक पर भी उन्हें बढ़त नहीं मिली.

सांवरलाल जाट सिर्फ सांसद ही नहीं बने, उन्हें मोदी सरकार में मंत्री पद भी मिला. उनके कद में हुए इस इजाफे के बाद राजनीतिक विश्लेषक यह कयास लगाने लगे कि अब अजमेर सीट पर उनकी ही तूती बोलेगी. चुनाव में इस कयास की परीक्षा होती उससे पहले ही जाट का निधन हो गया. उप चुनाव का एलान हुआ तो भाजपा ने सांवरलाल के बेटे रामस्वरूप लांबा को मैदान में उतारा.

लांबा को उम्मीदवार बनाने के पीछे सीधी गणित थी कि उन्हें सहानुभूति का फायदा मिलेगा. चर्चा थी कि कांग्रेस की ओर से खुद सचिन पायलट मैदान में उतरेंगे, लेकिन पार्टी ने यहां से रघु शर्मा को उम्मीदवार बनाया. इस चुनाव से पहले शर्मा के खाते में सिर्फ एक चुनावी जीत जमा थी. वे 2008 में अजमेर की केकड़ी विधानसभा सीट से चुनाव जीते थे.

उप चुनाव से पहले राजनीति के जानकारों का आकलन यह था कि मुकाबला बराबरी का रहेगा. लांबा को जिताने के लिए पूरी वसुंधरा सरकार ने अजमेर में डेरा डाल दिया, लेकिन नतीजा आया तो वे बुरी तरह चुनाव हार गए. रघु शर्मा ने उन्हें सभी आठों विधानसभा सीटों पर पटकनी दी. उप चुनाव में कांग्रेस ने अजमेर सीट के अलावा अलवर और मांडलगढ़ विधानसभा सीट पर भी फतह हासिल की.

विधानसभा चुनाव से पहले आए इन नतीजों के बाद यह चर्चा होने लगी कि इस बार भाजपा की दुर्गति होना तय है, लेकिन नतीजे वैसे नहीं आए. प्रदेश में कांग्रेस की सरकार तो बनी मगर अजमेर में पार्टी का बंटाधार हो गया. जिले की आठ विधानसभा सीटों में से कांग्रेस केवल दो पर जीत दर्ज कर पाई. केकड़ी से रघु शर्मा और मसूदा से राकेश पारीक के अलावा कांग्रेस का कोई भी प्रत्याशी जीतने में कामयाब नहीं हुआ.

उपचुनाव में जिन रामस्वरूप लांबा को जनता ने नकार दिया उन्हें नसीराबाद की जनता ने विजयी तिलक लगा दिया. वहीं, अजमेर उत्तर से वासुदेव देवनानी, अजमेर दक्षित ने अनीता भदेल, ब्यावर से शंकर सिंह रावत और पुष्कर से सुरेश रावत जीत दर्ज की. किशनगढ़ सीट पर जनता ने कांग्रेस और भाजपा, दोनों को नकार दिया. यहां से भाजपा से बगावत कर चुनाव लड़े सुरेश टांक ने जीत दर्ज की.

पिछले नौ साल के चुनावी नतीजों पर गौर करें तो साफ हो जाता है कि अजमेर की जनता चार बार अपना मिजाज बदल चुकी है. ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी है कि इस बार लोकसभा चुनाव में वह किस पर भरोसा करेगी. जनता के मन को न तो कांग्रेस पढ़ पा रही है और न ही भाजपा. दोनों दल अपने—अपने हिसाब से चुनाव की तैयारी में जरूर जुटे हैं.

कांग्रेस और भाजपा की ओर से बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं को चुनावी जंग के लिए तैयार किया जा रहा है. एक ओर कांग्रेस गहलोत सरकार के लोकलुभावन फैसलों को भुनाने की रणनीति बना रही है तो दूसरी ओर भाजपा मोदी सरकार की उपलब्धियों के बूते मैदान में उतरने की रणनीति तैयार कर रही है. इनमें से कौन सफल होगा, यह तो नतीजा आने के बाद ही साफ होगा.

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