अक्सर विवादित बयान और बात-बात में पाकिस्तान जाने की नसीहत देने वाले मोदी सरकार के मंत्री गिरिराज सिंह ने पिछले हफ्ते कहा था कि वे चुनाव लड़ेंगे तो नवादा से लड़ेंगे, वरना नहीं लड़ेंगे. भाजपा के फायरब्रांड नेता की इस धमकी का पार्टी नेतृत्व पर कोई असर नहीं हुआ. दिल्ली तो दूर, स्थानीय नेताओं तक ने गिरिराज के बयान को तवज्जो नहीं बख्शी. किसी नेता ने उनके बयान पर टिप्पणी नहीं की. इसके बाद से ही गिरिराज गहरी खामोशी की चादर ताने हुए हैं.
गिरिराज के ताजा बयानों को याद करें तो आखिरी बार वे सुर्खियों में तीन मार्च को पटना के गांधी मैदान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की साझा रैली के दौरान आए थे. तब उन्होंने कहा था कि जो इस रैली में शिरकत नहीं करेगा उसे देशद्रोही माना जाएगा. लेकिन किस्मत देखिए कि वह खुद ही उस रैली में नहीं जा सके. बाद में उन्होंने ट्वीट कर कहा कि वे बीमार होने की वजह से रैली में हिस्सा नहीं ले सके. इसको लेकर उन्हें सोशल मीडिया पर खूब ट्रोल किया गया.
रैली के बाद गिरिराज तो कई दिन तक गुमसुम रहे, लेकिन नवादा में उनकी जगह लेने की तैयारी कर रहे नेता बेधड़क बोल रहे हैं. पिछले दिनों बाहुबली नेता सुरजभान सिंह की पत्नी और मुंगेर से लोक जनशक्ति पार्टी सांसद वीणा देवी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि पार्टी उन्हें नवादा से टिकट देने जा रही है. उनके इस बयान को बचकाना समझा जाता उससे पहले ही लोजपा के प्रदेश अध्यक्ष पशुपति कुमार पारस ने साफ कर दिया कि नवादा सीट अब उनकी पार्टी के खाते में है. उन्होंने कहा कि लोजपा के कोटे की 6 सीटों में मुंगेर के बदले नवादा सीट मिली है.
पशुपति के बयान के बाद से गिरिराज के तेवर नरम हैं. वे अब कहने लगे हैं कि पार्टी जो भी फैसला लेगी वह उन्हें मंजूर होगा. अटकलें हैं कि उन्हें बिहार के लेनिनग्राद के नाम से मशहूर बेगूसराय का टिकट दिया जा सकता है. इस सीट से सीपीआई के टिकट पर छात्र नेता कन्हैया कुमार चुनाव लड़ रहे हैं. स्थानीय समीकरणों के आधार पर कहा जा रहा है कि यहां से गिरिराज की राह आसान नहीं होगी.
जबकि नवादा में जातिगत समीकरण गिरिराज के पक्ष में हैं. बता दें कि नवादा में करीब साढ़े तीन लाख भूमिहार वोटर हैं और गिरिराज भी इसी जाति से ताल्लुक रखते हैं. 2014 के चुनाव में उनकी जीत में भूमिहार वोटों की अहम भूमिका रही थी. वे इस बार भी जाति की जाजम बिछाकर संसद पहुंचना चाहते हैं, लेकिन गठबंधन में नवादा सीट के लोजपा के खाते में जाने से उनका खेल खराब हो गया है. गौरतलब है कि बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं. अमित शाह, नीतीश कुमार और राम विलास पासवान के बीच कई दौर की बातचीत के बाद यह तय हुआ कि भाजपा और जदयू 17-17 और लोजपा 6 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी.
सरसरी तौर पर देखने से यह लगता है कि गिरिराज सिंह की नवादा से उम्मीदवारी गठबंधन की भेंट चढ़ गई, लेकिन असली कहानी कुछ और है. इसे समझने के लिए मूल रूप से बिहार के मोकामा टाल इलाके के गिरिराज का सियासी इतिहास समझना जरूरी है. वे पुराने भाजपाई हैं. सांसद और मंत्री बनने से पहले गिरिराज 2002 से 2014 तक लगातार एमएलसी और सूबे की एनडीए सरकार में विभिन्न विभागों में मंत्री रहे, लेकिन नीतीश कुमार को वे कभी रास नहीं आए. साल 2013 में जब नीतीश भाजपा से अलग हुए तो उन्होंने जिन एक दर्जन मंत्रियों से विभाग छीने, उनमें गिरिराज सिंह भी एक थे.
नीतीश कुमार की नजर में गिरिराज सिंह के खटकने की वजह उनके बेतुके बयान हैं. यह जगजाहिर है कि गिरिराज अपनी बदजुबानी के लिए कुख्यात हैं. बात-बात में पाकिस्तान जाने की नसीहत देना उनका पसंदीदा तकिया कलाम है. हिंदुओं को ज्यादा से ज्यादा बच्चे पैदा करने की हिदायत देकर वह काफी सुर्खियां बटोर चुके हैं. हालांकि इस तरह के बयान भाजपा की ध्रुवीकरण की राजनीति को खाद-पानी देते हैं, लेकिन इस बार उनकी इस खासियत पर नीतीश कुमार की जिद भारी है.
असल में राजद और कांग्रेस का छोड़कर फिर से भाजपा के साथ गठजोड़ करने के बाद से नीतीश कुमार अपनी शर्तों पर राजनीति कर रहे हैं. भाजपा उनके सामने किस हद तक समर्पण कर चुकी है, इसकी अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2014 में महज दो सीटें जीतने वाली जदयू इस बार उसके बराबर 17 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. गठबंधन में बड़ा होने का सियासी संदेश देने के साथ-साथ नीतीश अपनी छवि को लेकर जरूरत से ज्यादा सावचेत हैं.
नीतीश कुमार भाजपा के साथ रहते हुए भी अपनी सेकुलर छवि पर कोई आंच नहीं आने देना चाहते. इसके लिए बिहार भाजपा के उन नेताओं को हाशिये पर धकेलना उनकी रणनीति का हिस्सा है, जो एक खास तबके के खिलाफ नफरत फैलाते हैं. सूत्रों के अनुसार नीतीश ने गिरिराज को ठिकाने लगाने का प्रण पिछले साल उस समय लिया था जब रामनवमी पर बिहार के आधा दर्जन जिलों में सांप्रदायिक हिंसा हुई. उस समय गिरिराज ने सरकार की कार्रवाई पर सवाल उठाए थे. नीतीश ने इसका हिसाब चुकता करने की योजना को अमलीजामा पहना दिया है.
सूत्रों के अनुसार नीतीश कुमार के इशारे पर ही नवादा सीट लोजपा को दी गई. उनके साथ गठबंधन की जरूरत को देखते हुए भाजपा नीतीश के कहे को दरकिनार नहीं कर पाई. यदि भाजपा गिरिराज सिंह को किसी दूसरी सीट से टिकट देती है तो नीतीश ने इसके लिए ‘प्लान-बी’ तैयार कर रखा है. यह देखना रोचक होगा कि गिरिराज सिंह इस चक्रव्यूह से बाहर निकल पाते हैं या नहीं.
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