Wednesday, January 22, 2025
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कांग्रेस-भाजपा के लिए अबूझ पहेली बना अजमेर की जनता का मिजाज

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साल 2009 के लोकसभा चुनाव में जब सचिन पायलट ने 20 साल से भाजपा के लिए अजेय रही अजमेर सीट पर किरण माहेश्वरी को पटकनी देकर जीत का परमच लहराया तो राजनीति के जानकार यह भविष्यवाणी करने लगे कि वे यहां से लंबी पारी खेलेंगे. इस दावे के पीछे पायलट के युवा होने, केंद्र सरकार में मंत्री बनने और किशनगढ़ हवाई अड्डा, सेंट्रल यूनिवर्सिटी सरीखे विकास कार्यों की फेहरिस्त थी, लेकिन 2014 के चुनाव में यह दावा हवा हो गया.

इस चुनाव में भाजपा ने दिग्गज नेता सांवरलाल जाट को पायलट के सामने चुनावी मैदान में उतारा. नतीजा आया तो पायलट बुरी तरह चुनाव हार गए. मोदी लहर और जाट के सामने न तो पायलट का विकास कार्ड काम आया, न युवा होने का फायदा मिला और न ही प्रदेश अध्यक्ष होने के रुबते का कोई असर पड़ा. सांवरलाल जाट की जीत इतनी एकतरफा थी कि पायलट को अजमेर की आठों विधानसभा सीटों में से एक पर भी उन्हें बढ़त नहीं मिली.

सांवरलाल जाट सिर्फ सांसद ही नहीं बने, उन्हें मोदी सरकार में मंत्री पद भी मिला. उनके कद में हुए इस इजाफे के बाद राजनीतिक विश्लेषक यह कयास लगाने लगे कि अब अजमेर सीट पर उनकी ही तूती बोलेगी. चुनाव में इस कयास की परीक्षा होती उससे पहले ही जाट का निधन हो गया. उप चुनाव का एलान हुआ तो भाजपा ने सांवरलाल के बेटे रामस्वरूप लांबा को मैदान में उतारा.

लांबा को उम्मीदवार बनाने के पीछे सीधी गणित थी कि उन्हें सहानुभूति का फायदा मिलेगा. चर्चा थी कि कांग्रेस की ओर से खुद सचिन पायलट मैदान में उतरेंगे, लेकिन पार्टी ने यहां से रघु शर्मा को उम्मीदवार बनाया. इस चुनाव से पहले शर्मा के खाते में सिर्फ एक चुनावी जीत जमा थी. वे 2008 में अजमेर की केकड़ी विधानसभा सीट से चुनाव जीते थे.

उप चुनाव से पहले राजनीति के जानकारों का आकलन यह था कि मुकाबला बराबरी का रहेगा. लांबा को जिताने के लिए पूरी वसुंधरा सरकार ने अजमेर में डेरा डाल दिया, लेकिन नतीजा आया तो वे बुरी तरह चुनाव हार गए. रघु शर्मा ने उन्हें सभी आठों विधानसभा सीटों पर पटकनी दी. उप चुनाव में कांग्रेस ने अजमेर सीट के अलावा अलवर और मांडलगढ़ विधानसभा सीट पर भी फतह हासिल की.

विधानसभा चुनाव से पहले आए इन नतीजों के बाद यह चर्चा होने लगी कि इस बार भाजपा की दुर्गति होना तय है, लेकिन नतीजे वैसे नहीं आए. प्रदेश में कांग्रेस की सरकार तो बनी मगर अजमेर में पार्टी का बंटाधार हो गया. जिले की आठ विधानसभा सीटों में से कांग्रेस केवल दो पर जीत दर्ज कर पाई. केकड़ी से रघु शर्मा और मसूदा से राकेश पारीक के अलावा कांग्रेस का कोई भी प्रत्याशी जीतने में कामयाब नहीं हुआ.

उपचुनाव में जिन रामस्वरूप लांबा को जनता ने नकार दिया उन्हें नसीराबाद की जनता ने विजयी तिलक लगा दिया. वहीं, अजमेर उत्तर से वासुदेव देवनानी, अजमेर दक्षित ने अनीता भदेल, ब्यावर से शंकर सिंह रावत और पुष्कर से सुरेश रावत जीत दर्ज की. किशनगढ़ सीट पर जनता ने कांग्रेस और भाजपा, दोनों को नकार दिया. यहां से भाजपा से बगावत कर चुनाव लड़े सुरेश टांक ने जीत दर्ज की.

पिछले नौ साल के चुनावी नतीजों पर गौर करें तो साफ हो जाता है कि अजमेर की जनता चार बार अपना मिजाज बदल चुकी है. ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी है कि इस बार लोकसभा चुनाव में वह किस पर भरोसा करेगी. जनता के मन को न तो कांग्रेस पढ़ पा रही है और न ही भाजपा. दोनों दल अपने—अपने हिसाब से चुनाव की तैयारी में जरूर जुटे हैं.

कांग्रेस और भाजपा की ओर से बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं को चुनावी जंग के लिए तैयार किया जा रहा है. एक ओर कांग्रेस गहलोत सरकार के लोकलुभावन फैसलों को भुनाने की रणनीति बना रही है तो दूसरी ओर भाजपा मोदी सरकार की उपलब्धियों के बूते मैदान में उतरने की रणनीति तैयार कर रही है. इनमें से कौन सफल होगा, यह तो नतीजा आने के बाद ही साफ होगा.

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