Thursday, February 6, 2025
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आईएएस टॉपर ने की राजनीति में एंट्री, इस दल से उतरेंगे चुनाव के मैदान में

साल 2010 की सिविल सेवा परीक्षा के टॉपर रहे शाह फैसल खुलकर राजनीति के मैदान में आ गए हैं. किसी दूसरे दल का दामन थामने की बजाय उन्होंने नयी पार्टी का गठन किया है. श्रीनगर में हुई रैली में उन्होंने इसकी औपचारिक घोषणा की. उन्होंने अपनी पार्टी का नाम ‘जम्मू एंड कश्मीर पीपुल्स मूवमेंट’ रखा है. जेएनयू छात्र संघ की पूर्व उपाध्यक्ष शेहला रशीद ने भी फैसल की पार्टी की सदस्यता ली है. पार्टी की घोषणा के दौरान शेहला मंच पर मौजूद थीं.

बता दें कि शाह फैसल ने 2010 की सिविल सेवा परीक्षा में पूरे देश में पहला स्थान हासिल किया था. जम्मू—कश्मीर में यह उपलब्धि हासिल करने वाले फैसले पहले शख्स हैं. परीक्षा में शीर्ष स्थान पाने के बाद वे पहली बार चर्चा में उस समय आए जब उन्होंने एक विवादित ट्वीट किया. इसमें उन्होंने कश्मीर में बलात्कार के लगातार सामने आ रहे मामलों का जिक्र करते हुए लिखा, ‘जनसंख्या + पितृसत्ता + निरक्षरता + शराब + पॉर्न + तकनीक + अराजकता = रेपिस्तान.’

शाह फैसल के इस ट्वीट पर कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग उनसे जवाब तलब किया. यह मामला ठंडा हो गया था, लेकिन फैसल ने इसी साल जनवरी की शुरूआत में अचानक नौकरी से इस्तीफा दे दिया. नौकरी छोड़ते समय उन्होंने कहा कि कश्मीर में लगातार हत्याओं के मामलों और इन पर केंद्र सरकार की ओर से कोई गंभीर प्रयास नहीं होने के चलते, भारतीय प्रशासनिक सेवा से इस्तीफा देने का फैसला किया है.

फैसल ने इस्तीफा देते समय मोदी सरकार का नाम लिए बिना आरोप लगाया कि आरबीआई, सीबीआई और एनआईए जैसी सरकारी संस्थाओं को नुकसान पहुंचाया जा रहा है, जिससे इस देश की संवैधानिक इमारत ढह सकती है और इसे रोकना होगा. उस समय नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अबदुल्ला ने उनके इस फैसले का स्वागत करते हुए अपनी पार्टी में आने का न्यौता दिया. तभी से यह कयास लगाए जा रहे थे कि फैसल नेशनल कॉन्फ्रेंस के टिकट पर चुनाव लड़ेंगे.

जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष होंगे देश के पहले लोकपाल

जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष देश के पहले लोकपाल होंगे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन, कानूनविद मुकुल रोहतगी की चयन समिति ने सर्वसम्मति से उनके सिफारिश की है. सूत्रों के अनुसार सरकार ने जस्टिस घोष की नियुक्ति से जुड़ी फाइल राष्ट्रपति के पास भेज दी है. राष्ट्रपति भवन से मंजूरी मिलने के बाद सोमवार को उनकी नियुक्ति की आधिकारिक घोषणा होने की संभावना है.

बता दें कि लोकसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे भी चयन समिति के सदस्य हैं, लेकिन वे चयन प्रक्रिया में शामिल नहीं हुए. इसकी वजह बताते हुए उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे पत्र में कहा था कि लोकपाल अधिनियम-2013 की धारा चार में ‘विशेष आमंत्रित सदस्य’ के लोकपाल चयन समिति की हिस्सा होने या इसकी बैठक में शामिल होने का कोई प्रावधान नहीं है. खड़गे ने तब कहा था कि 2014 में सत्ता में आने के बाद से मोदी सरकार ने लोकपाल कानून में ऐसा संशोधन करने का कोई प्रयास नहीं किया जिससे विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी का नेता चयन समिति के सदस्य के तौर पर बैठक में शामिल हो सके.

जस्टिस घोष 1997 में कलकत्ता हाईकोर्ट के जज बने और उसके बाद दिसंबर 2012 में उन्होंने आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने. वे 2013 से 2017 तक सुप्रीम कोर्ट के जज रहे. सुप्रीम कोर्ट के जज रहते हुए उनकी ओर से किए गए फैसलों में तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता की सहयोगी रही शशिकला को आय से अधिक संपत्ति के मामले में दोषी करार देने का मामला भी शामिल है. वर्तमान में घोष राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सदस्य हैं.

गौरतलब है कि लोकपाल की मांग को लेकर 2012 में सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे की अगुवाई में बड़ा आंदोलन हुआ था. इसमें अन्ना के अलावा दिल्ली के मौजूदा मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, उनकी सरकार के कई मंत्री व विधायक, पुदुचेरी की उप राज्यपाल किरण बेदी सहित कई जानी मानी-हस्तियों ने शिरकत की थी. 12 दिन चले इस आंदोलन के दौरान तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार के खिलाफ पूरे देश में जबरदस्त जन प्रतिरोध देखने को मिला था.

बिहार: एनडीए में सीटों का बंटवारा, गिरिराज-शाहनवाज का पत्ता साफ

Politalks

बिहार में भाजपा, जदयू और लोजपा के बीच सीटों का बंटवारा हो गया है. जेडीयू नेता वशिष्ठ नारायण सिंह ने आज पटना में इसकी घोषणा की. भाजपा के हिस्से में पटना साहिब, पाटलीपुत्र, साराण, आरा, बक्सर, औरंगाबाद, मधुबनी, बेगुसराय, उजियारपुर, पूर्वी चंपारण, शिवहर, दरभंगा, पश्चिम चंपारण, मुजफ्फरपुर, अररिया, महाराजगंज और सासाराम सीट आई है जबकि जेडीयू के खाते में सुपौल, किशनगंज, कटिहार, गोपालगंज, सीवान, भागलपुर, सीतामढ़ी, जहानाबाद, काराकाट, गया, पूर्णिया, मधेपुरा, बाल्मिकीनगर, मुंगेर, बांका, झांझरपुर और नालंदा सीटें आई हैं.

वहीं, एलजेपी के उम्मीदवार वैशाली, हाजीपुर, समस्तीपुर, खगड़िया, नवादा और जमुई से मैदान में उरतेंगे. केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह की नवादा सीट के एलजेपी के खाते में जाने के बाद साफ हो गया है कि उन्हें चुनाव लड़ने के लिए दूसरी सीट तलाशनी होगी. पिछले कई दिनों से यह कयास लगाया जा रहा था कि नवादा सीट एलजेपी के खाते में जा सकती है. ‘पॉलिटॉक्स’ में इस बारे में 15 मार्च को रिपोर्ट प्रकाशित की थी. सूत्रों के अनुसार गिरिराज सिंह को बेगूसराय से मैदान में उतारा जा सकता है.

बिहार में भाजपा, जदयू और लोजपा के सीटों के बंटवारे के बाद गिरिराज सिंह के सामने ही सीट का संकट नहीं आया है, भागलपुर सीट जेडीयू के हिस्से में जाने से भाजपा के प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन भी इसी संकट से जूझ रहे हैं. बता दें कि शाहनवाज भागलपुर सीट से चुनाव लड़ते रहे हैं. हालांकि 2014 में उन्हें यहां से हार का सामना करना पड़ा था.

गौरतलब है कि बिहार में भाजपा और जेडीयू 17-17 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं जबकि एलजेपी के हिस्से 6 सीटें आई हैं. 2014 लोकसभा चुनाव में एनडीए बिहार की 31 सीटें जीतने पर कामयाब हुआ था, पर उस वक्त जेडीयू एनडीए का हिस्सा नहीं था. भाजपा ने जेडीयू के साथ सीटों के बंटवारे पर सहमति बनाने के लिए अपनी जीती हुई 5 सीटें छोड़ी हैं. सीटों का बंटवारा होने के बाद सबकी नजर उम्मीदवारों की घोषणा पर है.

यूपी में कांग्रेस के तुरुप के इक्के की इस चाल ने उड़ाई सपा-बसपा की नींद

उत्तर प्रदेश की राजनीति तेजी से करवट बदल रही है. अंदर ही अंदर ऐसे समीकरण बन रहे हैं, जो भाजपा का खेल खराब कर सकते हैं. शुक्रवार को दिल्ली में हुई हुंकार रैली के बाद अब यह तो लगभग तय हो गया है कि भीम आर्मी के संस्थापक और उत्तर प्रदेश में दलित आंदोलन के पोस्टर ब्वॉय बन चुके चंद्रशेखर आजाद वाराणसी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ लोकसभा चुनाव लड़ेंगे. लेकिन अंदर की खबर यह है कि उन्हें कांग्रेस बतौर अपना पार्टी उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतार सकती है.

सूत्रों की मानें तो इस बारे में फैसला किया जा चुका है, केवल औपचारिक एलान होना बाकी है. घोषणा से पहले कांग्रेस में इस बात पर अंतिम रूप से मंथन चल रहा है कि चंद्रशेखर आजाद को कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में चुनाव मैदान में उतारा जाए या गुजरात विधानसभा चुनाव में जिग्नेश मेवाणी की तरह उन्हें समर्थन दिया जाए. कांग्रेस से जुड़े सूत्र बताते हैं कि 13 मार्च को मेरठ में कांग्रेस महासचिव और पूर्वी उत्तर प्रदेश की प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा के सामने चंद्रशेखर ने मेवाणी की तर्ज पर मैदान में उतरने की इच्छा जाहिर की है.

यदि आजाद कांग्रेस के तरकश का तीर बनते हैं तो पार्टी इससे कई निशाने साध सकती हैं. असल में उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा की ओर से नजरअंदाज किए जाने के बाद कांग्रेस के पास नई रणनीति के साथ चुनावी रण में उतरने के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं बचा है. चंद्रशेखर आजाद इस नई रणनीति की एक अहम कड़ी हैं. हालांकि कांग्रेस को एक डर जरूर है कि उत्तर प्रदेश में सवर्णों के खिलाफ आक्रामक राजनीति करने वाले चंद्रशेखर को पार्टी में शामिल करने से सवर्ण जातियों, खासकर ब्राह्मणों में गलत संदेश जा सकता है.

यही वजह है कि कांग्रेस के थिंक-टैंक ने मोदी के खिलाफ चंद्रेशखर को बतौर पार्टी उम्मीदवार न खड़ा करने की स्थिति में प्लान-बी भी बनाया हुआ है. प्लान-बी के अनुसार चंद्रशेखर को भीम आर्मी के बैनर तले निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव में उतारा जाएगा और उनके सामने कांग्रेस की तरफ से कोई उम्मीदवार नहीं होगा. इससे पार्टी दलित वोटों को भी आकर्षित कर सकेगी और सवर्ण वोटों के लिहाज से विपक्ष के पास चंद्रशेखर के बहाने सीधे कांग्रेस पर हमला करने का मौका भी नहीं होगा.

कांग्रेस की इस नई चाल से सपा और बसपा के कान खड़े हो गए हैं. बता दें कि दोनों दल यह मानकर चल रहे थे कि कांग्रेस के अकेले लड़ने से उन्हें नुकसान कम और फायदा ज्यादा होगा, लेकिन अब अखिलेश यादव और मायावती के बीच इस बात पर मंथन चल रहा है कि चंद्रशेखर की मदद से कांग्रेस न सिर्फ बसपा के दलित वोटों में बड़ी सेंध लगा सकती है, बल्कि ऐसी सूरत में असमंजस में पड़ा मुसलमान वोटर भी कांग्रेस की ओर रुख कर सकता है. यदि इसमें ब्राह्मण वोट भी जुड़ जाएं तो उत्तर प्रदेश में लड़ाई भाजपा बनाम कांग्रेस भी बन सकती है.

यही वजह है कि सपा और बसपा के रणनीतिकार कांग्रेस को गठबंधन में शामिल करने की संभावना पर फिर से चर्चा कर रहे हैं. सूत्रों के अनुसार अखिलेश यादव और मायावती के बीच कांग्रेस को सम्मानजनक सीटें देकर गठबंधन का हिस्सा बनाने की संभावनाओं पर बातचीत हुई है. दोंनों की ओर से बसपा के एक बड़े नेता ने कांग्रेस के आला नेताओं से इस बारे में संभावना तलाशने के लिए कहा है. यदि तमाम कोशिशों के बाद भी गठबंधन नहीं होता है तो सपा—बसपा वाराणसी से चंद्रशेखर आजाद को समर्थन देने के ‘प्लान—बी’ पर काम कर रहे हैं. बसपा के थिंक टैंक का मानना है कि इससे यह सियासी संदेश तो चला ही जाएगा कि मायावती को भीम आर्मी के मुखिया को उभार से कोई फर्क नहीं पड़ता. बसपा दूसरा फायदा यह होगा कि चंद्रशेखर के चुनावी मैदान में उतरने से वे वाराणसी तक ही सीमित हो जाएंगे.

अगर चंद्रशेखर वाराणसी से चुनाव लड़ते हैं और उन्हें कांग्रेस के अलावा सपा-बसपा का भी समर्थन मिलता है, तो लड़ाई बेहद दिलचस्प हो सकती है. बता दें कि वाराणसी 16 लाख मतदाता हैं, जिनमें मुस्लिम 2.5 लाख, ब्राह्मण 1.5 लाख, यादव 1.5 लाख और दलित लगभग एक लाख हैं. यदि ये सब लामबंद हो जाएं तो चौंकाने वाले नतीजे आ सकते हैं. यहां यह भी जेरेगौर है कि पिछले चुनाव में मोदी यहां से जीते जरूर मगर बिखरे विपक्ष के बावजूद अरविंद केजरीवाल को दो लाख से अधिक वोट मिले थे. जबकि प्रचंड लहर के बावजूद मोदी को करीब पांच लाख वोट मिले.

कांग्रेस चंद्रशेखर आजाद के जरिये वाराणसी में मोदी को घेरने से अलावा उनके पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बड़ा फायदा देख रही है. गौरतलब है कि सहारनपुर आंदोलन के बाद चंद्रशेखर दबंग दलित नेता के तौर पर उभरे हैं. आज की तारीख में मायावती के मुकाबले दलित युवाओं में चंद्रशेखर का ही क्रेज देखा जा रहा है. कांग्रेस को उम्मीद है कि चंद्रशेखर उनके लिए ट्रंप कार्ड साबित होंगे.

कुल मिलाकर प्रियंका गांधी की अगुवाई में कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश के सियासी समीकरणों में उथल—पुथल मचा दी है. कांग्रेस यहां अपने पुराने दलित-मुस्लिम-ब्राह्मण वोट बैंक पर फोकस कर रही है. बता दें कि उत्तर प्रदेश में आबादी के हिसाब से दलित 22, मुस्लिम 20 और ब्राह्मण 11 प्रतिशत हैं. प्रियंका की एंट्री के बाद कांग्रेस के स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं में जो उत्साह आया है, वह इस समीकरण की संभावनाओं को धरातल पर उतारने की उम्मीद जगाता है.

कांग्रेस के इस उभार से भाजपा ने अपनी रणनीति में बदलाव किया है. कल तक सहयोगी दलों को आंख दिखा रही भाजपा अब उनके सामने नतमस्तक है. अनुप्रिया पटेल की पार्टी को दो सीटें देने के लिए तैयार होना इसका उदाहरण है. चर्चा थी पटेल कांग्रेस के साथ जा सकती हैं. भाजपा प्रदेश के अंसतुष्ट खेमों को भी तवज्जो दे रही है. चुनावी मैदान में किसकी रणनीति सफल होगी यह तो नतीजे ही बताएंगे, कांग्रेस की आक्रामक रणनीति ने सूबे की सियासत को अचानक नया मोड़ दे दिया है.

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दिग्गज नेता देवी सिंह भाटी ने किया भाजपा छोड़ने का एलान

लोकसभा चुनाव की तारीखों का एलान होने के बाद एक ओर राजनीतिक दल उम्मीदवारों तय करने के लिए माथापच्ची कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर उन्हें बगावत से भी जूझना पड़ रहा है. राजस्थान भाजपा के दिग्गज नेता देवी सिंह भाटी के विद्रोही तेवर पार्टी के लिए सिरदर्द बन गए हैं. भाटी ने मोदी सरकार के मंत्री अर्जुनराम मेघवाल को बीकानेर से उम्मीदवार बनाने के विरोध में पार्टी छोड़ने का एलान किया है.

भाटी आज शाम चार बजे बीकानेर में औपचारिक तौर पर भाजपा छोड़ने का एलान करेंगे. हालांकि पार्टी ने अभी तक बीकानेर से उम्मीदवार घोषणा नहीं की है, लेकिन इस सीट से अर्जुन मेघवाल का नाम तय माना जा रहा है. बता दें कि देवी सिंह भाटी लंबे समय से मेघवाल के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं. पिछले दिनों उन्होंने बीकानेर में गैर मेघवाल दलित जातियों का एक सम्मेलन आयोजित किया था.


यह भी पढ़ें:  बीकानेर में अर्जुन मेघवाल अपनों की आंख का कांटा क्यों बन गए हैं?


देवी सिंह भाटी ने गुरुवार को जयपुर में प्रदेश चुनाव प्रभारी प्रकाश जावड़ेकर, पार्टी उपाध्यक्ष ओम माथुर और कई नेताओं से मिलकर अपना पक्ष रखा था, लेकिन किसी ने अर्जुन मेघवाल को टिकट पर केंची चलाने का आश्वासन नहीं दिया. पार्टी के आला नेताओं के इस रवैये से नाराज होकर उन्होंने पार्टी छोड़ने का एलान कर दिया है.

भाटी कहते हैं, ‘बीकानेर से अर्जुन मेघवाल का टिकट लगभग पक्का है और मैं किसी भी सूरत में उनका समर्थन नहीं कर सकता. पार्टी में रहते उम्मीदवार का विरोध करना ठीक नहीं रहेगा इसलिए मैं भाजपा छोड़ रहा हूं. आज बीकानेर में चार बजे इसकी विधिवत घोषणा करूंगा.’

बता दें कि देवी सिंह भाटी बीकानेर के वरिष्ठ नेता हैं. वे सात बार विधायक रहे हैं. भाटी भाजपा के अलावा जनता दल और सामाजिक मंच से भी चुनाव लड़ चुके हैं. उन्होंने आखरी चुनाव बीकानेर जिले की कोलायत सीट से 2013 में लड़ा था. इस चुनाव में वे मोदी लहर के बावजूद कांग्रेस के भंवर सिंह भाटी से चुनाव हार गए. 2018 में पार्टी ने भाटी की बजाय उनकी पुत्रवधु को मैदान में उतारा, लेकिन वे जीत दर्ज करने में कामयाब नहीं हुईं.

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