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किरोड़ी, हनुमान और राठौड़ की तिकड़ी में कौनसी खिचड़ी पक रही है?

सियासत में घटनाओं का बड़ा महत्व है. ये घटनाएं ही नेताओं को सियासत में अर्श से फर्श तक और फर्श से अर्श पर ले जाती है. अलवर के थानागाजी में हुए गैंगरेप मामले में भी बीजेपी के भीतर एक तिकड़ी कुछ ऐसे ही सियासी समीकरण पैदा कर रही है. यह जोड़ी बीजेपी के इतर थानागाजी गैंगरेप मामले में जोरदार प्रदर्शन कर पार्टी के मध्य अपनी सियासी जमीन मजबूत करने में लगी है.

पहले तो इस तिकड़ी के दो किरदारों ने जयपुर मे गैंगरेप मामले को लेकर बड़ा प्रदर्शन किया. इस प्रदर्शन की तस्वीरें राजनीति के जानकारों के साथ-साथ बीजेपी के लिए भी चौंकाने वाली रही. वजह- इस प्रदर्शन में किरोड़ी लाल मीणा और राजेंद्र राठौड़ कंधे से कंधा मिलाए दिखे. कुछ लोग कह सकते हैं कि इसमें चौंकने जैसा क्या है जबकि दोनों नेता बीजेपी के हैं. अगर ऐसा है तो बता दें कि किरोड़ी लाल मीणा और वसुंधरा राजे के बीच अदावत और राजेंद्र राठौड़ की वसुंधरा राजे के साथ नजदीकियों से पूरा प्रदेश वाकिफ है. ऐसे में मीणा और राजेंद्र राठौड़ का साथ एक मंच पर आना ऐसा आभास पैदा कर रहा है जैसे दोनों दिग्गज़ प्रदेश बीजेपी के भीतर कुछ नए समीकरण पैदा करने के प्रयास कर रहे हैं.

गैंगरेप मामले को लेकर किरोड़ी लाल मीणा ने दौसा में विशाल प्रदर्शन किया. इस प्रदर्शन का मुख्य आकर्षण किरोड़ी-राजेंद्र-हनुमान की तिकड़ी रही. बेनीवाल और किरोड़ी तो कई बार एक मंच पर साथ देखे जा चुके हैं लेकिन इस जोड़ी में वसुंधरा गुट के राजेंद्र राठौड़ की एंट्री प्रदेश बीजेपी में नई संभावनाओं को जन्म देता हुआ दिखाई दिया. राजेंद्र राठौड़ प्रदेश की पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के काफी नजदीकी माने जाते रहे हैं लेकिन विधानसभा चुनाव के बाद उनके संबंध उतने मधुर नहीं बचे हैं.

हालांकि इस तिकड़ी के तीसरे किरदार हनुमान बेनीवाल बीजेपी में नहीं है लेकिन उनकी पार्टी रालोपा एनडीए में शामिल है. उन्होंने एनडीए प्रत्याशी के तौर पर नागौर से लोकसभा चुनाव लड़ा है. हनुमान बेनीवाल की राजेंद्र राठौड़ के साथ राजनीतिक अदावत भी रही है लेकिन नागौर चुनाव में राजेंद्र राठौड़ ने बेनीवाल के चुनाव प्रचार में जमकर पसीना बहाया है. हनुमान बेनीवाल पूर्व में बीजेपी से विधायक भी रह चुके है लेकिन उन्हें अनुशासनहीनता के कारण पार्टी से बाहर कर दिया गया था. इसके बाद बेनीवाल खींवसर से निर्दलीय विधायक चुने गए. हाल में हुए विधानसभा चुनाव में हनुमान बेनीवाल ने ‘आरएलपी’ का गठन कर प्रदेश की अनेक सीटों पर प्रत्याशी उतारे. इनमें तीन उम्मीदवारों को जीत हासिल हुई थी.

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इस तिकड़ी पर ट्वीट कर हमला बोला है. गहलोत ने कहा, ‘किरोड़ीलालजी, बेनीवालजी और राठौड़जी. ये बेचारे क्या कर सकते हैं जब मोदीजी ही झूठ बोल रहे हैं और थानागाजी प्रकरण को लेकर राजनीति कर रहे हैं. ऐसे में उनको तो करना पड़ेगा क्योंकि बीजेपी में एक-दूसरे को डाउन करने के लिए राजनीति चल रही है कि अब आगे नेता कौन बने. पार्टी के अंदर ये लड़ाई हो रही है. गहलोत ने इस ट्वीट में साफ—साफ कहा कि बीजेपी के भीतर सत्ता संघर्ष चल रहा है. नेता गुट बनाकर प्रदेश बीजेपी की कमान अपने हाथ में लेना चाहते है लेकिन वो इसके लिए पीड़ित परिवार की भावनाओं से खिलवाड़ ना करें.

‘नाथूराम देशभक्त’ बयान पर अनंत हेगड़े ने किया साध्वी प्रज्ञा का बचाव, बाद में पलटे

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मध्यप्रदेश की भोपाल संसदीय सीट से बीजेपी उम्मीदवार साध्वी प्रज्ञा के ‘नाथूराम देशभक्त’ वाले बयान पर केंद्रीय मंत्री अनंत कुमार हेगडे ने कहा कि मैं खुश हूं कि सात दशक बाद नई पीढी बदलाव के साथ इस मुद्दे पर चर्चा कर कर रही है. इस चर्चा को सुन नाथुराम गोडसे अच्छा महसूस कर रहे होंगे. सीधे तौर पर कहें तो हेगड़े ने साध्वी का बचाव किया है. गुरूवार को साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे के बारे में बयान देते हुए कहा था, नाथूराम गोडसे देशभक्त थे और हमेशा रहेंगे.

साध्वी के इस बयान कांग्रेस ने जमकर हंगामा किया था. यहां तक की बीजेपी को भी इस बयान पर माफी मांगनी पड़ी थी. इसके बाद साध्वी प्रज्ञा ने भी माफी माग ली थी. बीजेपी ने सोचा था कि साध्वी के माफी मांगने के बाद बवाल थम जाएगा लेकिन अनंत कुमार के बयान ने इसमें घी डालने का काम किया है.

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एक अन्य ट्वीट में उन्होंने लिखा, ‘अब समय है कि आप मुखर हों और माफी मांगने से आगे बढ़ें, अब नहीं तो कब?’ अनंत हेगड़े ने ये ट्वीट एक ट्वीट के जवाब में दिया है.’

हालांकि, इस पर मचे बवाल के बाद अनंत हेगड़े ने कहा कि उनका ट्विटर अकाउंट हैक हो गया था. उन्होंने इन ट्वीट्स के लिए खेद भी जताया और अकाउंट से कुछ समय के बाद ये सभी ट्वीट हटा भी दिए. उन्होंने ट्वीट कर जानकारी दी कि किसी ने उनके अकाउंट के साथ छेड़छाड़ की है. साथ ही कहा कि गांधीजी की हत्या को जायज ठहराने का कोई सवाल ही नहीं है. गांधीजी के राष्ट्र के लिए योगदान के लिए हम सभी का पूरा सम्मान है.

बता दें कि अनंत हेगडे कर्नाटक की उत्तर कन्नड़ सीट से लगातार तीन बार से सांसद है. वे मोदी सरकार में मंत्री के रुप में कार्यरत हैं और अपने बयानों की वजह से चर्चा में रहते हैं. मोदी सरकार के बनने के बाद भी उन्होंने ऐसा ही एक विवादित बयान दिया था. उन्होंने कहा था कि हम देश के संविधान को बदलने का काम करेंगे.

ममता बनर्जी: दूध बेचने से लेकर मुख्यमंत्री बनने तक का सफर

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लोकसभा चुनाव में मैदान मारने के लिए राजनीतिक दलों के बीच जोर आजमाइश लगातार जारी है. चुनाव के आखिरी पड़ाव में अब सातवें चरण का मतदान होना बाकी है. इस दौरान पश्चिमी बंगाल खासा चर्चित बना हुआ है. देश के सबसे बड़े सियासी अखाड़े का रूप ले चुके वेस्ट बंगाल पर हर किसी की नजर बनी हुई है. पीएम नरेंद्र मोदी व बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के अलावा दिग्गज बीजेपी नेता यहां कमल खिलाने के लिए दम-खम लगाने में जुटे हैं लेकिन उनके सामने चट्टान सी चुनौती साफ देखी जा रही है.

पश्चिम बंगाल की ‘दीदी’ कही जाने वाली मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को बीजेपी शीर्ष नेता अक्सर हर मंच से घेरते नजर आते रहे हैं. जिसमें पीएम मोदी-शाह की जोड़ी बैटल ऑफ बंगाल में डटी हुई है. जीतोड़ मेहनत और पूरे दम-खम के साथ प्रचार में जुटी बीजेपी के लिए ममता दीदी का गढ़ जीतना आसान नहीं लग रहा है. बीजेपी के लिए यहां मां, माटी और मानुष कैंपेन भारी चुनौती साबित हो रहा है. हांलाकि बीजेपी लगातार हिंदूवादी एंजेडे के साथ भी जनता के बीच विश्वास बनाने में जुटी है.

बीते छ: चरणों के लोकसभा चुनावों में पश्चिमी बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस व बीजेपी के बीच तनातनी देखी जा रही है. एक ओर पीएम मोदी-शाह और ममता दीदी के बीच जुबानी जंग शीर्ष पर है तो वहीं दूसरी तरफ टीएमसी समर्थकों के बीच यहां संघर्ष खूनी रूप भी लेता दिख रहा है. जिसके चलते लोकसभा चुनाव के पहले चरण के बाद से ही दोनों दलों के हिंसक सामने की खबरें अक्सर देखने की मिली है.

पश्चिमी बंगाल की राजनीतिक उठापटक ने यहां पूरे देश की नजर अपनी ओर खींचते हुए ममता दीदी पर आ टिकी है. आज पीएम मोदी व अमित शाह के बयानों में निशाने पर रहने के अलावा ममता बनर्जी देश और बंगाल की राजनीति के केंद्र में बनी हुई है. ऐसा नहीं है कि ममता बनर्जी का जो रूप आज दुनिया देख रही है वो इन्होंने अभी बीजेपी के खिलाफ अख्तियार किया है. स्कूल और कॉलेज के जमाने से ही ममता बनर्जी गर्म और विद्रोही तेवर की रही हैं. आइए जानते हैं ममता दीदी के सियासी सफर के बारे में कि दूध बेचने से लेकर मुख्यमंत्री बनने तक का सफर उन्होंने कैसे तय किया.

कॉलेज में सिस्टम के विद्रोह ने दिलाई पहचान
फर्श से अर्श तक पहुंचने वाली ममता बनर्जी का जन्म कोलकाता में स्वंतत्रता सेनानी के घर हुआ था. पश्चिम बंगाल में ‘दीदी’ के नाम से मशहूर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने स्कूल के दिनों से ही राजनीति में कदम रख दिया था. जहां वे विद्यार्थियों की हर समस्या को बखूबी उठाती रहीं थी बल्कि न्याय मिलने तक संघर्षरत रहती थीं. इसके बाद आगे बढ़ते हुए ममता दीदी ने 70 के दशक में कांग्रेस के जरिए कॉलेज की राजनीति में सक्रिय भागीदारी शुरू कर दी.

पिता की मौत के बाद संभाला परिवार
ममता दीदी ने बचपन से ही कड़े संघर्ष का सामना करते हुए विपरित परिस्थितियों में जीवन यापन किया है. स्वतंत्रता सेनानी पिता की मौत के बाद ममता ने अपनी पढ़ाई जारी रखी और भाई-बहनों के पालन पोषण के लिए दूध तक बेचा. दूध बेचने वाली एक दिन सूबे की सरताज बनेगी ये शायद ही किसी ने सोचा होगा. विपरित परिस्थितियों के बाद भी उन्होंने कॉलेज और सामाजिक समस्याओं को लेकर आवाज उठाने में पीछे नहीं रही और लगातार राजनीति में सक्रिय बनी रही.

स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद ममता बनर्जी ने कलकत्ता यूनिवर्सिटी से इतिहास में मास्टर डिग्री ली और जोगेश चंद्र कॉलेज से कानून की पढ़ाई की. इसी दौरान उन्होंने खुद में राजनेता की छवि को पहचाना और राजनीति में भी सक्रिय हो गईं. उनकी मेहनत और लगन को देखते हुए उन्हें बंगाल कांग्रेस में महासचिव का पद दिया गया.

देश की सबसे युवा सांसद का खिताब
अपने लक्ष्य के प्रति दृढ़ रहने वाली ममता बनर्जी ने कॉलेज राजनीति से आगे कदम बढ़ना शुरू किया और पश्चिम बंगाल में साल 1976 से 1984 तक महिला कांग्रेस की महासचिव रहीं. इसके बाद साल 1984 में अपने जीवन का पहला लोकसभा चुनाव जीतकर सबसे युवा सांसद का खिताब अपने नाम किया. जहां जादवपुर संसदीय सीट पर उनके सामने मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के कद्दावर उम्मीदवार और पूर्व लोकसभा स्पीकर सोमनाथ चटर्जी थे. अपने करिश्माई व्यक्तित्व और शानदार भाषण की कला की बदौलत ममता युवाओं का मनपंसद चेहरा बन चुकी थी.

जादवपुर से मिली हार ने पहुंचाया कोलकाता
अपने जीवन के पहले लोकसभा चुनाव में सीपीएम के सामने बड़ी जीत हासिल करने के बाद तो ममता बनर्जी की लोकप्रियता ने दिल्ली तक में चर्चा बढ़ा दी. उनकी लगातार बढ़ती प्रसिद्धी को देखते हुए कांग्रेस उन्हें भारतीय युवा कांग्रेस का महासचिव पद दे दिया. जिसके बाद ममता ने जादवपुर से दूसरी बार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा लेकिन कांग्रेस विरोधी लहर के चलते उन्हें हार का सामना करना पड़ा.

यहां मालिनी भट्टाचार्य द्वारा मिली शिकस्त के बाद उन्होंने केंद्र की राजनीतिक की ओर कदम बढ़ाने के लिए कोलकाता का रूख किया. जिसके बाद दक्षिण कोलकाता से लोकसभा चुनाव लड़ते हुए सीपीएम प्रत्यासी बिप्लव दास गुप्ता को भारी मतों से मात दी. इसके बाद जनता की चहेती बनी ममता दीदी ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा और लगातार 2009 तक कभी चुनाव ही नहीं हारी.

टकराव के कारण सिर्फ दो साल रहीं केंद्र में मंत्री
राजनीति के गुर सीख निपुण हो चुकी ममता बनर्जी की लोकप्रियता ने उन्हें केंद्रीय मंत्री मंडल तक में पहुंचाया. साल 1991 में कोलकाता से जीत के बाद उन्हें पहली बार केंद्रीय मंत्री बनाया गया. जिसमें उन्हें मानव संसाधन विकास और युवा मामलों के मंत्रालय का प्रभार दिया गया. लेकिन हमेशा युवाओं की आवाज बनी रही ममता बनर्जी यहां खुद को टिका पानी में नाकामयाब रही. युवाओं के मामले को लेकर उनकी प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव से टकराहट शुरू हो गई जिसके बाद उन्हें 1993 में ही मंत्री पद खोना पड़ा.

कांग्रेस से मनमुटाव के बाद खड़ी की तृणमूल कांग्रेस
कांग्रेस के टिकट पर जीत पहली बार मंत्री बनने के बाद ममता बनर्जी को साल 1993 में मंत्री पद से हाथ धोना पड़ा था जिसके बाद से ही कांग्रेस में उनकी खटपट देखी जा रही थी और साल 1996 के लोकसभा चुनाव से पहले ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में कांग्रेस पर सीपीएम की कठपुतली होने का आरोप लगाया. इसके बाद उनकी कांग्रेस से बगावत बढ़ी और आखिरकार साल 1997 में उन्होंने खुद को पार्टी से अलग कर लिया.

कांग्रेस से अलग होने के बाद ममता ने खुद की पार्टी खड़ी करने की सोची और इसके ठीक एक साल बाद 1 जनवरी 1998 को अपनी नई पार्टी तृणमूल कांग्रेस बना ली. जिसके बाद पश्चिमी बंगाल की जनता के बीच ममता व तृणमूल का विश्वास बढ़ा औऱ साल 1998 के लोकसभा चुनाव में बंगाल की 8 सीटों पर जीत हालिल करने में कामयाबी मिली. इस जीत ने ममता बनर्जी को दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में मशहूर कर दिया.

एनडीए-यूपीए दोनों की रहीं सहयोगी
अपनी नई पार्टी तृणमूल कांग्रेस के जरिए पश्चिमी बंगाल की जनता में ममता बनर्जी आखिर विश्वास बनाने में सफल रहीं और साल 1999 के लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज करने के बाद वो अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए का हिस्सा बनी. एनडीए सरकार में उन्हें रेल मंत्रालय का जिम्मा दिया गया. इस दौरान अपने पहले रेल बजट में बंगाल में ज्यादा ट्रेन देने को लेकर उनपर पक्षपात का आरोप लगा और ममता का विवाद से रिश्ता बना.

इसके बाद साल 2001 में हथियारों की खरीद के लिए दलाली मामले और बीजेपी अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण के घूस लेने के तहलका के खुलासा के बाद ममता बनर्जी ने खुद को एनडीए से अलग कर लिया. साल 2004 के लोकसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस को जोरदार झटका लगा. ममता बनर्जी की पार्टी को यहां सिर्फ एक सीट पर जीत हासिल हो सकी और वो सीट थी खुद ममता बनर्जी की. इसके अलावा पार्टी कहीं नहीं जीत पाई.

सिंगूर प्लांट विरोध ने पहुंचाया केंद्रीय चर्चा में
साल 2004 के लोकसभा चुनाव, 2005 के नगर निगम चुनाव और 2006 के विधानसभा चुनाव में लगातार शिकस्त के बाद ममता बनर्जी को उनकी सियासी जमीन खिसकती दिखी. अब उन्हें वापिस लोगों में पार्टी का विश्वास बनाने के लिए एक मौके की दरकार थी और उन्हें ये अवसर आखिरकार साल 2006 के अंत में मिल ही गया. नवंबर 2006 में ममता बनर्जी ने सिंगूर में टाटा मोटर्स के प्रस्तावित कार निर्माण के परियोजना स्थल पर जाने से जबरन प्रशासन ने रोका तो उन्होंने इसे सीपीएम सरकार के खिलाफ राजनीतिक मुद्दा बना डाला.

मौके की नजाकत को पूरी तरह भांप ममता बनर्जी ने सियासी बिसात बिछा ली और पूरे राज्य में उनके कार्यकर्ताओं ने धरना प्रदर्शन और हड़ताल शुरू कर दी. ममता बनर्जी की मेहनत रंग लाई और इसका उन्हें बड़ा सियासी फायदा साल 2011 के विधानसभा चुनाव में मिला. जिसमें उन्होंने मां, माटी मानुष के नारे के जरिए 34 सालों के सीपीएम सरकार को बंगाल से उखाड़ फेंकने में कामयाबी हासिल की. ममता की पार्टी ने 294 में से 184 सीटों पर कब्जा कर बंगाल की सत्ता संभाली.

यूपीए से रिश्ता टूटने का कारण रहा नंदी ग्राम संघर्ष
प्रदेश की राजनीति के बाद ममता बनर्जी ने फिर से केंद्र का रूख किया और अबकी बार यूपीए से नाता जोड़ा था लेकिन चर्चित नंदी ग्राम हिंसा के बाद उन्होंने 18 सितंबर 2012 को यूपीए से भी किनारा कर लिया. नंदीग्राम में स्पेशल इकोनॉमिक जोन विकसित करने के लिए गांव वालों की जमीन अधिकृत की जा रही थी. इसी दौरान माओवादियों के समर्थन से गांव वालों ने पुलिस की कार्रवाई का विरोध किया जिसमें 13 लोगों की मौत हो गई थी. जिसके बाद प्रदेश में जमकर हिंसा हुई. सीपीएम कार्यकर्ताओं की हिंसा पर रोकने के लिए ममता ने तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह व गृह मंत्री शिवराज पाटिल से मांग की थी, पर बात नहीं बन सकी.

मोदी विरोध के बाद बनी राष्ट्रीय नेता की छवि
साल 2014 में भारी बहुमत के साथ बीजेपी की सरकार बनी और नरेंद्र मोदी ने पीएम के रूप में देश की सत्ता संभाली. तभी से ही ममता बनर्जी लगातार एनडीए की मोदी सरकार की नीतियों की खिलाफत कर रही हैं. नोटबंदी और जीएसटी जैसे मुद्दों को लेकर ममता बनर्जी मोदी और शाह की जोड़ी पर हमला करती रही हैं. लेकिन बीजेपी और टीएमसी के बीच राजनीतिक कटुता उस वक्त शुरू हो गई जब बीजेपी ने बंगाल में खुद को मजबूत बनाने के लिए राज्य में राजनीतिक संघर्ष शुरू कर दिया. अपना जनाधार दरकता देख ममता बनर्जी भी पूरी ताकत से मोदी विरोध में जुट गईं और मोदी के खिलाफ विपक्ष को एकजुट करने में कोलकाता से दिल्ली को एक कर दिया.

‘नाथूराम गोडसे देशभक्त एवं प्रज्ञा ठाकुर शांति के नोबेल पुरस्कार की विजेता’

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सोशल मीडिया पर आज भोपाल सीट पर बीजेपी प्रत्याशी साध्वी प्रज्ञा ठाकुर का बयान जमकर वायरल हो रहा है. उन्होंने बयान दिया, ‘नाथूराम गोडसे देशभक्त थे और हमेशा रहेंगे.’ हालांकि पार्टी के दवाब और विपक्ष के हंगामे के बाद उन्होंने अपने बयान पर माफी मांग ली लेकिन तब तक साध्वी प्रज्ञा और उनका यह विवादित बयान सोशल मीडिया की सुर्खियों में छा गया. इस पर अलग-अलग तरह के कमेंट और मीम बनने लगे. सबसे उपर ब्रूस वायने का एक ट्वीट रहा जिसमें उन्होंने लिखा कि नाथूराम गोडसे देशभक्त एवं महात्मा गांधी आतंकवादी और प्रज्ञा ठाकुर शांति के नोबेल पुरस्कार की विजेता हैं.

@WaizArd20

Ashish Pradip

@satishacharya

@Vishj05

‘कांग्रेस को प्रधानमंत्री पद न मिला तो भी कोई आपत्ति नहीं’

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चुनावी माहौल पूरे देश में अपने आखिरी चरम पर पहुंच गया है. 7वें और अंतिम चरण के मतदान 19 मई को हैं. कल शाम चुनाव प्रचार का शोर भी थम जाएगा बस नहीं थमेगी तो नेताओं की जुबान. उनके तीखे कटाक्ष और बयान हमेशा ही कभी पक्ष और कभी विपक्ष की परेशानियां बढ़ाने वाले साबित होते हैं. ऐसा ही कुछ बयान आज कांग्रेस के एक बड़े नेता ने दिया है. उन्होंने कहा कि अगर पार्टी को पीएम पद नहीं भी दिया जाए तो कोई दिक्कत नहीं है. सियासत के गलियारों में उनके इस बयान ने हलचल मच गई है. वहीं नरेंद्र मोदी और ममता दीदी के बीच का चूहे-बिल्ली का खेल तो जग जाहिर हो चुका है. आइए जानते हैं आज के खास बयानों के बारे में

‘कांग्रेस को प्रधानमंत्री पद न मिला तो भी कोई आपत्ति नहीं’
– गुलाम नबी आजाद, राज्यसभा नेता प्रतिपक्ष

हम पहले ही साफ़ कह चुके हैं. अगर ये सर्वसम्मति बनी कि कांग्रेस को ही संभावित गठबंधन सरकार का नेतृत्व करना चाहिए, तो हम यह ज़िम्मेदारी लेंगे. हम ऐसा कोई मुद्दा नहीं बनाना चाहते कि अगर हमें प्रधानमंत्री पद नहीं मिला तो किसी और को भी यह ज़िम्मेदारी नहीं संभालने देंगे. इस बारे में जो सबका फ़ैसला होगा हम उसका पूरा समर्थन करेंगे. इस बारे में हमारा मक़सद स्पष्ट है कि एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) काे सत्ता में नहीं आने देना है.

‘बोरिया-बिस्तर बांधो ममता दीदी’
नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री

आज पं.बंगाल में चुनाव प्रचार के आखिरी दिन पीएम नरेंद्र मोदी ने यहां की सीएम ममता बनर्जी की जमकर खिंचाई की. उन्होंने बनर्जी से अपील की कि वह बोरिया बिस्तर बांध लें क्योंकि अब बंगाल की जनता को सच समझ आ गया है. अब उनके कुछ ही दिन शेष बचे हैं. उन्होंने कहा कि हार की हताशा दीदी को इस तरह से डरा रही है कि वह सरेआम धमकियों पर उतर आई हैं. वोट बैंक के लिए ममता दीदी किस हद तक जा सकती हैं. इस पर पलटवार करते हुए ममता बनर्जी ने मोदी पर जमकर धावा बोला.

‘नाथूराम गोडसे सच्चे देशभक्त थे और रहेंगे’
– साध्वी प्रज्ञा ठाकुर

विवादों से घिरी रहने वाली भोपाल संसदीय सीट से बीजेपी प्रत्याशी साध्वी प्रज्ञा ठाकुर का आज एक विवादित बयान ​सुर्खियों में बना रहा. उन्होंने महात्मा गांधी की हत्या करने वाले नाथूराम गोडसे को एक सच्चा देशभक्त बताते हुए कहा, ‘नाथूराम एक सच्चे देशभक्त थे और रहेंगे. उनको आतंकवादी कहने वाले लोगों को अपने गिरेबां में झांककर देखना चाहिए. ऐसे लोगों को जनता चुनाव में मुंहतोड़ जवाब देगी.’ उनके इस बयान के बाद कांग्रेस ने उनसे माफी मांगने की मांग की है.

सनी पर भारी पड़ गया फेसबुक पेज, चुनाव आयोग ने की कार्रवाई

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देश में लोकसभा चुनाव का सफर अब आखिरी पड़ाव की ओर है. 19 मई को होने वाले आखिरी चरण की वोटिंग के लिए प्रचार-प्रसार जोरों पर है. हर कोई कमर कस दम-खम से मैदान में डटा हुआ है. वहीं सोशल मीडिया पर भी उम्मीदवार चुनाव प्रचार में पीछे नहीं है लेकिन पंजाब की गुरदासपुर संसदीय सीट पर मामला दूसरा बन गया है. यहां से बीजेपी प्रत्याशी व फिल्म अभिनेता सनी देओल के लिए उनके फैंस का फेसबुक पेज भारी पड़ गया है. चुनाव आयोग ने भी बिना अनुमति प्रचार के लिए चलाए जा रहे इस फेसबुक पेज को लेकर सनी पर कार्रवाई की है.

गुरदासपुर लोकसभा सीट से बीजेपी प्रत्याशी सनी देओल को उनके फैंस का क्रेज भारी पड़ गया. यहां चुनाव प्रचार के लिए फेसबुक पर बिना अनुमति चलाया जा रहा ‘फैंस ऑफ सनी देओल’ पेज सनी के लिए परेशानी का सबब बन गया. इसे लेकर निर्वाचन आयोग ने पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी की ओर से दी गई शिकायत पर कार्रवाई की है. जिसके तहत क्षेत्रीय नोडल अफसर, मीडिया सर्टिफिकेशन और मॉनिटरिंग कमेटी ने सनी देओल के चुनावी खर्च में 1,74,644 रुपये जोड़ने के आदेश दिए हैं.

इस मामले में पंजाब के मुख्य चुनाव अधिकारी डॉ. एस. करुणा राजू ने जानकारी दी कि कांग्रेस ने बीती 6 मई को निर्वाचन आयोग को सनी के खिलाफ यह आपत्ति दर्ज करवाई गई थी. जिसके बाद आयोग ने इस फेसबुक पेज की जांच करवाई. जिसमें ‘फैंस ऑफ सनी देओल’ के एडमिन और बीजेपी प्रत्याशी सनी देओल को नोटिस जारी कर जवाब मांगा गया था लेकिन तय सीमा तक दोनों की ओर से कोई स्पीष्टीकरण नहीं दिया गया. इस पर शिकायत को सही मानते हुए आयोग ने सनी के चुनावी खर्च में यह राशि जोड़ने का फैसला लिया गया.

बता दें कि पंजाब में 19 मई को आखिरी चरण में 13 सीटों पर लोकसभा चुनाव का मतदान होने जा रहा है. कांग्रेस-बीजेपी के अलावा यहां आम आदमी पार्टी भी चुनाव मैदान में डटी हुई है. विधानसभा चुनाव में आप ने 21 सीटें जीतकर पंजाब में सियासी जमीन बनाई थी.

मोदी ने किया ईश्वरचंद्र विद्यासागर की पंचधातु प्रतिमा लगाने का वादा

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने टीएससी प्रमुख ममता बनर्जी पर पलटवार करते हुए कहा कि ममता दीदी पश्चिम बंगाल में समाज-सुधारकों की मूर्तियों को तुड़वा रही है. मैं बंगाल के लोगों से वादा करना चाहता हूं कि हमारी सरकार कोलकाता में उसी जगह ईश्वरचंद्र विद्यासागर की पंचधातु से बनी प्रतिमा लगाएगी. उत्तर प्रदेश के घोसी में एक चुनावी जनसभा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह बात कही. मोदी ने कहा कि समाज सुधारक और बंगाल नवजागरण काल की मशहूर हस्ती ईश्वरचंद्र विद्यासागर की मूर्ति को स्थापित कर तृणमूल के गुंडों को जवाब दिया जाएगा.

बता दें कि 14 मई को कोलकाता में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह पार्टी के रोड शो के दौरान भड़की हिंसा में उपद्रवियों ने ईश्वरचंद्र विद्यासागर की मूर्ति को तोड़ दिया था. प्रतिमा तोड़ने को लेकर टीएमसी और बीजेपी एक दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं.

पीएम मोदी ने बसपा सुप्रीमो मायावती पर भी निशाना साधते हुए कहा ‘ममता बनर्जी जिस प्रकार बंगाल में यूपी और बिहार के लोगों को निशाना बना रही है, उससे मुझे लगा कि मायावती उनका विरोध करेगी. लेकिन उन्होंने तो सिर्फ राजनीति की. यहां के लोगों से उनका कोई सरोकर नहीं है. वह सिर्फ उन्हें वोटबैंक के रुप में देखती है.’

सपा-बसपा गठबंधन पर हमला करते हुए मोदी ने कहा, ‘चाहे बुआ हो या बबुआ, दोनों ने अपने इर्द-गिर्द पैसे की बड़ी दीवार खड़ी कर ली है. ये चुनाव में गरीबों-दलितों की बात तो करते है लेकिन चुनाव बाद उनके उत्थान के लिए कुछ भी नहीं करते हैं. तब इनको गरीबों का दर्द नहीं नजर आता है. मैनें किसानों के दर्द को समझकर उनके बैंक खाते में सीधी मदद की है ताकि वो छोटे काम के लिए किसी से कर्ज नहीं ले.’

उन्होंने कहा कि देश को 21वीं सदी में पूर्ण बहुमत की सरकार की दरकार है. देश की जनता ने इसके लिए ही मुहर लगाई है. ये महामिलावटी लोग देश का विकास नहीं कर सकते हैं.

फिर साध्वी प्रज्ञा का विवादित बयान, कहा- गोडसे देशभक्त थे और रहेंगे

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हाल ही में बीजेपी का दामन थाम मध्यप्रदेश की भोपाल लोकसभा सीट से चुनाव लड़ रही साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर लगातार विवादित बयानों को लेकर सुर्खियों में रही हैं. मुंबई आतंकी हमले में शहीद हेमंत करकरे को अपने श्राप से मरने की बात कहने के बाद अब साध्वी प्रज्ञा ने फिर एक विवादित बयान देकर नई बहस छेड़ दी है. साध्वी प्रज्ञा ने अब महात्मा गांधी के हत्यारे नाथुराम गोडसे को देशभक्त बताया है और कहा है कि गोडसे पर सवाल उठाने वाले पहले अपने गिरेबां में झांकें.

लोकसभा चुनाव के आखिरी चरण का मतदान 19 मई को होना है और 23 मई को मतगणना होगी लेकिन इस चुनावी समर में नेता अपने सही बयानों का चुनाव करते नहीं दिख रहे है. चुनाव आयोग ने इस संबध में कई नेताओं पर कार्रवाई भी की है. हाल ही में राष्‍ट्रपिता महात्‍मा गांधी की गोली मार कर हत्‍या करने वाले नाथूराम गोडसे को लेकर बयानबाजी ने सियासी पारा बढ़ा रखा है.

साउथ के फिल्म अभिनेता कमल हासन द्वारा गोडसे को पहला हिन्दू आतंकवादी कहने के बाद से सियासत और गर्मा गई है. अब भोपाल संसदीय सीट से बीजेपी प्रत्याशी प्रज्ञा ठाकुर ने गोडसे को लेकर बयान दिया है. साध्वी ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को देशभक्त बताया है. उन्होंने कहा है कि नाथूराम गोडसे देशभक्‍त थे, देशभक्‍त हैं और देशभक्‍त रहेंगे.

कमल हासन के नाथूराम गोडसे को आजाद भारत का पहला हिन्दू आतंकवादी बताने पर साध्वी प्रज्ञा ने मीडिया में अपनी प्रतिक्रिया दी है. साथ ही साध्‍वी प्रज्ञा ने कहा कि नाथुराम गोडसे को आतंकवादी कहने वाले लोग अपने गिरेबां में झांक कर देखें. ऐसे लोगों को इस चुनाव में जवाब दे दिया जाएगा.

बता दें कि इससे पहले 25 अप्रैल को भी साध्‍वी प्रज्ञा ठाकुर ने विवादित बयान दिया था. तब उन्होंने अपने चुनाव अभियान के दौरान सीहोर में कांग्रेस नेता और प्रत्याशी दिग्विजय सिंह का नाम लिए बिना निशाना साधते हुए कहा था कि ऐसे आतंकी का समापन कीजिए. वहीं मुंबई आंतकी हमले में शहीद हेमंत करकरे को लेकर भी साध्वी का विवादित बयान आया था.

 

आज के दिन बनी थी देश में गैर-कांग्रेसी दल की पहली पूर्ण बहुमत सरकार

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देश मे लोकसभा चुनाव के नतीजे आने में अभी एक सप्ताह शेष है. इससे पहले आज एक खास दिवस है. दरअसल, पांच साल पहले आज के ही दिन यानि 16 मई को भारत के इतिहास में पहली बार किसी गैर कांग्रेसी दल को बहुमत मिला था. यह सरकार थी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली बीजेपी सरकार. इस सरकार को 2014 के लोकसभा चुनाव में 282 सीटों पर कामयाबी मिली थी. हिंदी पट्टी के राज्यों में तो बीजेपी ने विपक्ष का सूपड़ा ही साफ कर दिया था. कई राज्यों में तो कांग्रेस का खाता तक नहीं खुल पाया था. राजस्थान, गुजरात, उत्तराखंड़ और हिमाचल प्रदेश की सभी सीटें बीजेपी के हिस्से में गई थी.

बीजेपी ने उत्तर प्रदेश की 73 सीटों (71 सीट बीजेपी, 2 सीट अपना दल) पर कब्जा किया था. यहां बहुजन समाज पार्टी का खाता तक नहीं खुला था. 2014 चुनाव के नतीजे कांग्रेस के लिए बहुत खराब रहे थे. 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के हाथ में 207 सीटें थी जो 2014 में केवल 44 सीटों पर सिमट गई. कांग्रेस की यह अब तक की सबसे खराब स्थिति थी. हालांकि देश में मोदी की व्यापक लहर होने के बावजूद बीजेपी का प्रदर्शन कई राज्यों खराब रहा था. पश्चिम बंगाल, ओडिशा, तमिलनाडू और केरल में कुल मिलाकर पार्टी को केवल चाीर सीटों पर विजयश्री मिल पायी थी.

इस बार चुनावी नतीजे 23 मई को आएंगे जो 2014 के मुकाबले सप्ताहभर देरी से आ रहे हैं. इसकी वजह चुनाव टाइमटेबल में देरी रहा जिसके आरोप चुनाव आयोग पर विपक्षी नेताओं ने लगाए थे. नेताओं ने यह भी आरोप लगाया था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तय कार्यक्रमों के कारण आयोग ने चुनाव कार्यक्रम के ऐलान में देरी की है.

हालांकि पिछले संसदीय चुनावों में रिकॉर्ड रचने वाली बीजेपी सरकार के लिए इस बार पिछले प्रदर्शन को दोहरा पाना या फिर पूर्ण बहुमत हासिल कर पाना इतना आसान नहीं है.2014 के चुनाव में बीजेपी को उत्तर प्रदेश में 73 सीटें हासिल हुई थी लेकिन इस बार यूपी में सपा-बसपा-रालोद गठबंधन में चुनाव लड़ रही है. यह महागठबंधन बीजेपी के लिए लिए चुनौती साबित हो रहा है जबकि यहां योगी आदित्यनाथ की बीजेपी सरकार विराजमान है.

बीजेपी को इस बार पश्चिम बंगाल और ओडिशा में अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद है. बता दें कि बंगाल में लोकसभा की 42 और ओडिशा में 21 सीटें हैं. कांग्रेस इस चुनाव में राहुल गांधी के नेतृत्व में अपनी खोई हुई जमीन और प्रतिष्ठा वापस पाने की लड़ाई लड़ रही है.

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