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क्या यूपी में गठबंधन से सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस को हुआ है?

सपा और बसपा का साथ आना यूपी की सियासत में ‘दो ध्रुवों का एक साथ’ हो जाने जैसा रहा. इसकी चर्चा पूरे देश में है. जाहिर है कि जब चर्चा इतना असर दिखाए तो वोटर्स का प्रभावित होना लाज़मी है. अब तक हुए छह चरणों के चुनाव में कुछ ऐसा ही देखने को मिला. कुछ एक सीटों को छोड़ दें तो गठबंधन के ज्यादातर प्रत्याशी खुद-ब-खुद यह संदेश देने में सफल रहे कि बीजेपी से मुकाबले में वही हैं. कांग्रेस के बड़े नाम तो पूरी लड़ाई में यही साबित करने में रह गए कि वे भी चुनाव लड़ रहे हैं.

शुरुआत अमरोहा के चुनाव से करते हैं. यहां से कांग्रेस ने राशिद अल्वी को टिकट दिया था. टिकट मिलने के कुछ दिन के भीतर ही उन्होंने निजी कारणों से के चलते अपना टिकट वापस कर दिया. कांग्रेस को बाद में यहां से सचिन चौधरी को मैदान में उतारना पड़ा. ऊपरी तौर पर भले ही यह कहा गया हो कि उन्होंने निजी कारणों से टिकट वापस किया, लेकिन भितरखाने के लोग हकीकत बयां करते हैं कि गठबंधन के प्रत्याशी के सामने लोग उन्हें ‘वोट कटवा’ मान रहे थे. ऐसे में उन्होंने चुनाव न लड़ना ही मुनासिब समझा.

इसी तरह, सहारनपुर में कांग्रेस उम्मीदवार रहे इमरान मसूद की भी सारी ताकत यही साबित करने में लगी रही कि वह बीजेपी के उम्मीदवार राघव लखनपाल से सीधे मुकाबले में हैं. दूसरी तरफ गठबंधन के उम्मीदवार हाजी फजलुर्रहमान को वोटर्स में यह संदेश देना आसान था कि उनके पास वोटर्स का अंकगणित कहीं अधिक मजबूत है.

सपा-बसपा और आरएलडी के अपने बेस वोट बैंक हैं जबकि कांग्रेस के पास इस तरह के वोट बैंक की कमी है. ऐसे में साफ है कि बेस वोट बैंक का अंकगणित महागठबंधन के उम्मीदवार के पक्ष में गया है. इस संगठन से जो भी मैदान में उतरा, उसके पास सपा, बसपा और आरएलडी के वोट एकमुश्त थे. ऐसे में उसे केवल मजबूती से चुनाव लड़ना है. बाकी की राह उसके लिए कांग्रेस प्रत्याशी के मुकाबले आसान रही.

वहीं, कांग्रेस का सिंबल पाने वाले नेताओं को भी यह साबित करना कठिन रहा कि वह गठबंधन के बेस वोट के बावजूद ज्यादा मजबूत हैं. कुछ एक अपवादों को छोड़ दें तो ज्यादातर जगहों पर यही स्थिति बनी रही. उन्नाव सीट पर कांग्रेस की अन्नू टंडन, कानपुर सीट पर श्रीप्रकाश जायसवाल आदि नेताओं की ऊर्जा का बड़ा हिस्सा केवल गठबंधन उम्मीदवार के वोटों के अंकगणित से भारी दिखाने में लगा.

वैसे भी सपा, बसपा और बीजेपी के इतर कांग्रेस को मूवमेंट बेस्ड पार्टी माना जाता है. अगर चुनाव के समय कांग्रेस अपने मूवमेंट से लोगों को जोड़ पाती है तो परिणाम बेहतर दिखाई देते हैं. अन्यथा उसके पास करने के लिए कुछ खास नहीं होता है. 2009 में किसानों की कर्जमाफी की बात को जिस तरह से कांग्रेस ने ऊपर तक पहुंचाया था, उसका असर परिणाम के रूप में भी मिला. पार्टी यूपी में 21 सीटें जीतने में कामयाब रही.

इस बार कांग्रेस ने चुनाव मैदान में जाते हुए जनता के लिए न्यूनतम आय योजना का बड़ा वादा किया. लेकिन स्थिति यह रही कि वह इस वादे के बारे में जनता को पूरी तरह बता पाने में ही असफल रह गई. अधिकतर लोग इस योजना के बारे में अनभिज्ञ हैं जिससे वोटर्स के साथ कांग्रेस का जुड़ाव उस हद तक नहीं हो सका जितना उसे अपना असर छोड़ने के लिए जरूरी था.

वहीं, दूसरी तरफ गठबंधन का उम्मीदवार अपने जातीय अंकगणित से अपने लिए वोटर्स में अपनी छाप छोड़ने में सफल रहा. उसका मजबूत कैडर बैकअप भी उसके लिए जनता के बीच पहुंचा. इस तरह से गठबंधन का उम्मीदवार बीजेपी से मुकाबले में दिखा जबकि कांग्रेस ऐसा नहीं कर सकी और लड़ाई बीजेपी बनाम गठबंधन के तौर पर वोटर्स के बीच पहुंच गई.

चांदनी चौक में मॉक पोल के दौरान हुई गलती, दो बूथों पर फिर से मतदान!

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दिल्ली की सातों सीटों पर बीती 12 मई को छठे चरण के मतदान के दौरान एक बड़ी गलती सामने आई है. जिसमें चांदनी चौक संसदीय सीट के दो पोलिंग बूथों पर दोबारा मतदान हो सकता है. दरअसल, मतदान से पहले राजनीतिक पार्टियों के प्रमुख व अधिकारियों की टीम की मौजुदगी में मॉक पोल का आयोजन किया जाता है.

इसके बाद ईवीएम में ये मॉक पोल डिलीट कर दिए जाते हैं लेकिन चांदनी चौक के दो बूथों पर ईवीएम मशीन में रिकॉर्ड ये वोट डिलीट नहीं किए जा सके. पीठासीन अधिकारी द्वारा निर्वाचन आयोग को इस संबध में रिपोर्ट भेज दी गई है. जिसके बाद अब यहां दोबारा से मतदान करवाया जा सकता है.

लोकसभा चुनाव के छठे चरण के दौरानम 12 मई को दिल्ली की 7 लोकसभा सीटों पर मतदान हुआ. इस दौरान दिल्ली की जनता ने कुल 13819 मतदान केन्द्रों पर वोट डाले. जिसमें से चांदनी चौक के दो मतदान केंद्रों पर फिर से वोटिंग हो सकती है. पीठासीन अधिकारी ने निर्वाचन आयोग को मॉक पोल संबधी रिपोर्ट भेजी है.

रिपोर्ट के अनुसार चांदनी के दो बूथों पर मॉक पॉल प्रक्रिया के दौरान डाले गए वोट ईवीएम से डिलीट नहीं किए जा सके और ये पुराने वोट इसी मतदान के मतों में जुड़ गए. पीठासीन अधिकारी द्वारा आयोग को भेजी गई रिपोर्ट के बाद अब आयोग द्वारा इस पर फैसला लेना है. जिसमें आशंका व्यक्त की जा रही है कि आयोग द्वारा इन बूथों पर फिर से मतदान करवाया जा सकता है.

पीठासीन अधिकारी की रिपोर्ट पर चुनाव आयोग द्वारा चांदनी चौक संसदीय सीट के दो बूथों पर दोबारा मतदान करवाया जा सकता है. जानकारों की मानें तो आयोग 23 मई को होने वाली मतगणना से पहले यहां वोटिंग करवाने पर निर्णय ले सकता है. हांलाकि अभी तक निर्वाचन आयोग के फैसले का ही इंतजार किया जा रहा है. पीठासीन अधिकारी की रिपोर्ट में मॉक पोल के दौरान चांदनी चौक सीट के दो बूथों पर ईवीएम में रिकॉर्ड वोट डिलीट नहीं किए जाने की बात कही गई है. बता दें कि बीती 12 मई को दिल्ली की सात संसदीय सीटों पर 13819 पोलिंग बूथों पर वोटिंग हुई थी.

राहुल गांधी ने अलवर में गैंगरेप पीड़िता से मुलाकात की, न्याय का भरोसा दिलाया

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने आज अलवर के थानागाजी में गैंगरेप पीड़िता और उसके परिवार से मुलाकात की. राहुल गांधी करीब आधा घंटे पीड़ित परिवार के साथ रहे. इस दौरान प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, डिप्टी सीएम सचिन पायलट और प्रभारी अविनाश पांडे्य भी साथ थे. मुलाकात के बाद एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए राहुल गांधी ने कहा कि यह मेरे लिए कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं है. यह एक भावनात्मक मामला है.

उन्होंने आगे कहा कि जैसे ही मुझे इस घटना के बारे में पता चला, मैंने तुरंत प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से फोन पर बात की. मैं पहले यहां आना चाहता था लेकिन किन्हीं कारणों के कारण ऐसा हो न सका. राहुल ने कहा कि मैं सुनिश्चित करना चाहता हूं कि पीड़ित परिवार को जल्द से जल्द न्याय मिलेगा. परिवार की मांगों को भी जल्दी पूरा किया जाएगा. जिम्मेदारों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी.

इस मौके पर प्रेस कॉन्फ्रेंस में सीएम गहलोत ने भी मीडियाकर्मियों से पीड़ित परिवार को जल्दी से जल्दी न्याय मिलने की बात कही. उन्होंने अलवर जिले को प्रशासनिक तौर पर अलवर शहर और अलवर ग्रामीण में बांटने की बात कही. दोनों जगह दो एसपी को लगाया जाएगा. जिले में बढ़ती अनैतिक गतिविधियों को देखते हुए यह बात कही गई है.

उन्होंने यह भी कहा कि थानागाजी मामले में सात दिन में चालान पेश कर देंगे. पीड़ित को नौकरी दी जाएगी. सीएम गहलोत ने कहा कि बीजेपी इस मामले पर राजनीति कर रही है और पूरी पार्टी राजनीति पर उतर आई है.

बता दें, राहुल गांधी बुधवार को अलवर आने वाले थे लेकिन खराब मौसम के चलते उनके हेलिकॉप्टर को दिल्ली में उड़ान भरने की अनुमति नहीं मिल पायी थी. इसके बाद कांग्रेसी प्रवक्ता जयवीर शेरविल ने उनके दौरा रद्द होने की सूचना दी थी.

राहुल गांधी का संवेदनशील मामलों में प्रदेश में यह तीसरा दौरा है. इससे पहले राहुल गांधी 2011 में गहलोत सरकार के दौरान गोपालगढ़ में हुए साम्प्रदायिक हिंसा के बाद राहुल यहां आए थे. उसके बाद वसुंधरा सरकार में बीकानेर की डेल्टा मेघवाल की दुष्कर्म और हत्या के बाद राहुल गांधी ने पीड़ित परिवार से मुलाकात की थी.

क्या दलित वोटों के सहारे त्रिशंकु नतीजों की तैयारी में है मायावती?

लोकसभा चुनावों के छह चरण पूरे हो चुके हैं. अब केवल आखिरी चरण का मतदान शेष है. 23 मई को परिणाम आने हैं. इससे पहले यूपी की सियासत और मायावती-अखिलेश यादव के महागठबंधन के चुनावी परिणामों पर सबकी नजरें गढ़ी हुई हैं. यह तो साफ तौर पर लग रहा है कि बीजेपी यहां अपना पिछला प्रदर्शन नहीं दोहरा सकेगी. उनकी इस राह में सबसे बड़ा रोड़ा ही महागठबंधन है. महागठबंधन का सीधा मुकाबला नरेंद्र मोदी से है.

इस महागठबंधन की अगुवाई कर रही है बसपा सुप्रीमो मायावती. इस बार उनकी सियासी दिनचर्या में भी बदलाव देखा गया है. छठे चरण तक हर रैली और जनसभा में उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा है. सातवें चरण से पहले उनके हमले और भी तीखे हो चले हैं. जानकारों का कहना है कि आखिरी चरण की नजदीकी लड़ाई में मायावती की चिंता कोर वोटों में सेंध बचाने की है. 23 मई के बाद आने वाले त्रिशंकु नतीजों में भी महागठबंधन को ‘विकल्प’ बनने की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है.

यूपी में पिछले छह चरणों में 67 संसदीय सीटों पर मतदान हो चुका है. अंतिम चरण में 13 सीटों पर  मतदान शेष है. ये सभी सीटें पूर्वांचल की हैं जिसमें से अधिकतर सीटें पिछड़ा, सवर्ण व दलित बहुल है. अधिकांश सीटों पर गैर यादव अति-पिछड़ी जातियां प्रभावी हैं. गैर जाटव वोटर्स भी अच्छी तादात में हैं. 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने दलित वोटों में अच्छी खासी सेंधमारी की थी. अब एक फिर पूर्वांचल के जातीय कुरुक्षेत्र में मोदी की अगुवाई वाली बीजेपी ने बसपा के इन कोर वोटों पर नजरें गड़ा रखी है. पीएम मोदी जिस तरह से राजस्थान के थानागाजी में हुई घटना पर मायावती की ‘जवाबदेही’ तय कर रहे हैं, यह इसकी नजीरभर है.

महागठबंधन से जुड़े सूत्रों का कहना है कि मायावती का मोदी पर तीखा हमला भी इसी रणनीति का हिस्सा है. आम तौर पर केंद्रीय एजेंसियों के दबाव या फिर अपनी स्थानीय मजबूरियों में दबे क्षेत्रीय दलों ने मोदी पर इतने तीखे हमले नहीं किए, जितने मायावती ने किए हैं. कांग्रेस खुद मायावती पर सीबीआई के दबाव में काम करने का आरोप लगा चुकी है.

बसपा के एक नेता का कहना है कि मोदी पर सीधा व निजी हमला बोलकर मायावती की रणनीति अपने वोटर्स को यह संदेश देने की है कि वह अपनी जीत को लेकर पूरी तरह आश्वस्त है और बीजेपी चुनाव हार रही है. कोर वोटर्स को जोड़े रखने के साथ जमीन पर गठबंधन की गणित को और मजबूत करने के लिए यह संदेश जरूरी भी है. अगर मायावती का यह फॉर्मूला काम कर गया तो बीजेपी के पाले में गिरने वाले वाले गैर-जाटव व अति पिछड़े जाति के वोट बैंक को महागठबंधन के पक्ष में वापस लाना आसान होगा.

वर्तमान लोकसभा चुनाव की सबसे दिलचस्प बात यह है कि मोदी की राह में सबसे बड़ा रोड़ा इस बार यूपी बनता नजर आ रहा है. 2014 के चुनाव में इसी गढ़ ने मोदी को शीर्ष पर बिठाया था. यूपी से हो रहे नुकसान की भरपाई के लिए बीजेपी को सबसे अधिक उम्मीद ममता बनर्जी की अगुवाई वाले पश्चिम बंगाल से है. यही वजह है कि ‘दीदी’ का मोदी के खिलाफ विरोध लोकतंत्र के ‘थप्पड़’ तक जा पहुंचा है.

विपक्षी एकता के सूत्रधारों के लिए ममता और मायावती दोनों ही अहम किरदारों में शामिल हैं. मायावती के प्रधानमंत्री बनने के सपनों को उनके गठबंधन सहयोगी अखिलेश यादव से लेकर बिहार में राजद के अगुआ लालू प्रसाद यादव ने हवा दी है. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी मायावती को संघर्षों का नेशनल सिंबल बता चुके हैं.
दिल्ली में तीसरे मोर्चे की संभावना तभी बनेगी जब यूपी में महागठबंधन बीजेपी के आंकड़ों को काफी नीचे पहुंचा दे. ऐसी स्थिति में मायावती सपा-बसपा गठबंधन के मुखिया के तौर पर दिल्ली की राजनीतिक फैसलों में भी अहम भूमिका निभाएंगी. यही वजह है कि नतीजों की घड़ी में मायावती ने खुद को मोदी के प्रमुख विरोधी के तौर पर स्थापित करना शुरू कर दिया है. राजनीतिक तौर पर चुनाव परिणाम से पहले विपक्षी दलों की बैठकों से सपा-बसपा की दूरी भी सभी विकल्पों को खुले रखने की ओर इशारा कर रही है.

BJP की सरकार बनी तो 13 दिन में गिर जाएगी: एनसीपी

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देश में लोकसभा चुनाव अपने अंतिम चरण में है. 23 मई को लोकसभा चुनाव के नतीजे आएंगे लेकिन नेता उससे पहले ही सरकार बनने को लेकर दावे करने लगे हैं. ताजा दावा एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने किया है. शरद पवार ने कहा कि अगर बीजेपी राष्ट्रपति की मदद से सरकार बना भी लेती है तो भी सदन में बहुमत साबित नहीं कर पाएगी. उसका भी हाल 1996 की अटल सरकार जैसा होगा. हालांकि शरद पवार ने माना बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरेगी लेकिन यह भी कहा कि उसे पूर्ण बहुमत नहीं मिलेगा.

एक चैनल से बातचीत के दौरान शरद पवार ने कहा कि 21 मई से देश में गैर बीजेपी सरकार बनाने की कवायद शुरु हो जाएगी. देश के सभी विपक्षी दल मोदी के खिलाफ है. हम सब अलग-अलग चुनाव लड़ रहे हैं लेकिन सबका लक्ष्य बीजेपी को रोकना है. हम चाहते है कि देश को 5 साल के लिए स्थिर सरकार मिले.

बता दें कि शरद पवार की पार्टी महाराष्ट्र में कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है. यहां उनका मुकाबला बीजेपी-शिवसेना गठबंधन से है. 2014 लोकसभा में बीजेपी–शिवसेना गठबंधन ने प्रदेश की 48 लोकसभा सीटों में से 41 पर जीत हासिल की थी. कांग्रेस के हाथ दो सीट लगी थी जिनमे नादेंड से अशोक चव्हाण और हिंगोली से राजीव सातव विजयी हुए थे. चार सीटें एनसीपी के खाते में आई थी.

मणिशंकर अय्यर ने दी पत्रकार को मारने की धमकी

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कांग्रेस के लिए गुजरात विधानसभा चुनाव में मुसीबत बने मणिशंकर अय्यर एक बार फिर चर्चा में आ गए है. एक दिन पहले ही उन्होंने पत्रकारों से बातचीत के दौरान 2017 में प्रधानमंत्री मोदी को ‘नीच’ कहने वाले बयान को सही ठहराया था. आज उन्होंने इसी मामले में सवाल पूछने पर एक पत्रकार को जान से मारने की धमकी दे दी. साथ ही मीडिया को बीजेपी के लिए फायदे का प्रसारण करने वाला बताया.

अय्यर ने कहा, ‘क्या आप देश में उस शख्स को नहीं जानते. आपने नरेंद्र मोदी के बयानों को नहीं सुना है क्या? आप जाइए, उनसे सवाल पूछिए लेकिन वह आप से बात नहीं करेंगे क्योंकि वह डरपोक है. वह मीडिया से बात नहीं करते.’

इसी दौरान पत्रकारों की तरफ से सवाल पूछे जाने पर मणिशकर अय्यर भड़क गए और अपनी मुट्ठी हिलाते हुए एक माइक्रोफोन खींचते हुए कहा कि आप मुझसे ऐसे सवाल नहीं पूछ सकते. एक पत्रकार से तो उन्होंने ‘आई विल हिट यू’ तक कह दिया. उन्होंने मिडिया पर आरोप भी लगाया कि आप उन्हीं बयानों को प्रसारित करते हो जिससे बीजेपी को फायदा होता है. मामला गर्म होते देख पत्रकार ने उनसे माफी भी मांग ली लेकिन इसके बाद भी मणिशंकर के मीडिया पर हमले लगातार जारी रहे.

याद दिला दें कि हाल ही में मणिशंकर अय्यर ने अपने एक लेख में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘बदजुबानी प्रधानमंत्री’ बताया था. इसी लेख में उन्होंने गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान दिए गए बयान (नीच किस्म का आदमी) की भी याद दिलाई थी. अय्यर के इसी बयान की वजह से उन्हें कांग्रेस पार्टी से निलंबित कर दिया था. हालांकि एक साल बाद उनके लिए पार्टी ने अपने द्वार फिर से खोल दिए.

अमित शाह ने कोलकाता हिंसा के लिए टीएमसी को ठहराया जिम्मेदार

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पश्चिम बंगाल के कोलकाता में अमित शाह के रोड-शो में हुई हिंसा के लिए बीजेपी अध्यक्ष ने टीएमसी को जिम्मेदार ठहराया है. एक प्रेस कॉन्फेंस कर अमित शाह ने कहा कि देश में लोकसभा चुनाव के छह चरण संपन्न हो चुके हैं और बंगाल को छोड़कर देश के किसी भी हिस्से से हिंसा की खबरें नहीं आ रही हैं. इसका मतलब साफ है कि हिंसा सिर्फ टीएमसी के गुंडे ही कर रहे हैं.

शाह ने कहा कि ममता बनर्जी की पार्टी सिर्फ 42 सीटों पर चुनाव लड़ रही है जबकि बीजेपी पूरे देश में चुनाव लड़ रही है. अगर बीजेपी हिंसा करती तो देश के सभी हिस्सों से हिंसा की खबरें आती लेकिन हिंसा की खबरें सिर्फ बंगाल से ही क्यों आ रही हैं.

हिंसा में ईश्वरचंद्र विद्यासागर की मूर्ति तोड़ने के बारे में शाह ने कहा कि बीजेपी के कार्यकर्ता तो कॉलेज के बाहर थे. फिर कॉलेज के अंदर विद्यासागर की मूर्ति को किसने तोड़ा.

अमित शाह ने साफ करते हुए कहा, ‘2.30 घंटे तक रोड शो शांतिपूर्ण तरीके से चला जिसमें अभूतपूर्व जनसैलाब उमड़ा. उसके बाद रोड शो के काफिले पर तीन बार हमले हुए. पहले वहां लगे पोस्टर फाड़ दिए गए. तीसरे हमले में तोड़फोड़, आगजनी और केरोसिन बम से हमला किया गया. अगर वहां सीआरपीएफ नहीं होती तो मैं सुरक्षित बचकर नहीं निकल पाता.’

ममता बनर्जी पर हमला बोलते हुए शाह ने कहा कि दीदी ने बंगाल के हालात बहुत बुरे बना दिए हैं. मैंने बंगाल की जनता के आक्रोश को करीब से देखा है. बंगाल की जनता ने ममता को हटाने का निश्चय कर लिया है. पिछले छह चरणों के मतदान के बाद दीदी को अपनी जमीन खिसकने का अहसास हो गया है इसीलिए वो अपने कार्यकर्ताओं से हमपर हमले करवा रही है.

अमित शाह ने एफआईआर मामले में कहा कि बीजेपी कार्यकर्ता एफआईआर से डरने नहीं वाले हैं. हमारे 60 से ज्यादा कार्यकर्ताओं की जान आपके गुंडों ने ले ली. इन हमलों के बाद भी हमने अपना अभियान नहीं रोका तो हम एफआईआर से क्या डरेंगे. बता दें, मंगलवार को कोलकाता में अमित शाह के रोड शो के में विद्यासागर कॉलेज के अंदर से टीएमसी के कथित समर्थकों ने शाह के काफिले पर पथराव किया.

पथराव के बाद गुस्साए बीजेपी सर्मथकों ने पथराव करने वालों से मारपीट की जिसके बाद हिंसा भड़क गयी. कॉलेज के बाहर खड़ी कई मोटरसाइकिलों को आग के हवाले कर दिया गया. समाज सुधारक ईश्वर चंद्र विद्यासागर की मूर्ति को भी तोड़ा गया है जिससे मामले ने और भी तूल पकड़ लिया है.

बिहार: क्या नीतीश कुमार एनडीए से बगावत करने की तैयारी कर रहे हैं?

आम चुनाव के आखिरी चरण में 19 मई को बिहार की आठ सीटों के लिए वोटिंग होगी.  इन सीटों में से महज एक नालंदा सीट पर जेडीयू का कब्जा है. पांच सीटें सासाराम, पटना साहिब, पाटलीपुत्र, आरा और बक्सर बीजेपी के खाते में है जबकि एक सीट पर रालोसपा और एक पर निर्दलीय का कब्जा है. यानी कि सातवें चरण का चुनाव बीजेपी के लिए काफी अहम है.

सातवें चरण के मतदान ठीक पहले एनडीए की सहयोगी जेडीयू ने बिहार को विशेष राज्य दिए जाने की अपनी पुरानी मांग फिर से दोहराना शुरू कर दिया है. पार्टी के वरिष्ठ नेता केसी त्यागी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, ‘हम पंद्रहवें वित्त आयोग के सामने बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग रखेंगे, क्योंकि बिहार के सर्वांगीण विकास के लिए यही स्थाई समाधान है. बिहार का सर्वांगीण विकास तभी संभव है, जब बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिया जाएगा.’

जेडीयू के दूसरे नेताओं ने भी केसी त्यागी के बयान का समर्थन किया है. इतना ही नहीं, जदयू ने ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक की उस मांग का भी समर्थन किया है, जिसमें उन्होंने ओडिशा को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग की है. पार्टी का मानना है कि पिछड़ेपन के चलते बिहार और ओडिशा दोनों को विशेष राज्य का दर्जा दिया जाना चाहिए.

जेडीयू के अनुसार बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लंबे समय से बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग कर रहे हैं और अब नवीन पटनायक ने भी यही मांग की है. दोनों ही राज्य पिछड़े हैं और बाढ़, तूफान और सूखे जैसी प्राकृतिक आपदाएं अक्सर आती हैं. इन राज्यों के संसाधन का एक बड़ा हिस्सा इन आपदाओं से निबटने में जाया हो जाता हैं इसलिए दोनों राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा मिलना चाहिए.

लोकसभा चुनाव का आखिरी चरण पूरा होने से पहले ही जेडीयू का फिर से विशेष राज्य का मुद्दा उठाना कई सवाल खड़े करता है. क्या जेडीए के रुख में यह बदलाव नतीजे आने के बाद बिहार की राजनीति में बड़े उलटफेर की ओर इशारा कर रहा है? क्या नीतीश कुमार का बीजेपी से फिर से मोहभंग हो गया है? क्या जेडीयू ने विकल्प तलाशना शुरू कर दिया है?

जानकार बताते हैं कि तमाम सर्वेक्षणों में बीजेपी को कम सीट मिलने का अनुमान लगाया गया है. अगर ऐसा होता है तो बीजेपी को अन्य सहयोगी दलों की जरूरत पड़ेगी. इतना ही नहीं, अभी जो पार्टियां उनके साथ हैं, संभव है कि बीजेपी को कम सीट आने की सूरत में उसे छोड़ कर दूसरे खेमे में चली जाएं. इसलिए बीजेपी को मौजूदा सहयोगियों का साथ भी चाहिए होगा. जदयू का शीर्ष नेतृत्व इससे अच्छी तरह वाकिफ है और उसे यह भी पता है कि ऐसे मौकों पर ही बीजेपी पर दबाव डाला जा सकता है.

सातवें चरण के चुनाव से ठीक पहले विशेष राज्य का दर्जा देने के घिसे राग को फिर से अलाप कर जेडीयू बीजेपी नेतृत्व को दबाव में रखने की कवायद कर रही है. केसी त्यागी के बयान से पहले जदयू एमएलसी गुलाम रसूल बलियावी भी एक बयान देकर सियासी अटकलों को हवा दे चुके हैं. आपको बता दें कि बलियावी ने पिछले दिनों नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री पद का चेहरा घोषित करने की मांग की थी.

गुलाम रसूल बलियावी ने कहा था, ‘अगर बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं को महसूस हो रहा है कि उनकी पार्टी को अकेले बहुमत नहीं मिल पाएगा, तो एनडीए को चाहिए कि वह नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री का चेहरा बनाए.’ बलियावी के इस बयान के राजनीतिक विश्लेषक कई मतलब निकाल रहे हैं. कोई इसे बीजेपी पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने की कवायद बता रहा है तो कोई तीसरे मोर्चे की सरकार बनने की स्थिति में नीतीश को चेहरा बनाने की कोशिश बता रहा है.

इस चर्चा के बीच यह काबिलेगौर है कि चुनाव प्रचार के दौरान नीतीश कुमार एनडीए सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कामकाज की जगह अपनी उपलब्धियां गिना रहे हैं. ऐसा इसलिए है ताकि बाद में जेडीयू को अच्छी सीट मिलने की सूरत में बीजेपी यह न जता सके कि उसके चलते जेडीयू ने ज्यादा सीटें जीतीं. बिहार में जेडीयू ही नहीं, लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) के तेवर भी बदलने लगे हैं. हाल ही में पार्टी के सांसद और राम विलास पासवान के पुत्र चिराग पासवान ने कहा कि बीजेपी को राम मंदिर की जगह विकास के मुद्दे पर फोकस करना चाहिए.

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि चुनाव परिणाम के बाद बिहार में सियासी उलटफेर की संभावना सबसे ज्यादा है, क्योंकि जेडीयू और एलजेपी हर हाल में ये कोशिश करेंगे कि सत्ता में बने रहें. अगर केंद्र में एनडीए की सरकार बनने की संभावना कमजोर होती है तो जेडीयू और एलजेपी खेमा भी बदल भी सकते हैं. एलजेपी मुखिया को तो वैसे भी चुनावी मौसम विज्ञानी कहा जाता है, क्योंकि वह हमेशा सत्ताधारी पार्टियों के साथ ही गठबंधन करते हैं.

इधर, पिछले सात-आठ सालों में जेडीयू ने भी जिस तेजी से अपना खेमा बदला, उसे देख कर पुख्ता तौर पर यह नहीं कहा जा सकता है कि आने वाले समय में वे अन्य गठबंधन में शामिल नहीं होंगे. गौरतलब है कि आम चुनाव से पहले सीटों के बंटवारे को लेकर भी जेडीयू ने बीजेपी पर खासा दबाव बनाया था, जिसके चलते ही बीजेपी जीती हुई पांच सीटों का नुकसान उठाना पड़ा और महज दो लोकसभा सीटें जीतनेवाले जेडीयू को 17 सीटें दी गईं.

जानकार बताते हैं कि क्षेत्रीय पार्टियों के लिए इस तरह के मौकों का फायदा उठाना आम बात है. पूर्व में भी ये पार्टियां अपनी सहूलियत के हिसाब से खेमा बदलती रही हैं, इसलिए इस बार भी ऐसा ही कुछ हो, तो कोई आश्चर्य नहीं होगा. जेडीयू के बयान को लेकर विपक्षी पार्टियों ने एनडीए पर हमला शुरू कर दिया है. पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव लगातार कह रहे हैं कि चुनाव के बाद नीतीश कुमार एनडीए को छोड़ सकते हैं.

आरजेडी के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी ने विशेष राज्य के दर्जे की जेडीयू की मांग पर कहा कि नीतीश कुमार आखिरी चरण के चुनाव से पहले पैंतरा बदल रहे हैं. उन्होंने कहा कि वह बीच में लंबे समय तक इसको लेकर चुप्पी साधे रहे और अब दोबारा यह मुद्दा उछाल रहे हैं. शिवानंद तिवारी मानते हैं कि नीतीश कुमार बीजेपी पर दबाव भी बनाना चाहते हैं, लेकिन वह ये एहसास भी जताते रहना चाहते हैं कि वह लालू प्रसाद यादव को लेकर सॉफ्ट नहीं हैं.

शिवानंद तिवारी ने कहा, ‘लालू प्रसाद यादव पर जुबानी हमले को नीतीश कुमार ने और तीखा कर दिया है. वह बीजेपी को बताना चाहते हैं कि उनके लिए लालू यादव विकल्प नहीं हैं. आखिरी चरण के मतदान से पहले एनडीए की सहयोगी पार्टियों का ये रुख चुनाव बाद बीजेपी के सामने बड़ी चुनौती बन सकता है. ऐसे में ये देखने वाली बात होगी कि बीजेपी इस चुनौती से कैसे निपटती है.

बंगाल में बवाल पर वीडियो-वीडियो खेल रही टीएमसी और बीजेपी

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कोलकाता में बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के कल किए गए रोड शो के दौरान भड़की हिंसा में हुए उत्पात की आग तो शायद ठंड़ी नहीं हुई लेकिन अब इस मामले पर टीएमसी और बीजेपी एक-दूसरे पर आरोप लगाते हुए वीडियो-वीडियो का खेल रही हैं. दोनों पार्टियों ने कुछ वीडियो सोशल मीडिया पर जारी करते हुए इन्हें सबूतों के तौर पर पेश किया है और हिंसा की वजह एक-दूसरे पर मढ़ दिया. बात दें, मंगलवार शाम को कोलकाता में अमित शाह के एक रोड शो में टीएमसी और बीजेपी समर्थक एक-दूसरे से भिड़ गए थे. हिंसा भड़कती देख रोड शो को रद्द कर दिया गया.

इस मामले पर तृणमूल कांग्रेस के नेता डेरेक ओब्रायन ने तीन वीडियो अपने ट्विटर हैंडल अकाउंट से शेयर किए हैं. उन्होंने आरोप लगाया है कि कैसे अमित शाह के रोड शो के दौरान बीजेपी के गुंडे उत्पात मचा रहे हैं.

पहले वीडियो में दिख रहा है कि बीजेपी की कुछ गाड़ियां सड़क से गुजर रही हैं और भगवा रंग की कमीज पहने कुछ लोग जिनके हाथ में बीजेपी का झंडा और सिर पर भगवा साफा बंधा है, सड़क किनारे खड़े वाहनों को नुकसान पहुंचा रहे हैं. इनमें से कुछ के हाथ में डंडे हैं तो कुछ पत्थर फेंकते हुए भी दिखाई दे रहे हैं. इन्हीं लोगों ने सड़क किनारे खड़े वाहनों को आग के हवाले भी किया है.

दूसरे वीडियो में यही लोग जलते हुए वाहन के करीब खड़े दूसरे वाहनों को निशाना बना रहे हैं. तीसरे वीडियो में भीड़ का उत्पात दिखाया गया है. तीनों वीडियो को सबूत के तौर पर पेश करते हुए डेरेक ओब्रायन ने हिंसा के लिए सीधे तौर पर बीजेपी को जिम्मेदार ठहराया है.

वहीं बीजेपी के आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने भी अपने ट्वीटर हैंडल से एक वीडियो जारी कर अमित शाह के रोड शो में टीएमसी कार्यकर्ताओं पर हिंसा फैलाने का आरोप जड़ दिया. वीडियो जारी करते हुए उन्होंने ट्वीट किया है कि टीएमसी समर्थकों ने अमित शाह के रोड शो में व्यवधान पैदा किया जिससे हालात बिगड़ते चले गए. बीजेपी ने ममता सरकार पर यह आरोप भी लगाया है कि टीएमसी गुंड़ों के सामने पुलिस भी खामोश खड़ी रही.

मालवीय ने ट्वीट कर यह आरोप भी लगाया है कि ममता बनर्जी ने देर रात बीजेपी नेताओं की धरपकड़ के आदेश दिया जिसके चलते कोलकाता में कई नेताओं को रात को ही उठा लिया गया है. इनमें तेजिंदर पाल सिंह बग्गा के अलावा कई ऐसे नेता हैं जो अभी टीएमसी की गैरकानूनी हिरासत में हैं.

बीजेपी के बयानों पर जवाब देते हुए ममता ने कहा, ‘मोदी-शाह दोनों बीजेपी के गुंडे हैं. तुम लोगों का नसीब अच्छा है कि मैं यहां शांत बैठी हूं. वरना तो एक सेकेंड में दिल्ली में बीजेपी दफ्तर और तुम्हारे घरों पर कब्जा कर सकती हूं.’ ममता बनर्जी ने बीजेपी अध्यक्ष पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि अमित शाह क्या भगवान हैं, जो उनके खिलाफ कोई प्रदर्शन नहीं कर सकता है? इसी उठा-पटक को हवा देते हुए ममता बनर्जी ने आज कोलकाता में पदयात्रा निकालने का ऐलान कर दिया है.

पूर्व आप नेता कपिल मिश्रा ने एक ट्वीट कर तेजेंद्र बग्गा की एक फोटो अपने ट्वीटर हैंडल से साझा की है.

 

 

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