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मोदी सरकार के मंत्रिमंडल में शामिल होंगे राजस्थान के ये सांसद

लोकसभा चुनाव में प्रचंड जीत दर्ज कर सत्ता में लौटे नरेंद्र मोदी के दोबारा प्रधानमंत्री बनने की तैयारी शुरू हो गई है. संसदीय दल की बैठक में मोदी को नेता चुनने और राष्ट्रपति के सामने सरकार बनाने का दावा पेश करने की खानापूर्ति करने के बाद शपथ ग्रहण समारोह होगा. सूत्रों के अनुसार मोदी 30 मई को शपथ ले सकते हैं. मोदी का फिर से प्रधानमंत्री बनना तय होने के बाद अब इस बात की चर्चा होने लगी है कि इस बार उनके मंत्रिमंडल में कौन-कौन शामिल हो सकता है.

राजस्थान की बात करें तो पांच से छह सांसदों को मोदी की टीम में शामिल होने का मौका मिल सकता है. आपको बता दें कि पिछली मोदी सरकार में राजस्थान से राज्यवर्धन सिंह राठौड़, गजेंद्र सिंह शेखावत, अर्जुनराम मेघवाल, पीपी चौधरी और सीआर चौधरी मंत्री बने थे. इनमें से सीआर चौधरी को छोड़कर सभी फिर से लोकसभा में पहुंच गए हैं. गौरतलब है कि सीआर चौधरी नागौर से सांसद का चुनाव जीते थे, लेकिन बीजेपी ने इस बार उन्हें टिकट देने की बजाय राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के संयोजक हनुमान बेनीवाल से गठबंधन कर उन्हें मैदान में उतारा.

पिछली सरकार में मंत्री होने की वजह से राज्यवर्धन सिंह राठौड़, गजेंद्र सिंह शेखावत और अर्जुनराम मेघवाल का दावा इस बार भी मजबूत है, लेकिन पीपी चौधरी को इस बार मोदी की टीम से बाहर रहना पड़ सकता है. पिछली बार चौधरी को अरुण जेटली की पैरवी से मंत्रिमंडल में जगह मिली थी, लेकिन इस बार वे खुद खराब सेहत से जूझ रहे हैं. उन्हें गुरुवार को ही दिल्ली के एम्स से डिस्चार्ज किया गया है. बीमारी की वजह से जेटली करीब तीन हफ्ते से ऑफिस नहीं जा रहे थे. सूत्रों के अनुसार उन्हें मंत्रिमंडल से बाहर रखा जा सकता है.

वहीं राज्यवर्धन सिंह राठौड़, गजेंद्र सिंह शेखावत और अर्जुनराम मेघवाल के अलावा राजस्थान से लोकसभा का चुनाव जीते 22 और राज्यसभा के 10 सांसदों में से कई चेहरे खुद को मंत्री बनने की दौड़ में शामिल मान रहे हैं. इनमें से कईयों ने तो बाकायदा लॉबिंग शुरू कर दी है. आइए जानते हैं कि मंत्री बनने की दौड़ में कौन-कौनसे सांसद शामिल हैं और किसका दावा कितना मजबूत है-

राज्यवर्धन सिंह राठौड़
जयपुर ग्रामीण सीट से दोबारा सांसद बने राज्यवर्धन सिंह मोदी की पहली सरकार में मंत्री रहे हैं. उनके पास खेल मंत्रालय के अलावा सूचना एवं प्रसारण जैसे अहम मंत्रालय का जिम्मा था. सेना में कर्नल और ओलंपिक में रजत पदक विजेता राज्यवर्धन पर नरेंद्र मोदी के अलावा बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का वरदहस्त है. नई सरकार में उनका मंत्री बनना तय माना जा रहा है. इस बार उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया जा सकता है. हालांकि एक चर्चा यह भी है कि मोदी-शाह उनके भीतर राजस्थान में पार्टी की कमान संभालने वाला नेता देख रहे हैं.

गजेंद्र सिंह शेखावत
जोधपुर सीट से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत को बड़े अंतर से पटकनी देकर दूसरी बार सांसद बने गजेंद्र सिंह शेखावत मोदी की पहली सरकार में कृषि राज्य मंत्री रहे हैं. वे मोदी-शाह के तो चहेते हैं ही, संघ का वरदहस्त भी उन्हें प्राप्त है. गजेंद्र सिंह शेखावत का इस बार भी मंत्री बनना तय माना जा रहा है. हालांकि चर्चा यह भी है कि उन्हें प्रदेशाध्यक्ष बनाया जा सकता है. आपको बता दें कि अशोक परनामी के इस्तीफे के बाद मोदी-शाह ने उन्हें राजस्थान में पार्टी की कमान सौंपने का फैसला कर लिया था, लेकिन वसुंधरा राजे के ‘वीटो’ से घोषणा अटक गई.

अर्जुनराम मेघवाल
बीकानेर सीट से जीत की हैट्रिक लगाकर संसद पहुंचे अर्जुनराम मेघवाल की गिनती बीजेपी के बड़े दलित नेताओं में होती है. वे मोदी की पिछली सरकार में राज्य मंत्री रहे हैं. मेघवाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की गुड बुक्स में शामिल हैं. उनका इस बार भी मंत्री बनना तय माना जा रहा है. हालांकि सियासी गलियारों में एक चर्चा यह भी है कि अर्जुन मेघवाल को लोकसभा का अध्यक्ष बनाया जा सकता है. आपको बता दें कि 16वीं लोकसभा की अध्यक्ष रहीं सुमित्रा महाजन ने इस बार चुनाव नहीं लड़ा है. बीजेपी को इस पद के लिए वरिष्ठ नेता की तलाश है.

हनुमान बेनीवाल
नरेंद्र मोदी के नए मंत्रिमंडल में सबसे बड़ा और चौंकाने वाला नाम नागौर सीट से चुनाव जीते हनुमान बेनीवाल का हो सकता है. आपको बता दें कि लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी यानी आरएलपी से नागौर सीट पर गठबंधन किया था. इस सीट पर खुद हनुमान मैदान में उतरे और कांग्रेस की ज्योति मिर्धा को बड़े अंतर से पटकनी दी. जाट बिरादरी के सबसे लोकप्रिय नेता बन चुके बेनीवाल का मंत्री बनना इसलिए तय माना जा रहा है, क्योंकि राजस्थान में बीजेपी के पास कोई बड़ा जाट नेता नहीं है. सूत्रों के अनुसार बेनीवाल मंत्री बनने पर अपनी पार्टी का विलय बीजेपी में कर सकते हैं.

दीया कुमारी
राजसमंद सीट से चुनाव जीती दीया कुमारी को मोदी के मंत्रिमंडल में जगह मिल सकती है. आपको बता दें कि दीया कुमारी जयपुर के पूर्व राजपरिवार की राजकुमारी हैं. उन्होंने 2013 के विधानसभा चुनाव से राजनीति में एंट्री की थी. पार्टी ने उन्हें सवाई माधोपुर सीट से उम्मीदवार बनाया, जहां से उन्होंने जीत दर्ज की. 2018 के विधानसभा चुनाव में उन्हें बीजेपी ने टिकट नहीं दिया. कहा जाता है वसुंधरा राजे से तनातनी की वजह से उनका टिकट कटा. वे लोकसभा चुनाव में टोंक-सवाई माधोपुर से टिकट चाहती थीं, लेकिन पार्टी ने उन्हें राजसमंद से उम्मीदवार बनाया. सूत्रों के अनुसार यदि राज्यवर्धन सिंह राठौड़ और गजेंद्र सिंह शेखावत को प्रदेश संगठन में कोई भूमिका मिलती है तो दीया कुमारी को मंत्रिमंडल में शामिल किया जा सकता है.

डॉ. किरोड़ी लाल मीणा
मोदी के मंत्रिमंडल में डॉ. किरोड़ी लाल मीणा का नाम भी शामिल हो सकता है. वे फिलहाल राज्यसभा सांसद हैं. उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का करीबी माना जाता है. हालांकि दौसा लोकसभा सीट पर टिकट को लेकर हुई रस्साकशी में जिस तरह से डॉ. किरोड़ी की राय को दरकिनार किया गया, उसके बाद यह कयास लगाया जा रहा है कि शायद पार्टी नेतृत्व उन्हें कोई जिम्मेदारी नहीं दे, लेकिन मोदी-शाह राजस्थान में वसुंधरा राजे को कमजोर करने के लिए उनके खिलाफ बोलने वाले नेताओं को ताकतवर बना सकती है. आपको बता दें कि डॉ. किरोड़ी को वसुंधरा का विरोधी माना जाता है. लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद वे खुलेआम यह कह रहे हैं कि यदि पार्टी विधानसभा चुनाव में वसुंधरा की बजाय दूसरे चेहरे को सामने लाती तो परिणाम दूसरे होते.

दावेदारों की इस फेहरिस्त के बीच यह देखना रोचक होगा कि नरेंद्र मोदी इनमें से किसे कितनी तवज्जो देते हैं. दावेदारी अपनी जगह है, लेकिन मंत्री तो वही बनेंगे जिन पर मोदी हाथ रखेंगे. फिलहाल सभी दावेदार अपने-अपने स्तर पर लॉबिंग में जुटे हैं.

मोदी लहर में बिना प्रचार किए चुनाव जीता बलात्कार का आरोपी उम्मीदवार

देश में कल आए लोकसभा चुनाव के नतीजों में बीजेपी की सुनामी देखने को मिली. इसमें देश के बड़े-बड़े नेता बह गये. चाहे वो पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवगौड़ा हो या दिल्ली में प्रंदह साल तक राज करने वाली शीला दीक्षित हर किसी को चुनाव में हार का सामना करना पड़ा.

यूपी में मोदी की आंधी ने सपा-बसपा- रालोद के गठबंधन को ताश के पत्तो की तरह बिखेर दिया. मुलायम परिवार के तीन सदस्यों कन्नोज से डिपंल यादव, बदायूं से धर्मेन्द्र यादव और फिरोजाबाद से अक्षय यादव को इस बार चुनाव में हार का सामना करना पड़ा. ये सभी 2014 में मोदी लहर के बावजुद चुनाव जीतने में कामयाब हुए थे.

लेकिन इस चुनाव की रोचक तथ्य यह नहीं है कि यादव परिवार चुनाव हारा है. इस चुनाव की सबसे चौकाने वाली बात यह है कि उत्तर प्रदेश में इतनी व्यापक लहर होने के बावजुद बसपा के टिकट पर एक ऐसा प्रत्याशी जीता. जिसपर बलात्कार के आरोप है और वो चुनाव प्रचार के समय से ही गायब है.

उत्तर प्रदेश का घोसी लोकसभा क्षेत्र यह इलाका गाजीपुर के आसपास है. अर्थात यह लोकसभा क्षेत्र बीजेपी के गढ़ पूर्वाचंल के इलाके में आता है. यहां से बसपा ने सपा और रालोद के साथ सीटों का बटवारा होने के बाद बसपा नेता अतुल राय को घोसी लोकसभा सीट का प्रभारी घोषित किया.

बता दें कि बसपा की हर चुनाव में यह रणनीति का हिस्सा रहता है कि वो चुनाव से कुछ समय पूर्व उस क्षेत्र में प्रभारी घोषित करती है. बाद में वो उसी प्रभारी को उस क्षेत्र में उम्मीदवार घोषित करती है.

बसपा ने घोसी लोकसभा क्षेत्र से अतुल राय को उम्मीदवार घोषित किया. बता दें कि घोसी लोकसभा क्षेत्र से मऊ विधायक मुख्तार अंसारी के पुत्र अब्बास अंसारी भी टिकट की दावेदारी कर रहे थे. लेकिन पार्टी ने उनको टिकट नहीं दिया.

उम्मीदवार घोषित होने के बाद अतुल राय ने नामांकन दाखिल किया. लेकिन नामांकन दाखिल करने के कुछ समय बाद वो गायब हो गये. कारण रहा कि अतुल राय के उपर बलिया की एक युवती ने दुष्कर्म, धोखाधड़ी,धमकी देने समेत कई धाराओं में केस दर्ज कराया. युवती की तरफ से यह एफआईआर लंका थाने में दर्ज कराई गई रिपोर्ट के अनुसार अतुल राय पर युवती ने आरोप लगाया कि वो लंका इलाके के एक अपार्टमेंट के फ्लैट में झांसा देकर ले गए और यौन शोषण किया.

इस एफआईआर के दर्ज होने के बाद अतुल राय चुनावी क्षेत्र से गायब हो गये. पुलिस उनकी तलाश में लगातार दबिश देती रही. लगा कि बसपा का यह प्रत्याशी तो चुनाव हार जाएंगे. लेकिन नतीजे तो अनुमान के बिल्कुल ही अलग रहे. अतुल राय ने बीजेपी की प्रचंड लहर के बावजुद घोसी लोकसभा क्षेत्र से बड़े अन्तर से जीत हासिल की. उन्होंने बीजेपी के हरिनारायण राजभर को लगभग 1 लाख 23 हजार मतों से मात दी. बता दें कि योगी कैबिनेट से हाल ही बर्खास्त हुए ओमप्रकाश राजभर इसी इलाके से आते है. अतुल राय की जीत ही भारतीय लोकतंत्र को रोचक बनाती है.

मोदी की आंधी में भी इन दिग्गजों को झेलनी पड़ी हार

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लोकसभा चुनाव के परिणाम आए तो मोदी की आंधी में कांग्रेस के 9 पूर्व मुख्यमंत्रियों के किले भी धवस्त हो गए. पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौडा को भी इस लहर में हार का सामना करना पड़ा. वहीं हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र हुड्डा को बीजेपी के रमेश कौशिक ने सोनीपत सीट पर करारी हार का स्वाद चखाया. दूसरी ओर, नरेंद्र मोदी की इस तुफानी लहर के बावजूद भी बीजेपी सरकार के कई मंत्री चुनाव हार बैठे. इन सीटों के नतीजे वाक्यी में चौंकाने वाले रहे.

गाजीपुरः उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा-रालोद महागठबंधन होने के बावजूद बीजेपी ने प्रदेश में विशाल जीत हासिल की. बीजेपी ने यहां की 80 लोकसभा सीटों में से 62 सीटों पर जीत दर्ज की. वहीं उनकी सहयोगी अपना दल ने दो सीटों पर फतह हासिल की. लेकिन इस प्रचंड मोदी लहर में भी देश के रेल राज्य मंत्री मनोज सिन्हा चुनाव हार गए. उनको बसपा के अफजाल अंसारी से हार का सामना करना पड़ा. बता दें कि अफजाल अंसारी यूपी के माफिया डॉन मुख्तार अंसारी के भाई हैं. मुख्तार वर्तमान में यूपी की मउ विधानसभा सीट से विधायक है और वह बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय की हत्या के मामले में 2004 से जेल में बंद है.

अमृतसरः पंजाब में बीजेपी शुरु से ही अकाली दल की पिछलग्गु रही है. यहां उसके लिए कभी भी ज्यादा संभावनाए नहीं रही. पिछले विधानसभा चुनाव में भी अकाली-बीजेपी गठबंधन को यहां करारी हार का सामना करना पड़ा था. विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद यह तय था कि इस बार अकाली-बीजेपी गठबंधन के लिए लोकसभा चुनाव में परेशानी होने वाली है. नतीजे भी कुछ ऐसे ही रहे.

मोदी सरकार के दूसरे मंत्री जिनको लोकसभा चुनाव में व्यापक लहर होने के बावजूद हार का सामाना करना पड़ा, वो हरदीपसिंह पुरी रहे. हरदीपसिंह पुरी मोदी सरकार में शहरी विकास मंत्रालय का काम देखते थे. उनको पार्टी ने इस बार अमृतसर संसदीय क्षेत्र से चुनावी समर में उतारा. उनका सामना वर्तमान सांसद गुरजिंदर सिंह औजला से था. हरदीपसिंह को यहां करीब एक लाख मतों से हार का सामना करना पड़ा. 2014 में इसी सीट से बीजेपी के बड़े नेता अरुण जेटली को भी हार का सामना करना पड़ा था. उन्हें पंजाब के वर्तमान मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने मात दी थी.

लोकसभा चुनाव के परिणाम को लेकर सोशल मीडिया पर​ भिड़े दो दिग्गज़

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लोकसभा चुनाव का परिणाम आ चुका है जिसमें बीजेपी को शानदार सफलता हाथ लगी है. वहीं राजस्थान में हाल इससे भी बेहतर है. यहां 25 की 25 सीटों पर बीजेपी ने ​कब्जा जमाया है. इस परिणामों पर विपक्ष के नेताओं की झुनझुलाहट भी साफ देखी जा सकती है. इसी बीच गहलोत सरकार में एक मंत्री और पूर्व सरकार में मंत्री रहे दो दिग्गज सोशल मीडिया पर भिड़ पड़े. प्रताप सिंह खाचरियावास और अरूण चतुर्वेदी ने फेसबुक पर पोस्ट कर अपनी-अपनी भड़ास निकाली है.

प्रताप सिंह खाचरियावास ने पो​स्ट में लिखा, ‘जनादेश शिरोधार्य है, जिसे हम विनम्रता के साथ स्वीकार करते हैं. आश्चर्यजनक चुनाव परिणाम यह हार कांग्रेस की नहीं लोकतंत्र की हार है. किसी भी व्यक्ति को या पार्टी को बेवजह बिना काम के बिना पुराने वादे का हिसाब किताब लिए जब भी वोट दिया जाएगा तो आप यह मानकर चलिए, ऐसे वोट से लोकतंत्र कमज़ोर होगा.

वोट देना चाहिए काम के आधार पर सच्चाई और ईमानदारी के साथ. मतदाता का हर फैसला पार्टी बाजी से ऊपर उठकर काम के आधार पर होना चाहिए. मेरा अपना यह मानना है कि इन नतीजों से लोकतंत्र कमजोर होगा भाजपा का घमंड उनके नेताओ का घमंड सातवें आसमान पर होगा. यह हमारे लोकतंत्र के हित मे नहीं है. जो भी हो हमारा देश आगे बढ़ना चाहिए और लोकतंत्र मजबूत होना चाहिए.’

इस पर जवाब देते हुए पूर्व मंत्री अरूण चतुर्वेदी ने पोस्ट किया, ‘एक तरफ जनादेश को शिरोधार्य करते है दूसरी तरफ लोकतंत्र की हार बताकर जनता के निर्णय को अपमानित करना यही कांग्रेस का चरित्र है. झूठे वादे करके वोट प्राप्त किये और अब जब जनता ने 5 महीने के बाद आपको नकारा तो दोष जनता पर मढना यह मतदाता का अपमान है. लोकतंत्र में जनता ही जनार्दन है. हमने भी विनम्रतापूर्वक इस जनादेश को स्वीकार किया था लेकिन जनता/लोकतंत्र को दोष नहीं दिया.’

बड़ी जीत के बाद बड़ों का आशीर्वाद, पीएम नरेंद्र मोदी पहुंचे आडवाणी-जोशी के घर

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लोकसभा चुनाव में प्रचंड जीत के बाद बीजेपी खासी उत्साहित नजर आ रही है. पार्टी नेता व कार्यकर्ता लगातार खुशियां मनाने में लगे हैं. पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में ऐसी सुनामी आई की विपक्ष व अन्य दल कहीं नहीं टिके.  अकेले बीजेपी को देश में 303 सीटों पर कामयाबी मिली है. साथ ही एनडीए 350 का आंकड़ा पार कर चुका है और कांग्रेस सिर्फ 50 तक सिमट कर रह गई. बड़ी जीत के बाद आज पीएम नरेंद्र मोदी व अमित शाह बड़ों का आशीर्वाद लेने पहुंचे. बीजेपी मार्गदर्शक मंडल सदस्य व पार्टी के दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी व मुरली मनोहर जोशी से उन्होंने मुलााकात कर पैर छुए.

बड़ी जीत के बाद पीएम नरेंद्र मोदी व बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने देश की जनता का आभार जताया है. वहीं पार्टी कार्यकर्ताओं की मेहनत की तारिफ करते हुए इस देश की जीत बताया है. बीजेपी इस जीत को सेलीब्रेट करने में लगी है. इसी बीच पार्टी अध्यक्ष व पीएम नरेंद्र मोदी आज दिग्गज बीजेपी नेता व बीजेपी मार्गदर्शक मंडल सदस्य लालकृष्ण आडवाणी से मिलने पहुंचे. जहां वे उन्होंने आडवाणी के आवास पर पहुंचकर उनके पैर छुए और आशीर्वाद लिया. इस दौरान आडवाणी से उन्होंने पार्टी की बड़ी जीत पर चर्चा भी की. आडवाणी ने भी उनके नेतृत्व की तारिफ की और बधाई उन्हें बधाई दी.

 

आडवाणी से मुलाकात कर जीत का आशीर्वाद लेने के बाद पीएम मोदी व शाह दिग्गज बीजेपी नेता मुरली मनोहर जोशी के घर पहुंचे. जहां उन्होंने जोशी से मुलाकात की और आशीर्वाद लिया. पीएम ने उनके साथ पार्टी की बड़ी जीत पर बधाई देेते हुए चर्चा की. मुरली मनोहर जोशी ने भी उनके नेतृत्व की सराहना करते हुए उन्हें बधाई दी और उनके आगामी कार्यकाल के लिए शुभकामनाएं दी.

बता दें कि लालकृष्ण आडवाणी व मुरली मनोहर जोशी दोनों ही दिग्गज बीजेपी नेता मार्गदर्शक मंडल के सदस्य हैं. पीएम नरेंद्र मोदी व पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की दोनों नेताओं से ये मुलाकात काफी अहम है. बीजेपी साल 2014 में भी नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बड़ी जीत हासिल करने में कामयाब रही थी और इस बार इसे बढ़त के साथ दोहराया है.

टोंक-सवाईमाधोपुर में सुखबीर सिंह के सामने कहीं टिक नहीं पाए नमोनारायण

देशभर से आए लोकसभा चुनाव के नतीजों में एक बार फिर मोदी की आंधी ने विपक्ष के हर दिग्गज नेता को धराशाही कर दिया. फिर चाहे राहुल गांधी हो या राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पुत्र वैभव गहलोत. ऐसा ही कुछ नजारा रहा राजस्थान की चर्चित लोकसभा सीट टोंक-सवाईमाधोपुर का, जहां नरेंद्र मोदी की आंधी ने कांग्रेस के दिग्गज नेता नमोनारायण मीणा को ऐसा उड़ाया कि कहीं आसपास नजर भी नहीं आए.

यहां एक लाख से भी अधिक के अंतर से जीत दर्ज कर सुखबीर सिंह जौनापुरिया लगातार दूसरी बार सांसद चुने गए हैं. जहां न तो अशोक गहलोत का कोई असर देखने को मिला और न ही टोंक जिले से विधायक और उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट का. यहां कांग्रेस के सारे दावे हवाई साबित हो गए.

बीजेपी ने राजस्थान में लोकसभा चुनाव के प्रचार का सिलसिला टोंक से ही शुरू किया था. जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की टोंक के खेल स्टेडियम में जनसभा आयोजित हुई थी. इतनी विशाल जनसभा कभी नहीं  हुई थी. इसका जवाब देने के लिए कांग्रेसी नेताओं ने टोंक के निवाई में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट की जनसभा आयोजित की.

लोगों ने कयास तो तब ही लगा लिए थे क्योंकि उस जनसभा में लोगों की भीड़ का आंकड़ा पांच हजार भी पार नहीं हो पाया था. इसके बाद सचिन पायलट ने दो दिन टोंक-सवाईमाधोपुर सहित दोनों जिलों में तुफानी हवाई और सड़क दौरे कर जनसभाएं की लेकिन न तो अशोक गहलोत माली समाज के वोट नमोनारायण को दिलवा पाए और न ही सचिन पायलट गुर्जर समाज के वोट. एससी और मुस्लिम समाज के पूरे वोट भी कांग्रेस के खाते में नहीं पड़े.

आइए जानते हैं किस विधानसभा क्षेत्र में बीजेपी और कांग्रेस प्रत्याशी को कितने वोट मिले…

गंगापुरसिटी (सवाईमाधोपुर)
नमोनारायण मीणा :74566 वोट
सुखबीर सिंह : 65676 वोट
यहां से नमोनारायण मीणा को 8890 वोटों की लीड.

बामनवास (सवाईमाधोपुर)
नमोनारायण मीणा : 74745 वोट
सुखबीर सिंह : 61622 वोट
यहां से नमोनारायण मीणा को 13122 वोटों की लीड.

सवाईमाधोपुर
नमोनारायण मीणा : 79079 वोट
सुखबीर सिंह : 64454 वोट
यहां से नमोनारायण मीणा को 14625 वोटों की लीड.

खंडार (सवाईमाधोपुर)
नमोनारायण मीणा : 62300 वोट
सुखबीर सिंह : 70067 वोट
यहां से सुखबीर सिंह को 7767 वोटों की लीड.

मालपुरा (टोंक)
नमोनारायण मीणा : 46753 वोट
सुखबीर सिंह : 103144 वोट
यहां से सुखबीर सिंह को 56391 वोटों की लीड.

निवाई (टोंक)
नमोनारायण मीणा : 55829 वोट
सुखबीर सिंह : 95977 वोट
यहां से सुखबीर सिंह को 40148 वोटों की लीड.

टोंक
नमोनारायण मीणा : 63223 वोट
सुखबीर सिंह : 85674 वोट
यहां से सुखबीर सिंह को 22441 वोटों की लीड.

देवली-उनियारा (टोंक)
नमोनारायण मीणा : 74473 वोट
सुखबीर सिंह : 94947 वोट
यहां से सुखबीर सिंह को 20474 वोटों की लीड.

जातिगत समीकरण पर नजर डालें तो टोंक-सवाईमाधोपुर लोकसभा क्षेत्र में कुल मतदाता 16 लाख 93 हजार 116 हैं. यहां एससी मतदाताओं की संख्या 3 लाख 60 हजार 500 और एसटी की संख्या 3 लाख है. इसके अलावा, 2.60 लाख गुर्जर, 1.95 लाख मुस्लिम, 1.45 लाख जाट, 1.35 लाख ब्राह्मण, 1.15 लाख महाजन, 1.50 लाख माली, एक लाख राजपूत और करीब दो लाख अन्य वोटर्स हैं.
अगर जाति फैक्टर पर नजर डाला जाए तो समझ आता है कि कांग्रेस केवल अपने परम्परागत वोट ही अपने खाते में डलवा पाई है. जिन गुर्जर, मुस्लिम और एससी वोट बैंक ने  सचिन पायलट को विधानसभा चुनाव में टोंक से जीत दिलाई थी, उन वोटों को कांग्रेस लोकसभा चुनाव में भुना नहीं पाई. इतना ही नहीं, अशोक गहलोत भी टोंक-सवाईमाधोपुर लोकसभा सीट पर माली समाज के वोटों को कांग्रेस के खाते में नहीं डलवा पाए. इसके चलते कांग्रेस प्रत्याशी को करारी हार का सामना करना पड़ा.

हैरत की बात तो यह है कि नमोनारायण मीणा मतगणना वाले दिन टोंक तो आए लेकिन मतगणना स्थल पर नहीं आए. जैसे ही बीजेपी प्रत्याशी को 50 हजार से ज्यादा की लीड मिली तो मीणा टोंक से रवाना होकर जयपुर पहुंच गए. दूसरी ओर, जीत के बाद सुखबीर सिंह ने बीजेपी की ऐतिहासिक जीत के लिए कार्यकर्ताओं और मतदाताओं को धन्यवाद कहा है.

बीजेपी से बगावत पड़ी महंगी, जनता ने नकारे सात पूर्व सांसद

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प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में वापसी कर रही बीजेपी चुनाव नतीजों के चलते खुशियां मनाने में लगी है. साल 2014 से भी बड़ी विजय हासिल करने वाली बीजेपी ने ‘मोदी है तो मुमकिन है’ पर मुहर लगा दी है. बड़ी जीत के उत्साह के बीच हाल ही में बीजेपी से बगावत करने वाले नेताओं के पास अब हाथ मलने के अलावा कोई चारा नहीं है. जनता ने इस चुनाव में इन्हें सिरे से नकार दिया है जबकि 2014 में इसी पार्टी से जीतकर वे लोकसभा पहुंचे थे.

जीत के उत्साह में डूबी बीजेपी के मोदी नेतृत्व को सत्ता से दूर करने की विपक्ष ने भरपूर कोशिश की. पूरे यूपीए दलों के अलावा एनडीए विरोधी दल भी इसी कवायद में जुटे थे लेकिन जनता द्वारा दिए गए निर्णय के सामने आखिरकार सबको हार माननी ही पड़ी. 2014 से भी बड़ी मोदी लहर के बीच जीत की ऐसी सुनामी आई कि दिग्गज सियासी दलों के अलावा गठबंधन के भी खंभे उखड़ गए.

इसी बीच हाल ही में बीजेपी छोड़ दूसरी पार्टी के साथ चुनावी मैदान में आए दलबदलू नेताओं का भी कहीं पता ही नहीं चला. बीजेपी पर भरोसा जताते हुए देश की जनता ने इन्हें पसंद नहीं किया. इन्ही नेताओं ने साल 2014 के चुनाव में बीजेपी की टिकट पर मोदी लहर में जीत हासिल की थी. लेकिन इस चुनाव से पहले वे पार्टी से बगावत कर बैठे और किनारा कर दूसरी पार्टी के साथ थामा. लोकसभा चुनाव लड़ा लेकिन जनता के आगे नहीं टिक पाए.

आइए जानते हैं ऐसे दलबदलू नेताओं के बारे में, जिनके पास शायद अब पछताने के अलावा कोई चारा नहीं है —
1. शत्रुघ्न सिन्हा
लोकसभा चुनाव से ठीक पहले शत्रुघ्न सिन्हा की बीजेपी से नाराजगी उनके बयानों के जरिए बाहर आई. सिन्हा लगातार पार्टी विरोधी बयान देकर चर्चा में बने रहे. चुनाव से ठीक पहले उन्होंने बीजेपी छोड़कर कांग्रेस का हाथ थाम लिया. पार्टी ने उन्हें पटना साहिब संसदीय सीट से टिकट दी तो बीजेपी ने उनके सामने रवि शंकर प्रसाद को मैदान में उतारा. जनता को शायद सिन्हा का चुनाव चिन्ह बदलकर लड़ना पसंद नहीं आया और वे यहां से चुनाव हार गए. रविशंकर प्रसाद यह सीट निकालने में कामयाब रहे.

2. अशोक कुमार दोहरे
उत्तरप्रदेश की इटावा लोकसभा सीट से सांसद अशोक कुमार दोहरे पिछला चुनाव बीजेपी की टिकट पर जीते थे. लेकिन पार्टी नेताओं के उनकी नहीं जमी और उन्होंने बीजेपी से खिलाफत की मुहिम छेड़ दी. आखिरकार उन्होंने लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस का दामन थाम लिया. लेकिन अब अशोक कुमार दोहरे कांग्रेस के टिकट पर इटावा से चुनाव हार गए. अशोक दोहरे से ज्यादा बीजेपी व सपा उम्मीदवारों ने वोट हासिल कर उन्हें तीसरे नंबर पर पहुंचाया.

3. मानवेंद्र सिंह जसोल
इस फेहरिश्त में एक और बड़े राजनीतिक घराने का नाम भी जुड़ा है. बीजेपी के दिग्गज नेता जसवंत सिंह जसोल के बेटे मानवेंद्र सिंह ने भी बीजेपी से खिलाफत की और पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की टिकट पर पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के सामने चुनाव हार गए. इस बार के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने उन्हें बाड़मेर-जैसलमेर संसदीय सीट से मैदान में उतारा लेकिन इस बार भी किस्मत ने उनका साथ नहीं दिया और उन्हें हार का सामना करना पड़ा.

4. कीर्ति आजाद
पूर्व क्रिकेटर व कांग्रेस उम्मीदवार कीर्ति आजाद भी इस बार झारखंड की धनबाद संसदीय सीट से चुनाव हार गए. बीजेपी से खफा होकर कांग्रेस में आए आजाद पिछली बार बिहार के दरभंगा से बीजेपी की टिकट पर सांसद जीते थे. कीर्ति आजाद ने बीजेपी के खिलाफ आवाज उठाई थी और उन्हें निलंबित कर दिया गया था. लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस का दामन थामने वाले आजाद को पार्टी ने दरभंगा की बजाय धनबाद से चुनाव मैदान में उतारा, लेकिन वे हार गए.

5. श्याम चरण गुप्ता
सपा-बसपा-रालोद गठबंधन की ओर से यूपी की बांदा संसदीय सीट पर भाग्य आजमाने वाले श्याम चरण गुप्ता भी इस बार जीतने में कामयाब नहीं हो सके. लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी को अलविदा कह सपा में शामिल हुए गुप्ता को यहां बीजेपी के आरके सिंह पटेल ने शिकस्त दी. बांदा की जनता को श्याम चरण गुप्ता का दलबदलू अंदाज पसंद नहीं आया जबकि साल 2014 में गुप्ता बीजेपी के टिकट पर इलाहाबाद से जीतकर सांसद बने थे.

6. नाना पटोले
बीजेपी का साथ छोड़ कांग्रेस का हाथ चुनने वाले नाना पटोले भी इस बार कांग्रेस के टिकट पर नागपुर से चुनाव हार गए. यहां उनका मुकाबला वरिष्ठ बीजेपी नेता नितिन गडकरी से था, नाना गडकरी के सामने नहीं टिक पाए और उन्हें हार का सामना करना पड़ा. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में लातूर सीट पर बीजेपी का कमल खिलाने वाले नाना पटोले पार्टी से बगावत कर कांग्रेस में शामिल हो गए थे.

7. सावित्री बाई फुले
लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी सांसद सावित्री बाई फुले ने पाला बदल कर कांग्रेस का दामन थाम लिया था. बहराइच संसदीय सीट से कांग्रेस ने उन्हें बीजेपी उम्मीदवार के खिलाफ चुनाव मैदान में उतार दिया. बीजेपी से बगावत करके कांग्रेस में गईं साबित्री बाई फुले इस बार बीजेपी उम्मीदवार अक्षयबर लाल के सामने नहीं टिक पाई और चुनाव हार गई. बहराइच की जनता को फुले का बीजेपी से बगावत करना नागवार गुजरा और जनता ने अपना फैसला सुनाते हुए उन्हें दरकिनार कर बीजेपी के अक्षयबर लाल के सिर जीत का सेहरा बांध दिया.

बिहार में चला NDA का जादू, तिनके की तरह उड़ा विपक्ष

बिहार के चुनावी नतीजे आ चुके हैं. एनडीए ने बिहार की 40 लोकसभा सीटों में से 39 सीटों पर जीत हासिल की है. यह एनडीए का अब तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन है. नरेंद्र मोदी के करिश्माई नेतृत्व में बीजेपी-जदयू-लोजपा गठबंधन के सामने महागठबंधन कहीं खड़ा नहीं दिखाई दिया. लेकिन मोदी के लिए इस बार बिहार की चुनौती आसान नहीं थी. हम आपको चुनाव से पहले की चुनौतियों के बारे में बता रहे हैं जिन्हें बीजेपी ने केवल नरेंद्र मोदी की वजह से पार किया.

2014 की मोदी लहर में पुराने साथी जदयू के साथ छोड़ने के बावजूद बीजेपी ने बिहार में अच्छा प्रदर्शन किया था. उसके बाद 2015 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी को करारी हार का सामना करना पड़ा. यह संगठन के लिए एक झटके की तरह था. चुनाव हारने का मुख्य कारण राजद-जदयू का गठबंधन रहा.

लेकिन बीजेपी ने इसका बदला 2018 में अपनी तरह से लिया. उन्होंने नीतीश कुमार को अपने पाले में लाने के लिए मना लिया. नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. अगले दिन बीजेपी ने जेडीयू सरकार के समर्थन का ऐलान कर दिया. बीजेपी सरकार में सहयोगी बनी और पुरानी सरकारों की तरह बीजेपी नेता सुशील मोदी को उप-मुख्यमंत्री बनाया गया.

लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी को केंद्रीय मंत्री और रालोसपा प्रमुख उपेंद्र कुशवाह ने झटका दे दिया. वो एनडीए का साथ छोड़कर चले गए. यह बीजेपी के लिए एक बड़ा झटका था. मोदी को घेरने के लिए तेजस्वी यादव ने बिहार में सामाजिक समीकरणों को साधते हुए महागठबंधन का निर्माण किया. महागठबंधन में राजद, कांग्रेस, रालोसपा, जीतनराम मांझी की ‘हम’ और मुकेश साहनी की ‘वीआईपी’ पार्टी शामिल थीं.

बिहार में चुनाव से पूर्व यह अनुमान था कि इस बार के चुनाव में बीजेपी-जदयू गठबंधन को महागठबंधन से कड़ी चुनौती मिलेगी. लेकिन आए नतीजों ने इस संभावना को सिरे से खारिज कर दिया. मोदी के करिश्माई नेतृत्व में बीजेपी-जदयू-लोजपा गठबंधन ने प्रचंड जीत हासिल की.

मोदी ने यहां सारे जातीय समीकरणों को तोड़ा है. मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र अररिया से भी बीजेपी के उम्मीदवार प्रदीप कुमार ने जीत हासिल की है. प्रदीप यादव की जीत ही बिहार में मोदी मैजिक की स्थिति का आलम बयां करती है.

मोदी के इस तुफान में बिहार के कई दिग्गजों के किले धवस्त हो गए. पाटलिपुत्र से लालु यादव की पुत्री मीसा भारती को बीजेपी के रामकृपाल यादव ने हराया. वहीं बेगूसराय में मोदी की आंधी में सीपीआई के कन्हैंया कुमार उड़ गए. कन्हैंया कुमार को गिरिराज सिंह ने करीब चार लाख वोटों से पटखनी दी. राजद के उम्मीदवार तनवीर हसन तीसरे स्थान पर रहे.

लालु यादव के संसदीय क्षेत्र से इस बार उनकी पत्नी राबड़ी देवी के स्थान पर तेजप्रताप यादव के ससूर चंद्रिका राय चुनाव मैदान में थे. उनको यहां बीजेपी के राजीव प्रताप रुडी से हार का सामना करना पड़ा. बिहार के उजियारपुर लोकसभा क्षेत्र से रालोसपा के उप्रेन्द्र कुशवाह को बीजेपी के नित्यानंद राय से हार का सामना करना पड़ा है.

बिहार की सबसे चर्चित सीट पटना साहिब से बीजेपी के रविशंकर प्रसाद ने कांग्रेस के शत्रुघ्न सिन्हा को भारी अंतर से हराया. वीआईपी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष मुकेश साहनी को भी अपने पहले चुनाव में मोदी लहर के कारण हार का सामना करना पड़ा. उनको लोजपा के महबूब अली कैसर ने हराया. बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी को भी इस चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है.

मोदी लहर की आंधी में उड़ा यूपी का महागठबंधन, मिली सिर्फ ये सीटें

उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा-रालोद के गठबंधन के बाद राजनीतिक पंडितों ने यह अनुमान लगाया था कि इस बार यूपी में बीजेपी को बड़ा नुकसान होगा. कारण बताया गया कि यूपी में लाठी यानि यादव, हाथी यानि दलित, 786 यानि मुस्लिम और गन्ना यानि जाट का गठजोड़ बीजेपी को भारी नुकसान पहुंचाएगा. यूपी में करीब 30 लोकसभा क्षेत्र इन जातियों के बाहुल्य के हैं. यहां हार-जीत तय करने के लिए यही वोट निर्णायक हैं.

लेकिन आज जो नतीजे हमारे सामने हैं, वो तो कुछ और ही स्थिति बता रहे हैं. बीजेपी ने एक बार फिर यूपी में परचम पहराया है. अभी तक आए नतीजों के अनुसार बीजेपी को प्रदेश की 58 सीटों पर फतह हासिल हुई है. सपा-बसपा और रालोद के मध्य गठबंधन होने के बावजूद बीजेपी ने यूपी में कामयाबी कैसे हासिल की, आइए जानते हैं ….

यूपी में बीजेपी के पूरे चुनाव को जिन्होंने करीब से देखा होगा, उन्होंने पाया कि चुनाव प्रचार पूरी तरह से प्रधानमंत्री मोदी के इर्द-गिर्द ही घूमा है. पीएम मोदी हर चुनावी जनसभा में मतदाताओं से अपील करते कि बीजेपी उम्मीदवार को मिला हर वोट उन्हीं के खाते में जुड़ेगा. इससे हुआ ये कि लोगों ने स्थानीय प्रत्याशी से नाराजगी होने के बावजूद अपना वोट बीजेपी को दिया.

2014 के संसदीय चुनाव में बीजेपी को हर जाति का खुलकर वोट मिला था. लेकिन पांच साल के कार्यकाल के दौरान उन पर विपक्षी दलों के दलित विरोधी होने के कई आरोप लगे. आकलन यह भी था कि बीजेपी को इस बार 2014 की तरह दलित वोट नहीं मिलेंगे. लेकिन जो नतीजे आए, उसने इस आकलन को भी पूरी तरह से गलत साबित कर दिया. यूपी के दलित बाहुल्य सीटों पर बीजेपी ने भारी अंतर के साथ जीत हासिल की है, जो दलितों की राजनीति करने वाली बसपा के लिए बड़ा झटका है.

2014 के चुनाव में मोदी लहर के बावजूद यादवलैंड में सपा का कब्जा कायम था. उसने इस इलाके की पांच सीटों पर कब्जा किया था. लेकिन मोदी ने इस बार यादव बाहुल्य क्षेत्रों में भी जबरदस्त सेंधमारी की है. इसका नमूना यह है कि मुलायम परिवार के दो सदस्य कन्नौज से अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव और बदायूं से अखिलेश के चचेरे भाई धर्मेन्द्र यादव चुनाव हार चुके हैं. जबकि 2014 में इन सीटों पर मोदी लहर के बावजूद सपा ने जीत हासिल की थी.

इस चुनाव की सबसे बड़ी खूबी यह रही कि बीजेपी ने इस बार यूपी में गजब की सोशल इंजीनियरिंग की. उनको इस बात का इल्हाम शुरु से ही था कि महागठबंधन के सामजिक ताने-बाने को तोड़ना है तो खुद के सामाजिक समीकरण पैदा करने होंगे. बीजेपी ने दलितों के मध्य से गैर जाटव जातियों को अपने पक्ष में लामबंद किया. बता दें कि दलितों में जाटव वोट बसपा के परम्परागत वोटबैंक है.

मोदी के साथ जिस तरह ओबीसी वोट बैंक 2014 में था, ठीक उसी प्रकार इस चुनाव में पड़ा. बीजेपी का इस चुनाव में जीत का मंत्र ही गैर यादव ओबीसी-गैर जाटव दलित और सवर्ण वोटर रहा. इन सभी जातियों के लोगों ने बीजेपी को जमकर वोट दिया है.

बीजेपी को इस चुनाव में योगी सरकार के सुशासन का भी फायदा मिला. योगी आदित्यनाथ ने जिस प्रकार सत्ता में आते ही प्रदेश की कानून व्यवस्था में सुधार के लिए काम किया, लोगों ने उनके काम को पसंद कर बीजेपी के नाम पर मुहर लगाई.

बीजेपी को इस चुनाव में महागठबंधन बनने का भी फायदा मिला. महागठबंधन बनने के बाद बीजेपी जनता के बीच यह संदेश देने में कामयाब रही कि ये लोग अपने स्वार्थ के लिए एकजुट हो रहे हैं. जनता की समस्याओं को लेकर इनका कोई सरोकार नहीं है.

यूपी के नतीजों को देखने के बाद यह कहने में कोई हर्ज नहीं है कि मोदी के आगे सारे जातीय समीकरण फेल हैं. बीजेपी ने कई ऐसी सीटों पर जीत हासिल की है, जहां चुनाव से पूर्व वह मुकाबले में भी नहीं मानी जा रही थी. क्योंकि इन सीटों के जातीय समीकरण महागठबंधन के पक्ष में थे.

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