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मोदी-शाह की जोड़ी ने पश्चिम बंगाल में कैसे लगाई दीदी के किले में सेंध?

यदि किसी राजनीतिक दल को लोकसभा चुनाव में 42 में से महज दो सीटों पर जीत हासिल हो तो उसे अगले चुनाव से ही मृतप्राय: मान लिया जाता है, लेकिन बीजेपी ने इस बदतर स्थिति को चुनौती में बदलकर जीत की नई इबारत​ लिख दी है. जी हां, पश्चिम बंगाल में बीजेपी ने वो करिश्मा कर दिखाया है, जिसकी कल्पना कोई राजनीतिक दल सपने में भी नहीं कर सकता.

आपको बता दें कि पश्चिम बंगाल में लोकसभा की 42 सीटें हैं. 2014 की मोदी लहर के बावजूद बीजेपी ने यहां महज दो सीटों पर जीत दर्ज की थी जबकि तृणमूल कांग्रेस ने 34, कांग्रेस ने चार और वाम दलों ने दो सीटों पर फतह हासिल की थी. जबकि 2016 के विधानसभा चुनाव में प्रदेश की 294 सीटों में से तृणमूल कांग्रेस को 211 सीटों पर जीत मिलीं और बीजेपी को महज तीन सीटों पर संतोष करना पड़ा.

दोनों चुनावों में तृणमूल कांग्रेस के मुकाबले में बीजेपी कहीं नहीं थी, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी—शाह की जोड़ी ने ममता बनर्जी के किले में सेंध लगा दी है. तृणमूल कांग्रेस को 22 सीटों पर जीत मिली है जबकि बीजेपी ने 18 सीटों पर फतह हासिल की. बीजेपी का यह प्रदर्शन पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह के उस दावे के आसपास है, जो उन्होंने चुनाव से पहले किया था. आपको बता दें कि शाह ने पश्चिम बंगाल में 23 से ज्यादा सीटें जीतने का दावा किया था.

जिस समय अमित शाह ने 23 से ज्यादा सीटें जीतने का दावा किया तो राजनीति के जानकारों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया. सबने यह माना कि पश्चिम बंगाल में वाम दलों के किले को ध्वस्त कर सत्ता पर काबिज हुईं ममता बनर्जी को मात देना नामुमकिन है, लेकिन बीजेपी ने यह करिश्मा कर दिखाया है. ऐसे में यह जानना जरूरी है कि बीजेपी ने पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के किले में सेंध कैसे लगाई.

असल में 2014 के लोकसभा चुनाव और 2016 में विधानसभा चुनाव में करारी हार झेलने के बाद पश्चिम बंगाल की कमान संघ ने अपने हाथों में ली. बीते तीन साल में पश्चिम बंगाल में बीजेपी के लिए जमीन तैयार करने में संघ ने बड़ी भूमिका निभाई. इस दौरान प्रदेश में संघ का नेटवर्क तेजी से बढ़ा. शाखाओं की संख्या इसकी मुनादी करती है. गौरतलब है कि संघ की शाखाओं में 2016 में पश्चिम बंगाल में तेजी से बढ़ोतरी हुई है. 2016 में इनकी संख्या 700 के आसपास थी, जो अब बढ़कर 2000 को पार कर चुकी है.

पश्चिम बंगाल में संघ की शाखाएं बढ़ने का असर यह हुआ कि सूबे में ममता बनर्जी की कार्यशैली का विरोध करने के लिए एक संगठित शक्ति बीजेपी को मिल गई. इसका फायदा पश्चिम बंगाल में पार्टी के प्रभारी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने बखूबी उठाया. 2017 में बशीरहाट में एक फेसबुक पोस्ट से भड़के दंगे ने उनके लिए ध्रुवीकरण की जमीन तैयार की. राजनीति के जानकारों ने उसी समय यह भविष्यवाणी कर दी थी कि बशीरहाट पश्चिम बंगाल में लोकसभा चुनाव का बैरोमीटर बनेगा. ऐसा हुआ भी.

आपको बता दें कि बशीरहाट में लगभग 10 लाख मुसलमान रहते हैं. यहां कथित रूप से बांग्लादेश से घुसपैठ और सीमापार गाय की तस्करी होने का आरोप बीजेपी लगाती है. पार्टी के नेताओं ने चुनाव प्रचार के दौरान खुलेआम यह कहा कि बशीरहाट और आसपास के इलाकों में यह सब ममता बनर्जी के संरक्षण में होता है. बीजेपी के इस आरोप का बंगाल के हिंदुओं में व्यापक असर दिखा. इसके अलावा ‘इमामों को मिल रहे भत्ते’ और स्कूलों में ‘उर्दू थोपने’ का मामला भी बीजेपी एजेंडे में शामिल रहा. असम की तरह पश्चिम बंगाल में भी एनआरसी लागू करने के बीजेपी के वादे ने हिंदुओं को आकर्षित किया.

इसकी काट के लिए ममता बनर्जी भी ध्रुवीकरण की रणनीति पर चलीं. यानी लोकसभा चुनाव में बीजेपी और तृणमूल कांग्रेस, दोनों की रणनीति ध्रुवीकरण की रही. बीजेपी नेतृत्व का यह आकलन था कि ध्रुवीकरण के खुले खेल में उनकी पार्टी को सबसे बड़ा फायदा होगा, क्योंकि मुस्लिम वोट तृणमूल कांग्रेस, वाम दलों और कांग्रेस के बीच बंटेंगे जबकि हिंदुओं के वोट सिर्फ उसे मिलेंगे. बीजेपी की 18 सीटों पर जीत इसकी पुष्टि करते हैं.

बीजेपी को एक आकलन यह भी था कि तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के आतंक से त्रस्त वाम दलों और कांग्रेस के समर्थक इस उम्मीद से उनके साथ आएंगे कि बीजेपी ही ममता बनर्जी से मुक्ति दिला सकती है. चुनाव नतीजे इस ओर साफ इशारा करते हैं. ​पश्चिम बंगाल में वाम दलों को एक भी सीट पर जीत नसीब नहीं हुई जबकि कांग्रेस को महज एक सीट पर संतोष करना पड़ा.

बीजेपी ने पश्चिम बंगाल में लोकसभा की 18 सीटों पर सिर्फ जीत ही दर्ज नहीं की है, बल्कि 2021 में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए तृणमूल कांग्रेस के सामने तगड़ी चुनौती पेश कर दी है. लोकसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस को जहां 43.36 प्रतिशत वोट मिले हैं, वहीं बीजेपी को 40.23 प्रतिशत वोट मिले हैं. लोकसभा चुनाव में अच्छे प्रदर्शन के बाद आत्मविश्वास से लबरेज बीजेपी के लिए इस अंतर को पाटना मुश्किल काम नहीं है.

पश्चिम बंगाल में बीजेपी दूसरे नंबर पर तो लोकसभा चुनाव के पहले ही आ गई थी. पंचायत चुनाव के नतीजे इसकी गवाही देते हैं. आपको बता दें कि राज्य की 9214 पंचायत समितियों में से तृणमूल कांग्रेस को 8062 और दूसरे स्थान पर रही बीजेपी को 769 सीटों पर जीत मिली थी. वहीं, 133 सीटें लेकर कांग्रेस तीसरे और 110 सीटों के साथ वाम दल चौथे स्थान पर रहे. इसी तरह 49 हजार 636 ग्राम पंचायतों में तृणमूल कांग्रेस को 38 हजार 118, बीजेपी को 1483, कांग्रेस को 1066 और माकपा को 1483 सीटें मिली.

तृणमूल कांग्रेस के कई नेता भी यह मानते हैं कि पश्चिम बंगाल में बीजेपी इसी गति से आगे बढ़ती रही तो विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी के लिए खतरा बन सकती है. हालांकि वे बीजेपी के इस उभार के लिए ममता बनर्जी को ही जिम्मेदार मानते हैं. अनौपचारिक बातचीत में वे यह खुलकर स्वीकार करते हैं कि प्रदेश में बीजेपी की सबसे बड़ी प्रमोटर उनकी नेता ही हैं. यदि यहां बीजेपी पैर पसार रही है तो इसके लिए खाद—पानी ममता बनर्जी ने ही मुहैया करवाया है.

लोकसभा चुनाव के बाद बीजेपी की अगली रणनीति तृणमूल कांग्रेस में तोड़फोड़ करने की है. कभी ममता बनर्जी के करीबी रहे मुकुल रॉय सहित कई नेता बीजेपी में आ चुके हैं. असल में तृणमूल कांग्रेस के कई नेता यह मानते हैं कि ममता बनर्जी पार्टी को एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की तरह चला रही हैं. ममता के भतीजे अभिषेक बनर्जी को पार्टी में अपने उत्तराधिकारी के रूप में आगे बढ़ाना कई वरिष्ठ नेताओं को अखर रहा है.

लोकसभा चुनाव में बीजेपी का अच्छा प्रदर्शन ममता बनर्जी पर दबाव और बढ़ाएगा. इस माहौल को बीजेपी मौके की तरह लेगी. केंद्र में सत्ता में लौटने के बाद बीजेपी की ताकत वैसे ही बढ़ गई है. अब तो तृणमूल कांग्रेस के नेता ही यह मानने लगे हैं कि यदि बीजेपी इसी रणनीति और गति से आगे बढ़ी तो पार्टी पश्चिम बंगाल में परचम फहराने के करीब पहुंच सकती है.

पीएम मोदी ने नाम से हटाया ‘चौकीदार’, कहा- बनी रहेगी ‘चौकीदार’ की भावना

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लोकसभा चुनाव में प्रचंड जीत के बाद पीएम ने जनता का आभार व्यक्त करने के साथ अपने नाम से ‘चौकीदार’ शब्द हटा लिया है. पीएम ने अपने ट्विटर अकाउंट से यह शब्द हटाते हुए कहा है कि ‘चौकीदार’ की भावना बनी रहेगी. साथ ही  पीएम मोदी ने अन्य बीजेपी सदस्यों से भी यह शब्द हटाने का आग्रह किया है. जिसके बाद अपने नाम के आगे से ‘चौकीदार’ शब्द लगातार हटाया जा रहा है. कांग्रेस के ‘चौकीदार चोर है’ के नारे के खिलाफ बीजेपी ने ‘मैं भी चौकीदार’ कैंपेन के तहत यह शुरुआत की थी.

पीएम नरेंद्र मोदी ने अपने ट्विटर हैंडल पर पोस्ट कर देश की जनता का आभार प्रकट किया और अपने अकाउंट से नाम के आगे से ‘चौकीदार’ शब्द हटा लिया. साथ ही उनकी तारिफ करते हुए लिखा कि भारत के लोग चौकीदार बन गए और राष्ट्र की महान सेवा की. चौकीदार भारत को जातिवाद, सांप्रदायिकता, भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचार की बुराईयों से बचाने के लिए एक शक्तिशाली प्रतीक बन गया है.

इसके बाद पीएम नरेंद्र मोदी ने एक और ट्वीट किया. जिसमें उन्होंने लिखा कि अब, चौकीदार आत्मा को अगले स्तर पर ले जाने का समय आ गया है. साथ ही उन्होंने लिखा कि इस भावना को हर पल जिंदा रखें और भारत की प्रगति के लिए काम करना जारी रखें. अपने ट्विटर अकाउंट से ‘चौकीदार’ शब्द हटाने के बाद उन्होंने कहा कि यह शब्द मेरा अभिन्न हिस्सा है. इसके अलावा पीएम मोदी ने अन्य सदस्यों से भी इस शब्द को अपने नाम से हटाने का आग्रह किया.

बता दें कि राफेल मामले में मोदी सरकार को घेरने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने ‘चौकीदार चोर है’ का नारा जोर-शोर से उठाया था. इसके बाद उन्होंने इसे चुनाव प्रचार के दौरान जनसभाओं में भी इसे खूब इस्तेमाल किया था. लेकिन बीजेपी ने इसके जवाब में इसी नारे को खुद पर इस्तेमाल कर कांग्रेस को जवाब दे दिया. सभी पीएम नरेंद्र मोदी व उनकी कैबिनेट सहित समस्त बीजेपी ने ‘ मैं भी चौकीदार’ कैंपेन के तहत अपने नाम के आगे ‘चौकीदार’ शब्द लगाया था. जो पीएम मोदी की छवि खराब नहीं होने देने में काफी कामयाब रहा. जनता ने कांग्रेस के ‘चौकीदार चोर है’ नारे पर ध्यान ही नहीं दिया.

राजस्थान में पांच महीने में कैसे खो गया कांग्रेस का वैभव?

राजस्थान में पिछले साल दिसंबर में हुए विधानसभा चुनाव में सत्ता से बाहर हुई बीजेपी ने सूबे में लोकसभा में ऐतिहासिक वापसी की है. पार्टी ने 2014 के लोकसभा चुनाव की तरह सभी 25 सीटों पर जीत दर्ज कर रिकॉर्ड कायम कर दिया है. 24 सीटों पर बीजेपी के उम्मीदवार विजयी रहे हैं जबकि नागौर सीट पर पार्टी के साथ गठबंधन में शामिल राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी यानी आरएलपी के संयोजक हनुमान बेनीवाल ने फतह हालिस की है.

आपको बता दें कि राजस्थान में पिछले कई वर्षों से यह ट्रेंड रहा है कि प्रदेश में जिस पार्टी की सरकार होती है, लोकसभा चुनाव में उसे ही ज्यादा सीटों पर जीत हासिल होती है. बीजेपी ने न सिर्फ इस बार यह मिथक तोड़ा है, बल्कि पांच महीने पहले सत्ता के सिंहासन पर पहुंची कांग्रेस को शून्य पर ला पटका. इस नजरिये से देखें तो बीजेपी की इस बार की जीत 2014 की जीत से भी बड़ी मानी जाएगी.

2014 का लोकसभा चुनाव तो बीजेपी ने छह महीने पहले हुए विधानसभा चुनाव में 200 में से 163 सीटों के बंपर जनादेश के बाद पैदा हुए आत्मविश्वास के साथ लड़ा था. लेकिन इस बार लोकसभा चुनाव के रण में उतरने से पहले बीजेपी को सत्ता से हाथ धोना पड़ा. हालांकि विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने कांग्रेस से अच्छा मुकाबला किया. जहां कांग्रेस ने 99 सीटों पर जीत दर्ज की, वहीं बीजेपी ने 73 सीटों पर फतह हासिल की.

विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीटों की संख्या में तो फासला था, लेकिन वोटिंग प्रतिशत में ज्यादा अंतर नहीं था. तभी से यह माना जा रहा था कि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी के बीच कांटे का मुकाबला होगा, लेकिन जो नतीजे सामने आए हैं उनके हिसाब से मुकाबला एकतरफा हो गया. कांग्रेस का कोई उम्मीदवार जीत दर्ज करना तो दूर बीजेपी प्रत्याशी को टक्कर तक नहीं दे पाया.

कांग्रेस को कितनी शर्मनाक हार झेलनी पड़ी है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पार्टी के सिर्फ दो उम्मीदवार एक लाख के कम अंतर से चुनाव हारे हैं. भीलवाड़ा में हार का अंतर छह लाख से ज्यादा रहा जबकि चित्तौड़गढ़ और राजमसमंद में बीजेपी उम्मीदवार पांच लाख से ज्यादा वोटों से जीते.

कांग्रेस प्रत्याशी अजमेर, गंगानगर, जयपुर, झालावाड़—बारां, पाली और उदयपुर में चार लाख से ज्यादा वोटों से चुनाव हारे जबकि अलवर, बांसवाड़ा, बाड़मेर, भरतपुर, चुरू और जयपुर ग्रामीण में हार का अंतर तीन लाख से ज्यादा रहा. बीकानेर, जालौर, झुंझुनूं, जोधपुर, सीकर और कोटा में कांग्रेस उम्मीदवार दो लाख से ज्यादा वोटों से हारे जबकि नागौर और टोंक—सवाई माधोपुर में यह अंतर एक लाख से अधिक का रहा. कांग्रेस के उम्मीदवार सिर्फ दौसा और करौली—धौलपुर में एक लाख से कम अंतर से चुनाव हारे.

लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की दुदर्शा का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत करीब पौने तीन लाख से चुनाव हार गए जबकि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने इस सीट की आठ विधानसभा सीटों पर अच्छी बढ़त कायम की थी. लेकिन लोकसभा चुनाव में पार्टी इसे कायम नहीं रख पायी. यहां तक कि अशोक गहलोत की सरदारपुरा विधानसभा सीट से बीजेपी प्रत्याशी गजेंद्र सिंह शेखावत को बढ़त मिली.

ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी है कि पांच महीने में ऐसा क्या हो गया कि राजस्थान में कांग्रेस लोगों के मन से उतर गई. विश्लेषकों के अनुसार प्रदेश में कांग्रेस की हार से ज्यादा बीजेपी की जीत हुई है. उसी बीजेपी की जो मोदी के चेहरे और राष्ट्रवाद के नाम पर चुनावी मैदान में उतरी. पांच महीने पहले राजस्थान के लोगों के मन में तत्कालीन वसुंधरा सरकार में गुस्सा था, जो विधानसभा चुनाव में निकल गया.

यह बीजेपी की रणनीति थी कि पार्टी ने विधानसभा चुनाव के समय ‘मोदी तुझसे बैर नहीं, वसुंधरा तेरी खैर नहीं’ का नारा गढ़ा. आपको बता दें कि विधानसभा चुनाव के समय यह नारा प्रदेश में गूंजा था. बताया तो यह गया कि इस नारे को देने वाली राजस्थान की जनता है, लेकिन सूत्रों के अनुसार यह नारा बीजेपी के भीतर से निकला. इसे पार्टी के उन नेताओं ने चुनावी मौसम में उछाला जिन्हें वसुंधरा राजे का विरोधी माना जाता है. खैर, सच्चाई जो भी हो, विधानसभा चुनाव में लोगों का गुस्सा राजे पर तो उतरा, लेकिन मोदी से उनका लगाव बरकरार रहा.

यही वजह है कि विधानसभा चुनाव के इतर लोकसभा चुनाव में सिर्फ मोदी का चेहरा और राष्ट्रवाद हावी रहा. कांग्रेस इसकी काट का कोई तरीका नहीं खोज पाई. उल्टा अशोक गहलोत सरकार ने पांच महीने के कार्यकाल में कई ऐसे मुद्दे बीजेपी को दे दिए, जिन्हें उसने हथियार बना लिया. सबसे बड़ा मुद्दा किसानों की कर्जमाफी का रहा. विधानसभा चुनाव के समय कांग्रेस ने किसानों का कर्ज माफ करने का वादा किया था.

कांग्रेस ने सत्ता में आने के बाद किसानों की कर्जमाफी का आदेश तो दस दिन के भीतर निकाल दिया, लेकिन अभी तक किसानों का कर्ज माफ नहीं हुआ है. बीजेपी के स्टार प्रचारकों ने किसानों की कर्जमाफी को बड़ा मुद्दा बनाया. बेरोजगारी भत्ता भी ऐसा ही मुद्दा रहा. आपको बता दें कि कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव के समय युवाओं को बेरोजगारी भत्ता देने का वादा किया था. सरकार बनने के बाद इसका आदेश तो जारी हो गया, लेकिन भत्ता मिलना अभी तक शुरू नहीं हुआ है.

कुल मिलाकर पांच महीने के कार्यकाल में अशोक गहलोत ने कई बड़ी घोषणाएं कीं, लेकिन इनमें से कोई भी ऐसी नहीं थी जो मोदी के चेहरे और राष्ट्रवाद की काट बन सके. कांग्रेस के भीतर विधानसभा चुनाव के समय से ही चल रही गुटबाजी की छाया लोकसभा चुनावों में भी दिखाई दी. बड़े नेताओं ने पार्टी के प्रदर्शन पर ध्यान देने की बजाय अपने-अपने चहेतों को टिकट दिलवाने पर फोकस किया. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का अपने बेटे वैभव के प्रचार में उलझना भी पार्टी के लिए नुकसानदायक रहा.

चुनाव में कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं का मैदान में नहीं उतरना भी पार्टी के खिलाफ गया. गौरतलब है कि डॉ. सीपी जोशी, सचिन पायलट, लालचंद कटारिया, डॉ. रघु शर्मा और महेश जोशी जैसे दिग्गज नेता लोकसभा चुनाव लड़ते और जीतते रहे हैं, लेकिन इस बार इन सभी ने विधानसभा चुनाव में किस्मत आजमाई. यदि ये नेता लोकसभा चुनाव के रण में उतरते तो कई सीटों पर समीकरण बदल सकते थे मगर इन्होंने राज्य सरकार में ओहदे पर बने रहना ज्यादा जरूरी समझा.

गुटबाजी बीजेपी के अंदर भी थी, लेकिन मोदी के चेहरे और राष्ट्रवाद ने इसे ढक दिया. बीजेपी के कई उम्मीदवारों के खिलाफ लोगों में नाराजगी थी, लेकिन उन्हें नजरअंदाज कर मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए बीजेपी को वोट दिया. यही वजह है कि पांच महीने पहले राजस्थान में सत्ता से बाहर हुई बीजेपी ने कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर दिया.

भारत फिर से जीता, हम सब मिलकर बनाएंगे और मजबूत: नरेंद्र मोदी

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लोकसभा चुनाव में प्रचंड जीत मिलने से बीजेपी सहित एनजीए में उत्साह का माहौल है. कार्यकर्ता पटाखे फोड़कर व मिठाईयां बांटकर खुशी का इजहार करने में लगे हैं. वरिष्ठ नेताओं सहित पार्टी प्रत्याशियों का भी एक-दूसरे को बधाई देने का दौर चल रहा है. इसी क्रम में पीएम नरेंद्र मोदी ने देश की जनता व बीजेपी सहित एनडीए के सहयोगी दलों को संबोधित करते हुए ट्वीट कर बधाई दी है. साथ ही कहा है कि हमने भारत जीत लिया है. सब मिलकर मजबूत राष्ट्र का निर्माण करेंगे. साथ ही पीएम मोदी ने आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी व ओडिशा में नवीन पटनायक को विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज कर नई सरकार बनाने पर बधाई दी है.

पीएम नरेंद्र मोदी ने देश की जनता का धन्यवाद जताते हुए अपने ट्विटर हैंडल पर पोस्ट की है. जिसमें पीएम ने कहा है कि थैंक यू इंडिया! हमारे गठबंधन में रखा गया विश्वास कायम है और हमें लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए और भी अधिक मेहनत करने की शक्ति देता है. साथ ही पीएम मोदी ने लिखा कि मैं उनके दृढ़ निश्चय, दृढ़ता और कड़ी मेहनत के लिए हर भाजपा कार्यकारिणी को सलाम करता हूं. वे हमारे विकास के एजेंडे पर विस्तार से घर-घर गए.

इसके अलावा पीएम नरेंद्र मोदी ने इस बड़ी जीत के बाद बीजेपी सहित एनडीए के सहयोगी दलों को भी संबोधित करते हुए कहा कि हमने भारत जीत लिया है और हम सब मिलकर एक मजबूत राष्ट्र बनाने की ओर काम करेंगे. पीएम ने इस जीत को विजयी भारत संबोधित करते हुए अपने ट्विटर पर पोस्ट किया कि साथ में हम बढ़ते हैं, साथ में हम समृद्ध होते हैं. हम सब मिलकर एक मजबूत और समावेशी भारत का निर्माण करेंगे. हमने भारत फिर से जीता!.

इसके अलावा पीएम ने आंध्रप्रदेश में लोकसभा व विधानसभा चुनावों में जगन मोहन रेड्डी की पार्टी वाईएसआर कांग्रेस को जीत के लिए बधाई दी है. जगन मोहन आंध्र प्रदेश के अगले मुख्यमंत्री बनने जा रहे है. उनकी पार्टी ने यहां विधानसभा चुनाव में बड़ी जीत दर्ज की है. पीएम ने उन्हें बधाई ज्ञापित करते हुए उनके मुख्यमंत्री कार्यकाल के लिए शुभकामनाएं दी है.

वहीं ओडशा में भी लोकसभा के साथ विधानसभा चुनाव के नतीजे आज जारी हुए हैं, जहां मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की पार्टी बीजू जनता दल ने बड़ी जीत हासिल की है. यहां विधानसभा चुनाव में बहुमत हासिल कर नवीन पटनायक से फिर मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं. वहीं पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी यहां दो सीटों पर जीती थी लेकिन अबकी बार 8 सीटों पर बढ़त बनाने में कामयाब रही. पीएम ने नवीन पटनायक को भी उनके फिर से मुख्यमंत्री बनने और सरकार के अच्छे कार्यकाल के लिए बधाई के साथ शुभकामनाएं दी है.

बता दें कि वाईएसआर के जगन मोहन रेड्डी कभी यूपीए के सहयोगी रहे थे लेकिन पिछली बार के चुनाव में अनबन के बाद उन्हें यूपीए का साथ छोड़ना पड़ा था. जिसके बाद अब उनके एनडीए के साथ जाने की अटकलें लगाई जा रही थी. चुनाव नतीजों से पहले सियासी गलियारों में यह खासी चर्चा का विषय रहा था.

Result2019: अकेले बीजेपी ने पार किया बहुमत का आंकड़ा, NDA को 350+ पर जीत

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नरेंद्र मोदी एक बार फिर से देश की सत्ता पर काबिज होंगे. एग्जिट पोल्स के दावों पर आज लोकसभा चुनाव की मतगणना ने भी मोहर लगा दी है. इस बार के चुनावी नतीजों में अकेले बीजेपी को बहुमत के आंकड़े से अधिक सीटें मिल रही है. वहीं एनडीए 350 से अधिक सीटों पर बढ़त बनाए हुए हैं. कई सीटों पर तो तस्वीर साफ हो गई है और प्रत्याशियों की हार-जीत का फैसला हो चुका है लेकिन कई अभी भी अंतिम परिणाम की जद में है. पीएम मोदी की यह जीत 2014 से भी बड़ी विजय के रूप में देखी जा रही है.

ओडिसा में फिर पटनायक सरकार, रुझानों में बीजद बहुमत के पार

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देश में लोकसभा चुनाव का रोमांच चरम पर है. आज नतीजों में बीजेपी क्लीयर स्वीप कर देश में फिर से सरकार बनाती हुई दिख रही है. वहीं एनडीए 300 से अधिक सीटों पर जीत दर्ज कर सकती है. इसी बीच ओडिशा में विधानसभा चुनाव भी हुए हैं. जिसकी भी आज मतगणना जारी है. मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की पार्टी बीजद ने रूझानों में सरकार बनाने का जादूई आंकड़ा पार कर लिया है. वहीं बीजेपी यहां दूसरे नंबर की पार्टी के रूप में उभर कर आ रही है.

विधानसभा चुनाव परिणामों के रूझान आंकड़े जीत में तब्दील होते नजर आ रहे हैं. जिससे ओडिशा में एक बार फिर से नवीन पटनायक सरकार बनाते दिख रहे हैं. इसके बाद नवीन पटनायक भी पवन चामलिंग और ज्योति बसु की तरह लंबे समय तक सूबे के मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड अपने नाम दर्ज कर लेंगे. प्रदेश की 147 विधानसभा सीटों में 2014 में बीजू जनता दल ने 117, कांग्रेस ने 16 और बीजेपी ने 10 सीटों पर जीत दर्ज की थी.

प्रदेश में हाल में हुए विधानसभा चुनावों की मतगणना जारी है. अंतिम नतीजों से पहले सामने आए रुझानों में नवीन की पार्टी बीजद प्रदेश में सरकार बनाने का जादूई आंकड़ा पार करती दिख रही है. वहीं बीजेपी पिछली बार के चुनाव से अबकी बार बढ़त बनाते हुए दूसरे नंबर की पार्टी के रूप में उभर रही है. स्थानीय राजनीति के जानकारों का मानना है कि राज्य की जनता ने केंद्र में नरेंद्र मोदी और राज्य में नवीन पटनायक के लिए वोट किया है. सूबे में ‘ब्रैंड नवीन’ से मशहूर 73 वर्षीय नवीन पटनायक फिर से ओडिशा की सत्ता संभालने वाले हैं.

बता दें कि ओडिशा में विधानसभा के साथ-साथ लोकसभा चुनाव में भी बीजद पर स्थानीय लोगों ने विश्वास जताया है. यहां की 147 विधानसभा व 21 लोकसभा सीटों पर जनता ने वोट डालें है. ओडिशा की जनता ने यहां विधायक और सांसद एक साथ चुने हैं. विधानसभा चुनाव में भारी बढ़त के साथ नवीन पटनायक की बीजद पार्टी सरकार बनाने जा रही है. वहीं बीजद के हाथ से इस बार लोकसभा चुनाव में कुछ सीटें खिसकती नजर आ रही है. पिछले चुनाव में बीजद ने 21 में से 20 सीटें हासिल की थी और बीजेपी को सिर्फ एक सीट से संतोष करना पड़ा था.

Result2019: रुझानों में बीजेपी को भारी बढ़त, NDA का आंकड़ा 300 पार

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लोकसभा चुनाव के नतीजों में एग्जिट पोल्स पर मोहर लगती देखी जा रही है. आज नतीजों से पहले सामने आ रहे रुझानों में बीजेपी को साफ बढ़त मिल रही है. साथ ही एनडीए को 300 से अधिक सीटों पर जीत की संभावना बनी हुई है. बीजेपी साल 2014 के नतीजों को फिर से दोहराती हुई दिख रही है और वो भी बढ़त के साथ. हांलाकि कांग्रेस इस बार के चुनाव में कुछ सीटों पर बढ़त बनाने में कामयाब होती दिख रही है.

Result2019: 542 सीटों पर काउटिंग शुरू, थोड़ी देर में आएंगे रूझान

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लोकसभा चुनाव के तहत देश भर में 542 संसदीय सीटों के लिए डाले गए मतों की गिनती शुरू हो चुकी है. इस बार के चुनावी मतगणना में पहली बार ईवीएम गणना के साथ मतदाता सत्यापित पेपर (वीवीपैट) का मिलान किया जाएगा. इसी कारण नतीजे इस बार थोड़ी देर से आने की संभावना है. मतदान समाप्ति के बाद आए एग्जिट पोल्स के आांकड़ों से जहां एक ओर बीजेपी उत्साहित है वहीं कांग्रेसी खेमे ने इन पोल्स को नकारा रहा है. मतगणना के लिए पूरे देश में चुनाव आयोग ने सुरक्षा के लिए चाक-चौबंद व्यवस्था की है.

लोकसभा चुनाव के परिणाम आज आएंगे वहीं उससे पहले आए एक्जिट पोल्स में बीजेपी की सरकार बनती दिखाई दे रही है. लेकिन देश की कई सीटें ऐसी है जहां मुकाबला कड़ा है. अगर यहां के नतीजे अपेक्षा से उलट हुए तो एक्जिट पोल जमीदोंज हो सकते है.

गोरखपुरः गोरखपुर बीजेपी का गढ़ रहा है. लेकिन योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद हुए उपचुनाव में यहां सपा ने जीत हासिल की थी. इस बार यहां मुकाबला काफी कड़ा है. बीजेपी की तरफ से भोजपुरी अभिनेता रविकिशन मैदान में है. उनका मुकाबला सपा के रामभुआल निषाद से है.

सहारनपुरः वैसे तो यह मुस्लिम बाहुल्य सीट है लेकिन यहां बसपा और कांग्रेस दोनों के उम्मीदवार मुस्लिम है इसलिए मुकाबला कड़ा हो गया है. बीजेपी ने यहां वर्तमान सांसद राघव लखनपाल शर्मा को चुनावी समर में उतारा था. उनका मुकाबला बसपा के हाजी फजर्लुरहमान और कांग्रेस के इमरान मसूद से है.

कैरानाः कैराना में इस बार मुकाबला करीबी रहने की संभावना है. सपा ने यहां से वर्तमान सांसद तब्बसुम हसन को मैदान में उतारा था. उनका मुकाबला गंगोह विधायक प्रदीप चौधरी से है.

गौतमबुद्धनगरः दिल्ली से सटे इस लोकसभा क्षेत्र में गठबंधन ने बहुत अच्छा चुनाव लड़ा है. यहां मुकाबला फंसा हुआ है. बीजेपी से यहां केंद्रीय मंत्री महेश शर्मा मैदान में है. उनका मुकाबला बसपा के सतवीर नागर से है.

मुजफ्फरगनरः जाटलैंड के नाम से मशूहर इस क्षेत्र में विजेता जाट ही होने वाला है. यहां मुकाबला बीजेपी के वर्तमान सांसद संजीव बालियान और रालोद सुप्रीमो चौधरी अजित सिंह के मध्य है.

बागपतः यहां से रालोद के टिकट पर चुनाव पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के पौत्र लड़ रहे हैं. उनका मुकाबला बीजेपी के वर्तमान सांसद और पूर्व मुंबई पुलिस कमिश्नर सत्यपाल सिंह से है.

मुरादाबादः मुस्लिम बाहुल इस सीट पर मुकाबला करीबी रहने की संभावना है. यहां वर्तमान सांसद सर्वेश कुमार सिंह का मुकाबला सपा से एसटी हसन और कांग्रेस के इमरान प्रतापगढ़ी से है.

गाजीपुरः गाजीपुर में मुकाबला केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा और बसपा के अफजाल अंसारी के बीच है. यहां लड़ाई अंतिम पल तक देखने को मिलेगी. कोई भी बाजी मार सकता है.

नैनीतालः उत्तराखंड के इस लोकसभा क्षेत्र में ऊंट किसी भी करवट बैठ सकता है. यहां मुकाबला पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत और बीजेपी के अजय भट्ट के मध्य है.

मंड़ीः हिमाचल प्रदेश की इस लोकसभा सीट पर जीत हार का अंतर काफी कम रहने का अनुमान है. कांग्रेस ने यहां से पं.सुखराम के पौत्र आश्रय शर्मा को मैदान में उतारा है. उनका मुकाबला बीजेपी के वर्तमान सांसद रामस्वरुप शर्मा से है.

पाटलिपुत्रः 2014 में भी इस क्षेत्र में मुकाबला कड़ा रहा था. यहां से लालु यादव की पुत्री मीसा भारती चुनावी मैदान में है. उनका मुकाबला वर्तमान सांसद रामकृपाल यादव से है.

उजियारपुरः बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष नित्यानंद राय कड़े मुकाबला में फंसे है. यहां उनका मुकाबला रालोसपा प्रमुख उपेंद्र कुशवाह से है.

खगडियाः बिहार में ‘सन आफ मल्लाह’ के नाम से मशहूर वीआईपी पार्टी के प्रमुख मुकेश साहनी यहां कड़े मुकाबले में फंसे है. उनका मुकाबला लोजपा के वर्तमान सांसद महबूब अली कैसर से है.

सीवानः यहां मुकाबला दो बाहुबलियों की पत्नियों के बीच है. राजद की तरफ से शहाबुद्दीन की पत्नी हीना साहब मैदान में है. उनका मुकाबला जेडीयू विधायक कविता सिंह से है.

राजनांदगांवः यहां मुख्य मुकाबला कांग्रेस के भोलाराम साहू और बीजेपी के संतोष पांडे के मध्य है. यहां से इस बार पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह के पुत्र अभिषेक सिंह का टिकट काट दिया गया था.

करौली-धौलपुरः यहां मुकाबला बीजेपी के वर्तमान सांसद मनोज राजौरिया और कांग्रेस के संजय जाटव के बीच है.

बाड़मेरः इस सीमावर्ती लोकसभा क्षेत्र में इस बार भी मुकाबला 2014 की तरह ही रोचक दिखाई दिया. चुनाव के बाद भी अनुमान लगाना असंभव-सा लग रहा है. कांग्रेस के मानवेंद्र सिंह का मुकाबला बीजेपी के कैलाश चौधरी से है.

टोंक-सवाईमाधोपुरः पीएम मोदी ने अपने चुनावी अभियान की शुरुआत इसी क्षेत्र से की थी. यहां मुकाबला वर्तमान सांसद बीजेपी नेता सुखबीर सिंह जौनपुरिया और कांग्रेस के नमोनारायण मीणा के बीच है.

हिसारः हिसार लोकसभा क्षेत्र में इस बार 2014 की तरह जीत हार का अन्तर काफी कम रहने का अनुमान है. यहां मुख्य मुकाबला जजपा के दुष्यंत चौटाला, बीजेपी के बृजेंद्र सिंह और कांग्रेस के भव्य विश्नोई के बीच है.

रोहतकः मोदी लहर में इस सीट पर कब्जा कांग्रेस का कायम था और कांग्रेस के दीपेंद्र हुड्डा ने यहां भारी अंतर से जीत हासिल की थी. इस बार यहां मुकाबला काफी करीबी रहने वाला है. दीपेंद्र के सामने इस बार बीजेपी के अरविंद शर्मा की चुनौती है.

सोनीपतः हरियाणा के इस लोकसभा क्षेत्र से इस बार हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा चुनाव लड़ रहे हैं. उनका मुकाबला बीजेपी के वर्तमान सांसद रमेश कौशिक से है. वहीं जजपा नेता दिग्विजय चौटाला इस मुकाबले को त्रिकोणीय बना रहे हैं.

गुरदासपुरः पंजाब के गुरदासपुर में मुकाबला काफी कड़ा देखने को मिल रहा है. यहां बीजेपी ने अभिनेता सनी देओल को प्रत्याशी बनाया है. कांग्रेस की तरफ से सुनील जाखड मैदान में हैं.

इन मुख्य सीटों के अलावा देश की कुल 542 संसदीय सीटों पर उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला आज हो जाएगा. एज्गिट पोल्स के बाद से ही नतीजों को लेकर खासी बैचेनी देखी जा रही थी. लेकिन आज इस बात पर मुहर लग जाएगी कि जनता ने किसे लोकसभा के लिए चुना है.

गृह मंत्रालय ने जारी किया अलर्ट, कहा- मतगणना के दिन बनी रहे कानून-व्यवस्था

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लोकसभा चुनाव के सातों चरणों के मतदान संपन्न होने के बाद अब हर कोई नतीजों के इंतजार में है. गली-मोहल्ले, नुक्कड़-चौराहे हर जगह बस यही चर्चा है कि दिल्ली में सत्ता पर आखिर कौन? हांलाकि अंतिम चरण के मतदान के बाद आया एग्जिट पोल का जिन्न अपने साथ ईवीएम का बवाल लेकर आ गया है. जिसके बाद से ही देश की सियासत में खासा हंगामा देखा जा रहा है. इसी को ध्यान में रखते हुए गृह मंत्रालयम ने सभी राज्यों को अलर्ट जारी किया है. जिसमें कल 23 मई को होने वाली मतगणना के दौरान हर हाल में कानून-व्यवस्था को बनाए रखने को कहा गया है.

जब से न्यूज चैनल्स व सर्वे एजेंसियों ने एग्जिट पोल जारी किए हैं तब से ही कई राजनीतिक पार्टियों की टेंशन बढ़ी हुई है. विपक्ष द्वारा ईवीएम की सुरक्षा को लेकर सवाल खड़े किए गए है. वहीं पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी भी ईवीएम सुरक्षा पर चिंता जता चुके हैं. इसी को ध्यान में रखते हुए गृह मंत्रालय ने सभी प्रदेशों के मुख्य सचिव और डीजीपी को अलर्ट जारी किया है. जिसमें कल 23 मई को मतगणना के दौरान हर हाल में कानून-व्यवस्था बनाए रखने को कहा है. इसके अलावा केंद्र शासित प्रदेशों को भी अलर्ट किया गया है.

बता दें कि आखिरी चरण के मतदान के बाद ईवीएम बदलने की कई खबरें आई थी. हांलाकि निर्वाचन आयोग द्वारा ऐसी किसी घटना से इनकार किया गया है. लेकिन विपक्ष लगातार ईवीएम सुरक्षा को लेकर आयोग पर सवाल खड़े कर रहा है. पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की टिप्पण की बाद तो विपक्ष की आवाज को और बल मिल गया. गृह मंत्रालयों को आशंका है कि देश के कई राज्यों में वोट काउटिंग के दिन दंगे भड़क सकते हैं. इसी को ध्यान में रखते हुए सभी राज्यों के मुख्य सचिव व डीजीपी को अलर्ट किया गया है.

गौरतलब है कि मतगणना से पहले ईवीएम को केंद्रीय सुरक्षा बलों के घेरे में रखा गया है. जहां कड़े सुरक्षा बंदोबस्त किए गए. हर हाल में कानून-व्यवस्था को बनाए रखने के लिए प्रदेशों को अलर्ट करने के साथ ही विशेष निर्देश जारी कर दिए गए है. ताकि समय रहते किसी भी घटना को रोका जा सके और निपटा जा सके. चूंकि मतदान के दौरान कई राज्यों से हिंसक घटनाओं की खबरें मिली थी. लेकिन मतगणना को लेकर खासी सतर्कता बरती जा रही है.

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