उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा-रालोद के गठबंधन के बाद राजनीतिक पंडितों ने यह अनुमान लगाया था कि इस बार यूपी में बीजेपी को बड़ा नुकसान होगा. कारण बताया गया कि यूपी में लाठी यानि यादव, हाथी यानि दलित, 786 यानि मुस्लिम और गन्ना यानि जाट का गठजोड़ बीजेपी को भारी नुकसान पहुंचाएगा. यूपी में करीब 30 लोकसभा क्षेत्र इन जातियों के बाहुल्य के हैं. यहां हार-जीत तय करने के लिए यही वोट निर्णायक हैं.
लेकिन आज जो नतीजे हमारे सामने हैं, वो तो कुछ और ही स्थिति बता रहे हैं. बीजेपी ने एक बार फिर यूपी में परचम पहराया है. अभी तक आए नतीजों के अनुसार बीजेपी को प्रदेश की 58 सीटों पर फतह हासिल हुई है. सपा-बसपा और रालोद के मध्य गठबंधन होने के बावजूद बीजेपी ने यूपी में कामयाबी कैसे हासिल की, आइए जानते हैं ….
यूपी में बीजेपी के पूरे चुनाव को जिन्होंने करीब से देखा होगा, उन्होंने पाया कि चुनाव प्रचार पूरी तरह से प्रधानमंत्री मोदी के इर्द-गिर्द ही घूमा है. पीएम मोदी हर चुनावी जनसभा में मतदाताओं से अपील करते कि बीजेपी उम्मीदवार को मिला हर वोट उन्हीं के खाते में जुड़ेगा. इससे हुआ ये कि लोगों ने स्थानीय प्रत्याशी से नाराजगी होने के बावजूद अपना वोट बीजेपी को दिया.
2014 के संसदीय चुनाव में बीजेपी को हर जाति का खुलकर वोट मिला था. लेकिन पांच साल के कार्यकाल के दौरान उन पर विपक्षी दलों के दलित विरोधी होने के कई आरोप लगे. आकलन यह भी था कि बीजेपी को इस बार 2014 की तरह दलित वोट नहीं मिलेंगे. लेकिन जो नतीजे आए, उसने इस आकलन को भी पूरी तरह से गलत साबित कर दिया. यूपी के दलित बाहुल्य सीटों पर बीजेपी ने भारी अंतर के साथ जीत हासिल की है, जो दलितों की राजनीति करने वाली बसपा के लिए बड़ा झटका है.
2014 के चुनाव में मोदी लहर के बावजूद यादवलैंड में सपा का कब्जा कायम था. उसने इस इलाके की पांच सीटों पर कब्जा किया था. लेकिन मोदी ने इस बार यादव बाहुल्य क्षेत्रों में भी जबरदस्त सेंधमारी की है. इसका नमूना यह है कि मुलायम परिवार के दो सदस्य कन्नौज से अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव और बदायूं से अखिलेश के चचेरे भाई धर्मेन्द्र यादव चुनाव हार चुके हैं. जबकि 2014 में इन सीटों पर मोदी लहर के बावजूद सपा ने जीत हासिल की थी.
इस चुनाव की सबसे बड़ी खूबी यह रही कि बीजेपी ने इस बार यूपी में गजब की सोशल इंजीनियरिंग की. उनको इस बात का इल्हाम शुरु से ही था कि महागठबंधन के सामजिक ताने-बाने को तोड़ना है तो खुद के सामाजिक समीकरण पैदा करने होंगे. बीजेपी ने दलितों के मध्य से गैर जाटव जातियों को अपने पक्ष में लामबंद किया. बता दें कि दलितों में जाटव वोट बसपा के परम्परागत वोटबैंक है.
मोदी के साथ जिस तरह ओबीसी वोट बैंक 2014 में था, ठीक उसी प्रकार इस चुनाव में पड़ा. बीजेपी का इस चुनाव में जीत का मंत्र ही गैर यादव ओबीसी-गैर जाटव दलित और सवर्ण वोटर रहा. इन सभी जातियों के लोगों ने बीजेपी को जमकर वोट दिया है.
बीजेपी को इस चुनाव में योगी सरकार के सुशासन का भी फायदा मिला. योगी आदित्यनाथ ने जिस प्रकार सत्ता में आते ही प्रदेश की कानून व्यवस्था में सुधार के लिए काम किया, लोगों ने उनके काम को पसंद कर बीजेपी के नाम पर मुहर लगाई.
बीजेपी को इस चुनाव में महागठबंधन बनने का भी फायदा मिला. महागठबंधन बनने के बाद बीजेपी जनता के बीच यह संदेश देने में कामयाब रही कि ये लोग अपने स्वार्थ के लिए एकजुट हो रहे हैं. जनता की समस्याओं को लेकर इनका कोई सरोकार नहीं है.
यूपी के नतीजों को देखने के बाद यह कहने में कोई हर्ज नहीं है कि मोदी के आगे सारे जातीय समीकरण फेल हैं. बीजेपी ने कई ऐसी सीटों पर जीत हासिल की है, जहां चुनाव से पूर्व वह मुकाबले में भी नहीं मानी जा रही थी. क्योंकि इन सीटों के जातीय समीकरण महागठबंधन के पक्ष में थे.