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सोनिया गांधी को कांग्रेस संसदीय दल का नेता चुना गया

संसद के सेंट्रल हॉल में शनिवार को कांग्रेस संसदीय दल की बैठक संपन्न हुई. इस बैठक में सोनिया गांधी को कांग्रेस संसदीय दल की नेता चुना गया है. संसदीय दल की बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी व पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह समेत पार्टी के सभी बड़े नेता मौजूद रहे.

सोनिया गांधी ने पुनः संसदीय दल का नेता चुने जाने पर कांग्रेस को वोट करने वाले वोटरों का धन्यवाद किया. कांग्रेस संसदीय दल का नेता चुने जाने के बाद लोकसभा में कांग्रेस नेता चुनने का अधिकार सोनिया गांधी के पास होगा. इसकी जानकारी कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने ट्वीट कर दी.

इस बैठक में सोनिया गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की तारीफ की. उन्होंने कहा कि राहुल ने पूरा चुनाव आक्रमता से लड़ा. सोनिया ने उन्हें दूरदर्शी नेता बताया. साथ ही इस बैठक में राहुल गांधी ने कहा कि हमारी संख्या भले ही 52 हो लेकिन हम जनता के अधिकारों के लिए इंच-इंच की लड़ाई लड़ेंगे. हम पूरे पांच साल लोकतंत्र को बचाने के लड़ाई लड़ते नजर आएंगे.

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उत्तर प्रदेश में कौन संभालेगा बीजेपी की कमान?

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गुरुवार को मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का शपथ ग्रहण का कार्यक्रम राष्ट्रपति भवन में संपन्न हुआ. इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित 58 मंत्रियों ने पद और गोपनीयता की शपथ ली. मंत्रिमंडल में यूपी में मिली बंपर जीत के बाद यहां से पीएम मोदी सहित आठ चेहरों को मौका मिला है. इनमें राजनाथ सिंह, स्मृति ईरानी, महेन्द्रनाथ पांडे, संजीव बालियान, संतोष गंगवार, वीके सिंह, साध्वी निरंजन ज्योति व मुख्तार अब्बास नकवी को शामिल किया गया है.

यूपी की चंदौली लोकसभा सीट से सांसद चुने गए बीजेपी अध्यक्ष महेंद्र नाथ पांडे को मोदी कैबिनेट में बतौर काबीना मंत्री शामिल किया गया है. मंत्रिमंडल में शामिल होने के बाद यह तो तय माना जा रहा है कि महेंद्र नाथ पांडे किसी भी समय यूपी बीजेपी अध्यक्ष के पद से इस्तीफा दे सकते है. क्योंकि बीजेपी की कार्यप्रणाली के अनुसार एक व्यक्ति एक समय के दौरान एक ही पद का निर्वहन कर सकता है. महेंद्र नाथ पांडे को भी यूपी प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी केशव प्रसाद मौर्य के उपमुख्यमंत्री बनने के बाद दी गई थी.

विधानसभा चुनाव के दौरान बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष पद पर केशव प्रसाद मौर्य कार्यरत थे. लेकिन उन्होंने उपमुख्यमंत्री पद संभालते ही अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था. महेंन्द्र नाथ पांडे के मोदी कैबिनेट में शामिल होने के बाद नए बीजेपी अध्यक्ष की सुगबुगाहाट शुरू हो गई है. जो नेता मोदी कैबिनेट में जगह नहीं बना पाये वो अब अध्यक्ष पद के लिए अगले कुछ दिनों में दौड़-भाग करते नजर आएंगे, यह तय है.

लेकिन यह बड़ा सवाल अब सभी के जहन में है कि अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी के लिए पार्टी अब किस नेता पर भरोसा करेगी. यहां हम उन संभावित नेताओं के बारे में बता रहे हैं, जो अध्यक्ष पद के लिए पार्टी की पसंद बन सकते हैं –

रामशंकर कठेरिया

इटावा संसदीय सीट से चुनाव जीतकर संसद पहुंचे रामशंकर कठेरिया को दलित चेहरे के तौर पर मोदी मंत्रिमंडल में शामिल होने की आस थी, लेकिन उनको कैबिनेट में जगह नहीं मिल पाई. अब कठेरिया की उम्मीद महेंद्र नाथ पांडे के मंत्री बनने के बाद खाली होने वाली प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर टिकी है. उनकी आस को मजबूती इसलिए है क्योंकि यूपी सरकार के में सवर्ण और ओबीसी चेहरों को मुख्यमंत्री या उपमुख्यमंत्री बनाया गया है, लेकिन दलित समुदाय को ऐसा कोई पद योगी सरकार में अभी तक नहीं मिला. कठेरिया इससे पूर्व भी कई अहम पदों को संभाल चुके है. वो राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष भी रह चुके है.

अशोक कटारिया

संगठन मंत्री सुनील बंसल और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के चहेते माने जाने वाले अशोक कटारिया को भी बीजेपी अध्यक्ष बनाया जा सकता है. कटारिया वर्तमान में युपी विधानपरिषद के सदस्य है. वो ओबीसी समुदाय से आते है. गुर्जर समाज में कटारिया की पकड़ काफी मजबुत मानी जाती है. कटारिया की इसी पकड़ का फायदा पार्टी को लोकसभा चुनाव में मिला है. हालांकि कटारिया की राह में सबसे बड़ा रोड़ा उनकी कम उम्र बन सकती है.

स्वतंत्र देव सिंह

यूपी में अध्यक्ष पद के लिए बीजेपी की पसंद योगी कैबिनेट में राज्य मंत्री के रुप में कार्यरत स्वतंत्र देव सिंह बन सकते है. स्वतंत्र देव बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और पीएम मोदी के करीबी माने जाते है. राज्य मंत्री की जिम्मेदारी संभालने से पूर्व वो पीएम मोदी की चुनावी रैलियों का प्रबंधन देखते थे.

सुरेश खन्ना

योगी सरकार में संसदीय कार्यमंत्री का जिम्मा संभाल रहे यूपी बीजेपी के दिग्गज चेहरे सुरेश खन्ना को भी पार्टी अध्यक्ष पद के लिए चुन सकती है. खन्ना शांहजापुर विधानसभा सीट से लगातार 9 बार से विधायक चुने जा रहे है. लगातार जीत का यह आंकड़ा उनके पार्टी के मध्य कद को बयां करता है.

महेश शर्मा

पार्टी ब्राहम्ण चेहरे के हटने पर अगर किसी ब्राहम्ण चेहरे पर दांव लगाएगी तो महेश शर्मा की दावेदारी अध्यक्ष पद के लिए सबसे मजबूत होगी. वो पिछली मोदी सरकार में अहम विभाग संभाल चुके है. महेश शर्मा को इस बार मोदी कैबिनेट में जगह नहीं मिल पायी है.

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17 जून से शुरू होगा संसद का सत्र, 5 जुलाई को बजट पेश करेगी सरकार

नई सरकार बनने के बाद संसद का पहला सत्र 17 जून से शुरू होगा, जो 26 जुलाई तक चलेगा. कार्यक्रम के मुताबिक सबसे पहले प्रोटेम स्पीकर का नाम तय होगा. मेनका गांधी का प्रोटेम स्पीकर बनना तय माना जा रहा है. प्रोटेम स्पीकर लोकसभा से नवनिर्वाचित सदस्यों को शपथ दिलाएंगे.

19 जून को स्पीकर का चयन होगा, वहीं 20 जून को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद संसद के संयुक्त सत्र को संबोधित करेंगे. आर्थिक सर्वे 4 जुलाई को पेश किया जाएगा और 5 जुलाई को बजट पेश किया जाएगा. तारीखों के लिहाज से देखा जाए तो इस बार पहला सत्र की काफी लंबा एक महीने 9 दिन का रखा गया है.

आपको बता दें कि लोकसभा चुनाव में बीजेपी की बंपर जीत के बाद गुरुवार को पीएम मोदी ने 57 मंत्रियों के साथ शपथ ली थी. शुक्रवार को इनके विभागों का बंटवारा कर दिया गया. अमित शाह को गृह मंत्रालय जबकि राजनाथ सिंह को रक्षा मंत्रालय दिया गया है. पिछली सरकार में राजनाथ गृह मंत्री थे. इसके अलावा पूर्व विदेश मंत्री एस जयशंकर को विदेश मंत्री बनाया गया है.

मजदूरों को तीन हजार रुपये महीने पेंशन देगी मोदी सरकार

असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले मजदूरों को प्रति माह तीन हजार रुपये पेंशन मिलेगी. कैबिनेट की पहली बैठक में यह फैसला लिया गया. इससे पहले दिन में श्रम मंत्री संतोष गंगवार ने मंत्रालय का चार्ज लेने के बाद इस प्रस्ताव पर अपने हस्ताक्षर कर दिए थे. यह योजना असंगठित क्षेत्र के कामगारों का भविष्य सुरक्षित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी.

फेरी लगाने वाले, रिक्शा, ठेला चलाने वाले, दिहाड़ी मजदूरी करने वाले, घरों में काम करने वाले 127 असंगठित क्षेत्र के कामगारों को 60 साल के बाद 3000 रुपये की मासिक पेंशन मिल सकती है. योजना के तहत 15 हजार रुपये तक की मासिक आमदनी वाले 18 से 40 वर्ष के असंगठित क्षेत्र के मजदूर इस योजना के पात्र हैं. योजना के तहत मजदूरों को अपनी आयु वर्ग के अनुसार हर महीने एक निश्चित राशि का प्रीमियम देना होगा. जितना प्रीमियम होगा, उतने रुपये की सब्सिडी सरकार भी देगी.

न्यूनतम मासिक प्रीमियम 55 रुपये और अधिकतम 200 रुपये प्रतिमाह है जो कि प्रथम प्रीमियम जमा कराने के बाद व्यक्ति के बैंक खाते से ऑटो डेबिट होंगे. इसमें सरकार भी अपनी तरफ से प्रीमियम की राशि को जमा करेगी. अप्रैल के अंत तक करीब 1 करोड़ श्रमिकों के पंजीकृत हो जाने का अनुमान है, जबकि दिसंबर तक यही संख्या 5 करोड़ तक पहुंच जाएगी. बता दें कि सरकार ने अंतरिम बजट 2019-20 में इस योजना के तहत अगले पांच साल के अंदर 10 करोड़ श्रमिकों व कामगारों को पंजीकृत करने का लक्ष्य तय किया है.

सभी किसानों को मिलेगा सम्मान योजना का लाभ, सरकार हर साल देगी 6 हजार

देश के सभी किसानों को प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना का लाभ मिलेगा. इसके तहत प्रति वर्ष छह हजार रुपये सालाना दिए जाएंगे. वहीं 60 साल से ऊपर वाले किसानों को पेंशन का लाभ भी मिलेगा. केंद्रीय कैबिनेट की पहली बैठक में यह फैसला लिया गया. इस फैसले से देश भर के 14.5 करोड़ किसानों को लाभ मिलेगा. पहले इस योजना में छोटे किसानों को लाया गया था, जिनके पास पांच हेक्टेयर भूमि थी. अब इस योजना से इस नियम को हटा लिया गया है.

75 हजार करोड़ के भारी भरकम बजट के साथ अंतरिम बजट में हुई घोषणा के मुताबिक, अब तक दो हेक्टेयर से कम जमीन पर खेती करने वाले किसानों को सालाना छह हजार रुपये की सम्मान निधि तीन किश्तों में मिलती थी. अब सभी किसानों को इसका लाभ मिलेगा. 12.5 करोड़ किसान इस योजना के तहत आते थे. दो करोड़ किसान इस योजना से छूट रहे थे. अब यह सीमा खत्म कर दी गई है. पहले 12.5 करोड़ किसानों को इसका लाभ मिलता था. अब 14.5 करोड़ किसान फायदा उठा सकेंगे. 87 हजार करोड़ रुपये का खर्च आएगा.

अभी तक 3.11 करोड़ छोटे किसानों को इस योजना के तहत दो हजार रुपये की पहली किश्त मिल चुकी है. इस योजना को अंतरिम बजट में पेश किया गया था. वहीं 2.75 करोड़ किसानों को दूसरी किश्त मिल चुकी है. किसान सम्मान योजना के तहत 60 साल से ऊपर के किसानों को प्रतिमाह पेंशन दी जाएगी. इससे भी उन किसानों को लाभ मिल मिलेगा, जो आगे चलकर स्वास्थ्य कारणों के चलते खेती नहीं करते हैं.

शहीदों के बच्चों की छात्रवृत्ति बढ़ी

मोदी कैबिनेट ने इस कार्यकाल की पहली बैठक में राष्ट्रीय रक्षा कोष के तहत ‘प्रधानमंत्री छात्रवृत्ति योजना’ में बड़े परिवर्तन को अनुमति दी है. इसके तहत शहीद पुलिस कर्मियों के बेटे को मिलने वाली राशि को 2000 रुपये से बढ़ा कर 2500 रुपये प्रति महीना कर दिया गया है. वहीं, बेटियों को मिलने वाली राशि को 2250 रुपये से बढ़ाकर 3000 रुपये प्रति महीना कर दिया गया है.

मोदी सरकार में राज्य मंत्री बने कैलाश चौधरी का विवादों से रहा है पुराना नाता

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मोदी मंत्रिमंडल में गजेन्द्र सिंह शेखावत और अर्जुन राम मेघवाल को तो जगह मिलनी तय थी, लेकिन कैलाश चौधरी के नाम ने सबको चौंका दिया. क्योंकि बाड़मेर से पहली बार चुने गए सांसद कैलाश चौधरी का विवादों से गहरा नाता रहा है. हिस्ट्रीशीटर रहने के साथ कैलाश चौधरी अपने बेतुके बयानों के लिए भी विवादास्पद रहे हैं. यह वही कैलाश चौधरी है जिन्होंने राहुल गांधी को गद्दार बताते हुए उन्हें शूट करने वाला बयान दिया था. दरअसल, कैलाश चौधरी ने यह बयान राहुल गांधी के कन्हैया प्रकरण में जेएनयू में जाने के बाद दिया था.

इस दौरान कैलाश चौधरी ने कहा कि जिसे कांग्रेस अपना राजकुमार मान रही है वह तो गद्दार है, क्योंकि देशद्रोहियों का समर्थन करना भी देशद्रोह है. इसलिए राहुल को या तो फांसी पर चढा दिया जाए या फिर शूट कर देना चाहिए. चौधरी के इस बयान पर काफी बवाल हुआ था. यूथ कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने उनके खिलाफ प्रदर्शन करते हुए जयपुर में सरकारी आवास पर कालिख भी पोत दी थी. इसके अलावा पैंथर के बच्चे के साथ उनकी सोशल मीडिया पर वायरल हुई फोटो को लेकर भी चौधरी की खूब निंदा हुई थी.

जब भीमराव अंबेडकर स्मारक पर जूते पहनकर चढ़े थे
लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान कैलाश चौधरी उस वक्त भी विवादों में आ गए थे, जब उन्होंने एक सभा में कहा कि यह चुनाव इस बार पाकिस्तान से संचालित हो रहा है. इससे पहले चौधरी को जब 6 अप्रैल को लोकसभा की टिकट मिली तो उसके अगले दिन बाड़मेर मे अंबेडकर की प्रतिमा पर फूलमाला पहनाने पहुंच गए. इस दौरान स्मारक पर चौधरी जूते पहनकर ही चढ गए.

सोशल मीडिया पर उनकी यह तस्वीर जमकर वायरल हुई थी. वोटिंग के दिन भी उन पर और उनके समर्थकों पर दलितों के वोट बटोरने के लिए उनके साथ मारपीट की झूठे फोटो वायरल करने के आरोप लगे. इतना ही नहीं पुलिस रिकॉर्ड में कैलाश चौधरी हिस्ट्रीशीटर भी है. उन पर मारपीट और धोखाधड़ी के कईं मामले दर्ज हुए थे. इन तमाम चीजों के बाद भी कैलाश चौधरी का केन्द्र में मंत्री बनना हर किसी के लिए सरप्राइज है.

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मोदी सरकार में शामिल क्यों नहीं हुई नीतीश कुमार की पार्टी?

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देश में जब इस बात को लेकर हर कोई जानना चाहता था कि मंत्रीमंडल में किसका नंबर लगेगा. उसी वक्त एक अप्रत्याशित खबर आई. खबर थी कि नीतीश कुमार की जनता दल यूनाईटेड मोदी सरकार में शामिल नहीं होगी. खबर आने के बाद राजनीतिक हल्कों में तहलका मच गया. नहीं शामिल होने के कारण तलाशे जाने लगे. लेकिन फिर कुछ समय बाद जानकारी आई कि नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री से चर्चा कर अपनी बात उनके समक्ष रख दी है. जिसमें उनकी तरफ से कहा गया कि जेडीयू सरकार में शामिल नहीं होगी.

शुरुआत में कयास लगाए जाने लगे कि नीतीश कुमार जो विभाग चाहते थे, वह विभाग जेडीयू को नहीं दिया जा रहा था. इसलिए नीतीश नाराज है. मगर बाद में खुद नीतीश कुमार ने स्थिति को साफ कर दिया. उनकी तरफ से कहा गया कि जेडीयू का बीजेपी सरकार को समर्थन जारी रहेगा. लेकिन यह समर्थन बाहरी तौर पर रहेगा. जेडीयू सरकार में शामिल नहीं होगी.

जेडीयू की हर हाल में मोदी सरकार में हिस्सेदारी हो, इसके लिए बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और पीएम नरेंद्र मोदी ने अंत समय तक जमकर प्रयास किए, लेकिन वे नीतीश कुमार को इसके लिए नहीं मना पाये. नीतीश अपनी पार्टी के किसी एक सांसद को मंत्री बनवाने के लिए तैयार नहीं हुए. जेडीयू के सरकार में शामिल नहीं होने के ये प्रमुख कारण रहे है –

पहला कारण 16 सांसद होने के बावजूद जेडीयू का मंत्रिमंडल में सिर्फ एक ही मंत्री बनाना रहा है. नीतीश कुमार ने पीएम मोदी और अमित शाह से चर्चा के दौरान कहा था कि जब अकाली दल के सिर्फ दो सांसद हैं और उन्हें एक मंत्री पद मिल रहा है और रामविलास पासवान की लोजपा के छह सांसद हैं और उन्हें एक कैबिनेट का पद मिल रहा है, तो आपकी तरफ से 16 सांसद वाली जेडीयू को किस आधार पर सिर्फ एक ही कैबिनेट मंत्री पद दिया जा रहा है.

जेडीयू के लिए नीतीश कुमार ने पीएम मोदी से दो मंत्रालयों की मांग की थी. उन्होंने इसके लिए सांसदो को भी चुन लिया था. नीतीश जेडीयू की तरफ से मुगेंर लोकसभा सीट से चुनाव जीतकर आए ललन सिंह और आरसीपी सिंह को मंत्री बनाना चाहते थे, लेकिन बीजेपी जेडीयू को एक मंत्री पद ही देना चाह रही थी. जिसके कारण बाद में नीतीश कुमार ने मंत्रीमंडल में शामिल नहीं होने का फैसला किया.

शुक्रवार को इसी मामले को लेकर नीतीश कुमार ने मीडिया के सामने आकर अपनी बात रखी. उन्होंने कहा कि जब मुझे बताया गया कि जेडीयू की तरफ से मंत्रिमंडल में एक सांसद को शामिल किया जा रहा है तो मैंने कहा कि हमें मंत्री पद की कोई आवश्यकता नहीं है. लेकिन इस मामले को लेकर पार्टी के लोगों से चर्चा जरूर करुंगा.

नीतीश ने आगे कहा कि मैंने पार्टी के सभी लोगों से पूर्व में इस विषय पर चर्चा की थी. सभी ने कहा कि यह जरूरी नहीं है कि हम सरकार में शामिल होकर ही अपनी भागीदारी दिखाएं, हम साथ हैं पर दुखी नहीं. राजनीति में जेडीयू के लिए सांकेतिक भागीदारी की कोई जरूरत नहीं है.

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राजस्थान से ‘तीन रत्न’ चुनने के पीछे मोदी की क्या रणनीति है?

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नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एक बार फिर देश में बीजेपी की सरकार बनी है. मोदी दोबारा देश के प्रधानमंत्री बन चुके हैं और उनके मंत्री शपथ ले चुके हैं. इस मंत्रिमंडल में राजस्थान के गजेंद्र सिंह शेखावत को कैबिनेट मंत्री की शपथ दिलाई गई तो अर्जुनराम मेघवाल और कैलाश चौधरी को राज्यमंत्री के रूप में शपथ दिलाई गई.

जोधपुर से सांसद गजेंद्र सिंह शेखावत को कैबिनेट मंत्री का दर्जा देकर नरेंद्र मोदी ने कई सियासी समीकरण साधने का प्रयास किया है. गजेंद्र सिंह शेखावत को कैबिनेट मंत्री बनाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी राष्ट्रीय नेतृत्व ने वसुंधरा राजे को भी संदेश देने का प्रयास किया है कि आने वाले दिनों में प्रदेश में बीजेपी का नया नेतृत्व तैयार होगा.

आपको बता दें कि कुछ महीनों पहले केंद्रीय नेतृत्व गजेंद्र सिंह शेखावत को प्रदेश अध्यक्ष बनाना चाहता था, लेकिन तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के ईगो के कारण केंद्रीय नेतृत्व को अपने कदम पीछे हटाने पड़े और मदन लाल सैनी को प्रदेश की कमान सौंपी गई. उसी समय से केंद्रीय नेतृत्व और वसुंधरा राजे के बीच तकरार शुरू हो चुकी थी जो अभी तक जारी है.

गजेंद्र सिंह शेखावत ने इस बार विपरीत परिस्थितियों में चुनाव लड़ा, जहां उनके सामने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पुत्र वैभव गहलोत को हराने की चुनौती तो थी ही उन्हें भितरघात का भी खतरा था, लेकिन केंद्रीय नेतृत्व ने भी जोधपुर लोकसभा सीट को प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने जोधपुर आकर चुनाव प्रचार किया और कार्यकर्ताओं को एकजुट होकर चुनाव की प्रचार में जुटने का आह्वान किया.

मोदी और शाह की रैली का असर भी नजर आया और बीजेपी का आम कार्यकर्ता एक बार फिर पूरे जोश के साथ गजेंद्र सिंह शेखावत के साथ खड़ा हुआ. यही कारण था कि कांटे की टक्कर माने जाने वाला यह मुकाबला एकतरफा साबित हुआ और गजेंद्र सिंह शेखावत ने करीब पौने 3 लाख मतों से जीत हासिल की.

एक ओर जहां पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के पुत्र दुष्यंत सिंह को इस बार भी मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली, वहीं मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के विरोधी खेमे में माने जाने वाले गजेंद्र सिंह शेखावत को कैबिनेट मंत्री की भूमिका में लाया गया है. इससे यह माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में प्रदेश से वसुंधरा राजे की विदाई तय है. केंद्रीय नेतृत्व ने जहां गजेंद्र सिंह को कैबिनेट मंत्री बनाया है तो वहीं राज्यवर्धन सिंह को मंत्रिमंडल में शामिल नहीं कर सभी को आश्चर्यचकित कर दिया.

अब ऐसा माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में राज्यवर्धन सिंह को प्रदेश की कमान सौंपी जा सकती है. निश्चित रूप से गजेंद्र सिंह शेखावत का प्रदेश की राजनीति में कद बढ़ा है. अब देखना होगा कि क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का गजेंद्र सिंह शेखावत और राज्यवर्धन सिंह राठौड़ के रूप में तैयार किया गया प्लान बी सफल होता हैं या नहीं.

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गृह मंत्री अमित शाह कैसे बीजेपी को ‘अध्यक्ष’ से भी ऊंचे मुकाम पर ले जा सकते हैं?

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अमित शाह ने कभी कहा था कि ‘बीजेपी के बिना मैं सार्वजनिक तौर पर कुछ भी नहीं हूं. अगर बीजेपी को मेरे जीवन से निकाल दिया जाए, तो सिर्फ़ ज़ीरो ही बचेगा. मैंने जो कुछ भी सीखा और देश को दिया है, सब बीजेपी का ही है.’ जाहिर है बीजेपी की सेवा उनका परम धर्म है और इसके लिए वे एड़ी-चोटी का जोर लगाने के साथ दिन-रात एक करते रहे हैं. लगातार दूसरी बार मोदी सरकार की केंद्र में वापसी में किसी भी लिहाज से इनकी भूमिका को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कमतर नहीं आंका जा सकता.

अब जब अमित शाह देश के नये गृह मंत्री बन चुके हैं, तो सवाल उठ रहे हैं कि अब उनकी भूमिका क्या होगी? जवाब है- जैसी भूमिका वह पहले नरेंद्र मोदी के लिए गुजरात में निभा चुके हैं, अब वही भूमिका वह केंद्र में प्रधानमंत्री मोदी के लिए निभाएंगे. गृह मंत्री बनने का अनुभव अमित शाह को पहले से रहा है. गौरतलब है कि जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तो उन्होंने अमित शाह को गृहमंत्री बनाया था.

यानी भूमिका पहले-सी होगी, बस फ़र्क होगा राज्य और केंद्र का. छोटे स्तर और बड़े स्तर का. अब शाह समूचे देश के स्तर पर उस भूमिका को निभाएंगे, जो वह कभी गुजरात में निभा चुके हैं. यह अलग बात है कि इस भूमिका में वे जबरदस्त विवादों में भी रहे और फर्जी मुठभेड़ के मामले में उन्हें जेल तक जाना पड़ा.

बहरहाल, अमित शाह के बारे में एक चीज़ कही जाती है कि वे अपने निर्धारित लक्ष्य से कुछ भी कम हासिल करने के लिए आसानी से तैयार नहीं होते और लक्ष्य वह कई बार जाहिर कर चुके हैं- बीजेपी और उसकी विचारधारा को सबसे ऊंचे पायदान पर ले जाना. पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष रहते उन्होंने इस दिशा में लगातार कड़ी मेहनत की.

इस मेहनत का परिणाम भी हासिल हुआ है कि आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के राजनीतिक संगठन बीजेपी की उपस्थिति उत्तर से लेकर दक्षिण और पूरब से लेकर पश्चिम तक कायम हुई है. ऐसे में अब बीजेपी के इस सिपाही का अपने नये रोल यानी केंद्र सरकार में गृह मंत्री के रूप में ‘लक्ष्य’ क्या होगा? और उस लक्ष्य से बीजेपी को कैसे और मजबूत किया जा सकेगा?

बताया जा रहा है कि कुछ महत्वपूर्ण ‘लक्ष्यों’ को साधने के लिए ही अमित शाह को मोदी सरकार में नंबर दो की हैसियत में शामिल किया गया है, जबकि पहले उनके वित्त मंत्री बनने के कयास लगाये जा रहे थे. गृह मंत्रालय के बारे में कहा जाता रहा है कि इसकी कमान मिलने का मतलब है सरकार में नंबर दो का रुतबा.

रक्षा मंत्रालय का नंबर इसके बाद ही आता है, जहां मोदी के पहले कार्यकाल में गृहमंत्री रहे राजनाथ सिंह को बिठाया गया है. यह फैसला कइयों के लिए चौंकाने वाला था, लेकिन अब इसी भूमिका में रहकर अमित शाह आगे भी लोगों को चौंकायेंगे और बीजेपी के लिए चौंकाने वाली उपलब्धियां अर्जित करने का प्रयास करेंगे.

पूरी संभावना है कि अपनी नई भूमिका में अमित शाह का मुख्य ध्यान कश्मीर में धारा 370, 35 ए, नक्सलवाद, आंतरिक सुरक्षा, समान नागरिक संहिता, एनआरसी, कुछ राज्यों की अस्थिरता आदि जैसे मुद्दों पर होगा. माना जा रहा है कि वैसे मुद्दों पर, जो बीजेपी के एजेंडे में होने के बावजूद मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में उचित प्रतनिधित्व नहीं पा सके, अब नई सरकार में उन पर गंभीर पहल होगी.

अमित शाह चुनाव प्रचार के दौरान स्वयं भी कहते रहे हैं कि बीजेपी सरकार दोबारा आई तो कश्मीर में धारा 370 को खत्म करेगी. यानी ये ऐसे मसले हैं, जिन पर कदम बढ़ाकर बीजेपी अपनी लोकप्रियता को और उफान पर ले जा सकती है. स्वाभाविक है कि बीजेपी की तैयारी अमित शाह के जरिये इस दिशा में बढ़ने की हिम्मत जुटाने की है. तभी उन्हें गृह मंत्री बनाया गया है.

अगर वाकई अमित शाह इन विवादास्पद मुद्दों पर आगे बढ़कर इन्हें अंजाम तक पहुंचाने में कामयाब हुए, तो बीजेपी के लिए 2024 का चुनाव भी आसान होगा. इन मुद्दों में कई देश के विकास के लिए बतौर समस्या लोगों की जेहन में है, तो कई से सियासी मंतव्य सधने की भी पूरी गुंजाइश है और दोनों ही किसी दल के लिए मुफीद है. शायद इसी से उसे सत्ता का स्वाभाविक दावेदार बनने का मौका मिले.

बीजेपी वैसे भी पहले से इसके लिए प्रयासरत है और अमित शाह कह चुके हैं कि पार्टी के लिए अभी गोल्डन पीरियड नहीं आया है. वह तब आयेगा जब पंचायत से पार्लियामेंट तक हर जगह बीजेपी होगी. नि:संदेह अमित शाह अब इसके लिए कोई कसर नहीं छोडेंगे, भले ही भूमिका नई हो.

हालांकि जम्मू-कश्मीर, पूर्वोत्तर में आतंकवाद से लेकर देश के अंदर नक्सलवाद तक नए गृह मंत्री अमित शाह के सामने कई चुनौतियां हैं, लेकिन चुनौतियों से भिड़ने वाले ‘चाणक्य’ भी तो वह हैं ही. कश्मीर में शांतिपूर्ण चुनाव कराने की वह पहल कर सकते हैं जहां पिछले साल नवंबर में विधानसभा भंग कर दी गई थी. तब से चुनाव आयोग वहां चुनाव कराने के लिए गृह मंत्रालय के संकेत का इंतज़ार कर रहा है.

इसके साथ धारा 370 को खत्म करना और अनुच्छेद 35 ए को निरस्त करने की चुनौती से शाह कैसे निपटेंगे, यह देखना भी दिलचस्प होगा. हांलाकि कश्मीर के लोग इसमें किसी छेड़छाड़ के ख़िलाफ़ हैं, विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं और सख्ती का अंजाम भी देखा जा चुका है. सरकार की तमाम सख्ती के बावजूद युवाओं में आतंकवादी संगठनों का असर बढ़ता गया है. पाकिस्तान से होने वाली घुसपैठ में भी कमी नहीं आई है.

पूर्वोतर में भी आतंकवाद व्याप्त है. एनआरसी का मसला गहराने के बाद इसे लेकर और गंभीरता जताई जा रही है. हाल में एनएससीएन-आईएम कैडर और सुरक्षा बलों के बीच कई टकराव हुए हैं. पिछले दिनों आतंकियों ने नेशनल पीपल्स पार्टी के एक विधायक की हत्या भी कर दी थी. एनआरसी के मसले पर विवाद की वजह से असम में तनाव बढ़ा है.

यहां माओवाद की चुनौती तो है ही, नक्सलियों द्वारा सुरक्षा बलों पर हाल में हमलों की संख्या बढ़ी है. जाहिर है गृह मंत्री अमित शाह माओवादी हिंसा को पूरी तरह से कुचलने की कोशिश करेंगे. इन्हीं कोशिशों से वह ‘नया भारत’ का आभास करायेंगे, जहां बीजेपी की उम्मीदें भी पहले से ज्यादा परवाज भर सकें.

उल्लेखनीय है कि अमित शाह के गृह मंत्री बनने के बाद दिल्ली प्रदेश बीजेपी प्रवक्ता तेजिंदर पाल सिंह बग्गा ने भी अपना 6 साल पुराना ट्वीट शेयर करते हुए लिखा है कि ‘सपना सच हुआ’. दरअसल, 30 जून, 2013 को किये गये अपने ट्वीट में बग्गा ने लिखा था कि भारत को नरेंद्र मोदी जैसे प्रधानमंत्री और अमित शाह जैसे गृह मंत्री की ज़रूरत है.

आज किस्मत से ये दोनों नेता इसी पद पर हैं और शायद यही वो परिस्थितियां भी हैं, जो बीजेपी के सपने को पूरा कर सकती हैं. वह सपना जो यक़ीनन मोदी का भी होगा और अमित शाह का भी. क्योंकि ये दोनों आज की तारीख में बीजेपी के ही पर्याय हैं….और, वैसे भी अब इसमें कोई शक नहीं रहा कि मोदी है तो मुमकिन है.

वैसे याद दिलाते चलें कि एक ट्वीट दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी मतदान से ठीक दो दिन पहले 10 मई को किया था. इसमें उन्होंने देशवासियों को आगाह करते हुए कहा था कि अगर मोदी फिर से सत्ता में आये, तो गृह मंत्री अमित शाह होंगे. जिस देश का गृह मंत्री अमित शाह हो, उस देश का क्या होगा, ये सोच के वोट डालना. यह अलग बात कि जनता ने उनकी अपील पर ध्यान नहीं दिया और बीजेपी को चुनाव में ऐतिहासिक विजय मिली.

केजरीवाल की वह बात आज सही साबित हुई है और नरेंद्र मोदी के दूसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के बाद अमित शाह देश के नये गृह मंत्री बन गए हैं. अब देश का क्या होगा, यह समय के गर्भ में है. लेकिन इतना तय है कि बीजेपी को अमित शाह की नई भूमिका से अपने लिए संभावनाओं के नये द्वार खुलने की भरपूर उम्मीद नज़र आ रही है.

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‘सरकार आती-जाती रहेंगी, पासवानजी यहां टिके रहेंगे’

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नरेंद्र मोदी ने दूसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ग्रहण कर ली है. उनके साथ ही 57 सांसद मंत्री पद व गोपनियता की शपथ लेकर मंत्रीमंडल में शामिल हुए हैं. हालांकि इस मंत्रीमंडल में करीब-करीब सभी सांसद बीजेपी के हैं लेकिन इस लिस्ट में लोक जनशक्ति पार्टी के नेता रामविलास पासवान भी मौजूद हैं. लोक जनशक्ति पार्टी एनडीए का घटक दल है लेकिन पासवान पर सोशल मीडिया के यूजर्स जमकर ट्रोल कर रहे हैं. रामविलास पासवान को उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्री का दायित्व ​सौंपा गया है.

पासवान के ट्रोल होने की वजह यह है कि कितनी ही सरकारें बनी लेकिन पासवान अपनी जगह बने रहे. यहां तक की विपक्षी सरकारों में भी उनका मंत्री पद कभी धुमिल नहीं हुआ. पासवान एनडीए से पहले यूपीए सरकार में भी मंत्री थे. वहीं वीपी सिंह सरकार (1989) में वे पहली बार केंद्रीय मंत्री बने थे. ऐसे में उनपर एक ट्वीट जमकर वायरल हो रहा है कि सरकारों का क्या है. वो तो आती जाती रहेंगी लेकिन पासवानजी हमेशा सदन में टिके रहेंगे. रोशन राय ने एक ट्वीट पोस्ट करते हुए साल 2089 में भी रामविलास पासवान को शपथ लेते हुए ​पोस्ट किया है.

@RoshanKrRai

@Kirtishbhat

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