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कैसा रहा गजेंद्र सिंह का छात्र राजनीति से कैबिनेट मंत्री तक का सफर

मोदी मंत्रिमंडल में राजस्थान से तीन सांसदो को जगह मिली है. इनमें जोधपुर से सांसद गजेंद्र सिंह शेखावत को मोदी ने अपने प्रथम कार्यकाल की भांति दूसरे कार्यकाल में भी अपनी कैबिनेट में शामिल किया है. उन्हें मोदी मंत्रिमंडल में बतौर काबीना मंत्री शामिल किया गया है. आइए जानते हैं गजेंद्र सिंह के जीवन परिचय के बारे में …

साल था 1967. सीकर निवासी शंकर सिंह शेखावत और मोहन कंवर के घर पुत्र का जन्म हुआ. नाम रखा गया गजेंद्र सिंह. गजेंद्र सिंह की शुरुआती शिक्षा जैसलमेर में हुई. स्कूली शिक्षा पूर्ण करने के बाद गजेंद्र सिंह कॉलेज शिक्षा के लिए जोधपुर आए. उच्च शिक्षा के लिए जोधपुर आना उनके जीवन का टर्निंग पांइट साबित हुआ. यहां आने के बाद गजेंद्र बीजेपी के छात्र संघटन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े. उन दिनों वो छात्रों की समस्याओं को लेकर लगातार जोधपुर में संघर्षरत रहे.

1992 के जोधपुर विश्वविद्यालय के छात्रसंघ चुनाव में गजेंद्र की लोकप्रियता को देखते हुए अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने उन्हें अध्यक्ष पद का उम्मीदवार बनाया. नतीजे सामने आए तो गजेंद्र सिंह शेखावत ने इतिहास रच दिया था. वो उस दौर का सबसे ज्यादा मतों से जीतने का रिकॉर्ड अपने नाम कर चुके थे. उनकी जीत इसलिए भी खास थी क्योंकि जब वे छात्रसंघ अध्यक्ष चुने गए थे, तब जोधपुर संसदीय सीट पर कांग्रेस का कब्जा था. अशोक गहलोत खुद जोधपुर के सांसद थे. गहलोत खुद छात्र राजनीति के दम पर मुख्य सियासत में आए थे. लेकिन तब किसी को यह इल्हाम नहीं था कि आने वाले समय में यह छात्र नेता जोधपुर की सियासत में एक नई इबारत लिखेगा.

गजेंद्र सिंह की जीत बड़ी थी तो जश्न भी बड़ा हुआ. उनके शपथ ग्रहण में प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोसिंह शेखावत पहुंचे थे. उस दौर में छात्रसंघ के कार्यालय उद्घाटन में मुख्यमंत्री का पहुंचना बहुत बड़ी बात थी. गजेंद्र ने अपने छात्रसंघ कार्यकाल में छात्रों के कल्याण के अनेक कार्य किए जिनमें अखिल भारतीय छात्र नेता सम्‍मेलन आयोजित किया जाना, खेलकूद के कार्यक्रम आयोजन किया जाना शामिल रहा. साल 1993 में गजेंद्र का विवाह नौनंद कंवर से हुआ.

इसके बाद वो 2001 में चोपासनी शिक्षा समिति की शिक्षा परिषद के सदस्‍य के रुप में सर्वाधिक मतों से निर्वाचित हुए. स्‍वदेशी जागरण मंच के तत्‍वाधान में 2000 से 2006 तक जोधपुर में स्‍वदेशी मेले का आयोजन किया गया. इन कार्यक्रमों की जिम्मेदारी गजेंद्र सिंह ने भी संभाली. इन कार्यक्रमों में लगभग 10 लाख लोग आए जिसके परिणामस्‍वरूप स्‍वदेशी उद्योग की चीजों की भारी बिक्री हुई. स्‍वदेशी मेले को काफी पसंद किया गया. इन कार्यक्रमों में गजेंद्र सिंह की पहचान जोधपुर के बाहर भी बनाई.

2012 में उन्हें बीजेपी प्रदेश कार्यकारिणी का सदस्य बनाया गया. 2014 में बीजेपी जोधपुर लोकसभा क्षेत्र से मजबूत उम्मीदवार की तलाश में थी जो चंद्रेश कुमारी को मात दे सके. बीजेपी की तलाश गजेंद्र सिंह पर आकर रुकी. गजेंद्र मोदी लहर की पतवार पर सवार होकर संसद पहुंचे. उन्होंने कांग्रेस की चंद्रेश कुमारी कटोच को भारी अंतर से हराया.

उन्हें शुरुआत में लोकसभा की प्रमुख कमेटियों का सदस्य बनाया गया. लेकिन 2017 का साल गजेंद्र के लिए बड़ी खुशी लेकर आया. उन्हें नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल में जगह मिली. गजेंद्र सिंह को कृषि और किसान कल्याण विभाग का राज्य मंत्री बनाया गया. इसके बाद वो अपने काम के दम पर पीएम मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के चहेते हो गए.

2018 में राजस्थान बीजेपी के अध्यक्ष अशोक परनामी के इस्तीफा देने के बाद अमित शाह ने गजेंद्र सिंह शेखावत को पार्टी का अध्यक्ष पद बनाने का मन बनाया. लेकिन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने उनके नाम का विरोध किया. अमित शाह जानते थे कि वो वसुंधरा राजे के खिलाफ जाकर गजेंद्र को अध्यक्ष तो बना देंगे लेकिन इससे पार्टी के बीच आंतरिक कलह हो सकती है. इसलिए फिर बाद में राज्यसभा सांसद मदनलाल सैनी को प्रदेश अध्यक्ष के लिए चुना गया.

2019 के लोकसभा चुनाव में गजेंद्र सिंह शेखावत ‘जाइंट किलर’ बनकर उभरे. उन्होंने अशोक गहलोत के पुत्र वैभव गहलोत को भारी अंतर से हराया. यहां मात गजेंद्र ने वैभव गहलोत की नहीं अपितु अशोक गहलोत की है क्योंकि जोधपुर में वैभव सिर्फ शारारिक रुप से चुनाव लड़ रहे थे. यहां चुनाव की पूरी बागड़ोर गहलोत ने संभाल रखी थी. मोदी मंत्रिमंडल में लगातार दूसरी बार जगह बनाना दिल्ली में उनके राजनीतिक कद को दर्शाता है.

राजस्थान: गजेंद्र, अर्जुन व कैलाश को मोदी सरकार में मिले ये मंत्रालय

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गुरूवार को प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी के साथ-साथ मंत्रियों की शपथ ग्रहण के बाद से ही हर कोई मंत्रालय आंवटन पर टकटकी लगाए बैठा था. शुक्रवार को तस्वीर साफ हुई और मोदी मंत्री मंडल के सदस्यों को अलग-अलग मंत्रालयों का जिम्मा सौंप दिया गया. बीजेपी को लगातार दूसरी बार 25 सीटें देने वाले राजस्थान को भी इस मंत्रीमंडल में तरजीह दी गई है. पिछली बार भी मोदी सरकार में राज्य से तीन मंत्री बनाए गए थे. इस बार भी प्रदेश से तीन ही मंत्री बनाए गए हैं. जिनमें गजेंद्र सिंह शेखावत, अर्जुन राम मेघवाल और कैलाश चौधरी को आज विभाग सौंपे गए हैं.

पीएम नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में उनके मंत्री मंडल में जगह पाने वाले तीनों मंत्रियों को शुक्रवार को विभाग दे दिए गए. जिसमें जोधपुर सांसद गजेंद्र सिंह शेखावत को जल शक्ति मंत्रालय का कैबिनेट मंत्री बनाया है. बीकानेर सांसद अर्जुन राम मेघवाल को संसदीय कार्य मंत्रालय में राज्य मंत्री के साथ भारी उद्योग और सार्वजनिक उद्यम मंत्रालय में राज्य मंत्री का जिम्मा दिया गया है. वहीं बाड़मेर से पहली बार संसद पहुंचने वाले कैलाश चौधरी को कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय में राज्य मंत्री का पद दिया गया है.

गजेंद्र सिंह शेखावत ने प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पुत्र वैभव गहलोत को उनके ही गृहक्षेत्र यानी जोधपुर लोकसभा सीट पर करारी मात दी है. गजेंद्र शेखावत मूल रूप से शेखावाटी के सीकर जिले से हैं. स्नातकोत्तर शिक्षा प्राप्त करीब गजेंद्र सिंह शेखावत ने जोधपुर सीट से लगातार दूसरी जीत हासिल की है. वे पूर्व में भी मोदी सरकार में कृषि राज्य मंत्री के पद पर रह चुके हैं. शेखावत को मोदी और शाह की गुडबुक में शामिल होने के अलावा प्रदेश में संघ की पहली पसंद भी माना जाता है. इसके साथ-साथ वे बीजेपी संगठन में कई पदों पर काम कर चुके हैं.

वहीं बीकानेर से जीत की हैट्रिक लगाने वाले सांसद अर्जुनराम मेघवाल राज्य में पार्टी का बड़ा दलित चेहरा हैं. पिछली मोदी सरकार में मेघवाल कैबिनेट में जल संसाधन, नदी विकास और संसदीय मामलों के राज्यमंत्री रह चुके हैं. रिटायर्ड आईएएस 66 वर्षीय अर्जुन मेघवाल मूलतया बीकानेर के किसमीदेसर गांव के निवासी हैं. लंबे प्रशासनिक अनुभव वाले अर्जुन मेघवाल की लोकसभा में काफी अच्छी परफोर्मेंस रही है. इस बार वे अपने ही मौसरे भाई कांग्रेस प्रत्याशी सेवानिवृत आईपीएस मदन गोपाल मेघवाल को शिकस्त देकर संसद पहुंचे हैं.

तो वहीं बीजेपी द्वारा मौजुदा सांसद सोनाराम का टिकट काटकर बाड़मेर सीट पर पूर्व विधायक कैलाश चौधरी को मौका देने के फैसले ने हर किसी को हैरत में डाल दिया. कैलाश रातों रात सुर्खियों में आ गए. उन्होंने यहां बीजेपी से बगावत कर कांग्रेस में शामिल पूर्व दिग्गज नेता जसवंत सिंह जसोल के बेटे मानवेंद्र सिंह को करीब सवा तीन लाख वोटों से शिकस्त देक शानदार जीत दर्ज की. यह मुकालबा बेहद कड़ा माना जा रहा था और सबकी निगाहें बाड़मेर सीट पर थी. 46 वर्षीय कैलाश चौधरी ने एमए, बीपीएड तक शिक्षा प्राप्त की हैं.

बायतू तहसील निवासी कैलाश चौधरी ने साल 2013 में बायूत विधानसभा सीट से पहली बार विधायक चुने गए थे. उन्होंने यहां दिग्गज कांग्रेसी कर्नल सोनाराम को पटकनी दी थी. हांलाकि इसके बाद सोनाराम ने कांग्रेस से बगावत कर बीजेपी का दामन थाम लिया और पिछली लोकसभा चुनाव में इसी बाड़मेर संसदीय सीट से जीतकर सांसद बने थे. लेकिन इस बार पार्टी ने कर्नल सोनाराम को दरकिनार कर कैलाश चौधरी को मैदान में उतारा था.

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महाराष्ट्र में BJP से पार पाना कांग्रेस के लिए आसान नहीं

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लोकसभा चुनाव में मिली भारी जीत के बाद बीजेपी के हौंसले सातवें आसमान पर पहुंचे गए हैं. अब उनका अगला फोकस इसी साल के अंत में होने वाले हरियाणा, झारखंड और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों पर हैं. संभावना जताई जा रही है कि चुनाव आयोग इन राज्यों के साथ जम्मु-कश्मीर में भी विधानसभा के चुनाव करवा सकता है.

लोकसभा चुनाव में इन सभी राज्यों में बीजेपी ने विपक्ष का सूपड़ा साफ कर दिया था. लेकिन आने वाले विधानसभा चुनाव बीजेपी के साथ अन्य दलों की महाराष्ट्र को लेकर क्या संभावना है. आइए इस पर विस्तृत रूप से चर्चा करें…

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव लोकसभा चुनाव से बिल्कुल अलग होंगे. जिस आसानी से लोकसभा चुनाव के लिए बीजेपी-शिवसेना का गठबंधन हुआ, विधानसभा चुनाव में हालात इन दोनों दलों के मध्य इतने आसान नहीं रहने वाले हैं.

विधानसभा चुनाव में शिवसेना पिछली बार की तरह ज्यादा सीटों पर लड़ने की मांग करेगी. वो अपनी इस मांग के लिए बाला साहेब ठाकरे के दौर की दुहाई देगी. क्योंकि महाराष्ट्र में पहले बीजेपी-शिवसेना इसी फार्मुले के तहत चुनाव लड़ती थी. इसके आधार पर लोकसभा की ज्यादा सीटों पर बीजेपी और विधानसभा की अधिक सीटों पर चुनाव शिवसेना लड़ती रही है.

लेकिन 2014 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने शिवसेना के इस फार्मुले को नकार दिया था. जिसके बाद दोनों दल अलग-अलग चुनावी मैदान में थे. हालांकि उस समय कांग्रेस-एनसीपी ने भी गठबंधन में चुनाव नहीं लड़ा था. अकेले चुनाव लड़ने के बावजूद बीजेपी ने महाराष्ट्र में अच्छा प्रदर्शन किया. पार्टी ने 122 सीटों पर जीत हासिल की.

2014 की तरह सीट बंटवारे पर ज्यादा तकरार होने पर दोनों दल एक बार फिर चुनावी मैदान में आमने-सामने हो सकते हैं. इसका सीधा फायदा कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन को मिल सकता है. हालांकि कांग्रेस–एनसीपी गठबंधन विधानसभा चुनाव में लडेगा, यह अभी तय नहीं है.

कांग्रेस के हालात अभी प्रदेश में बहुत दयनीय है. उसे हाल में हुए लोकसभा चुनाव में सिर्फ एक सीट पर जीत हासिल हुई है. प्रदेश में संगठन पूरी तरह से मृत हो चुका है. इसे इतने से समय में फिर से ​जीवित करना लगभग असंभव है.

एनसीपी के हालत भी कांग्रेस की तरह ही दयनीय है. उसे हालिया लोकसभा चुनाव सिर्फ 4 सीटों पर जीत नसीब हुई है जो एनसीपी के कद को देखते हुए अच्छा प्रदर्शन नहीं है.

कांग्रेस-एनसीपी की विधानसभा चुनाव को लेकर परेशानी औवेसी की पार्टी एआईएमआईएम ने बढ़ा रखी है. एआईएमआईएम पिछले पांच साल से लगातार महाराष्ट्र में हर चुनाव में भाग ले रही है. इसका सीधा नुकसान कांग्रेस और एनसीपी को होता आया है. वजह है-औवेसी की पार्टी ने मुस्लिम क्षेत्रों में कांग्रेस और एनसीपी के वोटों में जमकर सेंधमारी की है जिसका नुकसान दोनों दलों को हुआ है.

एआईएमआईएम के चुनाव लड़ने का नुकसान कांग्रेस और एनसीपी को मुस्लिम समुदाय के अलावा अन्य वर्ग में भी होता है. कारण है कि औवेसी की छवि कट्टर प्रवृति की है जिसके कारण हिंदू वोट इन इलाकों में सभी जातीय भावनाएं छोड़कर जबरदस्त रुप से बीजेपी की तरफ लामबंद होता है. हालांकि औवेसी की पार्टी महाराष्ट्र में पैर पसार चुकी है. अभी हाल में हुए लोकसभा चुनाव में उसने एक सीट पर जीत हासिल की है.

वहीं शिवसेना छोड़ अपने नए दल एमएनएस का गठन करने वाले राज ठाकरे के हालात तो विपक्षी दलों से भी बुरे हैं. विधानसभा में उनका एक भी विधायक नहीं है. पार्टी की पकड़ शहरी इलाकों में बहुत कमजोर हो गई है. ग्रामीण क्षेत्रों में तो एमएनएस का कभी जनाधार तक नहीं रहा है. मौजूदा हालातों को देखते हुए महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव का अनुमान लगाया जाए तो यहां बीजेपी बहुत मजबूत स्थिति में दिखाई दे रही है. कांग्रेस के हालात बिल्कुल भी बीजेपी को मुकाबला देने वाले नजर नहीं आ रहे हैं.

मोदी सरकार में मंत्रियों के विभागों का बंटवारा, जानें किसको क्या मिला?

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प्रचंड जीत हासिल कर सत्ता में लौटी मोदी सरकार ने गुरूवार को पद एवं गोपनियता की शपथ ली. इस दौरान 25 सांसदों को कैबिनेट व 24 को राज्य मंत्री के प्रभार देने के अलावा 9 को स्वतंत्र प्रभार दिया गया था. शपथ ग्रहण के बाद हर किसी को बेसब्री से इंतजार था कि मोदी सरकार 2 में किसको कौनसा विभाग दिया जाएगा. शुक्रवार को हुई बैठक में मंत्रीमंडल में चुने गए सभी मंत्रियों को विभाग आंवटित कर दिए गए हैं. जो निम्न प्रकार है –

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी – कार्मिक, जन शिकायत, पेंशन, परमाणु ऊर्जा, अंतरिक्ष, सभी नीतिगत मुद्दे, साथ ही ऐसे विभाग जो किसी अन्य मंत्री को आवंटित नहीं हैं.

कैबिनेट मंत्री

  • राज नाथ सिंह – रक्षा मंत्री
  • अमित शाह – गृह मामलों के मंत्री
  • नितिन जयराम गडकरी – सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री तथा सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्री
  • डी.वी. सदानंद गौड़ा रसायन और उर्वरक मंत्री.
  • निर्मला सीतारमण – वित्त मंत्री; तथा कॉर्पोरेट मामलों की मंत्री.
  • रामविलास पासवान – उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्री.
  • नरेंद्र सिंह तोमर – कृषि और किसान कल्याण मंत्री, ग्रामीण विकास मंत्री तथा पंचायती राज मंत्री
  • रविशंकर प्रसाद – कानून और न्याय मंत्री, संचार मंत्री तथा इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री.
  • हरसिमरत कौर बादल – खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री.
  • थावर चंद गहलोत – सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री.
  • डॉ. सुब्रह्मण्यम जयशंकर – विदेश मंत्री.
  • रमेश पोखरियाल निशंक – मानव संसाधन विकास मंत्री
  • अर्जुन मुंडा – जनजातीय मामलों के मंत्री.
  • स्मृति जुबिन ईरानी – महिला और बाल विकास मंत्री और कपड़ा मंत्री.
  • डॉ. हर्षवर्धन – स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री, विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री तथा पृथ्वी विज्ञान मंत्री.
  • प्रकाश जावड़ेकर – पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री तथा सूचना और प्रसारण मंत्री.
  • पीयूष गोयल – रेल मंत्री तथा वाणिज्य और उद्योग मंत्री.
  • धर्मेंद्र प्रधान – पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री तथा इस्पात मंत्री.
  • मुख्तार अब्बास नकवी – अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री.
  • प्रहलाद जोशी – संसदीय मामलों के मंत्री, कोयला मंत्री तथा खनन मंत्री.
  • महेंद्र नाथ पांडे – कौशल विकास और उद्यमिता मंत्री.
  • अरविंद गणपत सावंत – भारी उद्योग और सार्वजनिक उद्यम मंत्री.
  • गिरिराज सिंह – पशुपालन, डेयरी और मत्स्य पालन मंत्री.
  • गजेंद्र सिंह शेखावत – जल शक्ति मंत्री.

राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार)

  • संतोष कुमार गंगवार – श्रम और रोजगार मंत्रालय के राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार)
  • राव इंद्रजीत सिंह – सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) तथा योजना मंत्रालय के राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार)
  • श्रीपद नाइक – राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) आयुर्वेद, योग और प्राकृतिक चिकित्सा मंत्रालय, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी (आयुष) तथा रक्षा मंत्रालय में राज्य मंत्री. उत्तर पूर्वी क्षेत्र के विकास मंत्रालय के राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार)
  • डॉ. जितेंद्र सिंह – प्रधान मंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री, कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय में राज्य मंत्री, परमाणु ऊर्जा विभाग में राज्य मंत्री, तथा अंतरिक्ष विभाग में राज्य मंत्री.युवा मामलों और खेल मंत्रालय के राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार)
  • किरेन रिजिजू – अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय में राज्य मंत्री.
  • प्रहलाद सिंह पटेल – राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) संस्कृति मंत्रालय तथा पर्यटन मंत्रालय के राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार).
  • राज कुमार सिंह – ऊर्जा मंत्रालय के राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार); तथा कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय में राज्य मंत्री.
  • हरदीप सिंह पुरी – आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), नागरिक उड्डयन मंत्रालय के राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) तथा वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय में राज्य मंत्री.
  • मनसुख एल. मंडाविया – राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) जहाजरानी मंत्रालय तथा रसायन और उर्वरक मंत्रालय में राज्य मंत्री.

राज्य मंत्री

  • फग्गनसिंह कुलस्ते – इस्पात राज्य मंत्री
  • अश्विनी कुमार चौबे – स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय में राज्य मंत्री
  • अर्जुन राम मेघवाल – संसदीय कार्य मंत्रालय में राज्य मंत्री तथा भारी उद्योग और सार्वजनिक उद्यम मंत्रालय में राज्य मंत्री.
  • जनरल (सेवानिवृत्त) वी. के. सिंह – सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय में राज्य मंत्री.
  • कृष्णपाल – सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय में राज्य मंत्री.
  • दानवे रावसाहेब दादराव – उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय में राज्य मंत्री.
  • जी. किशन रेड्डी – गृह मंत्रालय में राज्य मंत्री.
  • पुरुषोत्तम रुपाला – कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय में राज्य मंत्री.
  • रामदास अठावले – सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय में राज्य मंत्री.
  • साध्वी निरंजन ज्योति – ग्रामीण विकास मंत्रालय में राज्य मंत्री.
  • बाबुल सुप्रियो – पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में राज्य मंत्री.
  • संजीव कुमार बाल्यान – पशुपालन, डेयरी और मत्स्य पालन मंत्रालय में राज्य मंत्री.
  • धोत्रे संजय शामराव – मानव संसाधन विकास मंत्रालय में राज्य मंत्री, संचार मंत्रालय में राज्य मंत्री तथा इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय में राज्य मंत्री.
  • अनुराग सिंह ठाकुर – वित्त मंत्रालय में राज्य मंत्री तथा कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय में राज्य मंत्री.
  • अंगदी सुरेश चन्नबसप्पा – रेल मंत्रालय में राज्य मंत्री.
  • नित्यानंद राय – गृह मंत्रालय में राज्य मंत्री. जल शक्ति मंत्रालय में राज्य मंत्री
  • रतन लाल कटारिया – सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय में राज्य मंत्री.
  • वी. मुरलीधरन – विदेश मंत्रालय में राज्य मंत्री और संसदीय कार्य मंत्रालय में राज्य मंत्री.
  • रेणुका सिंह सरुता – जनजातीय मामलों के मंत्रालय में राज्य मंत्री.
  • सोम प्रकाश – वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय में राज्य मंत्री.
  • रामेश्वर तेली – खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय में राज्य मंत्री. सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग मंत्रालय में राज्य मंत्री.
  • प्रताप चन्द्र सारंगी – पशुपालन, डेयरी और मत्स्य पालन मंत्रालय में राज्य मंत्री.
  • कैलाश चौधरी – कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय में राज्य मंत्री.
  • देबाश्री चौधरी – महिला और बाल विकास मंत्रालय में राज्य मंत्री.

पिछली बार के मुकाबले दो साल युवा है इस बार का मंत्रीमंडल, स्मृति सबसे युवा मंत्री

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नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के तुरंत बाद गुरूवार शाम उनके मंत्रीमंडल के 57 मंत्रियों ने भी पद व गोपनियता की शपथ ग्रहण की. खास बात यह रही कि अगर उनके मंत्रीमंडल की औसत आयु निकाली जाए तो यह मंत्रीमंडल पिछली बार के मुकाबले दो साल युवा है. पिछली बार मोदी सरकार के मंत्रीमंडल की औसतन आयु 62 वर्ष थी जबकि यह आयु इस बार दो साल कम यानि 60 साल है. ऐसे में उम्मीद यही होगी कि यह मंत्रीमंडल पहले की तुलना में अधिक जोश के साथ अपना काम करेगा.

मोदी सरकार के मंत्रीमंडल में अमेठी (यूपी) संसदीय सीट से गांधी फैमली के गढ़ को ढहाने वाली स्मृति ईरानी सबसे युवा मंत्री हैं. स्मृति ईरानी 43 साल की हैं. जबकि अनुराग ठाकुर उनके केवल एक साल बड़े यानि 44 वर्ष के हैं. इनके अलावा, संजीव कुमार बालियान (46) और किरण रिजिजू (47) भी सबसे कम आयु के मंत्रियों में शामिल हैं. पहली बार मंत्री बने रामेश्वर तेली और देबाश्री चौधरी दोनों की उम्र 48-48 साल है.

मोदी सरकार में बीजेपी की सहयोगी लोक जनशक्ति पार्टी के नेता रामविलास पासवान मंत्रीमंडल में सबसे बुजुर्ग मंत्री हैं. उनकी आयु 73 साल है. वहीं थावर चंद गहलोत उनके कुछ ही महीने छोटे हैं. इसी ऐज़ ग्रुप में यूपी के बरेली से 8वीं बार संसद में पहुंचे संतोष कुमार गंगवार भी शामिल हैं. संतोष कुमार 71 साल के हैं.

अब बात करें इस मंत्रीमंडल के मॉनिटर यानि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की. पीएम मोदी की आयु 68 साल है. वहीं अमित शाह 55 साल और राजनाथ सिंह की उम्र 67 साल है.

बाड़मेर MP कैलाश चौधरी मोदी कैबिनेट में मंत्री, गांव से दिल्ली तक का सफर

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बाड़मेर सांसद कैलाश चौधरी को नरेंद्र मोदी के दूसरे प्रधानमंत्री कार्यकाल के मंत्री मंडल में जगह दी गई है. उन्हें राज्यमंत्री के रूप में मोदी कैबिनेट में शामिल किया गया है. प्रधानमंत्री के शपथ ग्रहण से पूर्व बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह द्वारा कई सांसदों को फोन किया गया था. शाह ने कैलाश चौधरी को भी फोन कर बुलाया था. उन्होंने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से पद व गोपनियता की शपथ ली. बाड़मेर-जैसलमेर में उनके मंत्री बनाए जाने को लेकर खुशी का माहौल है. क्षेत्र में विकास को लेकर कैलाश चौधरी से अब जनता को नई आस जगी है.

भारत-पाक अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटे राजस्थान के जिले बाड़मेर की बायतू तहसील के गांव कोसरिया से दिल्ली संसद तक पहुंचने का सफर बाड़मेर सांसद कैलाश चौधरी के लिए आसान नहीं रहा. इस लंबे संघर्ष भरे सफर के दौरान अपने राजनीतिक सफर में उन्हें हार का भी सामना करना पड़ा, लेकिन जनता से सीधे जुड़ाव ने कैलाश को निराश नहीं होने दिया और आखिरकार उन्हें भारतीय संसद तक पहुंचा दिया. यही वजह रही कि दिग्गज राजनीतिज्ञ कर्नल सोनाराम का टिकट काटकर बीजेपी ने 2019 लोकसभा चुनाव में कैलाश चौधरी को अपना उम्मीदवार बनाया.

राजस्थान के सबसे बड़े संसदीय क्षेत्र बाड़मेर से बीजेपी के कैलाश चौधरी ने जीत हासिल कर इतिहास रच दिया. उनके सामने बीजेपी से बगावत कर कांग्रेस का हाथ थामने वाले मानवेंद्र सिंह जसोल उम्मीदवार थे. कैलाश चौधरी ने दिग्गज नेता जसवंत सिंह जसोल के पुत्र मानवेंद्र को सवा तीन लाख वोटों से शिकस्त दी है. कैलाश ने करीब साढ़े आठ लाख वोट हासिल किए.

कैलाश चौधरी ने साल 2008 का विधानसभा चुनाव भी लड़ा था लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा, लेकिन बावजूद इसके वे डटे रहे और लगातार पांच साल स्थानीय जनता के बीच रहे. उन्हें जनता से इस मेलजोल का फायदा 2013 के विधानसभा चुनाव में मिला. बीजेपी ने उन्हें फिर मौका दिया और इस बार उन्होंने कांग्रेस के दिग्गज नेता कर्नल सोनाराम को हरा कर अपनी जीत सुनिश्चित की. पिछले 2018 के चुनाव में वे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरिश चौधरी के सामने चुनाव हार गए.

ग्रेजुएट कैलाश चौधरी ने जिला परिषद सदस्य से अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी. बायतू से विधायक रहने के साथ कैलाश बीजेपी किसान मोर्चा के प्रदेशाध्यक्ष भी हैं. अपने सियासी सफर में उन्हें दो बार 2008 और 2018 में उन्हें विधानसभा चुनाव में हार मिली थी. बाड़मेर लोकसभा क्षेत्र में उनकी जीत ने उनका राजनीतिक कद बढ़ा दिया. इस संसदीय क्षेत्र में बाड़मेर की 7 व एक जैसलमेर विधानसभा का इलाका शामिल है. सियासी पंडित यहां से मानवेंद्र की जीत सुनिश्चित मान रहे थे, लेकिन नतीजे आने पर परिणाम अंदाजे के विपरित आया.

कैलाश चौधरी का जन्म 20 सितम्बर 1973 को बाड़मेर की बायतू तहसील के कोसरिया गांव में हुआ था. पिता तगाराम व माता चूकी देवी ने कभी भी नहीं सोचा होगा कि उनका कैलाश राजनीति के दिग्गज चेहरे को मात देकर एक दिन दिल्ली पहुंचेगा. कैलाश ने अजमेर के महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय से एमए और नागपुर विश्वविद्यालय से बीपीएड की डिग्री प्राप्त कर रखी है. उनका विवाह रूपा देवी से हुआ और उनके दो पुत्र है.

महज 17 साल की उम्र में बाड़मेर की जनता को अपने कुशल नेतृत्व का परिचय देने वाले कैलाश चौधरी को उनके द्वारा किया गया एक आंदोलन ने पहचान दिलाई थी. उन्होंने मात्र 11 दिनों में ही कॉलेज की स्वीकृति दिलाई थी. बालोतरा कस्बे में विद्यार्थियों के सामने सबसे बड़ी समस्या सरकारी कॉलेज नहीं होना था. कॉलेज के अभाव में अधिकांश विद्यार्थी स्कूल के बाद की पढ़ाई छोड़ने को मजबूर थे. चुनिंदा विद्यार्थी ही कॉलेज शिक्षा के लिए पड़ोसी जिलों में जा पाते थे.

कहा जाता है कि उस समय 12वीं में पढ़ने वाले कैलाश चौधरी बालोतरा के 40-50 बच्चों को लेकर ट्रेन से जयपुर तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत के पास पहुंचे और सरकारी कॉलेज खुलवाने की मांग पर अड़ गए. भैरोंसिंह सिंह शेखावत ने उस समय इन्हें आश्वसन देकर भेज दिया.

एक बारगी तो सबको लगा कि कैलाश चौधरी बच्चों को बेवजह ही जयपुर ले गया और हुआ कुछ भी नहीं. लेकिन उनकी मेहनत रंग लाई और 11 दिन में ही सरकार ने बालोतरा में कॉलेज दे दिया. इस कॉलेज का नाम अभी मूलचंद भगवानदास रंगवाला गवर्नमेंट पीजी कॉलेज है.

जमीनी मुद्दों और परेशानियों की समझ रखने वाले कैलाश चौधरी अब भारत की संसद में बाड़मेर का नेतृत्व करेंगे. साथ ही उन्हें मोदी सरकार में मंत्री बनाए जाने के बाद अब बाड़मेर के साथ-साथ मारवाड़ और प्रदेश की भी आस उनसे जगी है. खासकर बाड़मेर में बुनियादी सुविधाओं के लिए जनता की उनसे आस बंधी है.

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क्यों मंत्री नहीं बन पाए हनुमान बेनीवाल

राजस्थान में बीजेपी को बंपर जीत के बाद यह अनुमान लगाया जा रहा था कि प्रदेश से इस बार करीब पांच से छह मंत्री बनाए जाएंगे. लेकिन मोदी मंत्रिमंडल में राजस्थान से केवल तीन सांसदों को ही जगह मिल पायी. मोदी कैबिनेट में राजस्थान से गजेंद्र सिंह शेखावत, अर्जुनराम मेघवाल और कैलाश चौधरी को शामिल किया गया है.

राजस्थान में ‘मिशन 25’ पूरा होने के बाद मोदी के मंत्रीमंडल में जिस चेहरे के शामिल होने की सबसे ज्यादा उम्मीद थी, उसे मोदी कैबिनट में जगह नहीं मिली. यहां हम बात कर रहे हैं नागौर सीट से रालोपा के टिकट पर सांसद बने हनुमान बेनीवाल की. बीजेपी ने इस बार के चुनाव में रालोपा के लिए नागौर सीट छोड़ी थी. यहां से चुनाव रालोपा सुप्रीमो हनुमान बेनीवाल ने लड़ा था. उनका मुकाबला कांग्रेस की ज्योति मिर्धा से था. मुकाबले में बेनीवाल ने ज्योति मिर्धा को भारी अंतर से मात दी.

हनुमान बेनीवाल के मंत्रीपद में सबसे बड़ा रोड़ा कैलाश चौधरी बने. बाड़मेर सीट पर कैलाश चौधरी ने पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह के पुत्र मानवेंद्र को बड़े अंतर से चुनाव हराया है. उन्हें बड़े चेहरे को हराने का ईनाम मिला है. चौधरी को मंत्रिमंडल में जाट चेहरे के तौर पर शामिल किया गया है जिसके कारण हनुमान की दावेदारी कमजोर हुई. पहले पार्टी जाट चेहरे के तौर पर हनुमान को शामिल करना चाहती थी लेकिन दिल्ली में राष्ट्रीय स्वयं-सेवक ने खुद कैलाश की पैरवी की और उनको मंत्रिमंडल में शामिल करने का दबाव केंद्रीय नेतृत्व पर बनाया. कैलाश के नाम पर सहमति बनने के साथ ही हनुमान की दावेदारी ठंडे बस्ते में चली गई. इसकी आशंका हमें बीते दिन ही देखने को मिल गई थी जब हनुमान बेनीवाल दिल्ली छोड़ जयपुर वापस लौट आए थे.

हनुमान के मंत्रिमंडल में नहीं आने का कारण मुजफ्फरनगर के सांसद संजीव बालियान भी बने. बालियान को जाटों के बड़े नेता चौधरी अजित सिंह को हराने का ईनाम मंत्रिमंडल का हिस्सा बना कर दिया है. मंत्रिमंडल में पर्याप्त जाट चेहरे होने के कारण ही हनुमान बेनीवाल कैबिनेट में जगह नहीं बना पाए.

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