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बाड़मेर सांसद कैलाश चौधरी को नरेंद्र मोदी के दूसरे प्रधानमंत्री कार्यकाल के मंत्री मंडल में जगह दी गई है. उन्हें राज्यमंत्री के रूप में मोदी कैबिनेट में शामिल किया गया है. प्रधानमंत्री के शपथ ग्रहण से पूर्व बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह द्वारा कई सांसदों को फोन किया गया था. शाह ने कैलाश चौधरी को भी फोन कर बुलाया था. उन्होंने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से पद व गोपनियता की शपथ ली. बाड़मेर-जैसलमेर में उनके मंत्री बनाए जाने को लेकर खुशी का माहौल है. क्षेत्र में विकास को लेकर कैलाश चौधरी से अब जनता को नई आस जगी है.

भारत-पाक अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटे राजस्थान के जिले बाड़मेर की बायतू तहसील के गांव कोसरिया से दिल्ली संसद तक पहुंचने का सफर बाड़मेर सांसद कैलाश चौधरी के लिए आसान नहीं रहा. इस लंबे संघर्ष भरे सफर के दौरान अपने राजनीतिक सफर में उन्हें हार का भी सामना करना पड़ा, लेकिन जनता से सीधे जुड़ाव ने कैलाश को निराश नहीं होने दिया और आखिरकार उन्हें भारतीय संसद तक पहुंचा दिया. यही वजह रही कि दिग्गज राजनीतिज्ञ कर्नल सोनाराम का टिकट काटकर बीजेपी ने 2019 लोकसभा चुनाव में कैलाश चौधरी को अपना उम्मीदवार बनाया.

राजस्थान के सबसे बड़े संसदीय क्षेत्र बाड़मेर से बीजेपी के कैलाश चौधरी ने जीत हासिल कर इतिहास रच दिया. उनके सामने बीजेपी से बगावत कर कांग्रेस का हाथ थामने वाले मानवेंद्र सिंह जसोल उम्मीदवार थे. कैलाश चौधरी ने दिग्गज नेता जसवंत सिंह जसोल के पुत्र मानवेंद्र को सवा तीन लाख वोटों से शिकस्त दी है. कैलाश ने करीब साढ़े आठ लाख वोट हासिल किए.

कैलाश चौधरी ने साल 2008 का विधानसभा चुनाव भी लड़ा था लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा, लेकिन बावजूद इसके वे डटे रहे और लगातार पांच साल स्थानीय जनता के बीच रहे. उन्हें जनता से इस मेलजोल का फायदा 2013 के विधानसभा चुनाव में मिला. बीजेपी ने उन्हें फिर मौका दिया और इस बार उन्होंने कांग्रेस के दिग्गज नेता कर्नल सोनाराम को हरा कर अपनी जीत सुनिश्चित की. पिछले 2018 के चुनाव में वे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरिश चौधरी के सामने चुनाव हार गए.

ग्रेजुएट कैलाश चौधरी ने जिला परिषद सदस्य से अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी. बायतू से विधायक रहने के साथ कैलाश बीजेपी किसान मोर्चा के प्रदेशाध्यक्ष भी हैं. अपने सियासी सफर में उन्हें दो बार 2008 और 2018 में उन्हें विधानसभा चुनाव में हार मिली थी. बाड़मेर लोकसभा क्षेत्र में उनकी जीत ने उनका राजनीतिक कद बढ़ा दिया. इस संसदीय क्षेत्र में बाड़मेर की 7 व एक जैसलमेर विधानसभा का इलाका शामिल है. सियासी पंडित यहां से मानवेंद्र की जीत सुनिश्चित मान रहे थे, लेकिन नतीजे आने पर परिणाम अंदाजे के विपरित आया.

कैलाश चौधरी का जन्म 20 सितम्बर 1973 को बाड़मेर की बायतू तहसील के कोसरिया गांव में हुआ था. पिता तगाराम व माता चूकी देवी ने कभी भी नहीं सोचा होगा कि उनका कैलाश राजनीति के दिग्गज चेहरे को मात देकर एक दिन दिल्ली पहुंचेगा. कैलाश ने अजमेर के महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय से एमए और नागपुर विश्वविद्यालय से बीपीएड की डिग्री प्राप्त कर रखी है. उनका विवाह रूपा देवी से हुआ और उनके दो पुत्र है.

महज 17 साल की उम्र में बाड़मेर की जनता को अपने कुशल नेतृत्व का परिचय देने वाले कैलाश चौधरी को उनके द्वारा किया गया एक आंदोलन ने पहचान दिलाई थी. उन्होंने मात्र 11 दिनों में ही कॉलेज की स्वीकृति दिलाई थी. बालोतरा कस्बे में विद्यार्थियों के सामने सबसे बड़ी समस्या सरकारी कॉलेज नहीं होना था. कॉलेज के अभाव में अधिकांश विद्यार्थी स्कूल के बाद की पढ़ाई छोड़ने को मजबूर थे. चुनिंदा विद्यार्थी ही कॉलेज शिक्षा के लिए पड़ोसी जिलों में जा पाते थे.

कहा जाता है कि उस समय 12वीं में पढ़ने वाले कैलाश चौधरी बालोतरा के 40-50 बच्चों को लेकर ट्रेन से जयपुर तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत के पास पहुंचे और सरकारी कॉलेज खुलवाने की मांग पर अड़ गए. भैरोंसिंह सिंह शेखावत ने उस समय इन्हें आश्वसन देकर भेज दिया.

एक बारगी तो सबको लगा कि कैलाश चौधरी बच्चों को बेवजह ही जयपुर ले गया और हुआ कुछ भी नहीं. लेकिन उनकी मेहनत रंग लाई और 11 दिन में ही सरकार ने बालोतरा में कॉलेज दे दिया. इस कॉलेज का नाम अभी मूलचंद भगवानदास रंगवाला गवर्नमेंट पीजी कॉलेज है.

जमीनी मुद्दों और परेशानियों की समझ रखने वाले कैलाश चौधरी अब भारत की संसद में बाड़मेर का नेतृत्व करेंगे. साथ ही उन्हें मोदी सरकार में मंत्री बनाए जाने के बाद अब बाड़मेर के साथ-साथ मारवाड़ और प्रदेश की भी आस उनसे जगी है. खासकर बाड़मेर में बुनियादी सुविधाओं के लिए जनता की उनसे आस बंधी है.

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