लोकसभा चुनाव में मिली भारी जीत के बाद बीजेपी के हौंसले सातवें आसमान पर पहुंचे गए हैं. अब उनका अगला फोकस इसी साल के अंत में होने वाले हरियाणा, झारखंड और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों पर हैं. संभावना जताई जा रही है कि चुनाव आयोग इन राज्यों के साथ जम्मु-कश्मीर में भी विधानसभा के चुनाव करवा सकता है.
लोकसभा चुनाव में इन सभी राज्यों में बीजेपी ने विपक्ष का सूपड़ा साफ कर दिया था. लेकिन आने वाले विधानसभा चुनाव बीजेपी के साथ अन्य दलों की महाराष्ट्र को लेकर क्या संभावना है. आइए इस पर विस्तृत रूप से चर्चा करें…
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव लोकसभा चुनाव से बिल्कुल अलग होंगे. जिस आसानी से लोकसभा चुनाव के लिए बीजेपी-शिवसेना का गठबंधन हुआ, विधानसभा चुनाव में हालात इन दोनों दलों के मध्य इतने आसान नहीं रहने वाले हैं.
विधानसभा चुनाव में शिवसेना पिछली बार की तरह ज्यादा सीटों पर लड़ने की मांग करेगी. वो अपनी इस मांग के लिए बाला साहेब ठाकरे के दौर की दुहाई देगी. क्योंकि महाराष्ट्र में पहले बीजेपी-शिवसेना इसी फार्मुले के तहत चुनाव लड़ती थी. इसके आधार पर लोकसभा की ज्यादा सीटों पर बीजेपी और विधानसभा की अधिक सीटों पर चुनाव शिवसेना लड़ती रही है.
लेकिन 2014 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने शिवसेना के इस फार्मुले को नकार दिया था. जिसके बाद दोनों दल अलग-अलग चुनावी मैदान में थे. हालांकि उस समय कांग्रेस-एनसीपी ने भी गठबंधन में चुनाव नहीं लड़ा था. अकेले चुनाव लड़ने के बावजूद बीजेपी ने महाराष्ट्र में अच्छा प्रदर्शन किया. पार्टी ने 122 सीटों पर जीत हासिल की.
2014 की तरह सीट बंटवारे पर ज्यादा तकरार होने पर दोनों दल एक बार फिर चुनावी मैदान में आमने-सामने हो सकते हैं. इसका सीधा फायदा कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन को मिल सकता है. हालांकि कांग्रेस–एनसीपी गठबंधन विधानसभा चुनाव में लडेगा, यह अभी तय नहीं है.
कांग्रेस के हालात अभी प्रदेश में बहुत दयनीय है. उसे हाल में हुए लोकसभा चुनाव में सिर्फ एक सीट पर जीत हासिल हुई है. प्रदेश में संगठन पूरी तरह से मृत हो चुका है. इसे इतने से समय में फिर से जीवित करना लगभग असंभव है.
एनसीपी के हालत भी कांग्रेस की तरह ही दयनीय है. उसे हालिया लोकसभा चुनाव सिर्फ 4 सीटों पर जीत नसीब हुई है जो एनसीपी के कद को देखते हुए अच्छा प्रदर्शन नहीं है.
कांग्रेस-एनसीपी की विधानसभा चुनाव को लेकर परेशानी औवेसी की पार्टी एआईएमआईएम ने बढ़ा रखी है. एआईएमआईएम पिछले पांच साल से लगातार महाराष्ट्र में हर चुनाव में भाग ले रही है. इसका सीधा नुकसान कांग्रेस और एनसीपी को होता आया है. वजह है-औवेसी की पार्टी ने मुस्लिम क्षेत्रों में कांग्रेस और एनसीपी के वोटों में जमकर सेंधमारी की है जिसका नुकसान दोनों दलों को हुआ है.
एआईएमआईएम के चुनाव लड़ने का नुकसान कांग्रेस और एनसीपी को मुस्लिम समुदाय के अलावा अन्य वर्ग में भी होता है. कारण है कि औवेसी की छवि कट्टर प्रवृति की है जिसके कारण हिंदू वोट इन इलाकों में सभी जातीय भावनाएं छोड़कर जबरदस्त रुप से बीजेपी की तरफ लामबंद होता है. हालांकि औवेसी की पार्टी महाराष्ट्र में पैर पसार चुकी है. अभी हाल में हुए लोकसभा चुनाव में उसने एक सीट पर जीत हासिल की है.
वहीं शिवसेना छोड़ अपने नए दल एमएनएस का गठन करने वाले राज ठाकरे के हालात तो विपक्षी दलों से भी बुरे हैं. विधानसभा में उनका एक भी विधायक नहीं है. पार्टी की पकड़ शहरी इलाकों में बहुत कमजोर हो गई है. ग्रामीण क्षेत्रों में तो एमएनएस का कभी जनाधार तक नहीं रहा है. मौजूदा हालातों को देखते हुए महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव का अनुमान लगाया जाए तो यहां बीजेपी बहुत मजबूत स्थिति में दिखाई दे रही है. कांग्रेस के हालात बिल्कुल भी बीजेपी को मुकाबला देने वाले नजर नहीं आ रहे हैं.