होम ब्लॉग पेज 3213

आज मंत्रिमंडल का विस्तार करेंगे नीतीश, बीजेपी को जगह नहीं

politalks.news

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आज अपने मंत्रिमंडल का विस्तार करेंगे. इसमें जेडीयू के छह से सात मंत्रियों को शपथ दिलाई जाएगी. गौर करने वाली बात यह है कि इस विस्तार में बीजेपी के कोटे से कोई मंत्री नहीं बन रहा है. आपको बता दें कि जेडीयू मोदी सरकार की कैबिनेट में शामिल नहीं हुई थी. दरअसल, जेडीयू को मंत्रिमंडल में एक सीट दी जा रही थी, जबकि नीतीश कुमार कम से कम दो सांसदों को मंत्री बनाने की मांग कर रहे थे.

कहा जा रहा है कि मोदी के मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिलने से नीतीश कुमार नाराज हैं. वे बीजेपी को आंख दिखाने के लिए राज्य में मंत्रिमंडल का विस्तार कर रहे हैं. हालांकि जेडीयू का कहना है कि बिहार में गठबंधन सरकार में बीजेपी कोटे से पहले से ही मंत्रियों को शपथ दिलाई जा चुकी है. फिलहाल बीजेपी के 13 और जदयू के 12 मंत्री हैं, जिसमें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी शामिल हैं. गौरतलब है कि जुलाई 2017 में भाजपा के साथ सरकार बनाने के बाद नीतीश सरकार का यह पहला विस्तार है.

करारी हार के बाद राहुल गांधी का पहला भाषण, कहा- हम फिर जीतेंगे

Politalks News

लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बाद पार्टी के अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपने पहले भाषण में कहा कि 52 सांसद होने के बावजूद उनकी पार्टी अगले पांच वर्षों तक बीजेपी के खिलाफ इंच-इंच लड़ेगी और जीतेगी. संविधान और देश की संस्थाओं को बचाने के लिए कांग्रेस के कार्यकर्ता ‘बब्बर शेर’ की तरह काम करेंगे. गांधी ने यह बात शनिवार को नई दिल्ली में हुई कांग्रेस के संसदीय दल की बैठक में दिए भाषण में कही.

राहुल गांधी ने कहा कि मुझे जरा भी संदेह नहीं है कि कांग्रेस फिर से मजबूत होगी. आगे ऐसी कोई संस्था नहीं है जो आपको सहयोग करेगी, कोई नहीं करेगी. यह ब्रिटिश काल जैसा है जब किसी एक संस्था ने भी कांग्रेस का सहयोग नहीं किया था, इसके बावजूद हम लड़े और जीते. हम फिर जीतेंगे. उन्होंने कहा, ‘आप स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहले ऐसे लोग हैं जो किसी राजनीतिक दल के खिलाफ नहीं, बल्कि देश की हर संस्था के खिलाफ चुनाव लड़े. ऐसी कोई संस्था नहीं थी जो लोकसभा चुनाव में आपसे लड़ी नहीं हो और आपको रोकने की कोशिश नहीं की हो.’

कांग्रेस अध्यक्ष ने अपने भाषण में कहा, ‘हम उस वक्त भी कांग्रेस पार्टी के लिए लड़े जब इसके 44 सांसद थे. पिछली बार मुझे लगा था कि बहुत कठिन रहने वाला है. मुझे लगा था कि भाजपा के पास 282 सांसद हैं और हमारे पास 44, ऐसे में हम क्या करेंगे. लेकिन कुछ सप्ताह के भीतर मुझे अहसास हो गया कि हमारे 44 सांसद भाजपा के 282 सदस्यों का मुकाबला करने के लिए काफी हैं. इसलिए मुझे पूरा विश्वास है कि इस बार तो हमारे पास 52 सांसद हैं और ऐसे में हम 52 सांसद और मैं यह आपको गारंटी देते हैं कि इसका कोई मतलब नहीं रहेगा कि कौन सी संस्थाएं इन 52 सदस्यों के खिलाफ खड़ी रहेंगी. ये 52 सांसद इंच-इंच बीजेपी से लड़ेंगे.’

राहुल ने सांसदों को नसीहत देते हुए कहा, ‘आपको पहले समझना होगा कि आप क्या हैं. अगर आप लड़ने जा रहें तो यह पता होना चाहिए कि किसके लिए लड़ने जा रहे हैं? आप इस देश के संविधान के लिए लड़ रहे हैं. आप इस देश के हर नागरिक के अधिकार के लिए लड़ रहे हैं चाहे उसका रंग, धर्म, लिंग और राज्य कुछ भी हो. यह भी समझिए कि आपके खिलाफ कौन लड़ रहे हैं? घृणा, कायरता और गुस्सा आपके खिलाफ लड़ रही है. विश्वास का अभाव, आत्मविश्वास का अभाव आपके खिलाफ लड़ रहे हैं. जो लोग इस संसद में हमारा विरोध कर रहे हैं वो नफरत और गुस्से का इस्तेमाल करते हैं.’

लोकसभा में कांग्रेस की रणनीति के बारे में बोलते हुए राहुल गांधी ने कहा, ‘पिछली बार अगर स्पीकर हमें पांच मिनट का समय देती थीं तो इस बार यह दो मिनट भी हो सकता है, लेकिन इन दो मिनटों में भी हम उस बात को रखेंगे जिसमें कांग्रेस पार्टी विश्वास करती है. हम संविधान की रक्षा को सबसे आगे रखेंगे. अगर कुछ पुराने चेहरे चुनाव जीते होते तो मुझे खुशी होती क्योंकि पिछली बार 5-10 ऐसे लोग थे जिन्होंने हमारा शानदार ढंग से सहयोग किया. अगर आज वो हमारे साथ नहीं हैं तो मुझे बहुत दुख है. पंरतु वे वैचारिक रूप से हमारे साथ खड़े हैं.’

(लेटेस्ट अपडेट्स के लिए  फ़ेसबुकट्वीटर और  यूट्यूब पर पॉलिटॉक्स से जुड़ें)

यह थी राहुल गांधी के अमेठी से चुनाव हारने की सबसे बड़ी वजह

politalks.news

अमेठी से राहुल गांधी की हार की वजह से पूरी कांग्रेस सकते में आ गई है. आखिर क्या वजह रही की पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बीजेपी की स्मृति ईरानी से हार गए. हार के कारणों की तह तक जाने के लिए कांग्रेस ने एक कमेटी का गठन किया है. कमेटी में राजस्थान के जुबेर खां सहित दो नेताओं को शामिल किया गया है.

वहीं कमेटी ने अमेठी में डेरा डालते हुए पड़ताल भी शुरू कर दी है. प्रारम्भिक जांच में सामने आया है कि भले ही सपा-बसपा ने अमेठी से प्रत्याशी नहीं उतारा लेकिन उनका वोट बीजेपी को शिफ्ट हो गया, जिसके चलते राहुल 55 हजार वोटों से हार गए. कमेटी अगले हफ्ते हाईकमान को रिपोर्ट सौंप देगी.

पिछली बार से ज्यादा वोट मिले फिर भी नहीं जीते राहुल
कमाल की बात है कि राहुल गांधी को पिछली बार की अपेक्षा ज्यादा वोट इस बार मिले हैं. राहुल को 2014 के चुनाव में 4.8 लाख वोट मिले थे जबकि इस बार राहुल ने 4.13 मत हासिल किए हैं. बसपा ने पिछली बार यहां अपना प्रत्याशी खड़ा किया था जिसे करीब 57 हजार वोट मिले थे. ये वोट अगर राहुल को मिलते तो वो 55 हजार से नहीं हारते. वहीं सपा नेताओं ने भी राहुल की मदद नहीं की.

दोनों दलों की स्थानीय यूनिट ने बिल्कुल भी कांग्रेस की जीत के प्रयास नहीं किए. यानि सपा और बसपा ने कांग्रेस हाईकमान को खुश करने के लिए सिर्फ अमेठी से प्रत्याशी नहीं उतारा, लेकिन धरातल पर राहुल का खेल बिगाड़ दिया. लिहाजा इस खेल की तह तक जाने के लिए ही कमेटी का गठन किया गया है..कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद राहुल सपा और बसपा से रिश्ते आगे बनाने के बारे में कोई फैसला लेंगे.

गौरीगंज विधानसभा से पिछड़े 18 हजार वोटों से
अमेठी संसदीय क्षेत्र के गौरीगंज से राकेश सिंह सपा विधायक है, उसके बावजूद राहुल यहां स्मृति ईरानी से 18 हजार वोटों से पिछड़ गए. गौरीगंज के अलावा कांग्रेस जगदीशपुर, तिलोई और सलोन विधानसभा में भी बीजेपी से पिछे रह गई. सपा नेता गायत्री प्रजापति के बेटे तो खुलेआम बीजेपी उम्मीदवार स्मृति के लिए वोट मांग रहे थे. अगर सपा और बसपा प्रमुख स्थानीय नेताओं को कड़े निर्देश देते तो यह नतीजा आने का सवाल ही नहीं उठता था.

साफ है कि अखिलेश और मायावती ने राहुल को समर्थन देते हुए प्रत्याशी तो नहीं खड़ा किया, लेकिन वोट दिलाने में योगदान भी नहीं दिया. जिसकी बदौलत दोनों पार्टियों के वोट बीजेपी के पाले में चले गए और राहुल गांधी को हार का सामना करना पड़ा. अब देखने वाली बात रहेगी कि कमेटी की रिपोर्ट के बाद दोनों दलों से कांग्रेस के रिश्ते कैसे बन पाते हैं.

(लेटेस्ट अपडेट्स के लिए फ़ेसबुकट्वीटर और यूट्यूब पर पॉलिटॉक्स से जुड़ें)

छतीसगढ़: महाधिवक्ता के इस्तीफे मामले पर घिरी भूपेश बघेल सरकार

politalks.news

छत्तीसगढ़ सरकार के महाधिवक्ता का पद एक बार फिर चर्चा में है. बीते कल छतीसगढ़ के महाधिवक्ता कनक तिवारी ने अपने पद से इस्तीफा दिया था. कुछ समय बाद तिवारी का इस्तीफा मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की तरफ से मंजूर भी कर लिया गया. साथ ही इस्तीफे के बाद खाली हुए महाधिवक्ता के पद पर सरकार ने अतिरिक्त महाधिवक्ता सतीशचंद वर्मा को नियुक्त कर दिया.

लेकिन सीएम भूपेश बघेल की तरफ से इस्तीफा मंजूर होने के बाद कनक तिवारी की तरफ से बयान आया. जिसने प्रदेश की सियासत में भूचाल ला दिया. तिवारी की तरफ से कहा गया कि उन्होंने जब इस्तीफा ही नहीं दिया तो सीएम ने किसका इस्तीफा मंजूर किया है. आगे तिवारी ने कहा, मैं दृढ़तापूर्वक कह रहा हूं कि मैंने इस्तीफा नहीं दिया है. जब इस्तीफे पर मैंने दस्तखत नहीं किया, तो मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के पास उनका इस्तीफा कैसे पहुंच गया.

इधर जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ ने इस मामले की जांच उच्च न्यायालय से कराने का अनुरोध किया है. पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अमित जोगी ने कहा कि जब कनक तिवारी इस्तीफा देने से साफ इंकार कर रहे है तो सीएम ने उनका इस्तीफा कैसे मंजूर कर लिया. उनके स्थान पर वर्मा को कैसे नियुक्त कर दिया गया.

जोगी ने आगे कहा कि मुख्यमंत्री का महाधिवक्ता जैसे संवैधानिक पद के साथ खिलवाड़ करना बिल्कुल शोभनीय नहीं है. उन्होंने कहा है कि आखिर क्या वजह है जिससे कनक तिवारी को भूपेश बघेल हटाना चाहते है? इसकी गहराई से जांच की जानी चाहिए.

(लेटेस्ट अपडेट्स के लिए फ़ेसबुकट्वीटर और यूट्यूब पर पॉलिटॉक्स से जुड़ें)

राजस्थान: अपनी ही सरकार के खिलाफ अनशन पर बैठे कांग्रेस विधायक

टोंक जिले के नगरफोर्ट में 29 मई को हुई परासिया निवासी ट्रैक्टर चालक भजनलाल मीणा की मौत पर बवाल बढ़ता जा रहा है. उनियारी थानाधिकारी मनीष चारण और अन्य पुलिसकर्मियों पर हत्या का आरोप लगाते हुए पिछले तीन दिन से धरने पर बैठे देवली-उनियारी से कांग्रेस विधायक हरीश मीणा ने आमरण अनशन शुरू कर दिया है. बीजेपी विधायक गोपीचंद मीणा भी उनके साथ धरने पर बैठे हैं. हरीश मीणा ने आज अपने तेवर तल्ख करते हुए कहा कि हमें सरकार और प्रशासन कमजोर ना समझे. हम गरीब जरूर है, लेकिन कमजोर नहीं हैं. हम हर भाषा में जवाब देना जानते हैं.

बीजेपी के राज्यसभा सांसद डॉ. किरोडी लाल मीणा, टोंक-सवाई माधोपुर सांसद सुखबीर सिंह जौनपुरिया और पूर्व विधायक प्रहलाद गुंजल के अनशन स्थल पर पहुंचने से माहौल और गर्मा गया है. इन नेताओं ने मंच से टोंक पुलिस और जिला प्रशासन को जमकर आड़े हाथों लिया. डॉ. किरोड़ी लाल मीणा ने सरकार को तीन दिन का अल्टीमेटम देते हुए 5 जून को उनियारा पहुंच महापड़ाव का ऐलान किया. वहीं, टोंक-सवाईमाधोपुर सांसद सुखबीर सिंह जौनपुरिया ने मामले की सीबीआई से जांच करवाने की मांग की है. पूर्व विधायक प्रहलाद गुंजल ने कहा कि सरकार ने मांगें नहीं मानी तो पूरे राजस्थान में आंदोलन होगा.

आपको बता दें कि टोंक जिले के परासिया गांव के भजन लाल मीणा 29 मई को ट्रैक्टर से कहीं जा रहा था. आरोप है कि गणेती गांव के पास पुलिसकर्मियों ने उसे रोका और लकड़ी से फंटे से बेरहमी से पीटकर हत्या कर दी. प्रत्यक्षदर्शियों की मानें तो थानाधिकारी सहित आधा दर्जन पुलिसकर्मी सिविल ड्रेस में थे और एक निजी कार में सवार थे. मारपीट के दौरान जब ग्रामीण मौके की ओर दौड़े, तब तक पुलिसकर्मियों ने युवक के शव को नगरफोर्ट अस्पताल पहुंचा दिया. घटना की खबर जब परिजनों को मिली तो ग्रामीण इकट्ठे होकर अस्पताल पहुंचे और बाद में थाने का घेराव किया.

मामले की जानकारी जब विधायक हरीश मीणा को मिली तो वे नगरफोर्ट पहुंचे और पीड़ित परिवार के साथ धरने पर बैठ गए. विधायक और ग्रामीण आरोपी पुलिसकर्मियों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज करने, शव का मेडिकल बोर्ड से पोस्टमार्टम करवाने, आश्रितों को सरकारी नौकरी देने और मृतक परिवार के दोनों बच्चों के खाते में 20-20 लाख रुपये जमा करवाने के साथ टोंक जिले में चल रहे बजरी के गोरखधंधे में लिप्त दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ सीआईडी से जांच करवाने की मांग कर रहे हैं.

(लेटेस्ट अपडेट्स के लिए फ़ेसबुक, ट्वीटर और यूट्यूब पर पॉलिटॉक्स से जुड़ें)

झारखंड: क्या नाकाम गठबंधन विस चुनाव में बीजेपी को दे पाएगा चुनौती?

politalks.news

लोकसभा चुनाव में मिली बंपर जीत के बाद बीजेपी के हौंसले सातवें आसमान पर हैं. अब उनकी निगाहें इस साल के अंत में हरियाणा, झारखंड और महाराष्ट्र में होने वाले विधानसभा चुनावों में फतह हासिल करने पर हैं. हालांकि संभावना यह भी जताई जा रही है कि चुनाव आयोग इन राज्यों के साथ जम्मू-कश्मीर के भी विधानसभा के चुनाव करवा सकता है. लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने इन सभी राज्यों में विपक्ष का सूपड़ा साफ कर दिया था.

साल के अंत में होने वाले झारखंड विधानसभा चुनाव को लेकर बीजेपी और विपक्षी दलों की संभावना पर नजर डालते है. लोकसभा चुनाव में झारखंड में भी बीजेपी से मुकाबला करने के लिए यूपी और बिहार की तर्ज पर विपक्षी दलों ने महागठबंधन का निर्माण किया था. विपक्षी पार्टियों के इस गठबंधन में कांग्रेस, हेमन्त सोरेन की झारखंड मुक्ति मोर्चा, बाबूलाल मरांडी की झारखंड विकास मोर्चा और लालू प्रसाद यादव की राष्ट्रीय जनता दल शामिल थी.

लेकिन नतीजे सामने आए तो बीजेपी के खिलाफ बनाया गया विपक्षी दलों का यह गठबंधन ताश के पत्तों की भांति बिखर चुका था. बीजेपी ने प्रदेश की 14 में से 11 सीटों पर जीत हासिल की. वहीं एक सीट उसके सहयोगी दल आजसू के खाते में गई. विपक्ष की तमाम पार्टियों के एक जाजम पर आने के बाद भी वो दो सीट ही जीत पाए थे.

प्रदेश के वर्तमान हालात को देखते हुए आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर बीजेपी की संभावनाए सबसे मजबूत दिख रही है. लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद बीजेपी कार्यकर्ताओं के मध्य जबरदस्त ऊर्जा का संचार हुआ है और इसी ऊर्जा के साथ वो विधानसभा चुनाव की तैयारियों में लग गए हैं. बीजेपी का विधानसभा चुनाव में आजसू के साथ गठबंधन होना भी तय लग रहा है.

वहीं बीजेपी के उलट विपक्षी दल लोकसभा चुनाव की तरह गठबंधन में चुनाव लड़ेगे या फिर विधानसभा चुनाव में अपने लिए अलग राह तलाशेंगे. इसे लेकर फिलहाल विपक्षी दलों में कुछ भी तय नहीं है. वो तो अभी लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार से ही नहीं उभर पाए हैं. विपक्षी दलों ने गठबंधन बनने के बाद यह अनुमान लगाया था कि बीजेपी का इन लोकसभा चुनाव में सूपड़ा साफ हो जाएगा और महागठबंधन को बड़ी कामयाबी मिलेगी, जिसका फायदा उन्हें आगामी विधानसभा चुनाव में भी मिलेगा.

लेकिन नतीजे उनकी संभावनओं से बिल्कुल उलट आए. सूपड़ा उनका स्वयं का साफ हो गया और कामयाबी बीजेपी को मिल गई. विपक्ष के सामने आगामी विधानसभा चुनाव में गठबंधन निर्माण में बड़ी समस्याएं आएंगी. क्योंकि लोकसभा चुनाव में गठबंधन, विपक्षी दलों के मध्य इस फार्मूले पर किया गया था कि कांग्रेस यहां ज्यादा सीटों पर लड़ेगी, लेकिन विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और जेएमएम के बीच सीटों का बंटवारा समान होगा.

लोकसभा चुनाव में कांग्रेस सात सीट पर लड़ने के बावजूद सिर्फ एक सीट पर ही जीत हासिल कर पाई. इस चुनाव में किया गया कांग्रेस का निराशाजनक प्रदर्शन विधानसभा चुनाव के गठबंधन में उनके गले की फांस बनेगा. अब विपक्षी दल अपने लिए विधानसभा चुनाव में गठबंधन में ज्यादा हिस्सेदारी की मांग करेंगे.

बता दें कि साल 2014 के विधानसभा चुनाव मे बीजेपी-आजसू गठबंधन ने प्रदेश की कुल 81 सीटों में से 42 पर जीत हासिल की थी. जिसमें 37 सीटें बीजेपी के और 5 सीटें आजसू के हाथ लगी थी. यह बीजेपी का झारखंड निर्माण के बाद से सबसे अच्छा प्रदर्शन था. पार्टी ने यहां चुनाव से पूर्व अर्जुन मुंडा को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया था.

चुनाव में पार्टी ने उनके नेतृत्व में अकल्पनीय प्रदर्शन किया, लेकिन पार्टी की चुनाव में अगुवाई करने वाला शख्स स्वयं चुनाव हार गया. हारने के साथ अर्जुन मुंडा मुख्यमंत्री की दौड़ से बाहर हो गए. पार्टी के भीतर मुख्यमंत्री पद के लिए नए चेहरे की तलाश होने लगी, आखिरी में सहमति रघुवर प्रसाद के नाम पर बन पाई.

वहीं कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद प्रदेश संगठन में बदलाव की आंशका जताई जा रही है. प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार ने हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए आलाकमान को इस्तीफा भेज दिया है. हालांकि अभी पार्टी नेतृत्व की तरफ से उनका इस्तीफा मंजूर नहीं किया गया है. लेकिन संभावना है कि राष्ट्रीय नेतृत्व प्रदेश कांग्रेस की कमान सुबोधकांत सहाय, सुदर्शन भगत में से किसी एक को सौंपने का मन बना चुका है और पार्टी की तरफ से जल्द ही यह घोषणा की जा सकती है.

(लेटेस्ट अपडेट्स के लिए  फ़ेसबुक,  ट्वीटर और  यूट्यूब पर पॉलिटॉक्स से जुड़ें)

कौन संभालेगा अमित शाह की विरासत? जेपी नड्डा का नाम सबसे ऊपर

politalks.news

लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करिश्माई नेतृत्व और अमित शाह के राजनीतिक कौशल के दम पर बीजेपी ने बंपर जीत हासिल की. जिसमें पार्टी को 303 सीटों पर फतह हासिल हुई. सीटों की यह संख्या भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में किसी गैर कांग्रेसी दल को मिली सीटों से सबसे ज्यादा है. बंपर जीत के बाद मोदी ने अपने मंत्रिमंडल में इस बार कई नए चेहरों को शामिल किया. इसमें दो ऐसे चेहरे शामिल हुए जिनकी एंट्री सभी के लिए चौकाने वाली रही. ये चेहरे हैं बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और पूर्व विदेश सचिव एस जयशंकर.

देश के हर हिस्से में खुद के अध्यक्ष बनने के बाद बीजेपी का झंडा बुलंद करने में अहम भूमिका निभाने वाले अमित शाह को मोदी ने अपनी कैबिनेट में गुजरात की तरह बतौर गृह मंत्री शामिल किया. वहीं अपनी कूटनीतिक सोच का लोहा मनवाने वाले एस जयशंकर को भी पीएम मोदी ने सरकार में अहम पद से नवाजा है. उन्हें विदेश मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई. दोनों की शख्सियत के अलावा उनको दिए गए पद की भी खासी अहमियत मानी जा रही है.

अमित शाह के मोदी कैबिनेट में शामिल होने के बाद अब यह तय है कि जल्द ही बीजेपी को नया अध्यक्ष मिलेगा. क्योंकि बीजेपी के भीतर एक समय, एक व्यक्ति, एक पद का सिद्धांत है. जिसके कारण एक व्यक्ति एक समय के दौरान एक से ज्यादा पदों की जिम्मेदारी नहीं संभाल सकता है. अब अमित शाह के बाद पार्टी अध्यक्ष की जिम्मेदारी कौन संभालेगा, इसे लेकर सभी के मध्य उत्सुकता है. हालांकि दिल्ली मीडिया के भीतर दो नामों को लेकर चर्चा तेज है. इनमें जेपी नड्डा और भूपेन्द्र यादव के नाम शामिल हैं. जानिए इन दोनों नेताओं के बारे में.

जगत प्रकाश नड्डाः हिमाचल प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले इस नेता का कद पिछले कुछ सालों से बीजेपी में उरूज पर है. वहीं नड्डा का सियासी करियर वर्तमान में स्वर्णिम दौर से गुजर रहा है और हो सकता है कि उनकों आने वाले कुछ दिनों में बीजेपी के भीतर बड़ी जिम्मेदारी मिल जाए. नड्डा पीएम मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के काफी विश्वस्त माने जाते हैं. वे पिछली मोदी सरकार की कैबिनेट में बतौर हिमाचल चेहरे के तौर पर शामिल किये गए थे.

जेपी नड्डा ब्राहम्ण समुदाय से आते है. ब्राहम्ण समुदाय से उनका आना अध्यक्ष पद के लिए उनकी दावेदारी को और मजबूत करता है. क्योंकि इन लोकसभा चुनाव में बीजेपी को हर बार की तरह इस बार भी ब्राहम्ण समुदाय का खूब समर्थन मिला है. इसके कारण पार्टी अध्यक्ष पद पर ब्राहम्ण समुदाय को खुश करने के लिए नड्डा जैसे बड़े ब्राहम्ण चेहरे पर दांव लगा सकती है . नड्डा संघ के भी विश्वस्त है. उनका जुड़ाव राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से काफी लंबे समय से है.

नड्डा की छवि पार्टी के भीतर मेहनती और साफ सुथरे नेता की है. वो पीएम मोदी की अगुवाई वाली पहली राजग सरकार में स्वास्थ्य मंत्री की जिम्मेदारी संभाल चुके है. इस बार उनके मंत्रिमंडल में शामिल होने की पूरी संभावना थी, लेकिन वो मोदी कैबिनेट के भीतर जगह नहीं बना पाए. हो सकता है शायद पार्टी ने उनके लिए अध्यक्ष पद जैसी बड़ी जिम्मेदारी सोच रखी हो.

हालांकि नड्डा की किस्मत कई बार उनको अंतिम समय पर गच्चा दे जाती है. इसका नमूना हमने हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में देखा था. साल 2017 में हिमाचल में विधानसभा के चुनाव थे. राज्य में वीरभद्र सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार विराजमान थी. बीजेपी के भीतर मुंख्यमंत्री पद के चेहरे के लिए पीएम मोदी और अमित शाह के करीबी होने के कारण नड्ड़ा की दावेदारी तय लग रही थी.

लेकिन पार्टी ने अन्य राज्यों की तरह पीएम मोदी के चेहरे पर ही चुनाव लड़ने का फैसला किया. लेकिन चुनाव प्रचार के खत्म होने से दो दिन पूर्व अमित शाह ने चुनाव को फंसता हुआ देख प्रेम कुमार धुमल को बतौर मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर पेश किया. अमित शाह का यह ऐलान जेपी नड्डा के लिए झटके जैसा था. नड्डा की मुख्यमंत्री बनने की उम्मीद धुमिल हो चुकी थी. लेकिन अभी हिमाचल की राजनीति में ट्विस्ट आना बाकी था. नतीजे आए तो बीजेपी ने इतिहास रच दिया था.

बीजेपी ने 68 सीटों वाली हिमाचल प्रदेश विधानसभा की 44 सीटों पर जीत हासिल की थी. इतनी बड़ी जीत के बावजूद भी आलाकमान परेशान था. परेशानी का कारण यह था कि जिन प्रेम कुमार धुमल को पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने चुनाव प्रचार खत्म होने के दो दिन पूर्व मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया था. वो स्वयं सुजानपुर सीट से कांग्रेस प्रत्याशी राजेन्द्र सिंह राणा से चुनाव हार गए थे. धुमल की हार के बाद नड्डा की मुख्यमंत्री पद के लिए मृत हुई उम्मीदों में एक बार फिर से सांसे दौडने लगी.

जेपी नड्डा को लगने लगा कि अब बीजेपी आलाकमान मुख्यमंत्री पद के लिए उन्हीं पर दांव खेलेगा, लेकिन आलाकमान ने नड्डा की उम्मीदों को तोड़ते हुए अपेक्षाकृत छोटे नेता जयराम ठाकुर को मुख्यमंत्री के लिए चुना. आलाकमान ने ठाकुर का मुख्यमंत्री पद के लिए चुनाव इसलिए किया क्योंकि पूर्व में घोषित मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार प्रेम कुमार धुमल राजपूत बिरादरी से आते है. तो पार्टी ने उनके स्थान पर राजपूत चेहरे को ही चुनना मुनासिब समझा.

भूपेन्द्र यादव: पिछले काफी समय से बीजेपी के भीतर संगठन का कामकाज देख रहे भूपेन्द्र यादव को अध्यक्ष पद के लिए चुना जा सकता है. अध्यक्ष पद के लिए जो बातें उनके पक्ष में है, उनमें वो पीएम मोदी और अमित शाह से काफी लंबे समय से परिचित है. साथ ही भूपेन्द्र यादव संघ पृष्ठभूमि से आते है. तो अध्यक्ष पद के लिए उनकी पैरवी नागपुर मुख्यालय से भी की जा सकती है.

साथ ही जो बात भूपेन्द्र यादव के पक्ष सबसे महत्वपूर्ण है. वो यह है कि उनको बीजेपी संगठन के भीतर कार्य करने का लंबा अनुभव है. वो कई राज्यों के चुनाव प्रभारी रह चुके हैं और इन राज्यों में उनका कार्य काबिले तारीफ रहा था. बीजेपी आलाकमान इन कार्यों का ईनाम उन्हें बीजेपी अध्यक्ष बना कर दे सकती है. इनके अलावा संगठन का कार्य देखने वाले ओमप्रकाश माथुर और विनय सहस्त्रबुदे का नाम भी अध्यक्ष पद के लिए सामने आ रहा है.

इन दो चेहरों के अलावा पीएम मोदी और अमित शाह की तरफ से कोई चौकाने वाला नाम भी अध्यक्ष पद के लिए सामने आ सकता है. क्योंकि वो ऐसे ही फैसलों के लिए जाने जाते हैं. चाहे हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर को मुख्यमंत्री बनाने का निर्णय हो या फिर महाराष्ट्र की कमान देवेन्द्र फड़नवीस के हाथ में देना रहा हो. दोनों मामलो में पीएम मोदी और अमित शाह ने राजनीतिक विश्लेषकों को चौका दिया था. हालांकि अध्यक्ष पद के लिए व्यक्ति का चुनाव पीएम मोदी और अमित शाह की पसंद वाले व्यक्ति का ही किया जाएगा, जिसका इंतजार हर किसी को है.

(लेटेस्ट अपडेट्स के लिए  फ़ेसबुक,  ट्वीटर और  यूट्यूब पर पॉलिटॉक्स से जुड़ें)

गहलोत ने कटारिया का इस्तीफा किया अस्वीकार, कहा- चुनौतियों का सामना करें

Politalks News

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कृषि एवं पशुपालन मंत्री लालचंद कटारिया का इस्तीफा नामंजूर कर दिया है. मुख्यमंत्री ने कटारिया से आग्रह करते हुए कहा कि ऐसे वक्त में जब चुनाव के परिणाम पार्टी के अनुकूल नहीं आए हैं उसे देखते हुए हमारी नैतिक जिम्मेदारी बढ़ जाती है. गहलोत ने कटारिया से इस्तीफा देने की बजाय कहा कि आने वाली चुनौतियों का डटकर सामना करें और प्रदेश में सुशासन देने में अपनी भागीदारी निभाएं. उन्होंने कहा कि पूर्व में आप केंद्रीय मंत्री रहे हैं. अनेक बार विधायक रहे हैं. आपके अनुभव का प्रदेश को लाभ मिलेगा.

आपको बता दें कि लालचंद कटारिया ने लोकसभा चुनाव में अपने विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस उम्मीदवार के पिछड़ने की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफे की पेशकश की थी. कटारिया लोकसभा की जयपुर ग्रामीण सीट के अंंतर्गत आने वाले झोटवाड़ा विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं. कांग्रेस यहां से पूरे प्रदेश में सबसे ज्यादा मतों के अंतर से हारी थी. झोटवाड़ा से बीजेपी उम्मीदवार कर्नल राज्यवर्धन सिंह राठौड़ कांग्रेस प्रत्याशी कृष्णा पूनिया के मुकाबले करीब 1 लाख 14 हजार वोटे से आगे रहे.

गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रदेश में सभी 25 सीटों पर बुरी तरह से हार गई. मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री और ज्यादातर मंत्रियों के विधानसभा क्षेत्रों में बीजेपी कांग्रेस से आगे रही. 200 विधानसभा क्षेत्रों में से महज 16 क्षेत्रों में कांग्रेस उम्मीदवार बीजेपी प्रत्याशी से आगे रहे. कांग्रेस की इस करारी हार के बाद सत्ता और संगठन में बदलाव की आवाज उठने ही लगी थी कि लालचंद कटारिया ने इस्तीफा देने की पेशकश कर दी.

हालांकि लालचंद कटारिया के इस्तीफे पर सियासी ड्रामा भी खूब हुआ. उन्होंने न तो मुख्यमंत्री को विधि​वत रूप से इस्तीफा भेजा और न ही राज्यपाल को. इस्तीफे के नाम पर एक प्रेस विज्ञप्ति सोशल मीडिया पर वायरल हुई, जिसमें झोटवाड़ा से कांग्रेस की करारी हार के बाद नैतिकता के आधार पर मंत्री पद से इस्तीफा देने का जिक्र था. इसमें भविष्य में कोई चुनाव नहीं लड़ने की बात भी लिखी हुई थी.

इस्तीफे की प्रेस विज्ञप्ति सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद ‘पॉलिटॉक्स’ ने उनसे कई बार संपर्क करने का प्रयास किया, लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो पाया. बाद में पता चला कि कटारिया उत्तराखंड में स्थित हैड़ाखान आश्रम चले गए थे. नैनीताल जिले में स्थित हैड़ाखान आश्रम नदी-नालों और पहाड़ों के बीच आकर्षक जगह पर स्थित है. इस आश्रम में भगवान शिव का मंदिर भी है. आश्रम में कई राजनेता और मशहूर लोग जाते रहते हैं. यहां से लौटने के बाद कटारिया मुख्यमंत्री गहलोत से मिले, जिसके बाद इस्तीफा अस्वीकार होने की खबर सामने आई.

मोदी के नए जलशक्ति मंत्रालय को कितनी ‘शक्ति’ दे पाएंगे गजेंद्र सिंह शेखावत?

politalks.news

देश में जल प्रबंधन को लेकर ये गहरी चिंता की बात है कि ना केवल हम जल संकट से परेशान है बल्कि जो पानी है वो भी गुणवत्ता पर खरा नहीं उतर रहा है. इस कड़ी में बात करें महाराष्ट्र, राजस्थान, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना बुंदेलखंड व विदर्भ की तो यहां इन दिनों पानी का भीषण संकट गहराता है. हर साल यहां के कुछ इलाकों को सूखे की मार इस तरह से झेलनी पड़ती है कि हर साल इस मार से कई किसान परिवार इसकी भेंट चढ़ जाते है.

यही वजह है कि नरेंद्र मोदी ने जल शक्ति मंत्रालय का गठन किया है. इसमें जल संबंधी मुद्दों से निपटने के लिए एकीकृत मंत्रालय के रूप में जल शक्ति मंत्रालय बनाया गया है. जिसमें अंतरराष्ट्रीय से लेकर अंतरराज्यीय जल विवाद, पेयजल उपलब्ध कराने, नमामी गंगे परियोजना, नदियों को स्वच्छ करने की महत्वाकांक्षी पहल को शामिल किया गया है. नरेंद्र मोदी ने इस मंत्रालय की जिम्मेदारी गजेंद्र सिंह शेखावत को सौंपी है.

आपको बता दें कि गजेंद्र सिंह राजस्थान की जोधपुर लोकसभा सीट से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत को हरा कर दूसरी बार संसद पहुंचे हैं. गजेंद्र सिंह को जल शक्ति मंत्रालय का जिम्मा पिछली मोदी सरकार में कृषि राज्य मंत्री के तौर पर उनके कामकाज को देखने के बाद मिली है. उन्हें 2016 में हुए मंत्रिमंडल विस्तार में राज्य मंत्री बनाया गया था.

यह किसी से छिपा हुआ नहीं है कि पीने के शुद्ध पानी का ही इतना संकट है तो सिंचाई के लिए किसानों तक पानी पहुंचाने का काम तो दूर की बात है. राजस्थान समेत कई राज्यों में पानी के संरक्षण को लेकर कई तरह की योजनाएं और जागरूकता शिविर लगाए जा रहे हैं लेकिन महाराष्ट्र में सुखाग्रस्त इलाकों में इस जागरूकता का अभाव नजर आता है.

राजस्थान के कुछ इलाकों में पानी में फ्लोराइड की मात्रा ज्यादा होने से लोग स्वास्थय संबंधी समस्याओं से जूझ रहे हैं. साथ ही नागौर जिले के कुछ ग्रामीण इलाकों में खारा पानी होने की वजह से कई बीमारियों ने घर बना लिया है, जो एक चुनौती है. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस पर बोल चुके है कि शुद्ध पेयजल सबका अधिकार है और इसे मुहैया कराना सरकार की नैतिक जिम्मेदारी है. हालांकि समय-समय पर फिल्टर पानी और नहरी पानी लाने के प्रयास जरूर किए जा रहे हैं लेकिन वो धरातल पर नाकाफी साबित हो रहे हैं.

एक रिपोर्ट में बताया गया है कि आने वाले दस सालों में देश में पानी की मांग मौजूद जल वितरण से दोगुनी हो जाएगी. जिसका मतलब साफ है कि करोड़ों लोगों के लिए पानी का गंभीर संकट पैदा हो जाएगा. इससे ना केवल आम जीवन और स्वास्थय पर असर पड़ेगा बल्कि देश की जीडीपी में भी कमी देखने को मिल सकती है जिस पर काम करने की सख्त जरूरत है.

गजेंद्र सिंह शेखावत के सामने पानी से जुड़े अंतरराष्ट्रीय और अंतरराज्यीय जल विवादों को सुलझाने के अलावा संसाधन के रूप में जल के बेहतर इस्तेमाल को सुनिश्चित करने की चुनौती है. गौरतलब है कि जल संकट के लिए जल संरक्षण को लेकर रणनीति और आम जनमानस में जागरूकता की कमी के साथ-साथ जल विवाद भी एक अहम कारण है. समय-समय पर ना केवल अंतरराष्ट्रीय बल्कि अंतरराज्यीय कलह जल के सही और समान उपयोग में बाधा बनती है. इसमें कावेरी जल विवाद, रावी-व्यास जल विवाद अहम है. हालांकि नर्मदा, गोदावरी और कृष्णा नदी जल विवाद को सुलझा लिया गया है, जो लंबे समय से विवादों में रहे.

सर्वे रिपोर्टस का दावा है कि भारत देश में पानी की कमी नहीं है लेकिन पानी के नियोजन की कमी है. राज्यों के बीच जल विवाद से असमानता बढ़ती है. इसके अलावा एक ही जगह ज्यादा पानी के उपयोग से पानी की बर्बादी भी होती है. जिसके चलते नए जल शक्ति मंत्रालय को ये सुनिश्चित करना पड़ेगा कि पानी की बर्बादी ना हो साथ ही सबको समान पीने लायक पानी मिल सके.

हालांकि इसके लिए राष्ट्रीय जल नीति को और मजबूत करने के साथ अमल में लाना होगा. विशेषझों की मानें तो ऐसे मामलों को कोर्ट की जगह जल आयोग या अन्य समान जगहों पर आपस में सुलझा लिया जाए. राज्यों के बीच जल बंटवारा जरूरतों के हिसाब से तय हो. साथ ही जल अधिकरण को भेजे गए विवादों का समय सीमा में समाधान होने की जरूरत है. अब नए मंत्रालय से क्या कुछ नई नीतियां भी बनेगी जो कि इस काम को रफ्तार दे सकें.

देश में जल की कमी के संकट को जल प्रदूषण ने और भी विकट कर दिया है. कई क्षेत्रों में जल के संकट की परवाह न करते हुए उद्योग लगाए जा रहे हैं और वो भी नदियों के किनारे. इससे ना केवल पानी की बर्बादी हो रही है बल्कि नदियां भी प्रदूषित हो रही हैं. मानवीय लापरवाही का एक जीता जागता उदाहरण है गंगा, यमुना सरीखी नदियों का भयंकर प्रदूषित होना. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी सभाओं में हमेशा जिक्र किया है कि गंगा को साफ करना उनकी प्राथमिकता में है, लेकिन पिछले कुछ सालों से चल रहे इस प्रोजेक्ट को अभी तक अंजाम तक नहीं पहुंचाया जा सका है.

केंद्र सरकार ने नमामि गंगे परियोजना की शुरुआत की थी और इसके लिए 20,000 करोड़ रुपये का बजट दिया गया. साथ ही इस परियोजना को पूरा करने का लक्ष्य 5 साल का रखा गया. लेकिन, जल संसाधन मंत्रालय के आंकड़ों की मानें तो नमामि गंगे प्रोजेक्ट में काफी धीमी गति से काम हुआ है. अब नए बने जल शक्ति मंत्रालय के लिए ये चुनौती होगी कि गंगा को साफ देखने का सपना कब पूरा हो पाएगा.

जाहिर तौर पर जल शक्ति मंत्रालय के सामने चुनौतियों का अंबार है. यदि मंत्रालय के मुखिया गजेंद्र सिंह शेखावत नरेंद्र मोदी की उम्मीदों पर खरे उतरे तो वे सफलता के नए कीर्तिमान स्थापित कर सकते हैं. गजेंद्र सिंह को करीब से जानने वाले बताते हैं कि उन्हें चुनौतीपूर्ण काम करना अच्छा लगता है. लोकसभा चुनाव में मुख्यमंत्री गहलोत के बेटे से मुकाबला इसकी ताजा मिसाल है. ऐसे में यह देखना रोचक होगा कि नए मंत्रालय में नई जिम्मेदारी को वे कैसे निभाते हैं.

(लेटेस्ट अपडेट्स के लिए  फ़ेसबुकट्वीटर और  यूट्यूब पर पॉलिटॉक्स से जुड़ें)

राजस्थानः राहुल इस्तीफा प्रकरण खत्म होने के बाद ही सत्ता-संगठन में दिखेगा बदलाव

politalks.news

लोकसभा चुनाव में राजस्थान में मिली करारी हार के बाद कांग्रेस में भूचाल आ गया था. दिल्ली से लेकर जयपुर तक उठापठक तेज हो गई थी, लेकिन फिलहाल मामला शांत हो गया है. वहीं राजनीतिक जानकार इसे तूफान से पहले की शांति करार दे रहे हैं, क्योंकि अभी सबकी नजरें राहुल गांधी के इस्तीफा प्रकरण पर है. जैसे ही राहुल के इस्तीफे के मामले की स्थिति साफ हो जाएगी उसके बाद एक बार घमासान देखने को मिल सकता है.

अगर राहुल गांधी का इस्तीफा स्वीकार हो गया तो फिर नैतिकता के नाते कईं इस्तीफों की लाइन लग सकती है. लिहाजा इंतजार राहुल इस्तीफा प्रकरण के पटाक्षेप का है. उसके बाद ही राजस्थान प्रदेश में सत्ता और संगठन में बदलाव होगा. हांलाकि इस बदलाव में डेढ़ से लेकर तीन माह का वक्त लग सकता है.

क्या सचिन पायलट देंगे इस्तीफा?
सूत्रों के मुताबिक सचिन पायलट का आने वाले दिनों में एक पद पर ही रहना तय है. ज्यादा संभावना है कि पायलट पीसीसी चीफ से इस्तीफा देंगे, क्योंकि एक तो उनका कार्यकाल साढ़े पांच साल का हो गया है. वहीं सरकार में वो डिप्टी सीएम हैं. फिलहाल सचिन पायलट आलाकमान के आदेश का इंतजार करते हुए वैट एडं वॉच की स्थिति में है. पीसीसी चीफ से इस्तीफा देने के बाद पायलट डिप्टी सीएम बने रहेंगे या उन्हें दिल्ली बुलाया जाएगा या फिर राज्य में और कोई बड़ा पद दिया जाएगा, इसके बारे में अभी कुछ भी अंदाजा नहीं लगाया जा सकता.

पायलट हटे तो चौधरी और शर्मा होंगे पीसीसी चीफ?
अगर सचिन पायलट पीसीसी चीफ के पद से हटते हैं तो फिर उनकी जगह दूसरे नेता को मौका मिलना तय है. जानकारों के मुताबिक पार्टी द्वारा इस बार किसी जाट या ब्राह्मण चेहरे को नया प्रदेशाध्यक्ष बनाया जा सकता है. ऐसे में हरीश चौधरी, लालचंद कटारिया और रघु शर्मा के नाम दौड़ में सबसे आगे हैं. वहीं कुछ जानकार दलित चेहरे को भी मौका मिलने का दावा कर रहे हैं.

सत्ता में बदलाव तय
उधर, संगठन के साथ सत्ता में भी बदलाव के कयास लग रहे हैं. राहुल के इस्तीफा प्रकरण के निपटारा होते ही मंत्रिमंडल में फेरबदल तय है. यानी करीब एक दर्जन मंत्रियों की चुनाव में खराब परफोर्मेंस के चलते छुट्टी हो सकती है. जिन मंत्रियों को हटाया जा सकता है उनका क्राइटेरिया उनकी विधानसभा में तीस हजार से पिछड़ने का हो सकता है.

लेकिन राहत की बात है कि फिलहाल कांग्रेस में बयानबाजी और उठापठक का दौर थम गया है और मंत्री भी अपने विभागों के कामकाज में जुट गए हैं. इस इंतजार के साथ कि अब जो भी होगा राहुल गांधी के इस्तीफे के मैटर के समाधान के बाद ही होगा.

(लेटेस्ट अपडेट्स के लिए फ़ेसबुकट्वीटर और यूट्यूब पर पॉलिटॉक्स से जुड़ें)

Evden eve nakliyat şehirler arası nakliyat