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देश में जल प्रबंधन को लेकर ये गहरी चिंता की बात है कि ना केवल हम जल संकट से परेशान है बल्कि जो पानी है वो भी गुणवत्ता पर खरा नहीं उतर रहा है. इस कड़ी में बात करें महाराष्ट्र, राजस्थान, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना बुंदेलखंड व विदर्भ की तो यहां इन दिनों पानी का भीषण संकट गहराता है. हर साल यहां के कुछ इलाकों को सूखे की मार इस तरह से झेलनी पड़ती है कि हर साल इस मार से कई किसान परिवार इसकी भेंट चढ़ जाते है.

यही वजह है कि नरेंद्र मोदी ने जल शक्ति मंत्रालय का गठन किया है. इसमें जल संबंधी मुद्दों से निपटने के लिए एकीकृत मंत्रालय के रूप में जल शक्ति मंत्रालय बनाया गया है. जिसमें अंतरराष्ट्रीय से लेकर अंतरराज्यीय जल विवाद, पेयजल उपलब्ध कराने, नमामी गंगे परियोजना, नदियों को स्वच्छ करने की महत्वाकांक्षी पहल को शामिल किया गया है. नरेंद्र मोदी ने इस मंत्रालय की जिम्मेदारी गजेंद्र सिंह शेखावत को सौंपी है.

आपको बता दें कि गजेंद्र सिंह राजस्थान की जोधपुर लोकसभा सीट से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत को हरा कर दूसरी बार संसद पहुंचे हैं. गजेंद्र सिंह को जल शक्ति मंत्रालय का जिम्मा पिछली मोदी सरकार में कृषि राज्य मंत्री के तौर पर उनके कामकाज को देखने के बाद मिली है. उन्हें 2016 में हुए मंत्रिमंडल विस्तार में राज्य मंत्री बनाया गया था.

यह किसी से छिपा हुआ नहीं है कि पीने के शुद्ध पानी का ही इतना संकट है तो सिंचाई के लिए किसानों तक पानी पहुंचाने का काम तो दूर की बात है. राजस्थान समेत कई राज्यों में पानी के संरक्षण को लेकर कई तरह की योजनाएं और जागरूकता शिविर लगाए जा रहे हैं लेकिन महाराष्ट्र में सुखाग्रस्त इलाकों में इस जागरूकता का अभाव नजर आता है.

राजस्थान के कुछ इलाकों में पानी में फ्लोराइड की मात्रा ज्यादा होने से लोग स्वास्थय संबंधी समस्याओं से जूझ रहे हैं. साथ ही नागौर जिले के कुछ ग्रामीण इलाकों में खारा पानी होने की वजह से कई बीमारियों ने घर बना लिया है, जो एक चुनौती है. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस पर बोल चुके है कि शुद्ध पेयजल सबका अधिकार है और इसे मुहैया कराना सरकार की नैतिक जिम्मेदारी है. हालांकि समय-समय पर फिल्टर पानी और नहरी पानी लाने के प्रयास जरूर किए जा रहे हैं लेकिन वो धरातल पर नाकाफी साबित हो रहे हैं.

एक रिपोर्ट में बताया गया है कि आने वाले दस सालों में देश में पानी की मांग मौजूद जल वितरण से दोगुनी हो जाएगी. जिसका मतलब साफ है कि करोड़ों लोगों के लिए पानी का गंभीर संकट पैदा हो जाएगा. इससे ना केवल आम जीवन और स्वास्थय पर असर पड़ेगा बल्कि देश की जीडीपी में भी कमी देखने को मिल सकती है जिस पर काम करने की सख्त जरूरत है.

गजेंद्र सिंह शेखावत के सामने पानी से जुड़े अंतरराष्ट्रीय और अंतरराज्यीय जल विवादों को सुलझाने के अलावा संसाधन के रूप में जल के बेहतर इस्तेमाल को सुनिश्चित करने की चुनौती है. गौरतलब है कि जल संकट के लिए जल संरक्षण को लेकर रणनीति और आम जनमानस में जागरूकता की कमी के साथ-साथ जल विवाद भी एक अहम कारण है. समय-समय पर ना केवल अंतरराष्ट्रीय बल्कि अंतरराज्यीय कलह जल के सही और समान उपयोग में बाधा बनती है. इसमें कावेरी जल विवाद, रावी-व्यास जल विवाद अहम है. हालांकि नर्मदा, गोदावरी और कृष्णा नदी जल विवाद को सुलझा लिया गया है, जो लंबे समय से विवादों में रहे.

सर्वे रिपोर्टस का दावा है कि भारत देश में पानी की कमी नहीं है लेकिन पानी के नियोजन की कमी है. राज्यों के बीच जल विवाद से असमानता बढ़ती है. इसके अलावा एक ही जगह ज्यादा पानी के उपयोग से पानी की बर्बादी भी होती है. जिसके चलते नए जल शक्ति मंत्रालय को ये सुनिश्चित करना पड़ेगा कि पानी की बर्बादी ना हो साथ ही सबको समान पीने लायक पानी मिल सके.

हालांकि इसके लिए राष्ट्रीय जल नीति को और मजबूत करने के साथ अमल में लाना होगा. विशेषझों की मानें तो ऐसे मामलों को कोर्ट की जगह जल आयोग या अन्य समान जगहों पर आपस में सुलझा लिया जाए. राज्यों के बीच जल बंटवारा जरूरतों के हिसाब से तय हो. साथ ही जल अधिकरण को भेजे गए विवादों का समय सीमा में समाधान होने की जरूरत है. अब नए मंत्रालय से क्या कुछ नई नीतियां भी बनेगी जो कि इस काम को रफ्तार दे सकें.

देश में जल की कमी के संकट को जल प्रदूषण ने और भी विकट कर दिया है. कई क्षेत्रों में जल के संकट की परवाह न करते हुए उद्योग लगाए जा रहे हैं और वो भी नदियों के किनारे. इससे ना केवल पानी की बर्बादी हो रही है बल्कि नदियां भी प्रदूषित हो रही हैं. मानवीय लापरवाही का एक जीता जागता उदाहरण है गंगा, यमुना सरीखी नदियों का भयंकर प्रदूषित होना. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी सभाओं में हमेशा जिक्र किया है कि गंगा को साफ करना उनकी प्राथमिकता में है, लेकिन पिछले कुछ सालों से चल रहे इस प्रोजेक्ट को अभी तक अंजाम तक नहीं पहुंचाया जा सका है.

केंद्र सरकार ने नमामि गंगे परियोजना की शुरुआत की थी और इसके लिए 20,000 करोड़ रुपये का बजट दिया गया. साथ ही इस परियोजना को पूरा करने का लक्ष्य 5 साल का रखा गया. लेकिन, जल संसाधन मंत्रालय के आंकड़ों की मानें तो नमामि गंगे प्रोजेक्ट में काफी धीमी गति से काम हुआ है. अब नए बने जल शक्ति मंत्रालय के लिए ये चुनौती होगी कि गंगा को साफ देखने का सपना कब पूरा हो पाएगा.

जाहिर तौर पर जल शक्ति मंत्रालय के सामने चुनौतियों का अंबार है. यदि मंत्रालय के मुखिया गजेंद्र सिंह शेखावत नरेंद्र मोदी की उम्मीदों पर खरे उतरे तो वे सफलता के नए कीर्तिमान स्थापित कर सकते हैं. गजेंद्र सिंह को करीब से जानने वाले बताते हैं कि उन्हें चुनौतीपूर्ण काम करना अच्छा लगता है. लोकसभा चुनाव में मुख्यमंत्री गहलोत के बेटे से मुकाबला इसकी ताजा मिसाल है. ऐसे में यह देखना रोचक होगा कि नए मंत्रालय में नई जिम्मेदारी को वे कैसे निभाते हैं.

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