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अमेठी से राहुल गांधी की हार की वजह से पूरी कांग्रेस सकते में आ गई है. आखिर क्या वजह रही की पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बीजेपी की स्मृति ईरानी से हार गए. हार के कारणों की तह तक जाने के लिए कांग्रेस ने एक कमेटी का गठन किया है. कमेटी में राजस्थान के जुबेर खां सहित दो नेताओं को शामिल किया गया है.

वहीं कमेटी ने अमेठी में डेरा डालते हुए पड़ताल भी शुरू कर दी है. प्रारम्भिक जांच में सामने आया है कि भले ही सपा-बसपा ने अमेठी से प्रत्याशी नहीं उतारा लेकिन उनका वोट बीजेपी को शिफ्ट हो गया, जिसके चलते राहुल 55 हजार वोटों से हार गए. कमेटी अगले हफ्ते हाईकमान को रिपोर्ट सौंप देगी.

पिछली बार से ज्यादा वोट मिले फिर भी नहीं जीते राहुल
कमाल की बात है कि राहुल गांधी को पिछली बार की अपेक्षा ज्यादा वोट इस बार मिले हैं. राहुल को 2014 के चुनाव में 4.8 लाख वोट मिले थे जबकि इस बार राहुल ने 4.13 मत हासिल किए हैं. बसपा ने पिछली बार यहां अपना प्रत्याशी खड़ा किया था जिसे करीब 57 हजार वोट मिले थे. ये वोट अगर राहुल को मिलते तो वो 55 हजार से नहीं हारते. वहीं सपा नेताओं ने भी राहुल की मदद नहीं की.

दोनों दलों की स्थानीय यूनिट ने बिल्कुल भी कांग्रेस की जीत के प्रयास नहीं किए. यानि सपा और बसपा ने कांग्रेस हाईकमान को खुश करने के लिए सिर्फ अमेठी से प्रत्याशी नहीं उतारा, लेकिन धरातल पर राहुल का खेल बिगाड़ दिया. लिहाजा इस खेल की तह तक जाने के लिए ही कमेटी का गठन किया गया है..कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद राहुल सपा और बसपा से रिश्ते आगे बनाने के बारे में कोई फैसला लेंगे.

गौरीगंज विधानसभा से पिछड़े 18 हजार वोटों से
अमेठी संसदीय क्षेत्र के गौरीगंज से राकेश सिंह सपा विधायक है, उसके बावजूद राहुल यहां स्मृति ईरानी से 18 हजार वोटों से पिछड़ गए. गौरीगंज के अलावा कांग्रेस जगदीशपुर, तिलोई और सलोन विधानसभा में भी बीजेपी से पिछे रह गई. सपा नेता गायत्री प्रजापति के बेटे तो खुलेआम बीजेपी उम्मीदवार स्मृति के लिए वोट मांग रहे थे. अगर सपा और बसपा प्रमुख स्थानीय नेताओं को कड़े निर्देश देते तो यह नतीजा आने का सवाल ही नहीं उठता था.

साफ है कि अखिलेश और मायावती ने राहुल को समर्थन देते हुए प्रत्याशी तो नहीं खड़ा किया, लेकिन वोट दिलाने में योगदान भी नहीं दिया. जिसकी बदौलत दोनों पार्टियों के वोट बीजेपी के पाले में चले गए और राहुल गांधी को हार का सामना करना पड़ा. अब देखने वाली बात रहेगी कि कमेटी की रिपोर्ट के बाद दोनों दलों से कांग्रेस के रिश्ते कैसे बन पाते हैं.

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