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लोकसभा चुनाव में मिली बंपर जीत के बाद बीजेपी के हौंसले सातवें आसमान पर हैं. अब उनकी निगाहें इस साल के अंत में हरियाणा, झारखंड और महाराष्ट्र में होने वाले विधानसभा चुनावों में फतह हासिल करने पर हैं. हालांकि संभावना यह भी जताई जा रही है कि चुनाव आयोग इन राज्यों के साथ जम्मू-कश्मीर के भी विधानसभा के चुनाव करवा सकता है. लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने इन सभी राज्यों में विपक्ष का सूपड़ा साफ कर दिया था.

साल के अंत में होने वाले झारखंड विधानसभा चुनाव को लेकर बीजेपी और विपक्षी दलों की संभावना पर नजर डालते है. लोकसभा चुनाव में झारखंड में भी बीजेपी से मुकाबला करने के लिए यूपी और बिहार की तर्ज पर विपक्षी दलों ने महागठबंधन का निर्माण किया था. विपक्षी पार्टियों के इस गठबंधन में कांग्रेस, हेमन्त सोरेन की झारखंड मुक्ति मोर्चा, बाबूलाल मरांडी की झारखंड विकास मोर्चा और लालू प्रसाद यादव की राष्ट्रीय जनता दल शामिल थी.

लेकिन नतीजे सामने आए तो बीजेपी के खिलाफ बनाया गया विपक्षी दलों का यह गठबंधन ताश के पत्तों की भांति बिखर चुका था. बीजेपी ने प्रदेश की 14 में से 11 सीटों पर जीत हासिल की. वहीं एक सीट उसके सहयोगी दल आजसू के खाते में गई. विपक्ष की तमाम पार्टियों के एक जाजम पर आने के बाद भी वो दो सीट ही जीत पाए थे.

प्रदेश के वर्तमान हालात को देखते हुए आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर बीजेपी की संभावनाए सबसे मजबूत दिख रही है. लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद बीजेपी कार्यकर्ताओं के मध्य जबरदस्त ऊर्जा का संचार हुआ है और इसी ऊर्जा के साथ वो विधानसभा चुनाव की तैयारियों में लग गए हैं. बीजेपी का विधानसभा चुनाव में आजसू के साथ गठबंधन होना भी तय लग रहा है.

वहीं बीजेपी के उलट विपक्षी दल लोकसभा चुनाव की तरह गठबंधन में चुनाव लड़ेगे या फिर विधानसभा चुनाव में अपने लिए अलग राह तलाशेंगे. इसे लेकर फिलहाल विपक्षी दलों में कुछ भी तय नहीं है. वो तो अभी लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार से ही नहीं उभर पाए हैं. विपक्षी दलों ने गठबंधन बनने के बाद यह अनुमान लगाया था कि बीजेपी का इन लोकसभा चुनाव में सूपड़ा साफ हो जाएगा और महागठबंधन को बड़ी कामयाबी मिलेगी, जिसका फायदा उन्हें आगामी विधानसभा चुनाव में भी मिलेगा.

लेकिन नतीजे उनकी संभावनओं से बिल्कुल उलट आए. सूपड़ा उनका स्वयं का साफ हो गया और कामयाबी बीजेपी को मिल गई. विपक्ष के सामने आगामी विधानसभा चुनाव में गठबंधन निर्माण में बड़ी समस्याएं आएंगी. क्योंकि लोकसभा चुनाव में गठबंधन, विपक्षी दलों के मध्य इस फार्मूले पर किया गया था कि कांग्रेस यहां ज्यादा सीटों पर लड़ेगी, लेकिन विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और जेएमएम के बीच सीटों का बंटवारा समान होगा.

लोकसभा चुनाव में कांग्रेस सात सीट पर लड़ने के बावजूद सिर्फ एक सीट पर ही जीत हासिल कर पाई. इस चुनाव में किया गया कांग्रेस का निराशाजनक प्रदर्शन विधानसभा चुनाव के गठबंधन में उनके गले की फांस बनेगा. अब विपक्षी दल अपने लिए विधानसभा चुनाव में गठबंधन में ज्यादा हिस्सेदारी की मांग करेंगे.

बता दें कि साल 2014 के विधानसभा चुनाव मे बीजेपी-आजसू गठबंधन ने प्रदेश की कुल 81 सीटों में से 42 पर जीत हासिल की थी. जिसमें 37 सीटें बीजेपी के और 5 सीटें आजसू के हाथ लगी थी. यह बीजेपी का झारखंड निर्माण के बाद से सबसे अच्छा प्रदर्शन था. पार्टी ने यहां चुनाव से पूर्व अर्जुन मुंडा को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया था.

चुनाव में पार्टी ने उनके नेतृत्व में अकल्पनीय प्रदर्शन किया, लेकिन पार्टी की चुनाव में अगुवाई करने वाला शख्स स्वयं चुनाव हार गया. हारने के साथ अर्जुन मुंडा मुख्यमंत्री की दौड़ से बाहर हो गए. पार्टी के भीतर मुख्यमंत्री पद के लिए नए चेहरे की तलाश होने लगी, आखिरी में सहमति रघुवर प्रसाद के नाम पर बन पाई.

वहीं कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद प्रदेश संगठन में बदलाव की आंशका जताई जा रही है. प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार ने हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए आलाकमान को इस्तीफा भेज दिया है. हालांकि अभी पार्टी नेतृत्व की तरफ से उनका इस्तीफा मंजूर नहीं किया गया है. लेकिन संभावना है कि राष्ट्रीय नेतृत्व प्रदेश कांग्रेस की कमान सुबोधकांत सहाय, सुदर्शन भगत में से किसी एक को सौंपने का मन बना चुका है और पार्टी की तरफ से जल्द ही यह घोषणा की जा सकती है.

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