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भाजपा ने बढ़ाया बीएल संतोष का कद, अध्यक्ष के बाद दूसरे बड़े नेता

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बीएल संतोष बीजेपी को संगठन महासचिव नियुक्त किए गए हैं. इससे पहले वह संयुक्त संगठन महासचिव थे. बीएस संतोष के प्रमोशन को बीजेपी की दक्षिण भारत में पार्टी का जनाधार बढ़ाने की कोशिश के रूप में रूप में देखा जा रहा है. बीएल संतोष बीजेपी में रामलाल की जगह पदभार संभालेंगे. संतोष बीजेपी में आरएसएस के प्रतिनिधि के रूप में लंबे समय से काम कर रहे थे. संतोष के अलावा और भी कई नेता हैं जो संगठन महासचिव बनना चाहते थे.

बीजेपी में संगठन महासचिव का पद पार्टी अध्यक्ष के बाद दूसरा अत्यंत महत्वपूर्ण पद है. यह पद संभालने वाले का विवादों से बचकर कर रहना अक्सर मुश्किल होता है. पहले इस पद पर केएल गोविंदाचार्य और संजय जोशी रह चुके हैं. बाद में उन्हें विवादों के कारण पद छोड़ना पड़ा. बीएल संतोष अब तक विवादों से बचे हुए हैं. वह कम बोलने वाले नया माने जाते हैं. बीएल संतोष मंगलूरु के रहने वाले हैं और बैंगलुरू में उन्होंने बहुत काम किया है. वह अपने ट्वीट खुद टाइप करते हैं. पार्टी में युवा प्रतिभाओं को बढ़ावा देना उनका लक्ष्य रहा है. बेंगलुरु में ही संतोष बीजेपी और आरएसएस के वरिष्ठ नेताओं की नजरों में चढ़ गए थे. हाल ही चुने गए युवा लोकसभा सांसद बेंगलुरु दक्षिण के तेजस्वी सूर्या और मैसुरु के प्रताप सिम्हा उनके शिष्य माने जाते हैं.

बीएल संतोष विभिन्न मुद्दों पर बेबाक राय रखते हैं और अपने ठोस फैसलों के लिए जाने जाते हैं. इसको लेकर उनके पार्टी के भीतर कई नेताओं के साथ उनके मतभेद हो जाते हैं. 2018 में कर्नाटक विधानसभा चुनाव के दौरान उम्मीदवार तय करते समय बीएस येदियुरप्पा और अन्य वरिष्ठ नेताओं से उनके मतभेद हो गए थे. मतभेदों के बावजूद संतोष अपने फैसले नहीं बदलते हैं. कर्नाटक के साथ ही केरल की सीमा जुड़ी हुई है और उस क्षेत्र में बीएल संतोष का अच्छा खासा असर है. बीजेपी के संयुक्त महासचिव (संगठन) रहते हुए उनके पास कर्नाटक, केरल, गोवा और तमिलनाडु का प्रभार था.

हमेशा लो-प्रोफाइल रहने वाले बी.एल. सन्तोष भाजपा के लिए रणनीतियां बनाने के माहिर माने जाते हैं. बी. एल सन्तोष को कर्नाटक में संघ के हार्डलाइनर प्रचारक के रूप में चुनावों के दौरान वार रूम के कुशल संचालन के लिए याद किया जाता है. अमित शाह के केंद्रीय गृहमंत्री बनने के बाद बीजेपी अध्यक्ष पद पर उत्तर भारत के जेपी नड्डा को नियुक्त किया गया है. पार्टी में संतुलन बनाने के लिए दक्षिण भारत से बीएल संतोष संगठन महासचिव नियुक्त किए गए हैं.

बीएल संतोष का कन्नड़, तमिल, मलयालम और अंग्रेजी भाषा पर अच्छी पकड़ है. कार्यकुशल और कर्मठ होने के कारण पार्टी में उनकी तेजी से तरक्की हुई. पांच साल के भीतर ही वह पार्टी के संयुक्त महासचिव (संगठन) बने और अब वे बीजेपी अध्यक्ष के बाद दूसरे सबसे बड़े पद संगठन महासचिव का पदभार संभालेंगे.

कौन हैं बीएल संतोष, जिन्हें BJP में मिला दूसरा सबसे ताकतवर पद

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बीएल संतोष को बीजेपी में राष्ट्रीय महासचिव की जिम्मेदारी सौंपी गई है। पार्टी में पिछले 13 वर्षों से राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) का पद संभाल रहे रामलाल की विदाई के बाद बीएल संतोष को यह जिम्मेदारी मिली है. बीजेपी की ओर से रविवार को यह जानकारी सार्वजनिक की गई.

लेकिन सवाल यह उठता है कि बीएल संतोष आखिर हैं कौन जिन्हें पार्टी में अमित शाह के बाद दूसरा सबसे ताकतवर व्यक्ति बनाया गया है।

रहते लो प्रोफाइल हैं, लेकिन परदे के पीछे रणनीतियां बनाने में माहिर माने जाते हैं.

बीएल संतोष अब तक रामलाल के सहयोगी के तौर पर न सिर्फ पार्टी में संयुक्त महासचिव की जिम्मेदारी संभाल रहे थे, बल्कि दक्षिण भारत के प्रभारी के तौर पर संबंधित राज्यों में बीजेपी के प्रसार की ज़िम्मेदारी भी उनके कंधों पर थी।

कर्नाटक के शिवमोगा जिले से नाता रखने वाले बीएल संतोष पेशे से केमिकल इंजीनियर रहे हैं. आरएसएस की विचारधारा से प्रभावित होकर अविवाहित रहते हुए बीएल संतोष संघ के पूर्णकालिक प्रचारक बन गए और कर्नाटक सहित दक्षिण भारत के आधे दर्जन राज्यों में संघ और अनुषांगिक संगठनों में भूमिकाएं निभाते रहे.

बाद में आरएसएस ने बीएल संतोष को बीजेपी में भेज दिया और वे कर्नाटक प्रदेश संगठन में आरएसएस कोटे से संगठन महामंत्री बने. 2008 के विधानसभा चुनाव में बीएल संतोष ने पर्दे के पीछे रहकर पूरी रणनीति तैयार की थी. नतीजा ये रहा कि बीजेपी को चुनाव में जीत मिलने पर दक्षिण के इस सूबे में सत्ता नसीब हुई. मगर बाद में बीएल संतोष की येदियुरप्पा से खटपट शुरू हो गई. वे येदियुरप्पा की छवि को पार्टी के लिए खतरा मानते रहे.

हमेशा लो-प्रोफाइल रहने वाले बी.एल. सन्तोष भाजपा के लिए रणनीतियां बनाने के माहिर माने जाते हैं. बी. एल सन्तोष को कर्नाटक में संघ के हार्डलाइनर प्रचारक के रूप में चुनावों के दौरान वार रूम के कुशल संचालन के लिए याद किया जाता है.

कर्नाटक सरकार पर आए संकट के बादल छटते दिख नहीं रहे हैं

कर्नाटक में मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी का संकट टलने के आसार दिखाई नहीं दे रहे हैं. रविवार को राज्य के आवास मंत्री कांग्रेस विधायक एन. नागराजू मुंबई जाकर बागी विधायकों के गुट में शामिल हो गए. इसके एक दिन पहले ही कांग्रेस ने उन्हें सरकार के साथ बने रहने के लिए मना लिया था. नागराजू के मुंबई पहुंचने के बाद वहां 12 बागी विधायकों ने प्रेस कांफ्रेंस करते हुए कहा कि उन्हें इस्तीफा देने से कोई नहीं रोक सकता.

नागराजू जब मुंबई की उड़ान पकड़ने के लिए एयरपोर्ट पहुंचे तो उनके साथ पूर्व उप मुख्यमंत्री आर अशोक भी थे. नागराजू के रवाना होने के बाद बीजेपी ने कहा कि कुमारस्वामी सरकार अल्पमत में आ गई है और मुख्यमंत्री को सोमवार को ही विधानसभा में विश्वासमत हासिल करना चाहिए.

कर्नाटक प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष बीएस येदियुरप्पा ने दावा किया कि अगले दो-तीन दिन में बीजेपी को कर्नाटक की सरकार संभालने का मौका मिलने की पूरी संभावना है. उन्होंने कहा कि सोमवार को वह विधानसभा की कार्य सलाहकार परिषद की बैठक में शामिल होंगे और मांग करेंगे कि मुख्यमंत्री कुमारस्वामी तत्काल विश्वासमत हासिल करें.

नागराजू के बगावती तेवर से परेशान कांग्रेस ने अब सात बार विधायक रहे रामलिंगा रेड्डी को अपने पाले में बनाए रखने की कोशिशें तेज कर दी है. रामलिंगा रेड्डी बेंगलुरु से बाहर अपने फार्म हाउस में ठहरे हुए हैं. रविवार को मुख्यमंत्री कुमारस्वामी सत्तारूढ़ गठबंधन के कुछ विधायकों के साथ रामलिंगा रेड्डी से उनके फार्म हाउस पर मिले. सत्तारूढ़ जनता दल-एस-कांग्रेस गठबंधन को लगता है कि रामलिंगा रेड्डी साथ बने रहेंगे तो अन्य विधायकों के भी बगावती तेवर कम होंगे. कांग्रेस के सभी विधायक फिलहाल एक होटल में ठहरे हुए हैं.

रविवार को रामलिंगा रेड्डी के साथ तीन घंटे तक चली बैठक में मुख्यमंत्री कुमारस्वामी के अलावा पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया, कांग्रेस के महासचिव केसी वेणुगोपाल और वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे भी मौजूद थे. बैठक के बाद रामलिंगा रेड्डी ने कहा कि वह सोमवार को फैसला करेंगे कि सरकार के साथ बने रहना है या नहीं.

इस बीच एचडी कुमारस्वामी युद्धस्तर पर सरकार बचाने के प्रयास कर रहे हैं. इस सिलसिले में वह दिनभर कांग्रेस विधायकों के साथ बैठकों में व्यस्त रहे. वह बेल्लारी ग्रामीण के विधायक बी नागेन्द्र से भी मिले, जो फिलहाल बेंगलुरु के एक अस्पताल में भर्ती हैं. सूत्रों के मुताबिक बीजेपी प्रयास कर रही है कि विश्वासमत प्रस्ताव के दौरान बी. नागेन्द्र सदन से गैरहाजिर रहें. कुमारस्वामी कई घंटे अपने पिता पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौडा के साथ भी रहे.

येदियुरप्पा ने कहा कि इस समय राजनीतिक परिस्थितियां बीजेपी के पक्ष में है. कर्नाटक में बीजेपी की सरकार बनने की पूरी संभावना दिख रही है. अगले दो-तीन दिन में सरकार बदल सकती है. मुख्यमंत्री कुमारस्वामी के पास अब बहुमत नहीं है और उन्हें तत्काल इस्तीफा दे देना चाहिए. इन परिस्थितियों में कर्नाटक विधानसभा में भारी हंगामा होने के आसार हैं. वरिष्ठ बीजेपी नेता केएस ईश्वरप्पा ने कहा कि कुमारस्वामी जब तक विश्वासमत प्रस्ताव नहीं लाएंगे, हम सदन की कार्यवाही नहीं चलने देंगे.

बीजेपी के सभी विधायक रविवार को बेंगलुरु के बाहर एक रिसोर्ट में ठहरे हुए थे. वहीं बीजेपी विधायकों ने बैठक की. बैठक को येदियुरप्पा ने संबोधित किया. उन्होंने कहा कि अगले हफ्ते तक कर्नाटक में बीजेपी सरकार काम संभाल लेगी.

कर्नाटक में कुमारस्वामी सरकार का जाना लगभग तय

नेतृत्व के अभाव में बिखरने लगी है कांग्रेस, जल्द निर्णय की दरकार

कांग्रेस अब निर्णायक नेतृत्व के अभाव में बिखरने की कगार पर नजर आने लगी है. विभिन्न राज्यों में कांग्रेस में बिखराव साफ देखा जा सकता है. जगह-जगह गुटबंदी बढ़ रही है. पंजाब में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ नवजोत सिंह सिद्धू ने बगावत कर दी है. हरियाणा में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अशोक तंवर आमने-सामने हो रहे हैं. महाराष्ट्र में कांग्रेस के विभिन्न गुट बन चुके हैं. कर्नाटक की स्थिति स्पष्ट है, जहां कांग्रेस के कई विधायक सत्तारूढ़ जेडीएस-कांग्रेस गठबंधन सरकार से बगावत पर उतारू हैं. पूर्व केंद्रीय विधि मंत्री सलमान खुर्शीद का कहना है कि पार्टी के आंतरिक मतभेद जल्दी ही सुलझ जाएंगे. जब कांग्रेस का चुनाव कार्यक्रम स्पष्ट हो जाएगा, उसके बाद मतभेदों की गुंजाइश समाप्त हो जाएगी.

पंजाब में नवजोत सिंह सिद्धू ने कैबिनेट मंत्री पद से इस्तीफा देकर उसे सार्वजनिक करते हुए मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. दिल्ली में दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी प्रमुख शीला दीक्षित के खिलाफ बगावत शुरू हो गई है. राहुल गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिए सात हफ्ते से ज्यादा समय हो चुका है, लेकिन अभी तक कांग्रेस कार्यसमिति (सीडब्ल्यूसी) की बैठक नहीं हुई है. इस बीच कर्नाटक में भी उथल-पुथल मची हुई है. इस तरह कांग्रेस फिलहाल नेतृत्व के संकट से जूझ रही है और इससे उसकी छवि भी बिगड़ रही है.

पंजाब में नवजोत सिंह सिद्धू और कैप्टन अमरिंदर सिंह के बीच विवाद अब सोशल मीडिया पर देखा जा रहा है. गौरतलब है कि सिद्धू ने अपना इस्तीफा अमरिंदर सिंह को देने के बजाय राहुल गांधी के पास भेजा है. इसकी सूचना उन्होंने ट्विटर पर दी है. शनिवार को दिल्ली में भी कांग्रेस की गुटबंदी सामने आ गई. दिल्ली विधानसभा के चुनाव फरवरी में होने वाले हैं.

दिल्ली के 29 कांग्रेस नेताओं ने पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित पर आरोप लगाया है कि उन्होंने ब्लाक स्तर पर गलत लोगों की नियुक्तियां कर दी है और उनके नाम सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं. अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के प्रभारी पीसी चाको ने इस संबंध में शीला दीक्षित को पत्र लिखा है. चाको ने शीला दीक्षित को उलाहना दिया है कि आप जैसी वरिष्ठ नेता को एआईसीसी के दिशानिर्देशों के खिलाफ फैसले करना शोभा नहीं देता. इससे पार्टी में मतभेद उभर रहे हैं और पार्टी की एकजुटता पर विपरीत असर हो रहा है.

महाराष्ट्र में भी विधानसभा चुनाव नजदीक हैं और कांग्रेस में भारी गुटबंदी दिख रही है. कांग्रेस ने राहुल गांधी के नाम पर विभिन्न चुनाव समितियों का गठन कर दिया है. कांग्रेस की रणनीति समिति, चुनाव घोषणा पत्र एवं समन्वय समिति इनमें शामिल है. इन समितियों में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बालासाहेब थोरात के अलावा वरिष्ठ नेता सुशील कुमार शिंदे, पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण और पृथ्वीराज चव्हाण के नाम शामिल हैं.

हरियाणा में भी जबर्दस्त खींचतान दिख रही है. पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अशोक तंवर के गुट एक-दूसरे के खिलाफ दिख रहे हैं, जबकि तीन महीने बाद ही हरियाणा विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. जैसाकि कई दिग्गज़ नेताओं ने आशंका व्यक्त की है कि जल्द ही कांग्रेस पार्टी को नया कप्तान नहीं मिलता है तो पार्टी में बिखराव बढ़ेगा. कार्यकर्ता छिटक कर दूसरी पार्टियों में जाने की कोशिश करेंगे और धीरे-धीरे कांग्रेस पार्टी को अपने अस्तित्व को बचाने का संकट पैदा हो जाएगा.

 

बीजेपी संगठन में बदलाव से खुश नहीं पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, सोशल मीडिया पर झलका दर्द

बीजेपी आलाकमान ने पार्टी के संगठन में बड़ा बदलाव करते हुए भाजपा के राष्ट्रीय संगठन महासचिव रामलाल को हटाकर उनकी जगह बीएल संतोष को यह जिम्मेदारी सौंपी हैं. रामलाल को संघ ने वापस बुला लिया है. अब संगठन में यह बदलाव कई बड़े नेताओं को रास नहीं आया है. उन्हीं में से एक हैं पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभाव झा, जो इस फैसले से बिलकुल भी खुश नहीं हैं. इसका दर्द उन्होंने सोशल मीडिया पर बयां किया है. इसके बाद बीजेपी के गलियारों में ये पोस्ट हंगामा कर रहे हैं. हालांकि आज सुबह उनके तेवर बदल गए और उन्होंने अपने पोस्ट को बौद्धिक विचारधारा से जुड़ा हुआ था.

प्रभात झा ने ट्वीट करके कहा, ‘किसी के सम्मान के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहिए, क्योंकि कल यह आपके साथ भी हो सकता है. अच्छा ‘संगठक’ वही होता है जो हर व्यक्ति को काम में जुटा ले.’ उन्होंने एक अन्य ट्वीट में कहा कि जिम्मेदारी का मतलब ‘मैं ही हूं’ का भाव नहीं होना चाहिए.

हालांकि बाद में ट्वीट कर उन्होंने न केवल बीएल संतोष को राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बनने पर बधाई दी. साथ ही कहा कि कल ट्वीट के जरिये हमने वही बातें लिखी है जो अपने वरिष्ठों से अनेक बौद्धिक में सुनता रहा हूं. इसमें कोई नई बात नहीं है. उन्होंने यह भी कहा कि सकारात्मक सोच से ही सकारात्मक कर्म होता है. मेरी लेखनी में अगर कोई निशाने पर होता है तो सदैव कांग्रेस क्योंकि मैं कांग्रेस की विचारधारा का विरोधी हूं.

उन्होंने अपने नए ट्वीट में अपने आपको पाक साफ तो बता दिया लेकिन पिछले ट्वीट में उन्होंने कटू बातें लिख प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, पार्टी अध्यक्ष अमित शाह, कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा, शिवराज सिंह चौहान, बीजेपी और बीजेपी मध्यप्रदेश तक को टैग कर दिया.


अब इस तरह के ट्वीट कर वो संगठन को क्या बताना चाह रहे हैं, यह तो करीब-करीब समझ में आ रहा है लेकिन बाद में सफाई देते हुए सॉफ्ट ट्वीट करना आलाकमान का सीधा-सीधा ‘ना’ का संकेत लगता है. बीजेपी में आपसी खिंचतान भी अब धीरे-धीरे सामने आने लगी है. हालांकि इन ट्वीट पर किसी बड़े नेता का रिट्वीट नहीं आया है.

मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ राजनीतिक अदावत के चलते नवजोत सिंह सिद्धू का इस्तीफा

पंजाब के कैबिनेट मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. सिद्धू ने लगभग एक महीने व पांच दिन पहले 10 जून को अपना इस्तीफा राहुल गांधी को सौंप दिया था लेकिन इसका खुलासा आज किया है. सिद्धू ने ट्विट कर रविवार को यह जानकारी सार्वजनिक की, उन्होंने ट्वीट कर यह भी बताया कि अब वे अपना इस्तीफा मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को भेज रहे हैं.

लोकसभा चुनाव में पंजाब में कांग्रेस का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा था, जिसका ठीकरा अमरिंदर सिंह ने सिद्धू पर फोड़ा था और इसकी शिकायत कांग्रेस आलाकमान से करने के साथ ही चुनाव बाद कि पहली कैबिनेट बैठक में ही सिद्धू सहित कई मंत्रियों के विभाग बदल दिए थे. सिद्धू के पास पहले स्थानीय स्वशासन विभाग था, मगर अब उनके जिम्मे ऊर्जा और नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा विभाग था लेकिन उन्होंने मंत्री पद का कार्यभार ग्रहण नहीं किया था और न ही मीटिंग में शामिल हुए थे. उसके बाद से लगातार सिद्धू को लेकर नाराजगी की अटकलें लगाई जा रही थीं.

जुलाई 2016 में बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए नवजोत सिंह सिद्धू की शुरू से मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ राजनीतिक स्पर्धा की रही. कई ऐसे मौके आए जब कैप्टन और सिद्धू के बीच कोल्ड वार जैसी स्थिति देखी गई. ये शीत युद्ध 6 जून को तब अपने चरम पर पहुंच गया जब कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपने मंत्रिमंडल का पुनर्गठन किया और सिद्धू से अहम समझे जाने वाले शहरी विकास मंत्रालय छीन लिया गया.

नवजोत सिंह सिद्धू ने 10 जून को वो राहुल गांधी से मुलाकात की और उन्हें अपना इस्तीफा सौंपा. सिद्धू ने इसकी सार्वजनिक घोषणा नहीं की थी. इस बीच सिद्धू ने न तो अपने नये विभाग को ज्वाइन किया और न ही वे दफ्तर पहुंचे. सिद्धू मीडिया से भी दूर रहे. अब चिट्ठी सार्वजनिक करने के बाद उन्होंने घोषणा की है कि वो सीएम को भी अपना इस्तीफा भेजेंगे. सवाल उठ रहे हैं कि सिद्धू ने पहले कांग्रेस अध्यक्ष को अपना इस्तीफा क्यों सौंपा?

ऐसा कहा जाता है कि नवजोत सिंह सिद्धू सिर्फ राहुल गांधी को ही अपना नेता मानते रहे हैं. सिद्धू ने कैप्टन को कभी उस तरह की तवज्जो नहीं दी जैसा कैप्टन अमरिंदर सिंह अपेक्षा रखते थे. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के शपथ ग्रहण समारोह में जाने को लेकर दोनों में जो विवाद हुआ वह बढ़ता ही गया. लोकसभा चुनाव में हार का ठीकरा कैप्टन ने सिद्धू पर फोड़ा.

मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने सिद्धू का मंत्रालय बदल दिया. सिद्धू ने इसे अपनी हार के रूप में लिया और राहुल गांधी से मिले. नवजोत सिंह सिद्धू चाहते थे कि राहुल गांधी इसमें हस्तक्षेप करें. अगर सिद्धू पद छोड़ने पर अडिग होते तो इस्तीफा राज्यपाल या मुख्यमंत्री को सौंपते लेकिन कहीं न कहीं उन्हें लग रहा था कि राहुल गांधी के हस्तक्षेप से उनकी कुर्सी भी बच जाएगी और मंत्रिमंडल में उन्हें वही प्रतिष्ठा हासिल हो जाएगी.

लेकिन बदलते घटनाक्रम में ऐसा संभव नहीं हो सका. राहुल गांधी खुद 25 मई को ही कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफे की घोषणा कर चुके थे. उन्होंने बार-बार यह भी कहा कि हार के लिए जो लोग जिम्मेदार हैं उन्हें भी पद छोड़ देना चाहिए. पंजाब में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 13 में से 8 सीटें हासिल की थी. इस पर अमरिंदर सिंह ने प्रतिक्रिया देते हुए नवजोत सिंह सिद्धू पर हमला बोला था और कहा था कि शहरी विकास मंत्री के रूप में उनके खराब प्रदर्शन की वजह से कांग्रेस ने 5 सीटें गंवा दी. कैप्टन ने यह भी कह कि शहरी वोटबैंक कांग्रेस की रीढ़ रही है, लेकिन सिद्धू अपने कार्यकाल में विकास कार्य करने में फेल रहे और इसका नतीजा कांग्रेस को भुगतना पड़ा.

सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह ने जब लोकसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन के लिए सिद्धू को जिम्मेदार ठहराया तो सिद्धू भी पीछे नहीं रहे और पलटवार करते हुए सिद्धू ने कहा कि जानबूझकर उनके विभाग को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है, उन्होंने कहा कि वे सिर्फ पंजाब के लोगों के प्रति जिम्मेदार हैं. सिद्धू ने कहा था, “ये सामूहिक जिम्मेदारी है, मेरे विभाग को जानबूझकर निशाना बनाया जा रहा है, एक व्यक्ति के पास चीजों सही परिपेक्ष्य में देखने की क्षमता होनी चाहिए, मुझे ग्रांटेड नहीं लिया जा सकता है, मैं हमेशा से परफॉर्म करने वाला रहा हूं, मेरी जिम्मेदारी सिर्फ पंजाब के लोगों के प्रति है.”

पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ राजनीतिक अदावत का लंबा सिलसिला चलने के बाद नवजोत सिंह सिद्धू ने आखिर कैबिनेट मंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा. सिद्धू ने इस्तीफा पहले राहुल गांधी को सौंपा और आज रविवार को ट्विट कर सार्वजनिक किया. सिद्धू ने ट्वीट किया, “कांग्रेस अध्यक्ष से मिला. उन्हें अपना पत्र सौंपा, हालात से अवगत कराया.” उन्होंने ट्वीट के साथ एक तस्वीर भी पोस्ट की थी, जिसमें वे राहुल गांधी, प्रियंका वाड्रा गांधी और अहमद पटेल के साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं.

नोटबंदी में कमाए नोटों से विधायकों को खरीदने की कोशिश कर रही बीजेपी: दिग्विजय सिंह

Digvijay Singh on Mohan bhagwat
Digvijay Singh on Mohan bhagwat

मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने आरोप लगाया है कि बीजेपी गोवा और कर्नाटक में कांग्रेस विधायकों को खरीदने के लिए वे नोट खर्च कर रही है, जो उसने नोटबंदी के दौरान कमाए हैं. दिग्विजय सिंह ने कहा कि नोटबंदी के दौरान बीजेपी नेताओं ने इतने पैसे कमाए हैं कि अब वे सामान की तरह विधायकों की खरीद-फरोख्त करने लगे हैं. दिग्विजय सिंह पंढरपुर स्थित विट्ठल-रुक्मणी मंदिर में दर्शन करने गए थे और पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे.

दिग्विजय सिंह ने मुंबई पुलिस की भी कड़ी आलोचना की, जिसने डीके शिवकुमार को मुंबई में एक होटल में ठहरे कर्नाटक के बागी कांग्रेस विधायकों से मिलने से रोक दिया था. उन्होंने कहा कि शिवकुमार अपने मित्रों से मिलने पहुंचे थे, जो उनका फोन नहीं उठा रहे थे. शिवकुमार को अपने मित्रों से मिलने का पूरा अधिकार है, लेकिन मुंबई पुलिस ने उन्हें नहीं मिलने दिया.

दिग्विजय सिंह ने दावा किया कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार सुरक्षित है. मुख्यमंत्री कमलनाथ को 121 विधायकों का समर्थन है. लेकिन बीजेपी मध्य प्रदेश में सरकार के अस्थिर होने की अफवाह फैला रही है. दूसरी ओर कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफे पर दिग्विजय सिंह ने राहुल गांधी की तारीफ करते हुए कहा कि राहुल गांधी ने लोकसभा चुनाव में हार की जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा देने का फैसला किया है.

दिग्विजय सिंह ने कहा कि 1968 से अब तक दो बार कांग्रेस का विभाजन हुआ. दोनों बार समर्पित कांग्रेस कार्यकर्ताओं और जनता ने नेहरू-गांधी परिवार के नेतृत्व में चलने वाली कांग्रेस पर भरोसा जताया और उसे असली कांग्रेस के रूप में मान्यता दी. उन्हें अब भी भरोसा है कि राहुल गांधी कांग्रेस का नेतृत्व करते रहेंगे. हालांकि दिग्विजय सिंह ने यह भी कहा कि कांग्रेस कार्यसमिति नए अध्यक्ष का चुनाव करेगी.

केंद्र की मोदी सरकार के बजट पर दिग्विजय सिंह ने कहा कि इस बजट में बेरोजगारी के आंकड़ों का कोई जिक्र नहीं है. इस स्थिति में प्रधानमंत्री मोदी का जो देश को 5 ट्रिलियन इकनॉमी बनाने का लक्ष्य है, वह शेखचिल्ली के सपने की तरह दिखाई देता है. देश को इस समय दहाई अंकों में आर्थिक वृद्धि दर की आवश्यकता है. लेकिन उद्योग और निर्माण क्षेत्र की स्थिति को देखते हुए यह मुश्किल है.

दिग्विजय सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी यह अच्छी तरह जानते हैं कि जनता के बीच सपनों को कैसे बेचा जा सकता है. उन्होंने 14 फरवरी को पुलवामा में हुए आतंकी हमले को लेकर भी मोदी सरकार से कई सवाल पूछे. उन्होंने कहा कि जब कश्मीर पुलिस आठ फरवरी को ही किसी आतंकी घटना की चेतावनी दे चुकी थी तो सरकार ने क्या किया? पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर आतंकी हमले के बाद सरकार का पहला बयान था कि आत्मघाती हमलावर के वाहन में 3.5 क्विंटल विस्फोटक लदा था. सरकार को कैसे पता चला कि इतना विस्फोटक था? क्या सरकार को पहले से सूचना थी? अगर सरकार को पहले से सूचना थी तो हमला टालने के उपाय क्यों नहीं किए गए?

‘हाय रे बेदर्दी कांग्रेस सरकार. कुत्तों को तो छोड़ देते …’

मध्यप्रदेश सरकार के लिए कुत्तों पर किया गया यह ट्वीट सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है. दरअसल, 23वीं वाहनी विशेष सशस्त्र बल में 46 डॉग हैंडलर के ट्रांसफर के आदेश जारी हुए हैं. इन डॉग हैंडलर्स को उनके डॉग के साथ ही ट्रांसफर किया गया है. इससे 46 खोजी कुत्ते इधर से उधर हो गए हैं. इनमें स्निफर, नार्को और ट्रेकर डॉग्स शामिल हैं. सीएम कमलनाथ के गृह जिले छिंदवाड़ा से डफी नाम के स्निफर डॉग को भोपाल के मुख्यमंत्री आवास भेजा गया है. इसके बाद बीजेपी नेताओं ने इस पर हंसी उड़ाई है.

भोपाल के हुजूर विधानसभा क्षेत्र से विधायक रामेश्वर शर्मा ने तो यहां तक लिखा है कि कांग्रेस की कमलनाथ सरकार का वश चले और कोई माल देने वाला मिल जाए तो वो जमीन और आसमान का स्वयं के व्यय पर तबादला कर दे. वहीं विजेश लुणावत ने ट्वीट किया कि कमलनाथ सरकार ने तबादला उद्योग में कुत्तों को भी नही छोड़ा. ऐसी ही कुछ कमेंट सोशल मीडिया पर यूजर्स ने किए हैं.

@rameshwar4111

@vijeshlunawat

@kuwar_lakhan

@PrabhuPateria

@prkhare2

@Sonupan67871070

गोवा: कांग्रेस छोड़ बीजेपी में आए विधायकों को मंत्रीपद का तोहफा, सहयोगियों को धोखा

गोवा में चल रही सियासी उठापटक के ​बीच प्रदेश के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने आज कैबिनेट का विस्तार किया. मंत्रीमंडल में उन्होंने चार नए विधायकों को शामिल किया है. साथ ही सहयोगी कोटे से मंत्री बने तीन विधायकों को बाहर का रास्ता दिखाया है. हालांकि अभी उक्त तीनों विधायक गठबंधन में शामिल हैं लेकिन अगर ये चले भी जाते हैं तो भी गोवा सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ेगा. 40 सदस्यों की गोवा विधानसभा में 27 बीजेपी विधायक मौजूद हैं.

मंत्रीमंडल में शामिल किए तीन मंत्रियों में वे विधायक शामिल हैं जो हाल में कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए हैं. जेनिफर मोनसेरात, फिलिप नेरी रॉड्रिग्ज और चंद्रकांत कावलेकर को मंत्री बनाया गया है. हालांकि कावलेकर को डिप्टी सीएम बनाए जाने की चर्चा थी.

चौथे मंत्री के तौर पर माइकल लोबो को कैबिनेट में जगह दी गई है. लोबो ने आज ही विधानसभा अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया है. गोवा फॉरवर्ड पार्टी (जीएफपी) के कोटे से मंत्री रहे तीन नेताओं को मंत्री पद से हटाया गया है. जीएफपी अध्यक्ष विजय सरदेसाई को उपमुख्यमंत्री पद से विदाई मिली है.

बता दें, कांग्रेस के 10 विधायकों के बीजेपी में शामिल होने के बाद 40 सदस्यीय सदन में बीजेपी विधायकों की संख्या बढ़कर 27 हो गई है. यानि अब बीजेपी की पूर्ण बहुमत की सरकार है. गोवा विधानसभा में कांग्रेस के पांच विधायक बचे हैं.

इससे पहले पॉलिटॉक्स ने बताया था कि कांग्रेस बागियों को खुश करने के लिए उन्हें मंत्री पद दिया जाएगा. जैसा कि गोवा सरकार को अब उन्हें बहुमत साबित करने के लिए गोवा फॉरवर्ड और निर्दलीय विधायकों की जरूरत नहीं है. ऐसे में उन्हें साइड लाइन किया जा सकता है. ठीक ऐसा ही गोवा सरकार ने किया है.

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