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कर्नाटक संकट: सुप्रीम कोर्ट के फैसले से बागियों को झटका, अंतिम निर्णय कल

Karnataka
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कर्नाटक में उठे राजनीतिक संकट के बीच मौजूदा सरकार के सभी 15 बागी विधायकों की उम्मीदों को उस समय करारा झटका लगा जब चीफ जस्टिस ने कहा कि विधानसभा स्पीकर को क्या करना है, ये सुप्रीम कोर्ट तय नहीं करेगा. सुप्रीम कोर्ट का यह बयान सीधे-सीधे पासा स्पीकर आर.के.रमेश कुमार के पक्ष में जाता दिख रहा है. हालांकि इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है. बुधवार सुबह 10:30 बजे इस मामले पर अंतिम निर्णय लिया जाएगा.

इससे पहले आज सुबह 11 बजे कर्नाटक मसले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई. सुनवाई के दौरान सीजेआई रंजन गोगोई ने बागी विधायकों के वक्ता मुकुल रोहतगी से विधायकों के इस्तीफे की तारीख पूछी. इसके अलावा उन्हें अयोग्य करार दिए जाने की तारीख भी पूछी. जवाब में मुकुल रोहतगी ने कहा कि 10 जुलाई को 10 विधायकों ने इस्तीफा दिया, वहीं सिर्फ दो विधायकों का अयोग्य करार दिया जाना 11 फरवरी से पेंडिंग है. मुकुल रोहतगी ने यह भी कहा कि अगर व्यक्ति विधायक नहीं रहना चाहता है, तो कोई उन्हें फोर्स नहीं कर सकता है. विधायकों ने इस्तीफा देने का फैसला किया और वापस जनता के बीच जाने की ठानी है. अयोग्य करार दिया जाना इस इच्छा के खिलाफ होगा.

वहीं स्पीकर की तरफ से अभिषेक मनु सिंघवी ने अदालत को कहा गया है कि स्पीकर को कुछ समय मिलना चाहिए क्योंकि उन्हें सही तर्कों के साथ इस्तीफों और अयोग्यता पर निर्णय करना है.

बता दें, कर्नाटक में पिछले 11 दिनों से राजनीतिक उठा-पटक चल रही है. प्रदेश की कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन सरकार के 16 विधायकों ने सदन से इस्तीफा दे दिया है जिनमें 13 कांग्रेस और तीन जेडीएस के हैं. 18 जुलाई को विधानसभा में मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी के खिलाफ अविश्वासमत पर बहस होनी है. विधायकों के इस्तीफे के बाद मौजूदा सरकार अल्पमत पर है. हालांकि कुमारस्वामी और कांग्रेसी नेता सिद्धारमैया को विश्वास है कि वे सरकार बचाने में कामयाब हो जाएंगे.

अब शुरू होगा राज्यपालों की नियुक्ति का सिलसिला

कलराज मिश्र हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल नियुक्त कर दिए गए हैं. यह शुरूआत है. जल्दी ही कई राज्यों में नए राज्यपालों की नियुक्ति होने वाली है. अगले तीन महीनों में कई राज्यपालों के पद खाली होने वाले हैं. अगर मोदी सरकार छत्तीसगढ़ और मिजोरम में राज्यपाल नियुक्त करने का फैसला करती है और आंध्र प्रदेश व तेलंगाना में अलग-अलग राज्यपाल नियुक्त करने का फैसला होता है तो करीब एक दर्जन नए राज्यपाल नियुक्त करने की जरूरत होगी.

राष्ट्रपति भवन की विज्ञप्ति के अनुसार हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल आचार्य देवव्रत का तबादला गुजरात कर दिया गया है, जहां वह ओपी कोहली की जगह राज्यपाल का पदभार संभालेंगे. ओपी कोहली रिटायर हो चुके हैं. मोदी सरकार 75 साल की उम्र कर चुके वरिष्ठ नेताओं को राज्यपाल के पद पर समायोजित कर सकती है. हिमाचल प्रदेश में आचार्य देवव्रत की जगह कलराज मिश्र को राज्यपाल नियुक्त किया गया है. कलराज मिश्र की उम्र 78 साल है. उन्होंने पिछला लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा था.

मौजूदा राज्यपालों में इक्काडु श्रीनिवासन लक्ष्मी (ईएसएल) नरसिंहन एकमात्र राज्यपाल हैं, जिनकी नियुक्ति मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार ने की थी. वह आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के राज्यपाल हैं. मोदी सरकार उन्हें एक और कार्यकाल देगी या नहीं, इसमें संशय है. अगर उनको हटाया गया तो उनकी जगह पुड्डुचेरी की उप राज्यपाल किरण बेदी को राज्यपाल बनाया जा सकता है.

अगले महीनों में रिटायर होने वाले राज्यपालों में पश्चिम बंगाल के केशरीनाथ त्रिपाठी, राजस्थान के कल्याण सिंह, गोवा की मृदुला सिन्हा, महाराष्ट्र के विद्यासागर राव, नगालैंड के पीबी आचार्य, उत्तर प्रदेश के राम नाइक शामिल हैं. जो नए राज्यपाल बनेंगे उनमें सुषमा स्वराज, अरुण जेटली, विजय चक्रवर्ती, करिया मुंडा, भगत सिंह कोश्यारी, उमा भारती, बंडारू दत्तात्रेय, शांता कुमार, मुरली मनोहर जोशी के नाम शामिल हो सकते हैं.

बीजेपी के कई उम्रदराज नेता सक्रिय राजनीति में नहीं रह गए हैं. वे सरकार की आलोचना भी कर सकते हैं. वरिष्ठ नेताओं के बीच चलने वाली इस तरह की फुसफुसाहट को रोकने के लिए मोदी सरकार कई नेताओं को राज्यपाल बनाने की तैयारी कर रही है.

कर्नाटक के मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी

Floor Test in Maharashtra
Floor Test in Maharashtra

कर्नाटक के बागी विधायकों की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार सुबह 11 बजे से सुनवाई शुरू हुई. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने बागी विधायकों के वकील मुकुल रोहतगी से विधायकों के इस्तीफे की तारीख पूछी, इसके अलावा उन्हें अयोग्य करार दिए जाने की तारीख भी पूछी, जिसके जवाब में मुकुल रोहतगी ने कहा कि 10 जुलाई को 10 विधायकों ने इस्तीफा दिया, वहीं सरकार के दो विधायकों का अयोग्य करार दिया जाना 11 फरवरी से लंबित है. चीफ जस्टिस ने बाकी पांच विधायकों के बारे में पूछा, जिसके जवाब में मुकुल रोहतगी ने बताया कि वे सभी भी इस्तीफा दे चुके हैं.

रोहतगी ने कहा कि अगर व्यक्ति विधायक नहीं रहना चाहता है, तो उस पर विधायक बने रहने का दबाव नहीं डाला जा सकता. विधायकों ने इस्तीफा देकर वापस जनता के बीच जाने का फैसला किया है. विधायकों को अयोग्य करार दिया जाना इस इच्छा के खिलाफ होगा. जिन विधायकों ने याचिका दायर की है, अगर उनकी मांग पूरी होती है तो कर्नाटक सरकार गिर जाएगी. विधानसभा अध्यक्ष जबरन इस्तीफा नहीं रोक सकते हैं. इसी दौरान चीफ जस्टिस ने रोहतगी से विधायकों को अयोग्य करार दिए जाने वाले नियमों के बारे में पूछा.

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा, हम यह तय नहीं करेंगे कि विधानसभा अध्यक्ष को क्या करना चाहिए, यानी उन्हें इस्तीफा स्वीकार करना चाहिए या नहीं. हम सिर्फ यह देख सकते हैं कि क्या संवैधानिक रूप से विधानसभा अध्यक्ष पहले किस मुद्दे पर निर्णय कर सकता है. उन्होंने कहा, अदालत यह तय नहीं करेगी कि स्पीकर को क्या करना है. रोहतगी ने इस दौरान कहा कि इस्तीफे के पीछे कई मिरियाड कारण हो सकते हैं, इस पर चीफ जस्टिस ने पूछा, क्या मिलियन? उसके बाद रोहतगी ने वाक्य सुधारा.

बागी विधायकों के पक्ष में दलील पेश करते हुए रोहतगी ने केरल, गोवा, तमिलनाडु हाईकोर्ट के कुछ फैसलों का उल्लेख किया, जिसमें स्पीकर को पहले इस्तीफे पर विचार करने को कहा गया है और अयोग्यता का फैसला बाद में करने की बात कही गई है. विधायक कोई ब्यूरोक्रेट या कोई नौकरशाह नहीं है, जो कि इस्तीफा देने के लिए उन्हें कोई कारण बताना पड़े.

इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि अगर हम आपकी बात मानें, तो क्या हम स्पीकर को कोई आदेश दे सकते हैं? आप ही बताएं कि ऐसे में क्या आदेश हम दे सकते हैं? मुकुल रोहतगी ने इस दौरान मध्य प्रदेश, कर्नाटक और गोवा के उदाहरण भी पेश किए.

मुकुल रोहतगी की दलील के बाद विधानसभा अध्यक्ष की तरफ से अभिषेक मनु सिंघवी ने दलील पेश की. उन्होंने कहा कि जब अयोग्य होने पर सुनवाई जारी है तो विधायक इस्तीफा कैसे दे सकते हैं? इस दौरान चीफ जस्टिस ने स्पीकर के उपलब्ध नहीं होने की बात कही, तब सिंघवी ने कहा कि स्पीकर पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि उनसे मुलाकात का समय नहीं मांगा गया था.

उन्होंने कहा कि अयोग्यता वाला मामला इस्तीफा देने से पहले का है. चीफ जस्टिस ने पूछा कि यदि कोई व्यक्ति आमने-सामने इस्तीफा नहीं देता है तो क्या होता है, क्या स्पीकर ने अदालत आने से पहले कुछ नहीं किया? वह लगातार यह क्यों कहते रहे कि वह तुरंत फैसला नहीं कर सकते हैं? चीफ जस्टिस ने कहा कि अगर आप इस्तीफे पर फैसला कर सकते हैं तो करिए. जब हमने पिछले साल चौबीस घंटे में विश्वासमत हासिल करने का आदेश दिया तो आपने एतराज नहीं किया क्योंकि वह आपके हक में था.

तब अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि विधानसभा अध्यक्ष को कुछ समय मिलना चाहिए क्योंकि उन्हें सही तर्कों के साथ इस्तीफों और अयोग्यता पर निर्णय करना है. सुप्रीम कोर्ट में भोजनावकाश के बाद बहस जारी रहेगी.

लोकसभा में बीजेपी के बहुमत से राज्यसभा में भगदड़ का माहौल

बीजेपी के राज्यसभा में बहुमत जुटाने के प्रयास जोरों पर है. लोकसभा में स्पष्ट बहुमत के बाद अब बीजेपी को राज्यसभा में स्पष्ट बहुमत मिलना जरूरी माना जा रहा है. इसके संकेत नीरज शेखर के इस्तीफे से मिलने लगे हैं. नीरज शेखर पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के छोटे पुत्र हैं. उत्तर प्रदेश में पिता की सीट बलिया से समाजवादी पार्टी के टिकट पर लोकसभा सांसद रह चुके हैं. 2014 की मोदी लहर में लोकसभा चुनाव हारने के बाद उन्हें समाजवादी पार्टी ने तत्काल राज्यसभा सदस्य बना दिया था.

अब लगता है नीरज शेखर का समाजवादी पार्टी से मोहभंग हो गया है और वह बीजेपी में जाने वाले हैं. वह इसी धारणा को पुष्ट करते नजर आ रहे हैं कि राजनीति में कौन किसका एहसान मानता है? करियर देखें या निष्ठा और प्रतिबद्धता की परवाह करें? सांसद के रूप में मिलने वाली सुविधाएं बनाए रखना भी जरूरी है. अगर वह बीजेपी के सहारे बनता है तो वही ठीक. नीरज शेखर का सपा से इस्तीफा एक समझदारी भरा फैसला है.

जब नीरज शेखर जैसे नेता बीजेपी में जा रहे हैं, तो बाकी बीजेपी विरोधी गैर कांग्रेसी पार्टियों के नेता क्या करेंगे समझा जा सकता है. चंद्रशेखर मूल्यों और सिद्धांतों की राजनीति करते थे. कांग्रेस के कद्दावर नेता थे. इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाया तो उसका विरोध करने के कारण जेल चले गए. उनके पुत्र नीरज शेखर सुविधा और मौकापरस्ती की राजनीति कर रहे हैं. चंद्रशेखर को मानने वाले कई समाजवादी नेता नीरज शेखर के कदम से दुखी हैं. नीरज शेखर ने राज्यसभा की सदस्यता के साथ ही समाजवादी पार्टी की सदस्यता से भी इस्तीफा दे दिया है.

राज्यसभा में उनका कार्यकाल नवंबर 2020 तक का था. अब वह कुछ दिन बगैर सांसद, बगैर किसी पार्टी के नेता रहे राजधानी दिल्ली के 3, गुरुद्वारा रकाबगंज रोड स्थित मकान में ठाठ से रहेंगे. यह इसलिए होगा कि बीजेपी का वरदहस्त है. उनके पिता चंद्रशेखर को किसी के वरदहस्त की जरूरत नहीं पड़ती थी. वह संघर्ष से तपकर बने हुए नेता थे.

संकेत है कि बीजेपी नीरज शेखर को उत्तर प्रदेश से फिर राज्यसभा में भेज देगी. राज्यसभा में अब सपा की ताकत पहले जैसी नहीं है. वह अपने दम पर सिर्फ एक सांसद राज्यसभा में भेज सकेगी. नीरज शेखर दूरदर्शी हैं. उन्होंने सोचा कि 2020 के बाद सपा के टिकट पर संसद में जाना मुश्किल है, इसलिए भविष्य का इंतजाम पहले ही कर लेना चाहिए.

पिछले दस साल से संसद में नीरज शेखर की उपस्थिति है. सांसदों से मेलजोल, संसद का अनुशासन, सीट पर कैसे बैठे रहना है, झंझट वाले मुद्दों से कैसे बचकर रहना है, इन सब बातों में नीरज शेखर पारंगत हो चुके हैं और चंद्रशेखर के पुत्र होने से उनका एक अतिरिक्त वजन है, इसलिए बीजेपी को नीरज शेखर को शामिल करने में कोई आपत्ति नहीं है. चंद्रशेखर की एक संतान भी मोदी सरकार के साथ जुड़ जाएगी. नीरज शेखर विपक्ष को पूरी तरह समाप्त करने में भूमिका निभाएंगे. इसके बाद कई लोग पूछेंगे, क्या आप चंद्रशेखर के ही पुत्र हैं? नीरज शेखर कहेंगे हां, लेकिन मैं उनकी बराबरी नहीं कर सकता.

उत्तर प्रदेश में नवंबर 2020 में राज्यसभा की करीब दस सीटें खाली होंगी. इनमें नीरज शेखर की सीट भी शामिल है. संख्याबल के अनुसार इनमें से नौ सीटें बीजेपी जीतेगी. संभावना यही है कि जो सीट नीरज शेखर ने खाली की है, वह फिर से नीरज शेखर को ही मिल जाएगी. पहले वह सपा सांसद थे, अब बीजेपी सांसद के रूप में संसद में मौजूद रहेंगे. गौरतलब है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने सपा नेता अखिलेश यादव से बलिया से टिकट मांगा था, अखिलेश ने शायद यह सोचकर नहीं दिया कि नीरज पहले से राज्यसभा में हैं. अखिलेश के इनकार से नीरज नाराज थे.

इस समय राज्यसभा में समाजवादी पार्टी के सांसदों की संख्या नौ है. लोकसभा में उसके सिर्फ पांच सांसद रह गए हैं. राज्यसभा में भी गणित बदलना तय है. राज्यसभा में मौजूद विपक्षी पार्टियों के सांसदों में इस बदलते गणित के कारण भगदड़ देखी जा सकती है. अपनी राजनीति बचाने के लिए कई नेता बीजेपी की शरण देख रहे हैं. नीरज शेखर तो सिर्फ शुरुआत है. राज्यसभा से जुड़े विपक्षी पार्टियों के कई नेता बीजेपी में शामिल होने वाले हैं.

चंद्रशेखर भारतीय लोकतंत्र की राजनीति में एक ऐसे दबंग नेता के रूप में जाने जाते हैं, जिन्होंने समझौतावादी राजनीति कभी नहीं की. कभी मंत्री बनने में रुचि नहीं दिखाई. राजीव गांधी के समर्थन से सीधे प्रधानमंत्री बने और कांग्रेस की ऊटपटांग राजनीति देखी तो प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा भी दे दिया. भारतीय लोकतंत्र में एक सशक्त विपक्षी नेता के तौर पर उनका जो मान-सम्मान बचा हुआ है, उसको बीजेपी अपने आभामंडल के दायरे में लाने के पुरजोर प्रयास कर रही है. नीरज शेखर का बीजेपी के प्रति झुकाव इसका स्पष्ट उदाहरण है.

गौरतलब है कि राज्यसभा के उप सभापति हरिवंश ने चंद्रशेखर पर एक किताब लिखी है- द लास्ट आइकन ऑफ आइडियोलॉजिकल पॉलिटिक्स. इस किताब का विमोचन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी करेंगे. इससे पहले नीरज शेखर के बीजेपी में शामिल होने की संभावना है. किताब के विमोचन कार्यक्रम से संकेत मिलेगा कि अब नीरज शेखर मोदी सरकार की छत्रछाया में हैं. इस तरह वह उन कई मामलों से भी बचेंगे, जो आने वाले दिनों में उनको परेशान करने वाले हैं.

कर्नाटक की हालत डांवाडोल, गुरुवार को विश्वासमत प्रस्ताव पेश करेंगे कुमारस्वामी

कर्नाटक में मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी गुरुवार 18 जुलाई को सुबह 11 बजे विधानसभा में विश्वासमत प्रस्ताव पेश करेंगे. कांग्रेस-जेडीएस के विधायकों की बगावत के मद्देनजर कुमारस्वामी के लिए विधानसभा में विश्वासमत हासिल करना जरूरी है. विधानसभा अध्यक्ष केआर रमेश कुमार ने गुरुवार को विश्वासमत प्रस्ताव लाने का आदेश दिया है. इसके साथ ही माना जा रहा है कि कुमारस्वामी सरकार की उल्टी गिनती शुरू हो गई है. हालांकि कुमारस्वामी को पूरा भरोसा है कि वह विश्वासमत हासिल कर लेंगे.

कर्नाटक में कुमारस्वामी के नेतृत्व में 23 जुलाई, 2018 को जेडीएस-कांग्रेस गठबंधन सरकार ने पदभार संभाला था. उसके बाद से यह दूसरा मौका है, जब कुमारस्वामी को फिर से विश्वासमत हासिल करने की जरूरत पड़ रही है. इस बार आशंका है कि कांग्रेस-जेडीएस सत्तारूढ़ गठबंधन के 18 विधायक सरकार का दामन छोड़ रहे हैं. इनमें कांग्रेस, जेडीएस के अलावा दो निर्दलीय विधायक भी शामिल हैं.

कुमारस्वामी ने शुक्रवार को ही घोषणा कर दी थी कि बगैर विश्वासमत हासिल किए उनकी सरकार में बने रहने की इच्छा नहीं है. बीजेपी ने सोमवार को ही विश्वासमत प्रस्ताव लाने की मांग की थी, लेकिन कुमारस्वामी ने इससे इनकार कर दिया.

के आर रमेश का कहना है कि इस्तीफा मंजूर करने से पहले वह विधायकों को सदस्यता से अयोग्य घोषित करने की कार्रवाई करेंगे. बागी विधायकों की याचिका और रमेश कुमार का पक्ष सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार तक यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था.

सोमवार को सदन की कार्य सलाहकार परिषद की बैठक में बीजेपी ने मांग की थी कि कुमारस्वामी को सोमवार को ही विश्वासमत हासिल करना चाहिए, लेकिन रमेश कुमार ने गुरुवार की तारीख तय की. कार्य सलाहकार परिषद की बैठक विधानसभा अध्यक्ष रमेश कुमार ने बुलाई थी. बैठक में मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी, कांग्रेस विधायक दल के नेता सिद्धारमैया, उप मुख्यमंत्री जी परमेश्वर, नेता विपक्ष बीएस येदियुरप्पा सहित सत्तारूढ़ और विपक्षी पार्टियों के नेता शामिल थे.

स्पीकर रमेश कुमार ने बीजेपी की यह मांग मंजूर कर ली है कि विश्वासमत प्रस्ताव पर फैसला होने तक विधानसभा में कोई कार्य नहीं होगा. उन्होंने सदन की कार्यवाही गुरुवार तक स्थगित कर दी है. इस बीच मुंबई में एक होटल में ठहरे 14 बागी विधायकों का कहना है कि वे कुमारस्वामी के इस्तीफे की मांग कर रहे हैं. जब तक कुमारस्वामी मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा नहीं देंगे, तब तक वे मुंबई से नहीं जाएंगे.

इन विधायकों ने सत्तारूढ़ गठबंधन के किसी भी व्यक्ति से मिलने से इनकार कर दिया है. गौरतलब है कि सिद्धारमैया और वरिष्ठ कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने इन बागी विधायकों से मिलने का प्रयास किया था. इसके बाद विधायकों ने मुंबई पुलिस आयुक्त को पत्र लिखा है कि उन्हें कांग्रेस नेताओं से सुरक्षा उपलब्ध कराई जाए. ये बागी विधायक होटल की सबसे ऊपरी मंजिल में चले गए हैं और उनके आसपास सुरक्षा घेरा बढ़ा दिया गया है.

कांग्रेस के दो असंतुष्ट विधायक रामलिंगा रेड्डी और रोशन बेग फिलहाल बेंगलुरु में ही हैं. हालांकि आर रोशन बेग कांग्रेस के निलंबित विधायक हैं. उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले चल रहे हैं. सोमवार रात ही बेंगलुरु से मुम्बई जाते वक्त कर्नाटक पुलिस ने रोशन बेग को हिरासत में लिया है और एसआईटी उनसे पूछताछ की कर रही है. रामलिंगा रेड्डी कर्नाटक में कांग्रेस के सबसे वरिष्ठ विधायक है और कांग्रेस को उम्मीद है कि वह बगावत पर उतारू नहीं रहेंगे और अन्य बागी विधायकों को भी पार्टी में बने रहने के लिए समझाएंगे.

बागी विधायकों के इस्तीफे के बाद कर्नाटक विधानसभा में कांग्रेस के विधायकों की संख्या 79 से घटकर 66 और जनता दल-एस के विधायकों की संख्या 37 से घटकर 34 रह जाएगी. इसके अलावा दो निर्दलीय विधायक भी पाला बदल रहे हैं. जेडीएस-कांग्रेस सरकार को बहुजन समाज पार्टी के एकमात्र विधायक एन महेश का समर्थन बरकरार है.

बागी विधायकों का इस्तीफा मंजूर होने के बाद सदन में सत्तारूढ़ जेडीएस-कांग्रेस के पास 101 विधायकों का समर्थन रहेगा, जबकि बीजेपी के पाले में दो निर्दलीयों सहित 107 विधायक रहेंगे. इसी संख्याबल के आधार पर बीजेपी कर्नाटक में अपनी सरकार बनाने का दावा कर रही है.

सभी सांसद अपने संसदीय क्षेत्र के लिए करें कोई एक इनोवेटिव काम: मोदी

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आज दिल्ली में हुई संसदीय दल की बैठक को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संबोधित किया. इस बैठक में लोकसभा और राज्यसभा के बीजेपी सांसद शामिल हुए. सांसदों को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने सभी सांसदों को अपने-अपने संसदीय क्षेत्र में कोई एक इनोवेटिव काम करने की सलाह दी. उन्होंने कहा कि सांसदों को राजनीति से हटकर भी काम करना चाहिए. इसके लिए जरूरी है कि वे अपने क्षेत्र के अधिकारियों के साथ बैठक कर स्थानीय जनता की समस्याओं को जानें और उसके बारे में बात करें. उन्होंने सांसदों और मंत्रियों को सदन की कार्यवाही में उपस्थिति रहने को भी कहा.

पीएम मोदी ने कहा कि सांसद राजनीति के साथ-साथ सामाजिक कार्यों पर भी ध्यान दें. उन्हें अपने क्षेत्र में जाकर सरकार की योजनाओं के बारे में जनता को बताना चाहिए. जानवरों की बीमारियों पर भी काम करें. साथ ही टीबी, कोढ़ जैसी बीमारियों पर भी काम करें.

उन्होंने देश के जल संकट के लिए भी सांसदों को काम करते रहने को कहा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रोस्टर ड्यूटी में अनुपस्थित रहने वाले मंत्रियों पर नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि उनके बारे में उसी दिन शाम तक मुझे बताया जाए.

बीजेपी संसदीय दल की इस बैठक में केंद्रीय गृह मंत्री और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह, कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, संसदीय कार्य मंत्री प्रहलाद जोशी, विदेश मंत्री एस. जयशंकर, केंद्रीय मंत्री वी मुरलीधरन समेत कई नेता मौजूद रहे.

क्या ‘ममता दीदी’ की राह पर चल पड़ी हैं मायावती?

क्या सच में बसपा सुप्रीमो मायावती बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नक्शे कदम पर चलने की दिशा में कदम बढ़ा रही है या उन जैसी बनने की कोशिश कर रही है? इस बात पर हर कोई कहेगा कि बिलकुल नहीं. इसकी वजह है कि ममता बनर्जी और मायावती की छवि बिलकुल अलग है.

एक ओर ममता दीदी बिलकुल बेबाक और दबंग छवि वाली महिला है. वहीं मायावती एक राजनीतिज्ञ की तरह सोचती हैं. उस दौरान अगर थोड़ा झुकना भी पड़े तो उन्हें बिलकुल नहीं अखरता. लोकसभा में समाजवादी पार्टी के साथ बरसों पुराने क्लेश भुलाकर अखिलेश यादव से गठबंधन करना इसका परिचय देता है. वहीं ममता बनर्जी बीजेपी सरकार से चुनावों से पहले और बाद में भी अकेली लोहा ले रही हैं. इतनी दबंगई तो कांग्रेस तक नहीं दिखा पा रही है.

देखा जाए तो काफी हद तक ये सभी बातें बिलकुल सही हैं लेकिन मौजूदा हालातों में जो मायावती कर रही हैं, उनकी छवि ममता बनर्जी से कमतर आंकना भी ठीक नहीं है. सोशल मीडिया पर हाल के दिनों में बीजेपी पर किए जा रहे प्रहार और बेबाक ट्वीट इस बात को साबित करते हैं. लोकसभा चुनावों में प्रचार के दौरान मायावती की यही छवि देखने को मिली. उन्होंने सपा हो या बसपा, दोनों पार्टियों की चुनावी सभाओं में गजब का समां बांधा. अब सोशल मीडिया पर उनकी इसी बेबाक छवि की झलक फिर से देखी जा सकती है.

माया और ममता दोनों में इन दिनों एक खास समानता और देखने को मिल रही है और वो है ‘जय श्री राम’ के नारे से चिढ़ जिसकी खीज़ बीजेपी पर निकल रही है. पं.बंगाल में लोकसभा चुनाव प्रचार और उसके बाद भी ममता बनर्जी को ‘जय श्री राम’ के नारों से जमकर परेशान किया गया. इस मामले में बीजेपी कार्यकर्ताओं सहित कई अन्य लोगों की गिरफ्तारी भी हुई. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह तक ने कहा कि पता नहीं ममता दीदी को जय श्री राम से चिढ़ क्यों है. अब बसपा सुप्रीमो मायावती को भी कुछ इसी तरह की दिक्कत होने लगी है.

हाल में मायावती ने अपने ट्वीटर हैंडल से इस संबंध में ट्वीट किया है. उन्होंने ट्वीटर पर पोस्ट किया, ‘यूपी सहित कुछ राज्यों में जबरन अपने धार्मिक नारे लगवाने व उस आधार पर जुल्म-ज्यादती की जो नयी गलत प्रथा चल पड़ी है, वह अति-निन्दनीय है. केन्द्र व राज्य सरकारों को इस हिंसक प्रवृति के विरूद्ध सख्त रवैया अपनाने की जरूरत है ताकि भाईचारा व सद्भावना हर जगह बनी रहे व विकास प्रभावित न हो.’

इससे पहले मायावती ने नरेंद्र मोदी सरकार पर बजट 2019 और ईवीएम को लेकर भी निशाना साधा था. यहां तक कि बीजेपी सरकार की तुलना फ्रांसीसी क्रांति से कर दी. मायावती ने कहा था, ‘आज बीजेपी सरकार में देश क्या उसी रास्ते पर चल रहा है जिस प्रकार फ्रांसीसी क्रान्ति के समय कहा गया कि अगर लोगों के पास खाने को रोटी नहीं है तो वे केक क्यों नहीं खाते? वास्तव में जुमलेबाजी त्याग कर सरकार को देश की 130 करोड़ जनता की मूलभूत समस्याओं के प्रति गंभीर होना होगा.’

लोकसभा चुनाव के बाद इस तरह का बेबाकपन तो ममता बनर्जी के श्रीमुख पर ही देखा गया. देश की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस और उसके दिग्गज़ नेता जिस बीजेपी की आंधी का सामना नहीं कर पाए, उनके सामने ममता बनर्जी बिना किसी सहारे के दबंगई के साथ टिकी रहीं. चुनावों के समय अमित शाह और यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ के चौपर को उन्होंने बंगाल की जमीं पर उतरने तक नहीं दिया. उनके करारे प्रहारों और जुबानी जंग का जवाब नरेंद्र मोदी तक के पास नहीं है. पीएम मोदी ने खुद कहा था कि अगर ‘दीदी’ थप्पड़ भी मार दें तो वो सहन कर लेंगे. यह उनकी बेबाकी का ही नतीजा है.

हाल में बीजेपी के वरिष्ठ नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने भी ममता बनर्जी के बढ़ते सियासी कद को आंकते हुए कहा कि बीजेपी के बाहुबल के सामने कांग्रेस, टीएमसी और एनसीपी को एकजुट होना चाहिए और इस एकजुट कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी को बनना चाहिए.

फिलहाल मायावती उस लेवल तक तो नहीं आ पायी है लेकिन अपनी बेबाकी से उस दिशा में कदम जरूर बढ़ा रही है. लोकसभा में यूपी महागठबंधन को मिली करारी शिख्स्त के बाद सपा का साथ छोड़ अकेले उपचुनाव लड़ना और अब लगातार बीजेपी पर करारे प्रहार उन्हें ममता दीदी के नक्शे कदम पर ले जा रहे हैं. ‘जय श्री राम’ मुद्दे पर उनकी यह ठसक भी दोनों में समानता जाहिर कर रही है. अब तो आने वाला वक्त ही बताएगा कि मायावती सियासी होड़ में ‘ममता दीदी’ के कितना समकक्ष आ पाती हैं.

अमित शाह सिर्फ गृहमंत्री हैं, कोई भगवान नहीं: ओवैसी

PoliTalks news

लोकसभा में अमित शाह और AIMIM के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी के बीच हुई तीखी नोकझोंक के बाद सदन के बाहर आकर ओवैसी ने उनपर पलटवार किया है. साथ ही उन्हें सदन के नियमों के बारे में नसीहत दी है. ओवैसी ने कहा कि अमित शाह ने उंगली उठाकर मुझे धमकी दी है, लेकिन वे सिर्फ एक गृहमंत्री हैं, कोई भगवान नहीं. उन्हें पहले नियम पढ़ना चाहिए. हालांकि शाह की ओर से इस बारे में कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी है.

बता दें, लोकसभा में आज राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (संशोधन) विधेयक 2019 को लेकर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और हैदराबाद सांसद और एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी आमने-सामने हो गए थे. यहां तक की ओवैसी ने अमित शाह पर विपक्ष को डराने-धमकाने का आरोप तक जड़ दिया. हुआ कुछ यूं कि जब किशन रेड्डी एनआईए संशोधन बिल के बारे में बात कर रहे थे तो ​बीच में ओवैसी व्यवधान डाल रहे थे.

इसी बीच अमित शाह गुस्से में खड़े हो गए और उन्होंने कहा, ‘ओवैसी साहब. जब आप बोलते हैं तो हम चुपचाप सुनते हैं. अब आपको भी यही आदत डालनी होगी. ऐसा नहीं चलेगा…’ इस पर ओवैसी ने कहा कि अमित शाह मेरे साथ विपक्ष को भी डरा रहे हैं. पलटवार करते हुए शाह ने कहा कि अगर आपके जेहन में डर बैठा है तो मैं क्या करूं.

इसी गहमागहमी के बीच एनआईए (संशोधन) बिल पास हो गया. बिल के समर्थन में 278 और विपक्ष में केवल 6 वोट पड़े. इस संशोधित बिल के पास होने से नेशनल इंवेस्टिगेशन एजेंसी को हथियारों की तस्करी, नशीले पदार्थों की तस्करी, मानव तस्करी और साइबर क्राइम जांच संबंधी मामलों को देखने के लिए ज्यादा अधिकार मिल गए हैं. अब राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को आतंकवाद, देश विरोधी गतिविधियों, मानव तस्करी तथा साइबर अपराधों की विदेश में जाकर जांच करने का अधिकार मिलेगा.

लोकसभा में भिड़े ओवैसी-शाह, तीखी गहमागहमी के बीच पास हुआ NIA संशोधन बिल

लोकसभा में आज राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (संशोधन) विधेयक 2019 को लेकर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और हैदराबाद सांसद और एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी आमने-सामने हो गए. यहां तक की ओवैसी ने अमित शाह पर विपक्ष को डराने-धमकाने का आरोप तक जड़ दिया. इस पर जवाब देते हुए अमित शाह ने कहा कि आपके जेहन में डर बैठा है तो मैं क्या करूं. इसी कड़ी नौकझोंक के बीच एनआईए (संशोधन) पास हो गया. बिल के समर्थन में 278 और विपक्ष में केवल 6 वोट पड़े. बिल के संशोधन प्रारूप में देश से बाहर किसी अनुसूचित अपराध के संबंध में मामले का पंजीकरण करने और जांच का निर्देश देने का प्रावधान किया गया है.  अब इसे राज्यसभा भेजा जाएगा.

गृह राज्यमंत्री जी किशन रेड्डी ने निचले सदन में विधेयक पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि एनआईए संशोधन विधेयक का उद्देश्य जांच एजेंसी को राष्ट्रहित में मजबूत बनाना है. इससे पहले एनआईए बिल के लिए अमित शाह ने लंबा भाषण दिया और लोकसभा में डिवीज़न ऑफ वोट की मांग की.

जैसे ही स्पीकर ने एनआईए बिल पर वॉइस वोटिंग के लिए आवाज लगाई तो अमित शाह ने यह कहते हुए डिवीज़न ऑफ वोट की मांग की कि देश को यह जानना चाहिए कि कौन आतंकवाद के साथ है और कौन आतंकवाद के खिलाफ है. इसके बाद लोकसभा में डिवीजन ऑफ वोटिंग के बाद एनआईए संशोधन बिल को पास किया गया.

सदन में गृह मंत्री ने कहा कि आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई करने वाली किसी एजेंसी को और ताकत देने की बात हो और सदन एक मत न हो, इससे आतंकवाद फैलाने वालों का मनोबल बढ़ता है. मैं सभी दलों के लोगों से कहना चाहता हूं कि ये कानून देश में आतंकवाद से निपटने में सुरक्षा एजेंसी को ताकत देगा. इतना ही नहीं हम पोटा पर चर्चा के लिए तैयार हैं.

क्या है NIA
राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण या नेशनल इंवेस्टिगेशन एजेंसी (एनआईए) भारत में आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए भारत सरकार द्वारा स्थापित एक संघीय जांच ऐजेंसी है. ऐजेंसी राज्यों से विशेष अनुमति के बिना राज्यों में आतंक संबंधी अपराधों से निपटने के लिए सशक्त है. इस संशोधित बिल के पास होने से जांच एजेंसी को हथियारों की तस्करी, नशीले पदार्थों की तस्करी, मानव तस्करी और साइबर क्राइम जांच संबंधी मामलों को देखने के लिए ज्यादा अधिकार मिल गए हैं. अब राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को आतंकवाद, देश विरोधी गतिविधियों, मानव तस्करी तथा साइबर अपराधों की विदेश में जाकर जांच करने का अधिकार मिलेगा.

राजस्थान विधानसभा की कार्यवाही के यूट्यूब पर सीधे प्रसारण ने पकड़ा तूल

राजस्थान में पहली बार विधानसभा की कार्यवाही का सीधा प्रसारण यूट्यूब के माध्यम से दर्शकों तक पहुंचाया जा रहा है. विधानसभा की कार्यवाही का सीधा प्रसारण दिखाया जाना कितना उचित है इसको लेकर नेताओं और विश्लेषकों के अपने-अपने मत सामने आ रहे हैं.

विधानसभा की कार्यवाही के दौरान कई बार विधायकों की बहस में ऐसे शब्द बोल दिए जाते हैं जो अपशब्दों की श्रेणी में आते हैं. ऐसे शब्दों को सदन की कार्यवाही से हटा दिया जाता है. विधायकों को कार्यवाही का संपादित वीडियो दिया जाता है. लेकिन अब यूट्यूब पर सदन की कार्यवाही को सीधे देखा जा सकता है. यूट्यूब के लिंक के जरिए कार्यवाही टीवी चैनल पर प्रसारित की जा सकती है. इसे सेट टॉप बॉक्स के जरिए रिकॉर्ड भी किया जा सकता है.

कई नेताओं ने विधानसभा की कार्यवाही के यूट्यूब पर सीधे प्रसारण को लेकर सवाल उठाया है. उनकी चिंता यह है कि अब विधानसभा में बोले जाने वाले अपशब्द भी जनता सुनेगी, जबकि अपशब्दों को कार्यवाही से हटाने की परंपरा रही है. यूट्यूब पर सीधे प्रसारण के कारण यह परंपरा भंग हो रही है. हालांकि इससे फायदा भी है. कार्यवाही की सीधा प्रसारण होने से विधायकों को संभलकर बोलना पड़ेगा.

गौरतलब है कि एक बार पहले राजस्थान विधानसभा के प्रश्नकाल का दूरदर्शऩ पर सीधा प्रसारण करने की तैयारी हुई थी. उस समय भी यह व्यवस्था बनी थी कि अगर कोई असंसदीय शब्द सदन में आएगा तो उसे संपादित करके ही प्रसारित किया जाएगा. गोवा में विधानसभा की कार्यवाही का स्थानीय कैबल चैनल पर सीधा प्रसारण होता है. कर्नाटक में भी यह सिलसिला शुरू हुआ था, तब सदन में कुछ विधायक आपत्तिजनक फिल्म देखते हुए कैमरे में कैद हो गए थे.

आम तौर पर संसद और सभी विधानसभाओं में असंसदीय शब्द कार्यवाही से निकाल दिए जाते हैं. इसकी रिपोर्ट लोकसभा को भेजी जाती है. बताया जाता है कि असंसदीय शब्दों में 30-40 फीसदी हिस्सा राजस्थान का होता है. आम आदमी भी निर्धारित शुल्क का भुगतान कर विधानसभा की कार्यवाही की वीडियो रिकॉर्डिंग हासिल कर सकते हैं. अब आम आदमी यूट्यूब से भी कार्यवाही को डाउनलोड कर सकते हैं.

विधानसभा में कई बार तीखी बहस होती है, जिसमें सदस्य अपशब्द बोल जाते हैं. एक बार एक मंत्री ने साले कह दिया. बाद में उन्होंने सफाई दी कि उन्होंने सालेह नाम पुकारा था. विधानसभा में चप्पल उछालने की घटनाएं भी हुई हैं. कई बार उत्तेजित विधायक अध्यक्ष के आसन तक पहुंच जाते हैं. एक बार विधानसभा अध्यक्ष ने विधायकों को गुंडा-बदमाश कह दिया था. ऐसे शब्द कार्यवाही से अपने आप हट जाते हैं. यूट्यूब पर सीधा प्रसारण होने से विधानसभा में होने वाला हंगामा, नारेबाजी, आरोप-प्रत्यारोप आदि जनता सीधे देख सकेगी.

राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी ने कहा है कि विधायकों को सदन की कार्यवाही का संपादित वीडियो ही दिया जाता है, जो कि सीधा प्रसारण नहीं है. यूट्यूब पर सीधा प्रसारण होने के पांच-सात दिन बाद आम जनता सहित सभी संबंधित पक्षों से फीडबैक लिया जाएगा. इसके बाद आवश्यक हुआ तो व्यवस्था में सुधार करेंगे. फिलहाल सदन की कार्यवाही का सीधा प्रसारण किया जा रहा है. फीडबैक के आधार पर कमेटियों की कार्यवाही के सीधे प्रसारण के बारे में फैसला किया जाएगा.

विधानसभा की कार्यवाही के सीधे प्रसारण से विधायकों को भी जिम्मेदार बनना पड़ेगा. विधायक विधानसभा में उपस्थित है या नहीं, विधानसभा अध्यक्ष का अपमान तो नहीं किया जा रहा है, प्रश्न पूछने वाले विधायक सदन से गायब तो नहीं है, सीधे प्रसारण से ये सारी बातें उजागर हो जाएंगी.

राजस्थान विधानसभा के पूर्व उपाध्यक्ष राव राजेन्द्र सिंह ने कहा कि संसद की कार्यवाही का उनके चैनल पर सीधा प्रसारण होता है. लेकिन विधानसभा की कार्यवाही का यूट्यूब पर प्रसारण विरोधाभासी होगा. विधानसभा की व्यवस्था है कि जो जनहित में नहीं है, वह नहीं दिखाया जाए. सीधा प्रसारण होने से यह व्यवस्था भंग होगी.

पूर्व विधानसभा अध्यक्ष सुमित्रा सिंह का कहना है कि कई बार सदन की कार्यवाही के दौरान सदस्य ऐसे शब्द बोल देते हैं, जिनको कार्यवाही से निकालना पड़ता है. जहां तक सीधा प्रसारण का सवाल है, इस बारे में कोई नियम नहीं है.

पूर्व विधायक घनश्याम तिवाड़ी ने कहा कि एक बार विधानसभा की कार्यवाही को लेकर कमेटी बनी थी, जिसने सीधे प्रसारण की सिफारिश की थी. सीधे प्रसारण को लेकर जहां तक नियमों का सवाल है, विधानसभा अध्यक्ष का निर्देश ही नियम होता है.

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