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महाराष्ट्र में विपक्षी गठबंधन की तैयारियां शुरू

महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव की तैयारियां शुरू हो गई हैं. कांग्रेस, राकांपा सहित विभिन्न बीजेपी विरोधी पार्टियों के नेता बैठकें कर चुनाव में एकजुट होने का प्रयास कर रहे हैं. महाराष्ट्र में बीजेपी-शिवसेना की सरकार है. कांग्रेस-राकांपा मुख्य विपक्षी पार्टियां हैं. बीजेपी लोकसभा चुनाव की अपार सफलता से उत्साहित है. लोकसभा चुनाव में राज ठाकरे ने मोदी सरकार के खिलाफ प्रचार किया था लेकिन अपने उम्मीदवार नहीं उतारे थे.

इस तरह उन्होंने संकेत दिया था कि वे बीजेपी-शिवसेना के विरोध में बने रहना चाहते हैं और राज्य की राजनीति में भूमिका निभाना चाहते हैं. अब विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी मनसे भी विपक्षी महागठबंधन में शामिल हो सकती है.

महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बालासाहेब थोरात ने कहा कि शुरूआती बैठकें हो चुकी हैं. हमारी पूरी कोशिश रहेगी कि चुनाव बाद हमारे गठबंधन का मुख्यमंत्री बने. हमारा ध्यान चुनाव जीतने पर है. उम्मीदवार तय करते समय चुनाव जीतने की क्षमता पर विशेष ध्यान दिया जाएगा.

2009 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 174 और राकांपा ने 114 सीटों पर चुनाव लड़ा था. 2014 में दोनों पार्टियों ने अलग-अलग विधानसभा चुनाव लड़ा. इस बार राकांपा के कुछ नेता सीटों में बराबर की हिस्सेदारी मांग रहे हैं, क्योंकि लोकसभा चुनाव के बाद महाराष्ट्र से कांग्रेस का सिर्फ एक सांसद है, जबकि राकांपा के चार सांसद हैं.

थोरात ने कहा कि सीटों की संख्या पर अभी कोई फैसला नहीं किया गया है. बैठकों का सिलसिला जारी है. दोनों पार्टियों को 288 विधानसभा सीटों पर फैसला करना है. अन्य बीजेपी विरोधी पार्टियों को भी गठबंधन से जोड़ने के प्रयास चल रहे हैं. इनमें राजू शेट्टी की पार्टी स्वाभिमानी शेतकरी संघटन, वामपंथी पार्टियां, रिपब्लिकन पार्टी से अलग होकर बनी बहुजन विकास आघाड़ी, राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना शामिल है. थोरात ने कहा कि राज ठाकरे की पार्टी के बारे में बैठक में कोई बात नहीं हुई.

‘सच और न्याय की जीत होती है’

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कुलभूषण जाधव मामले में अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत को पाक बड़ी जीत मिली. आईसीजे ने कुलभूषण जाधव की फांसी पर लगी रोक को जारी रखा है. साथ ही जाधव को काउंसलर एक्सेस की भी सुविधा मिलेगी. खास बात यह रही कि 16 बैंच की अदालत में से 15 जजों ने इस फैसले पर भारत का साथ दिया. एक पक्ष पाकिस्तान की तरफ गया. जाधव फिलहाल पाकिस्तान की जेल में बंद है.

अब इस मामले पर राजनीतिक विशेषज्ञों के कमेंट आने शुरू हुए हैं. ​पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इस बारे में अपने विचार व्यक्त किए हैं.

@ArvindKejriwal

@SushmaSwaraj

@rajnathsingh

@ashokgehlot51

@VasundharaBJP

जाधव मामले में भारत की बड़ी जीत, 16 में से 15 जज रहे भारत के पक्ष में, फांसी पर रोक जारी

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कुलभूषण जाधव मामले में अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत को पाकिस्तान पर फिर बड़ी जीत मिली है. नीदरलैंड के हेग में स्थित अंतरराष्ट्रीय अदालत (ICJ) की 16 जजों की बैंच ने कुलभूषण जाधव की फांसी पर लगी रोक को जारी रखा है. साथ ही जाधव को काउंसलर एक्सेस की भी सुविधा मिलेगी. इस मामले में 16 जजों की बैंच ने 15-1 से अपना फैसला सुनाया है. एक पक्ष पाकिस्तान की तरफ गया है. जाधव फिलहाल पाकिस्तान की जेल में बंद है

बता दें, ईरान के चाबहार में बिजनेस करने वाले भारतीय नौसेना के पूर्व अफसर कुलभूषण जाधव को 3 मार्च, 2016 को बलुचिस्तान से गिरफ्तार किया गया था. पाक सेना ने उनपर आतंकवाद और जासूसी का आरोप लगाया था. इस मामले में पाक की सैन्य अदालत ने उन्हें फांसी की सजा सुनाई थी. इस पर भारत ने 8 मई को आईसीजे में अपील की थी. इस बारे में भारत का मत है कि यह केवल पाकिस्तान का प्रोपेगेंडा है और जाधव को अगवा किया गया था.

इस मामले पर सुनवाई करते हुए आईसीजे ने कहा कि पाकिस्तान ने वियना संधि का उल्लंघन किया है. पाकिस्तान पहले कुलभूषण जाधव की फांसी की सजा पर पुनर्विचार करें और मामले की समीक्षा करे. इस मामले पर नए सिरे से ट्रायल होने की बात भी इंटरनेशनल कोर्ट ने कही है. समीक्षा होने तक जाधव की फांसी की सजा पर रोक जारी रहेगी. कोर्ट ने यह भी कहा है कि काउंसलर एक्सेस मिलना कुलभूषण जाधव का अधिकार है.

कुलभूषण जाधव पर आए आईसीजे के फैसले का रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने स्वागत किया है. साथ ही इस मुद्दे को आईसीजे तक ले जाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद दिया है.

कांग्रेस में असमंजस के आठ हफ्ते, अनौपचारिक बैठकें जारी

राहुल गांधी को इस्तीफा दिए आठ हफ्ते हो चुके हैं, लेकिन उनकी जगह अंतरिम अध्यक्ष नियुक्त करने के लिए आम राय नहीं बन पाई है. गांधी परिवार की तरफ से भी कोई संकेत नहीं मिल रहा है कि किसे अंतरिम अध्यक्ष बनाया जाए. कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्यों के बीच अनौपचारिक बैठकें चल रही हैं. इसमें नए अध्यक्ष का चुनाव होने तक अंतरिम अध्यक्ष के साथ ही एक संचालन समिति गठित करने पर भी विचार हो रहा है. इसके बाद कांग्रेस के संगठनात्मक चुनाव की प्रक्रिया शुरू होगी.

फिलहाल कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक टल रही है. सूत्रों के मुताबिक राहुल गांधी 4-5 दिन दिल्ली से बाहर रहेंगे, इसलिए कम से कम एक हफ्ते तक इस संबंध में किसी फैसले की उम्मीद नहीं है. अंतरिम अध्यक्ष के लिए किसी एक नाम पर सर्वसम्मति नहीं बन पा रही है. अंतरिम अध्यक्ष के लिए कई नाम उभरकर आए हैं, जिनमें पांच दलित हैं. इनके नाम हैं मल्लिकार्जुन खड़गे, सुशील कुमार शिंदे, मुकुल वासनिक, मीरा कुमार और कुमारी सैलजा. बाकी नामों में कर्ण सिंह, आनंद शर्मा, अशोक गहलोत, सचिन पायलट और ज्योतिरादित्य सिंधिया शामिल हैं.

अंतरिम अध्यक्ष के लिए जब अशोक गहलोत, कमलनाथ और कैप्टन अमरिंदर सिंह के नाम पर विचार किया जा रहा था तो बताया जाता है कि तीनों ने ही यह पद संभालने में रुचि नहीं दिखाई. उनका कहना है कि वे अपने राज्यों में संतुष्ट हैं. अशोक गहलोत राजस्थान के मुख्यमंत्री हैं. कमलनाथ मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री हैं. कैप्टन अमरिंदर सिंह पंजाब के मुख्यमंत्री हैं. इससे यह भी संकेत मिलता है कि अगर कांग्रेस में अंतरिम अध्यक्ष की नियुक्ति का फैसला होगा तो जिसे जिम्मेदारी सौंपी जाएगी, वह संभालने के लिए तैयार होगा या नहीं, इसमें संशय है.

बताया जाता है कि राहुल गांधी फिलहाल कांग्रेस के कार्यवाहक अध्यक्ष बने हुए हैं और जरूरी होने पर फैसले भी कर रहे हैं. नियुक्तियां भी हो रही हैं. महाराष्ट्र में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की नियुक्ति हो चुकी है और पांच राज्यों में कार्यवाहक अध्यक्ष नियुक्त किए गए हैं. पार्टी के रोजमर्रा के काम संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल देख रहे हैं, जो राहुल गांधी के नजदीकी माने जाते हैं.

फिलहाल कांग्रेस के संगठन चुनाव कराने के प्रस्ताव की रूपरेखा तैयार की जा रही है. संसद का मौजूदा सत्र 25 जुलाई तक चलेगा. पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक 22 जुलाई से पहले होने की संभावना नहीं है. अक्टूबर में हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. इससे पहले कांग्रेस में नेतृत्व का मुद्दा हल होना जरूरी माना जा रहा है. इन तीन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने तक कांग्रेस एक संचालन समिति का गठन कर सकती है.

कांग्रेस की संचालन समिति में मुकुल वासनिक, मोतीलाल वोरा, गुलाम नबी आजाद, अहमद पटेल और एके एंटनी शामिल हो सकते हैं. हालांकि इस पर अभी औपचारिक फैसला नहीं हुआ है. कांग्रेस के तीन वरिष्ठ नेताओं ने कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्यों से मिलकर सुझाव दिया है कि मौजूदा परिस्थितियों में सोनिया गांधी को अंतरिम अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभालनी चाहिए. इसके बाद कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव कराया जा सकता है. इस पूरे घटनाक्रम में खुद सोनिया गांधी की राय सामने नहीं आ रही है.

राहुल गांधी ने 25 मई को इस्तीफा दिया था. मंगलवार को कांग्रेस के कोषाध्यक्ष अहमद पटेल ने पत्रकारों से अनौपचारिक बातचीत में कहा कि कोई समस्या नहीं है, पार्टी का कामकाज पहले जैसा चल रहा है. महाराष्ट्र में प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति हो गई है. महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए कमेटियां भी बन गई हैं. हरियाणा, झारखंड और दिल्ली विधानसभा चुनावों के लिए भी कमेटियां बनाने की तैयारी चल रही है. प्रियंका गांधी वाड्रा एआईसीसी महासचिव के रूप में उत्तर प्रदेश का प्रभार संभाल रही हैं.

कांग्रेस हाईकमान से जुड़े नेताओं का कहना है कि पार्टी अध्यक्ष नहीं होने पर भी राहुल गांधी कांग्रेस की दिशा तय करते रहेंगे. भाजपा के खिलाफ संघर्ष की प्रक्रिया में राहुल गांधी का महत्वपूर्ण योगदान बना रहेगा. लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद जब राहुल ने इस्तीफा दिया तो ज्यादातर लोगों ने इसे नाटक समझा था. लेकिन अब राहुल गांधी इस्तीफे अड़े हुए हैं तो कांग्रेस खुद नाटकीय स्थिति में फंस गई है. उलटे राहुल ने यह घोषणा भी कर दी है कि गांधी परिवार का कोई सदस्य कांग्रेस अध्यक्ष नहीं बनेगा. इससे कांग्रेस नेताओं में खलबली मची हुई है.

पत्रकार से कांग्रेस के विचारक बने पंकज शर्मा का कहना है कि कांग्रेस की समस्या का मुख्य कारण इसकी लडखड़ाती संगठनात्मक मशीनरी है. वफादारी ने विचारधारा का स्थान ले लिया है. पार्टी पर गिनती के नेताओं का नियंत्रण है, जिससे कांग्रेस का सांस्थानिक ढांचा बदल गया है. पार्टी में नीचे से शीर्ष तक व्यवस्था में क्रमबद्ध बदलाव की जरूरत है. इसमें सत्ता प्राप्ति का स्वभाविक प्रवाह भी आ गया है. सचिव स्तरीय अवरोध अब जनस्तरीय संचार चैनलों में बदल गए हैं. शर्मा की सलाह है कि राहुल गांधी को पार्टी के भीतर एक सामान्य कार्यकर्ता की आवाज बनना चाहिए और इन गंभीर त्रुटियों को खत्म करने के लिए काम करना चाहिए.

कर्नाटक: विधानसभा में इस तरह रहेगा सत्ता का सियासी गणित

कर्नाटक में सियासी संकट टल तो नहीं रहा है लेकिन अब आखिरी पड़ाव नजर आने लगा है. सुप्रीम कोर्ट ने इस्तीफों पर आए बवंडर को साफ करते हुए विधायकों पर सत्र में आने या नहीं आने का निर्णय छोड़ दिया. कल विधानसभा सत्र के दौरान गठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी विश्वासमत प्रस्ताव पेश करेंगे. इस दौरान सत्ता की सियासी गणित क्या कहती है, यह तो सभी जानते हैं लेकिन कैसी रहती है, इसे जानना भी जरूरी है. आइए जानते हैं कि सदन में सत्ता की पहेली किस तरह से काम करेगी.

दरअसल, कर्नाटक विधानसभा में निर्वाचित विधायकों की संख्या 224 है. अगर विश्वासमत के दौरान कांग्रेस के 16 बागी विधायक गैर मौजूद रहते हैं तो विधानसभा में मौजूद विधायकों की संख्या 208 तक पहुंच जाएगी. ऐसे में बहुमत साबित करने के लिए जो जादूई आंकड़ा बचेगा वो 105 विधायक है.

सदन में कांग्रेस के विधायकों की कुल संख्या 79 है जिसमें एक विधानसभा अध्यक्ष भी शामिल है. जेडीएस के पास 37 विधायक हैं. अब 16 विधायक जाने के बाद गठबंधन सरकार के पास कुल 100 विधायक रह जाएंगे. उन्हें एक बसपा विधायक का समर्थन भी प्राप्त है. ऐसे में यह संख्या 101 पर जाकर रूकती है. इनमें एक वोट विधानसभा अध्यक्ष का भी शामिल है. विधानसभा अध्यक्ष उसी समय वोट करता है जब सदन के दोनों पक्षों के वोट बराबर हों. कर्नाटक मामले में शायद यह स्थिति कभी नहीं आएगी.

अब बात करें बीजेपी की तो उनके पास विधानसभा में 105 विधायक पहले से ही मौजूद हैं. 2 निर्दलीय विधायकों ने बीजेपी को पहले ही समर्थन देने की घोषणा कर रखी है. ऐसे में उनके पास कुल विधायकों की संख्या 107 हो जाती है. अगर सदन में बीजेपी के सभी सदस्य मौजूद रहते हैं तो बीजेपी आसानी बहुमत का प्रदर्शन कर सत्ता पर काबिज हो जाएगी.

वहीं गौर करें कर्नाटक की कहानी के दूसरे छिपे हुए पहलू पर तो कहानी इतनी भी सीधी नहीं है. वैसे तो सभी बागी 16 विधायकों के इस्तीफे मंजूर नहीं हुए हैं. ऐसे में उक्त सभी विधानसभा की कार्यवाही में हिस्सा ले सकते हैं. अगर ये सभी विधायक सदन में उपस्थित रहते हैं तो मौजूद कुल विधायकों की संख्या फिर से 224 हो जाएगी. अगर ऐसा होता है तो बहुमत के लिए 113 विधायकों की जरूरत पड़ेगी जो किसी के पास नहीं हैं. उन परिस्थितियों में सरकार का फैसला यही 16 विधायक करेंगे और उनके पास सरकार बनाने या बनी सरकार बिगाड़ने का रिमोर्ट कंट्रोल होगा. फिर ये सभी जैसा चाहें नई या फिर पुरानी सरकार को चला सकते हैं. खैर, इस मूंगेरी लाल के हसीन सपने की सोच केवल एक बनावटी कहानी तक ही सीमित है जिसके घटित होने की संभावना न के बराबर है.

हालांकि बीजेपी पक्ष के नेता बी.एस. येदियुरप्पा पहले ही सत्ता बनाने का दावा कर चुके हैं लेकिन मौजूदा मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी भी पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगोड़ा के सपूत हैं. उन्होंने भी राजनीति में काफी वक्त बिताया है और किसी भी तरीके से कच्ची गोलियां नहीं खेली हैं. 24 घंटे के दरमियान कहीं जेडीएस और कांग्रेस मिलकर कुछ ऐसा न कर दें कि बीजेपी और येदुयप्पा के हाथों से जीती हुई सत्ता की बिसात ​फिसल जाए. हालांकि ऐसी किसी घटना के होने की कोई संभावना तो नहीं है लेकिन राजनीति के चिकने फर्श पर ऐसी घटनाओं को पूरी तरह अनदेखा करना भी ठीक नहीं है.

राजस्थान विधानसभा: धारीवाल और राठौड़ से भिड़े स्पीकर जोशी, पिछली सरकार पर भड़के गहलोत

राजस्थान विधानसभा का सत्र जारी है. जमकर राजनीति चल रही है. मंगलवार को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पिछली बीजेपी सरकार पर जमकर बरसे. अफसरों पर कार्रवाई को लेकर विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी और शहरी विकास मंत्री शांति धारीवाल में बहस हो गई. सीपी जोशी की नेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड़ के साथ भी नोकझोंक हुई, जिसके कारण नारेबाजी के साथ हंगामा हुआ. बीजेपी सदस्यों ने वाकआउट किया.

मुख्यमंत्री गहलोत ने बजट पर बहस का जवाब देते हुए आरोप लगाया कि रिसर्जेंट राजस्थान और एग्रोटेक के नाम पर पिछली सरकार ने करोड़ों रुपए लुटाए. कोई हिसाब नहीं. इतिहास में पहली बार मुख्यमंत्री, मंत्रियों और अफसरों की विदेश यात्राओं के लिए एजेंसी हायर की गई, गजब का रास्ता निकाला. उन्होंने बीजेपी सरकार के कार्यकाल में हुए भ्रष्टाचार से लेकर लोकसभा चुनाव में हार तक का अपने अंदाज में जवाब दिया.

मुख्यमंत्री गहलोत ने कहा कि नेता प्रतिपक्ष विधानसभा की बजाय लोकसभा चुनाव की बात कर रहे हैं. विधानसभा चुनाव में उन्हें जनता ने विपक्ष में बैठाया है. यह तभी तय हो गया था, जब झुंझुनूं में नारे लगे थे – मोदी तुझसे वैर नहीं, वसुंधरा तेरी खैर नहीं. जानता हूं, लोकसभा चुनाव के बाद आप लोग घमंड में हैं, लेकिन जैसे आए हैं, वैसे ही जाएंगे.

गहलोत के संबोधन से पहले नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया ने बहस में भाग लेते हुए तंज कसा कि बजट भाषण में जोधपुर का बार-बार जिक्र हुआ, जबकि गहलोत जोधपुर के नहीं, पूरे प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं. मेवाड़ को इस बजट में ज्यादा कुछ नहीं दिया गया. मेवाड़ से बीजेपी के 15 और कांग्रेस के 10 विधायक हैं, लेकिन बजट में इस क्षेत्र की उपेक्षा हुई है. आपने मेवाड़ के साथ घोर अन्याय किया है.

विधानसभा का प्रश्नकाल नोकझोंक और हंगामे के बीच गुजर गया. स्पीकर डॉ. सीपी जोशी और सदन के उपनेता राजेन्द्र राठौड़ के बीच तीखी नोकझोंक हो गई. जोशी ने राठौड़ के एक सवाल को अप्रासंगिक बताया और उन्हें सवाल करने से रोक दिया. इस पर बीजेपी विधायकों की नारेबाजी शुरू हो गई. दस मिनट तक हंगामा हुआ, उसके बाद बीजेपी के सदस्य सदन से बाहर चले गए. हंगामे के कारण प्रश्नकाल में 10 प्रश्न स्थगित करने पड़े.

नेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड़ ने खातेदारी जमीन पर बजरी खनन से जुड़ा सवाल पूछा था. मंत्री के जवाब के बाद राठौड़ का पूरक प्रश्न था कि अक्टूबर 2012 से मार्च-अप्रैल 2013 तक तत्कालीन कांग्रेस सरकार में बड़ी लीजों की नीलामी हुई थी, इसमें कितने रुपए की रिजर्व प्राइस रखी गई थी? मंत्री प्रमोद जैन भाया ने कहा कि आपने जो जानकारी मांगी है वह बहुत लंबी है इसलिए मैं आपको उपलब्ध करवा दूंगा. लेकिन राठौड़ ने कहा, खुली नीलामी कब हुई, इसकी तारीख ही बता दीजिए. कोई जवाब नहीं मिलने पर राठौड़ ने कहा कि यही हाल रहा तो हम प्रश्न पूछना ही बंद कर देंगे. जोशी ने इसके बाद अगले प्रश्न के पुकार लगा दी. इससे राठौड़ सहित अन्य बीजेपी सदस्य भड़क गए.

जोशी ने राठौड़ से कहा, आप इरिलेवेंट सवाल नहीं करें. आपने जो प्रश्न दिया है इसमें खुली नीलामी कहां से आ गई? राठौड़ ने कहा, मैं यह तो पूछ ही सकता हूं कि खुली नीलामी कब हुई थी. यह नीति से जुड़ा प्रश्न नहीं है. जोशी के अनुमति नहीं देने से बीजेपी सदस्य भड़क गए और नारेबाजी करते हुए अध्यक्ष के आसन के सामने पहुंच गए फिर उन्होंने प्रश्नकाल का बहिष्कार कर दिया.

शून्यकाल में विधानसभा अध्यक्ष जोशी और शहरी विकास एवं आवास मंत्री शांति धारीवाल में वार्ड पार्षद चुनाव में धांधली के मुद्दे पर बहस हो गई. निर्दलीय विधायक संयम लोढ़ा ने आबू रोड नगर पालिका के वार्ड 13 के उपचुनाव में धांधली का मुद्दा उठाया था. उनका आरोप था कि इस उपचुनाव में रिटर्निंग अधिकारी ने गलत परिसीमन किया और दूसरे वार्ड के मतदाताओं को इस वार्ड से जोड़ दिया. इस पर जवाब देते हुए धारीवाल ने कहा कि मामले में एडीएम से जांच करवाई गई थी. इसमें गड़बड़ी तो पाई गई है. लेकिन कार्रवाई के प्रस्ताव के लिए जिला निर्वाचन अधिकारी से रिपोर्ट मंगवाई है, जो अब तक सरकार को नहीं मिली है.

जोशी ने कहा, इस पर मैं आपसे सहमत नहीं हूं. यदि अफसर गड़बड़ी करता है और उसके खिलाफ कार्रवाई नहीं होती है तो क्या मैसेज जाएगा? मैं आपको डायरेक्शन देता हूं कि जिम्मेदार अफसर को आज ही सस्पेंड कीजिए. इस पर उपनेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड़ ने धारीवाल से पूछा कि अब तो अध्यक्ष ने रूलिंग दे दी है, उसको मानोगे या नहीं? इस पर अध्यक्ष ने कहा, मेरी रूलिंग मानने का काम सदन के बाहर है…. नहीं मानेंगे तो मैं बात करूंगा.

 

दो और राज्यों में राज्यपाल की नियुक्ति

बीजेपी के दो वरिष्ठ नेता बीबी हरिचंदन और अनुसुइया उइके क्रमशः आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ के राज्यपाल नियुक्त किए गए हैं. 85 वर्षीय राजपूत बीबी हरिचंदन का नाम विश्व भूषण हरिचंदन है. उन्होंने 1971 में भारतीय जनसंघ में शामिल होने के बाद राजनीति शुरू की थी. इसके बाद उन्होंने ओडिशा में पार्टी अध्यक्ष पद संभाला था. वह पांच वर्ष चिलका और भुवनेश्वर से ओडिशा विधानसभा सदस्य रहे. आपातकाल के दौरान 1975 में वह मीसा (मेंटेनेंस ऑफ इंटरनल सिक्योरिटी एक्ट) के तहत जेल भेजे गए थे.

आपातकाल के बाद वह जनता पार्टी के सदस्य बने और 1977-79 में नीलमणि राउतराय की सरकार में मंत्री रहे. इसके बाद 1980 में वह ओडिशा प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बने और इस पद पर 1988 तक रहे. 1988 में हरिचंदन जनता पार्टी में शामिल हुए और 1990-93 में बीजू पटनायक की सरकार में मंत्री रहे. 1996 में हरिचंदन भाजपा में लौटे और 2000 से 2009 तक ओडिशा की नवीन पटनायक के नेतृत्व वाली बीजद-भाजपा गठबंधन सरकार में मंत्री रहे.

इस दौरान उन्होंने उद्योग मंत्री रहते हुए ओडिशा में कोरियाई इस्पात कंपनी पॉस्को के निवेश का विरोध किया था. हरिचंदन लेखक भी हैं. हाल ही उन्होंने अपनी आत्मकथा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भेंट की थी.

62 वर्षीय आदिवासी नेता अनुसुइया उइके छत्तीसगढ़ में राज्यपाल पद संभालेंगी. वह अप्रैल 2006 से 2012 तक मध्य प्रदेश से राज्यसभा सदस्य रहीं. अनुसुइया उइके छत्तीसगढ़ से भलीभांति परिचित हैं, क्योंकि अविभाजित मध्य प्रदेश में सक्रिय राजनीति करते हुए उनका जीवन गुजरा है.

छत्तीसगढ़ राज्यपाल का पद संभालने में उनका पुराना अनुभव काम आएगा. फिलहाल छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार है और भूपेश बघेल मुख्यमंत्री हैं. राज्यसभा में अनुसुइया उइके सांसद के रूप में काफी सक्रिय रही थीं. अनुसुइया उइके मप्र में छिंदवाड़ा जिले की हैं और छिंदवाड़ा क्षेत्र में विकास कार्यों के लिए कमलनाथ की तारीफ कर चुकी हैं, जो फिलहाल मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं.

आंध्र प्रदेश में हरिचंदन ईएसएल नरसिंहन की जगह पदभार संभालेंगे. नरसिंहन लंबे समय तक आंध्र प्रदेश के राज्यपाल रहे हैं. उनकी नियुक्ति यूपीए सरकार के दौरान हुई थी. छत्तीसगढ़ में अनुसुइया उइके आनंदी बने पटेल की जगह पदभार संभालेंगी, जो कि फिलहाल मध्य प्रदेश की राज्यपाल हैं और छत्तीसगढ़ के राज्यपाल का अतिरिक्त पदभार संभाल रही हैं.

 

कर्नाटक: सुप्रीम कोर्ट ने हल की कुमारस्वामी की मुश्किलें या ​बढ़ाईं

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सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक की कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन सरकार के बागी विधायकों पर फैसला सुनाते हुए विधानसभा स्पीकर आर. रमेश कुमार को नियमानुसार विधायकों के इस्तीफे पर फैसला लेने को कहा है. सुप्रीम कोर्ट ने स्पीकर को खुली छूट दी है कि वह नियमों के हिसाब से फैसला इस्तीफों या फिर विधायकों की अयोग्यता पर पर फैसला ले सकते हैं. सर्वोच्य न्यायालय ने विधायकों को सत्र में शामिल न होने का विकल्प देते हुए कहा है कि बागी विधायकों पर विधानसभा में जाने को लेकर कोई दबाव नहीं है.

चूंकि विधायकों पर फैसला आ चुका है, इस लिहाज से कल विधानसभा में फ्लोर टेस्ट होकर रहेगा. इस्तीफा देने वाले सभी 16 विधायकों को विधानसभा में उपस्थित होना है या फिर नहीं होना, ये फैसला उनपर ही निर्भर है. अगर किसी भी वजह से उक्त 16 विधायक सदन में उपस्थित नहीं होते हैं तो कर्नाटक की गठबंधन सरकार का अल्पमत में आना तय है. ऐसे में बीजेपी के 105 मौजूदा विधायक और दो निर्दलीय विधायकों के समर्थन से बीजेपी आसानी से सरकार बनाने में कामयाब हो जाएगी.

फैसले के तुरंत बाद कर्नाटक के बीजेपी नेता बीएस येदियुरप्पा ने कहा है कि उन्हें पूरा विश्वास है कि उनके पास नंबर हैं और मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी इस्तीफा देंगे.

बता दें, 6 जुलाई को कांग्रेस के 13 और जेडीएस के 3 विधायकों ने ​विधानसभा सचिव को अपना इस्तीफा पेश किया था. उसके बाद उक्त सभी विधायक मुंबई के ​एक होटल में जाकर बैठ गए. स्पीकर आर. रमेश कुमार के इस्तीफा स्वीकार करने में देरी के चलते 15 विधायकों ने सुप्रीम कोर्ट में इस मामले को लेकर अर्जी लगाई और स्पीकर पर त्यागपत्र स्वीकार न करने का आरोप लगाया था. इसी बीच मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने 18 जुलाई को विश्वासमत पेश करने को कहा है.

‘एक व्यक्ति-एक पद’ नीति पर चल रही बीजेपी, दो प्रदेशाध्यक्ष बदले

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की ‘एक व्यक्ति-एक पद’ नीति पर भारतीय जनता पार्टी ने काम करना शुरू कर दिया है. इसी के चलते दो राज्यों के पार्टी प्रदेशाध्यक्षों को बदला गया है. स्वतंत्र देव सिंह को उत्तरप्रदेश बीजेपी का नया अध्यक्ष बनाया है. स्वतंत्र देव सिंह इस वक्त यूपी सरकार में परिवहन मंत्री हैं. चूंकि वे अब यूपी बीजेपी के अध्यक्ष नियुक्त हुए हैं, ऐसे में उन्हें मंत्री पद से इस्तीफा देना होगा.

वहीं चंद्रकांत पाटिल को महाराष्ट्र बीजेपी का नया अध्यक्ष नियुक्त किया गया है. केंद्र सरकार में मंत्री बनने के बाद मौजूदा महेंद्र नाथ पांडेय ने महाराष्ट्र के प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था.

बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव अरुण सिंह ने एक बयान जारी कर कहा है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने स्वतंत्र देव सिंह को यूपी बीजेपी का अध्यक्ष नियुक्त किया है. ये नियुक्ति तत्काल प्रभाव से लागू है.

इससे पहले स्वतंत्र देव सिंह मध्यप्रदेश के इंचार्ज रह चुके हैं. उनके नेतृत्व में पार्टी ने 29 में से 28 सीटें अपने नाम की थीं. देखा जाए तो बीजेपी ने स्वतंत्र देव सिंह को यूपी प्रदेशाध्यक्ष बना बैकवर्ड फैक्टर को साधने की कोशिश की है. वे ओबीसी समुदाय से आते हैं. बता दें, यूपी में 12 सीटों पर विधानसभा उपचुनाव होने हैं. ऐसे में उनकी पहली परीक्षा इन्हीं चुनावों में होगी. वहीं यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ को स्वतंत्र देव की जगह एक नए मंत्री की तलाश होगी.

अगले 6 महीनों तक कांग्रेस रहेगी नेतृत्वविहीन, अगले साल मिलेगा नया कप्तान!

इस बात में कोई शक नहीं है कि कांग्रेस पार्टी अपने कप्तान के बिना नेतृत्वविहीन होकर बिखरने लगी है. कर्नाटक और गोवा में जो होगा, इस बात के पुख्ता प्रमाण हैं. राहुल गांधी के अपने इस्तीफे को सार्वजनिक करने के बाद उनकी फिर से पार्टी की कमान संभालने की संभावनाएं एकदम क्षीण हो चुकी हैं.

कांग्रेस आलाकमान लाख कोशिशों के बाद भी संगठन को नया अध्यक्ष नहीं दिला पाया. अब कांग्रेस के सियासी गलियारों से यह खबर आ रही है कि अगले 6 माह तक कांग्रेस को नया अध्यक्ष नहीं मिलेगा. अगले साल ही इस बारे में कोई फैसला लिया जाएगा. सीड्ब्ल्यूसी की बैठक का आहूत न होना इस बात का साफ संकेत देता है.

सभी की उम्मीदों और सभी तरह की संभावनों को पीछे छोड़ अब कांग्रेस को टीम का नया कप्तान दिल्ली विधानसभा चुनाव या फिर अगले साल के केंद्रीय बजट के बाद ही मिलेगा, यह पक्का है. पता चला है की मौजूदा समय में कांग्रेस आलाकमान अध्यक्ष पद पर नहीं बल्कि कांग्रेस शासित प्रदेशों में अपनी सरकारें बचाने में लगा है. आगामी 6 महीनों में हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसभा चुनाव होने हैं. इन चुनावों में अच्छा प्रदर्शन कर लोकसभा हार को भुलाने की रणनीति पर भी काम हो रहा है.

सियासी झरोखों से खबर तो यह भी आ रही है कि एकदम से कर्नाटक और गोवा में दल बदल के बाद कांग्रेस को राजस्थान और मध्यप्रदेश में गठबंधन के पायों पर टिकी सत्ता की कुर्सी खिसकने का भय लग रहा है. ऐसे में दोनों राज्यों में चल रही गुटबाजी को समाप्त करने के प्रयासों में पार्टी जुटी हुई है. यही वजह है कि 51 दिन बाद भी पार्टी नेतृत्वविहीन है फिर भी आलाकमान चुप्पी साधे बैठा है.

दरअसल हुआ कुछ यूं कि सभी पार्टी नेताओं ने सबसे पहले राहुल गांधी को ही मनाने की जिद पकड़ी थी लेकिन इस बाद राहुल गांधी अपना फैसला नहीं बदला. इसके बाद वरिष्ठ नेताओं ने एक अन्य विकल्प सुझाया है. इसके अनुसार, संगठन के महासचिवों को विशेष अधिकार दे दिए जाएं ताकि जिन राज्यों में चुनाव हैं, वहां के फैसले वे आसानी से ले सकें. इसी बीच पार्टी के चुनाव की प्रक्रिया को भी शुरू कर दिया जाए. 4 राज्यों में जब चुनाव समाप्त हो जाएंगे, तब तक महासचिव अपने-अपने राज्यों का कार्यभार संभालते रहेंगे. उसके बाद पार्टी के नए अध्यक्ष का चुनाव भी कर लिया जाएगा.

हालांकि यह तीसरा रास्ता यूं ही नहीं निकाला गया है. इससे पहले ऐके एंटनी, सुशील कुमार शिंदे, अशोक गहलोत सहित कई नाम अध्यक्ष के तौर पर सामने आए थे लेकिन सभी ने इस जिम्मेदारी को लेने से साफ तौर पर इनकार कर दिया. इसकी वजह शायद यह रही कि सभी नेताओं को यही लगा कि पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद भी असली कंट्रोल तो सोनिया-राहुल-प्रियंका की तिगड़ी के हाथ में ही रहेगी और शायद यह सच भी है.

हालांकि यह तो तय है कि 21 साल बाद कांग्रेस की कमान फिर से एक बार नेहरू-गांधी परिवार से बाहर किसी और नेता के हाथ में होगी. इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के बाद ‘गांधी परिवार’ से सोनिया गांधी 1998 में पार्टी अध्यक्ष बनीं और 2017 तक इस पद पर रहीं.

इस दौरान कांग्रेस 10 साल तक केंद्र की सत्ता पर काबिज रही और डॉ. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने. इसके बाद राहुल गांधी की ताजपोशी हुई. अब इस पार्टी की लगाम किसी गैर गांधी नेता के हाथों में संभलाई जाएगी. इन सभी बातों पर गौर करते हुए माना यही जा रहा है कि कांग्रेस को नेतृत्वकर्ता के लिए कुछ महीने और इंतजार करना पड़ेगा.

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