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क्रिकेट के मैदान से सियासी पिच पर दौड़ लगाने को तैयार है एक और खिलाड़ी

क्रिकेट का राजनीति से संबंध पुराना है. क्रिकेट से संन्यास लेकर राजनीति की सियासी पिच पर दौड़ते हुए कई खिलाड़ियों को अब तक देखा जा चुका है. नवजोत सिंह सिद्धू से लेकर भारतीय टीम के पूर्व कप्तान मो.अजहरू​दीन और हाल में चुनाव जीत लोकसभा में पहुंच गौतम गंभीर. क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर भी राज्यसभा सांसद रह चुके हैं. इसी राह पर चलते हुए एक और खिलाड़ी सियासत की गलियों में दौड़ने को तैयार है. वह नाम है भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान और विकेटकीपर महेंद्र सिंह धोनी.

महेंद्र सिंह धोनी मौजूदा भारतीय क्रिकेट टीम का हिस्सा हैं. भारतीय टीम के आईसीसी विश्वकप से बाहर होने के बाद धोनी पर संन्यास की अटकलें लग रही हैं. हालांकि उन्होंने इस बारे में कोई टिप्पणी फिलहाल नहीं की है लेकिन पूर्व केंद्रीय मंत्री और बीजेपी के वरिष्ठ नेता संजय पासवान का बयान उनके राजनीति में आने की बात की पुष्टि कर रहा है. पासवान ने कहा कि ‘धोनी बीजेपी जॉइन कर सकते हैं और इस बारे में काफी लंबे समय से बात चल रही है. हालांकि इस पर कोई फैसला धोनी के संन्यास के बाद ही लिया जाएगा. संन्यास के बाद धोनी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की टीम का हिस्सा बन सकते हैं.’

पासवान ने यह भी बताया कि धोनी मेरे परिचित हैं. वह विश्व प्रसिद्ध खिलाड़ी हैं और उन्हें पार्टी के साथ जोड़ने की कोशिशें जारी हैं. लोकसभा चुनावों से पहले बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने अपने ‘संपर्क फॉर समर्थन’ कार्यक्रम के दौरान धोनी से मुलाकात की थी.

वैसे भी धोनी अपनी लाइफ के 38 बसंत पूरे कर चुके हैं. विश्वकप शुरू होने से पहले ही माना जा रहा था कि यह उनका अंतिम विश्वकप होगा. उनके संन्यास और राजनीति में जाने की अटकलों पर इसलिए भी गति मिल रही है क्योंकि धोनी झारखंड की राजधानी रांची के रहने वाले हैं. झारखंड में इसी साल विधानसभा के चुनाव भी होने हैं. ऐसे में किसी भी बीजेपी विरोधी सीट से धोनी प्रत्याशी के तौर पर चुनाव में खड़े होते हैं तो उनका जीतना तय है, इसमें कोई दोराय नहीं होगी.

वर्तमान में झारखंड में रघुवर दास की बीजेपी सरकार है. बता दें, इसी साल लोकसभा चुनावों से पहले इंडियन टीम के सलामी बल्लेबाज गौतम गंभीर भी अंतराष्ट्रीय खेल जगत से संन्यास लेकर बीजेपी में शामिल हुए थे. उसके बाद उन्होंने चुनाव लड़ा और दिल्ली से सांसद बन लोकसभा में पहुंचे हैं. अब सब कुछ योजना के मुताबिक रहा तो झारखंड चुनावों में महेंद्र सिंह धोनी भी स्थानीय जनता से वोट मांगते हुए नजर आ सकते हैं.

खैर, धोनी के अंतराष्ट्रीय करियर की बात करें तो 38 वर्षीय धोनी ने अपने करियर की शुरूआत 2004 में बांग्लादेश के खिलाफ की थी. 2007 में उन्हें भारतीय टीम की कमान सौंपी गई और इसी साल उन्होंने पहला टी20 विश्वकप देश की झोली में डाल दिया. उनकी कप्तानी में भारतीय टीम ने 2011 का विश्वकप अपने नाम किया. धोनी ने 350 वनडे मैच में 10773 रन बनाए हैं. 90 टेस्ट में उनके नाम 4876 अंतर्राष्ट्रीय रन दर्ज हैं. वे आईपीएल में चेन्नई सुपरकिंग्स के कप्तान भी हैं और अपने टीम को 3 बार खिताब दिला चुके हैं.

मॉब लिन्चिंग पर मायावती का बड़ा बयान, सख्त कानून बनाने की मांग

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बसपा सुप्रीमो मायावती ने मॉब लिन्चिंग को लेकर बीजेपी पर निशाना साधा है. उनका कहना है कि बीजेपी सरकार की नीति की वजह से सर्वसमाज के लोग इसका शिकार हो रहे हैं. दरअसल उन्होंने अपना यह स्टेटमेंट सोशल मीडिया पर पोस्ट किया है. इस पोस्ट में उन्होंने सर्वसमाज के लोग ही नहीं बल्कि पुलिस को भी मॉब लिन्चिंग का शिकार बताया है. मायावती ने मॉब लिन्चिंग पर कोई कानून बनाने की मांग भी रखी है.

आज किए गए ट्वीट में उन्होंने कहा, ‘मॉब लिन्चिंग एक भयानक बीमारी के रूप में देश भर में उभरने के पीछे वास्तव में खासकर बीजेपी सरकारों की कानून का राज स्थापित नहीं करने की नीयत व नीति की ही देन है जिससे अब केवल दलित, आदिवासी व धार्मिक अल्पसंख्यक समाज के लोग ही नहीं बल्कि सर्वसमाज के लोग व पुलिस भी शिकार बन रही है.’

अपने ट्वीट में उन्होंने आगे लिखा, ‘माननीय सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद केन्द्र को गम्भीर होकर मॉब लिन्चिंग पर अलग से देशव्यापी कानून अब तक जरूर बना लेना चाहिये था लेकिन लोकपाल की तरह मॉब लिंचिग के मामले में भी केन्द्र उदासीन है व कमजोर इच्छाशक्ति वाली सरकार साबित हो रही है. ऐसे में यूपी विधि आयोग की पहल स्वागतोग्य है.’

बता दें, हाल में विधि आयोग के अध्यक्ष (सेवानिवृत्त) आदित्य नाथ मित्तल ने मॉब लिन्चिंग की रिपोर्ट के साथ तैयार मसौदा विधेयक उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के समक्ष पेश किया है. इस 128 पन्नों की रिपोर्ट में प्रदेश में मॉब लिन्चिंग के अलग-अलग मामलों का जिक्र है. रिपोर्ट में इस बात का खासतौर पर जिक्र किया है कि वर्तमान कानून मॉब लिन्चिंग से निपटने में सक्षम नहीं है. ऐसी दुस्साहसिक घटनाओं के लिए एक अलग कानून होना चाहिए.

कर्नाटक में विश्वासमत हासिल करने के लिए तैयार कुमारस्वामी

कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने आश्चर्यजनक तरीके से विधानसभा में विश्वासमत हासिल करने की पेशकश की है. कर्नाटक में कांग्रेस और जनता दल (सेक्युलर) के 16 विधायकों के इस्तीफे के बाद कयास लगाए जा रहे हैं कि कुमारस्वामी की सरकार बचेगी या नहीं? इनमें से 10 विधायकों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करते हुए इस्तीफे पर जल्दी फैसला करने की मांग की थी. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने विधानसभा अध्यक्ष केआर रमेश कुमार को इस्तीफों पर जल्दी फैसला करने का निर्देश दिया था. रमेश कुमार ने विधायकों के इस्तीफे मंजूर करने में संवैधानिक बाध्यता बताई थी. इन विधायकों ने एक जुलाई को इस्तीफा दिया था.

विधानसभा अध्यक्ष की याचिका और कर्नाटक सरकार का पक्ष सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने विधायकों के इस्तीफे के मामले में मंगलवार 16 जुलाई तक यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया है. सुप्रीम कोर्ट का सवाल है कि क्या विधानसभा अध्यक्ष को सुप्रीम कोर्ट के आदेश को चुनौती देने का अधिकार है? सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर विधानसभा अध्यक्ष रमेश कुमार ने भी याचिका पेश की थी, जिसकी सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह सवाल किया. सुनवाई कर रही बैंच में प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस अनिरुद्ध बोस शामिल हैं. बागी विधायकों की ओर से वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि विधानसभा अध्यक्ष ने इस्तीफे पर अभी तक कोई फैसला नहीं किया है.

बहरहाल सुप्रीम कोर्ट ने बागी विधायकों और विधानसभा अध्यक्ष रमेश कुमार की याचिकाओं पर सुनवाई 16 जुलाई तक स्थगित कर दी है. तब तक रमेश कुमार बागी विधायकों के इस्तीफे पर कोई फैसला नहीं करेंगे. विधानसभा अध्यक्ष और बागी विधायकों ने जो मुद्दे उठाए हैं, उन पर सुप्रीम कोर्ट में फैसला होगा. मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने आरोप लगाया कि सुप्रीम कोर्ट ने विधानसभा अध्यक्ष को नोटिस दिए बगैर ही आदेश पारित कर दिया था. कुमारस्वामी की ओर से वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने कहा कि बागी विधायकों की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट को विचार नहीं करना चाहिए था. विधायकों ने राज्य सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं. इसके बावजूद सरकार का पक्ष सुने बगैर सुप्रीम कोर्ट ने आदेश पारित कर दिया.

10 विधायकों के इस्तीफे के मामले में सुप्रीम कोर्ट का यथास्थिति बनाए रखने का आदेश जारी होने के करीब 10 मिनट बाद ही बेंगलुरु में मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने विधानसभा में विश्वासमत लाने की पेशकश की. कर्नाटक विधानसभा का सत्र शुक्रवार को ही शुरू हुआ है. सत्र के पहले दिन कुमारस्वामी ने कहा कि बहुमत के बगैर मुख्यमंत्री बने रहना उचित नहीं है. उन्होंने कहा, मैं उन लोगों में से नहीं हूं, जो बहुमत नहीं होने पर भी सत्ता में बने रहना चाहते हैं. उन्होंने विधानसभा अध्यक्ष रमेश कुमार से विश्वासमत प्रस्ताव के लिए समय तय करने को कहा है. कुमारस्वामी बुधवार 17 जुलाई को विधानसभा में विश्वासमत हासिल करना चाहते हैं.

अगर बागी विधायकों के इस्तीफे मंजूर हो गए तो वे किसी भी अन्य पार्टी के टिकट पर अगला चुनाव लड़ सकते हैं. उन्हें मंत्री भी बनाया जा सकता है, लेकिन इसके लिए उन्हें छह महीने के भीतर चुनाव लड़कर जीतना होगा. अगर बागी विधायकों के इस्तीफे मंजूर नहीं होते हैं तो सदन में विश्वासमत प्रस्ताव के दौरान उन्हें पार्टी व्हिप के अनुसार मतदान करना होगा. अगर वे व्हिप का उल्लंघन करेंगे तो संबंधित पार्टियां विधानसभा अध्यक्ष से उन्हें सदस्यता से अयोग्य घोषित करने की मांग कर सकती हैं. अगर कोई विधायक दसवीं अनुसूची के तहत अयोग्य घोषित होता है तो वह दुबारा चुनाव जीते बगैर मंत्री या ऐसे किसी अन्य समकक्ष पद पर नियुक्त नहीं किया जा सकता.

कर्नाटक विधानसभा में 224 सदस्य हैं. 16 विधायकों के इस्तीफे मंजूर होने के बाद सत्तारूढ़ दल के विधायकों की संख्या 101 रह जाएगी, जबकि भाजपा के विधायकों की संख्या 105 है. इसके साथ ही दो निर्दलीय विधायकों का समर्थन भी भाजपा को है. अगर 11 विधायकों के इस्तीफे भी मंजूर हो गए तो भाजपा विश्वासमत प्रस्ताव में जीत सकती है. जेडीएस-कांग्रेस गठबंधन की सरकार बची रहे, इसके लिए कम से कम 6 बागी विधायकों का सत्तारूढ़ गठबंधन में लौटना जरूरी है. इसके अलावा कुछ भाजपा विधायकों का गैरहाजिर रहना भी जरूरी है.

मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी को पूरी उम्मीद है कि वह विश्वासमत जीत लेंगे. जिन 16 विधायकों ने इस्तीफे दिए हैं, उनमें से 14 को गठबंधन में वापस लाने के प्रयास जारी हैं. दो विधायक कांग्रेस के रमेश झरकीहोली और जेडीएस के एच विश्वनाथ भाजपा में शामिल होने का फैसला कर चुके हैं, इसलिए उनसे संपर्क नहीं किया जा रहा है. बेंगलुरु के चार विधायक और दो वरिष्ठ कांग्रेस विधायक रामलिंगा रेड्डी और आर रोशन बेग मुख्यमंत्री कुमारस्वामी से बातचीत के बाद वापस सत्तारूढ़ गठबंधन में लौटने के लिए तैयार बताए जाते हैं. रामलिंगा रेड्डी और रोशन बेग के खिलाफ कई करोड के पोंजी घोटाले के आरोप हैं, जिनकी जांच पुलिस कर रही है.

इस पूरे घटनाक्रम के दौरान भाजपा चुप्पी साधे हुए है. भाजपा शुक्रवार को विधासनभा की कार्य सलाहकार परिषद की बैठक से भी दूर रही, जिसमें कुमारस्वामी ने विश्वासमत हासिल करने की पेशकश की थी. कर्नाटक प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बीएस येदियुरप्पा ने कहा कि उन्हें सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार है. इस बीच विधायकों की बाड़ाबंदी तेज हो गई है. जेडीएस और भाजपा के सभी विधायक शुक्रवार शाम से ही बेंगलुरु से बाहर किसी रिसोर्ट में चले गए हैं.

यह चर्चा भी सुनने में आ रही है कि कुमारस्वामी सत्ता में बने रहने के लिए भाजपा से भी संपर्क बनाए हुए हैं. गुरुवार रात कुमारस्वामी के विश्वस्त पर्यटन मंत्री सारा रमेश ने कुछ भाजपा नेताओं के साथ बैठक की थी, उसके बाद से इस तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं. इस बैठक में भाजपा महासचिव पी मुरलीधर राव भी शामिल थे. हालांकि कुमारस्वामी ने कहा है कि इस बैठक को ज्यादा महत्व नहीं दिया जाना चाहिए. मुरलीधर राव ने भी किसी सार्वजनिक स्थल पर जेडीएस के किसी मंत्री के साथ बैठक करने से इनकार किया है.

 

गोवा में मंत्रिमंडल विस्तार आज, कवलेकर बन सकते हैं डिप्टी सीएम

गोवा सरकार के मंत्रिमंडल का आज विस्तार होना है. शपथग्रहण समारोह दोपहर 3 बजे राजभवन में होगा. सत्तारुढ़ बीजेपी में शामिल होने वाले कांग्रेस के तीन असंतुष्ट विधायकों समेत 4 विधायकों को मंत्रिमंडल में शामिल किया जा सकता है.

सूत्रों के मुताबिक, वर्तमान डिप्टी स्पीकर माइकल लोबो, बाबूश मोन्सेरात और फिलिप नेरी रॉड्रिग्स को मंत्रिमंडल में जगह मिलेगी. कांग्रेस से आए चंद्रकांत कवलेकर को डिप्टी सीएम बनाया जा सकता है. गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने जीएफपी के तीन विधायकों और निर्दलीय विधायक रोहन खुंटे से कैबिनेट से इस्तीफा देने को कहा है.

बता दें कि गोवा विधानसभा में अब बीजेपी के विधायकों की संख्या 27 हो गई है. अब उन्हें बहुमत साबित करने के लिए गोवा फॉरवर्ड और निर्दलीय विधायकों की जरूरत नहीं है. ऐसे में उन्हें साइड लाइन किया जा सकता है.

वहीं कांग्रेस से बीजेपी में आए 10 विधायकों में से कुछ को मंत्री पद देकर उनका विश्वास जीतने की कोशिश की जाएगी. कहा जा रहा है कि एक अन्य निर्दलीय विधायक गोविंद गावडे को मंत्रिमंडल से नहीं निकाला जाएगा. फिलहाल 40 सदस्यीय गोवा विधानसभा में बीजेपी के 27, कांग्रेस के पांच, गोवा फॉरवर्ड पार्टी के तीन, मगो पार्टी का एक, राष्ट्रवादी कांग्रेस का एक और तीन निर्दलीय विधायक मौजूद हैं.

लोकसभा में स्वच्छता अभियान, स्पीकर ओम बिड़ला सहित अन्य सांसदों ने लगाई परिसर में झाडू

लोकसभा सदन परिसर में स्वच्छता अभियान में अहम पहल करते हुए स्पीकर ओम बिड़ला के नेतृत्व में अन्य सांसदों ने सदन परिसर में झाडू लगाई. इस पहल में ओम बिड़ला, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, सांसद हंसराज हंस, सांसद हरदीप एस.पुरी, डॉ. हर्षवर्धन, सांसद अनुराग ठाकुर और हेमा मालिनी सहित कई सांसद शामिल रहे. इस दौरान हेमा मालिनी मशीन से पोछा मारते हुए नजर आई.

बता दें, जब से ओम बिड़ला लोकसभा अध्यक्ष बने हैं, नए नए तरीकों से सभी का ध्यान आकर्षित करते रहते हैं. हाल ही में उन्होंने रेल बजट पर पहली बार चुने गए सभी सांसदों को खुद फोन कर बोलने का समय लेने का अनुरोध किया. इसके साथ ही उन्होंने दर्शक दीर्घा में संख्या बढ़ाने की बात भी कही है.

गौरतलब है कि राजस्थान की कोटा-बूंदी लोकसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी के सांसद ओम बिड़ला 19 जून को 17वीं लोकसभा के निर्विरोध अध्यक्ष चुने गए. उन्हें राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने अपना उम्मीदवार बनाया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सदन में बजट सत्र के तीसरे दिन बिड़ला के समर्थन में प्रस्ताव पेश किया, जिसे ध्वनिमत से पारित कर दिया गया.

कर्नाटक – गोवा के मद्देनजर राजस्थान-मध्यप्रदेश में हाई अलर्ट

कर्नाटक और गोवा में कांग्रेस विधायकों को भाजपा की तरफ खींचने का जो अभियान चला, उससे राजस्थान और मध्यप्रदेश में हाई अलर्ट की स्थिति है. इन दोनों राज्यों में कांग्रेस की सरकारें हैं और बहुत ही मामूली बहुमत के आधार पर टिकी हुई है. दोनों जगह कांग्रेस सरकारें बाहरी समर्थन की बदौलत चल रही हैं.

मध्यप्रदेश में कांग्रेस की कमलनाथ सरकार के पास पूर्ण बहुमत नहीं है. सपा-बसपा के एक-एक और कुछ निर्दलीय विधायकों के समर्थन से कमलनाथ सरकार चल रही है. यही स्थिति राजस्थान में है. राजस्थान में भी कांग्रेस का पूर्ण बहुमत नहीं है. करीब एक दर्जन निर्दलीय विधायकों ने अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बनाने की शर्त पर कांग्रेस सरकार को समर्थन दे रखा है.

फिलहाल मप्र और राजस्थान में कांग्रेस एकजुट नजर आ रही है, लेकिन स्थिति कभी भी डांवाडोल हो सकती है. मप्र में मुख्यमंत्री कमलनाथ और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह कांग्रेस विधायकों पर नजर बनाए हुए हैं. दोनों को लग रहा है कि बीजेपी कभी भी कांग्रेस के विधायकों को तोड़ सकती है. कांग्रेस को भाजपा के इरादों में अब कोई संदेह नहीं है. बीजेपी ने जिस तरह कर्नाटक में जदएस-कांग्रेस की सरकार को डांवाडोल करने का खेल खेला है और गोवा में कांग्रेस के तमाम ईसाई विधायकों को भाजपा में शामिल किया है, वह साधारण नहीं है. यह बीजेपी का कांग्रेस की सरकारें गिराने का एक नया तरीका है.

दरअसल बीजेपी ने देश को कांग्रेस मुक्त बनाने का अभियान चला रखा है और जहां भी कांग्रेस मजबूत है, उसे कमजोर करना बीजेपी का लक्ष्य है. इस अभियान में बीजेपी अपनी पूरी ताकत लगा रही है. कांग्रेस को बीजेपी की रणनीति समझ में आने लगी है. गुरुवार को कांग्रेस सांसदों ने अन्य विपक्षी सांसदों के साथ इस मुद्दे पर बैठक की और महात्मा गांधी की प्रतिमा के सामने भाजपा के ऑपरेशन पोचिंग के खिलाफ विपक्षी पार्टियों का धरना आयोजित करने का फैसला किया. इसके बाद उन्होंने लोकसभा में यह मुद्दा उठाया.

लोकसभा में लगातार 13 घंटे चली कार्यवाही, टूटा दो दशक पुराना रिकॉर्ड

11 जुलाई, 2019 की तारीख देश के संसदीय इतिहास में दर्ज हो गई. 11 जुलाई को शुरू हुई लोकसभा की कार्यवाही लगातार 13 घंटे तक चली. पिछले 20 साल की संसदीय कार्यवाहियों में यह सबसे ज्यादा देर चलते वाली कार्यवाही है. एक तरह से कहें तो यह पिछले दो दशकों का सबसे अधिक संसदीय कार्यवाही चलने का नया रिकॉर्ड है. सुबह 11 बजे शुरू होकर लोकसभा की कार्यवाही करीब मध्यरात्रि 11 बजकर 59 मिनट तक चली जो पिछले बीस सालों में सबसे ज्यादा देर तक चलने वाली कार्यवाही रही. इस दौरान प्रश्नकाल और शून्यकाल के अलावा आम बजट में रेलवे से जुड़ी अनुदान मांगों पर चर्चा की गई.

दरअसल मौजूदा लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला की पहल पर सभी दलों ने तय किया कि एक ही दिन की सिटिंग में आम बजट में रेलवे मंत्रालय से जुड़ी अनुदान मांगों पर चर्चा पूरी कर ली जाए. ये भी तय किया गया कि चर्चा में अधिक से अधिक सांसदों को बोलने का मौका दिया जाए. साथ ही पहली बार आए सांसदों को प्राथमिकता दी जाए. इसके बाद स्पीकर कार्यालय ने खुद पहल कर सभी पार्टियों के नेताओं को फोन करना शुरू किया. इस दौरान करीब 90 सांसदों ने बोलने का नोटिस दिया.

इससे पहले 26 जुलाई, 1996 को लोकसभा की कार्यवाही सुबह 11 बजे से अगले दिन सुबह 7:10 बजे तक यानी करीब 20 घंटे चली थी. यह रेल बजट पर चर्चा का अंतिम दिन था. उस वक्त एचडी देवगौड़ा सरकार में रामविलास पासवान रेल मंत्री थे. यह लोकसभा इतिहास का सबसे अधिक कार्यवाही करने वाला दिन भी रहा. उस दिन चर्चा में सबसे आखिरी वक्ता बीजेपी के भानु प्रताप सिंह वर्मा थे जो पहली बार सांसद चुनकर आए थे. भानु प्रताप वर्मा आज भी उत्तर प्रदेश के जालौन से बीजेपी के सांसद हैं और 11 जुलाई को भी सदन में उपस्थित थे.

8 दिन में तीसरी बार कोर्ट में पेश हुए राहुल गांधी, मानहानि मामले में मिली जमानत

कांग्रेस नेता राहुल गांधी को एक और मानहानि के मामले में 15 हजार रुपये के मुचलके पर जमानत मिली है. आज राहुल गांधी अहमदाबाद पहुंचे और कोर्ट मेट्रोपालिटन मजिस्ट्रेट की अदालत में पेश हुए. मानहानि का यह मुकदमा पिछले साल तब दायर किया गया था जब राहुल गांधी और रणदीप सुरजेवाला ने दावा किया था कि अहमदाबाद जिला सहकारी बैंक नोटबंदी की घोषणा के पांच दिन के अंदर करीब 745 करोड़ रुपये के बंद हो चुके नोटों को बदलने के घोटाले में शामिल था.

पिछले आठ दिनों में तीसरी बार है जब राहुल गांधी तीन अलग-अलग मानहानि के मामले में अदालत में पेश हुए हैं. वे पिछले दिनों पटना और मुंबई की अदालत में पेश हुए थे.

इससे पहले मानहानि केस के इस मामले में कोर्ट ने अप्रैल में सुनवाई की थी और तब कोर्ट ने राहुल गांधी को 27 मई को पेश होने के आदेश दिए थे. इस पर राहुल गांधी ने कोर्ट से अपील की थी कि उन्हें अधिक समय दिया जाए. इस मांग को कोर्ट ने स्वीकार कर लिया था और राहुल गांधी को 12 जुलाई को कोर्ट के सामने पेश होने का आदेश दिया था.

इससे पहले, मानहानि के दो अन्य मामलों में राहुल गांधी को जमानत मिल चुकी है. छह जुलाई को राहुल गांधी पटना सिविल कोर्ट में पेश हुए थे जहां से उन्हें 10 हजार रुपये के निजी मुचलके पर जमानत मिली थी. वहीं मुंबई की एक अदालत ने राहुल गांधी को आरएसएस के एक कार्यकर्ता द्वारा दायर मानहानि मामले में 15 हजार रुपये के निजी मुचलके पर जमानत दी थी.

कभी सियासत की सिरमौर रही कांग्रेस पार्टी का अस्तित्व आज खतरे में है

कांग्रेस के अस्तित्व पर ऐसा संकट कभी नहीं आया, जैसा आज दिख रहा है. कांग्रेस देश की सबसे पुरानी पार्टी है. कभी देश की सियासत की सिरमौर रही कांग्रेस, जिसकी तूती पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण हर दिशा में बोलती थी. वही कांग्रेस आज अपने अस्तित्व को बचाने की लड़ाई लड़ रही है. 2014 के बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस बुरी तरह हारी. इसके बाद राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया तो पार्टी के नेता एक महीने से ज्यादा समय से नया अध्यक्ष चुनने की बजाय उनकी मान-मनुहार में जुटे रहे. राहुल गांधी पर इस मान-मनुहार का कोई असर नहीं हुआ और अब कांग्रेस बिना कप्तान का जहाज बन गई है.

कर्नाटक का सियासी घमासान अपने चरम पर है और गोवा में कई विधायक पार्टी छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए हैं. कांग्रेस में नया अध्यक्ष चुनने की तैयारी भी नहीं दिख रही है. इस संबंध में कांग्रेस कार्य समिति की बैठक तक नहीं बुलाई गई. यह ढीला रवैया देखकर कई वरिष्ठ नेता ये मानने लगे हैं कि मौजूदा संकट जल्द ही नहीं सुलझा तो कांग्रेस पार्टी खत्म हो जाएगी.

देखा जाए तो यह चर्चा आधारहीन भी नहीं. राहुल गांधी के अध्यक्ष पद छोड़ने से लेकर अभी तक के घटनाक्रम और कांग्रेस नेताओं के बयान इसी तरफ इशारा कर रहे हैं कि पार्टी आजाद भारत में अपने सबसे बुरे दौर गुजर रही है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने यहां तक कह दिया कि ऐसा लग रहा है जैसे भाजपा कांग्रेस को खत्म करने के लिए ही सत्ता में आई है.

लोकसभा चुनाव हारने के बाद निराश होकर राहुल गांधी ने इस्तीफा दिया. उसके बाद पार्टी पदाधिकारियों में एक के बाद एक पद छोड़ने की होड़ लग गई. तब मौके के नजाकत को देखते हुए नए अध्यक्ष के चुनाव का सिलसिला शुरू होना चाहिए था. लेकिन पूरी पार्टी का ध्यान राहुल गांधी को मनाने पर रहा. पार्टी बगैर अध्यक्ष चलती रही और इसी का परिणाम है कि पार्टी टूटने का सिलसिला शुरू हो गया है.

कर्नाटक में कांग्रेस के 13 विधायकों ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है, जिससे वहां की जेडीएस-कांग्रेस गठबंधन सरकार संकट में आ गई है. कर्नाटक उथल-पुथल के बीच गोवा में भी कांग्रेस के 15 में से 10 विधायकों ने पार्टी छोड़ दी और बीजेपी में शामिल हो गए.

अन्य राज्यों में भी कांग्रेस नेताओं के अलग-अलग गुट बने हुए हैं. कांग्रेस शासित मध्यप्रदेश में पार्टी नेताओं की गुटबाजी जगजाहिर है. मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री कमलनाथ पर पार्टी के खराब प्रदर्शन के कारण इस्तीफा देने का दबाव है. ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक इस दिशा में सक्रिय हो गए हैं. गुरुवार को सिंधिया समर्थक तुलसी सिलावट के बंगले पर हुए भोज के बाद गुटबाजी के कयास तेज हो गए हैं. हालांकि इस भोज में कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ ही सरकार को समर्थन दे रहे सभी निर्दलीय, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के विधायक भी शामिल थे.

बताया जाता है कि कर्नाटक और गोवा के घटनाक्रम से सतर्क कांग्रेस मध्य प्रदेश में सभी विधायकों को एकजुट रखने का प्रयास कर रही है. इसीलिए सिलावट ने सभी विधायकों के लिए भोज का आयोजन किया था. लेकिन कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि इस भोज के जरिए ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपनी ताकत दिखाने का प्रयास किया है. सिंधिया ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि यह समय कांग्रेस के लिए गंभीर है और जल्द से जल्द कोई फैसला होना चाहिए. राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट के बीच चल रही आपसी खींचतान किसी से छुपी हुई नहीं है.

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जनार्दन द्विवेदी भी पार्टी की मौजूदा स्थिति से दुखी हैं. उन्होंने राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद नया पार्टी अध्यक्ष चुनने के लिए अब तक कांग्रेस कार्य समिति की बैठक नहीं होने पर नाराजगी जाहिर की है. संकेत यही है कि कांग्रेस का नया अध्यक्ष नहीं चुना गया तो आगे पार्टी का अस्तित्व बनाए रखना मुश्किल हो जाएगा.

केंद्रीय कर्मचारियों के लिए सोशल मीडिया एवं इंटरनेट नीति घोषित

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केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पहली बार केंद्र सरकार के सभी कर्मचारियों के लिए सोशल मीडिया एवं इंटरनेट नीति घोषित की है. इसके तहत कर्मचारी सरकारी उपकरण के माध्यम से सोशल मीडिया का इस्तेमाल नहीं कर सकेंगे. इनमें मोबाइल फोन और कंप्यूटर शामिल हैं. इसके साथ ही यह निर्देश भी दिया गया है कि कोई भी कर्मचारी किसी ऐसे कंप्यूटर पर वर्गीकृत कार्य नहीं करेगा, जो इंटरनेट से जुड़ा हो. स्टैंडएलोन सिस्टम पर ही वर्गीकृत कार्य किए जा सकते हैं.

ये नियम सभी नियमित कर्मचारियों, संविदा कर्मचारियों, सलाहकारों, भागीदारों और प्रशासन की प्रक्रिया से अगर कोई तीसरे पक्ष का व्यक्ति जुड़ा हो तो उस पर भी लागू होंगे. सरकार से जुड़ी कोई भी सूचना सोशल मीडिया, सोशल नेटवर्किंग साइट या किसी अन्य माध्यम पर बगैर अनुमति डालने पर पाबंदी रहेगी. ये दिशानिर्देश गृह मंत्रालय के साइबर एवं इन्फॉर्मेशन सिक्योरिटी विभाग ने तैयार किए हैं. यह विभाग साइबर अपराधों पर निगरानी रखता है. इसी के तहत नेशनल इन्फॉर्मेशन सिक्योरिटी पॉलिसी एंड गाइडलाइंस (एनआईएसपीजी) तैयार की गई है.

सूत्रों के मुताबिक रोजाना आम तौर पर सरकारी पोर्टल हैक करने के करीब 30 प्रयास होते हैं. ये प्रयास ज्यादातर विदेशी कंपनियां करती हैं. सरकारी आंकड़े और सूचनाएं चोरी होने से रोकने से रोकने के लिए यह नीति तैयार की गई है. इसके तहत सरकार की कोई भी वर्गीकृत सूचना गूगल ड्राइव, ड्रॉपबॉक्स, आईक्लाउड जैसे माध्यमों पर साझा नहीं की जाएगी. अगर किसी ने ऐसा किया या सरकारी आंकड़े चोरी हुए तो सख्त कार्रवाई होगी.

नीति आयोग के एक अध्ययन के मुताबिक वर्ष 2020 तक देश में इंटरनेट का उपयोग करने वालों की संख्या 73 करोड़ तक पहुंचने की संभावना है, जिनमें 75 फीसदी नए उपयोगकर्ता ग्रामीण क्षेत्रों के होंगे. इसमें अनुमान लगाया गया है कि अगले दो साल में करीब 17.50 करोड़ लोग ऑनलाइन शॉपिंग से जुड़ जाएंगे. यात्रा के लिए ऑनलाइन भुगतान करीब 50 फीसदी तक बढ़ेगा और ईकॉमर्स से संबंधित ऑनलाइन लेनदेन 70 फीसदी बढ़ जाएगा. इसमें बड़ी संख्या में कर्मचारियों के पास स्मार्टफोन होंगे और वे अनजाने ही मालवेयर इन्फेक्टेड वेबसाइटों के संपर्क में आ सकते हैं.

नई नीति में कर्मचारियों पर कार्यालय से बाहर बगैर अनुमति यूएसबी डिवाइस के जरिए किसी से बातचीत करने पर पाबंदी होगी. गृह मंत्रालय ने सरकार कर्मचारियों के लिए ईमेल क्म्युनिकेशन के नियम भी तय कर दिए हैं. इसके तहत वर्गीकृत सूचनाएं ईमेल पर जारी नहीं किए जाएंगी. किसी सरकारी ईमेल खाते से भेजी गई जानकारी सार्वजनिक वाईफाई कनेक्शनों के जरिए सार्वजनिक नहीं होगी. जो अधिकारी अपने घर से वाईफाई कनेक्शन का उपयोग करते हैं, उनके लिए अलग दिशानिर्देश जारी हो सकते हैं.

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