कांग्रेस के अस्तित्व पर ऐसा संकट कभी नहीं आया, जैसा आज दिख रहा है. कांग्रेस देश की सबसे पुरानी पार्टी है. कभी देश की सियासत की सिरमौर रही कांग्रेस, जिसकी तूती पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण हर दिशा में बोलती थी. वही कांग्रेस आज अपने अस्तित्व को बचाने की लड़ाई लड़ रही है. 2014 के बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस बुरी तरह हारी. इसके बाद राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया तो पार्टी के नेता एक महीने से ज्यादा समय से नया अध्यक्ष चुनने की बजाय उनकी मान-मनुहार में जुटे रहे. राहुल गांधी पर इस मान-मनुहार का कोई असर नहीं हुआ और अब कांग्रेस बिना कप्तान का जहाज बन गई है.

कर्नाटक का सियासी घमासान अपने चरम पर है और गोवा में कई विधायक पार्टी छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए हैं. कांग्रेस में नया अध्यक्ष चुनने की तैयारी भी नहीं दिख रही है. इस संबंध में कांग्रेस कार्य समिति की बैठक तक नहीं बुलाई गई. यह ढीला रवैया देखकर कई वरिष्ठ नेता ये मानने लगे हैं कि मौजूदा संकट जल्द ही नहीं सुलझा तो कांग्रेस पार्टी खत्म हो जाएगी.

देखा जाए तो यह चर्चा आधारहीन भी नहीं. राहुल गांधी के अध्यक्ष पद छोड़ने से लेकर अभी तक के घटनाक्रम और कांग्रेस नेताओं के बयान इसी तरफ इशारा कर रहे हैं कि पार्टी आजाद भारत में अपने सबसे बुरे दौर गुजर रही है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने यहां तक कह दिया कि ऐसा लग रहा है जैसे भाजपा कांग्रेस को खत्म करने के लिए ही सत्ता में आई है.

लोकसभा चुनाव हारने के बाद निराश होकर राहुल गांधी ने इस्तीफा दिया. उसके बाद पार्टी पदाधिकारियों में एक के बाद एक पद छोड़ने की होड़ लग गई. तब मौके के नजाकत को देखते हुए नए अध्यक्ष के चुनाव का सिलसिला शुरू होना चाहिए था. लेकिन पूरी पार्टी का ध्यान राहुल गांधी को मनाने पर रहा. पार्टी बगैर अध्यक्ष चलती रही और इसी का परिणाम है कि पार्टी टूटने का सिलसिला शुरू हो गया है.

कर्नाटक में कांग्रेस के 13 विधायकों ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है, जिससे वहां की जेडीएस-कांग्रेस गठबंधन सरकार संकट में आ गई है. कर्नाटक उथल-पुथल के बीच गोवा में भी कांग्रेस के 15 में से 10 विधायकों ने पार्टी छोड़ दी और बीजेपी में शामिल हो गए.

अन्य राज्यों में भी कांग्रेस नेताओं के अलग-अलग गुट बने हुए हैं. कांग्रेस शासित मध्यप्रदेश में पार्टी नेताओं की गुटबाजी जगजाहिर है. मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री कमलनाथ पर पार्टी के खराब प्रदर्शन के कारण इस्तीफा देने का दबाव है. ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक इस दिशा में सक्रिय हो गए हैं. गुरुवार को सिंधिया समर्थक तुलसी सिलावट के बंगले पर हुए भोज के बाद गुटबाजी के कयास तेज हो गए हैं. हालांकि इस भोज में कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ ही सरकार को समर्थन दे रहे सभी निर्दलीय, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के विधायक भी शामिल थे.

बताया जाता है कि कर्नाटक और गोवा के घटनाक्रम से सतर्क कांग्रेस मध्य प्रदेश में सभी विधायकों को एकजुट रखने का प्रयास कर रही है. इसीलिए सिलावट ने सभी विधायकों के लिए भोज का आयोजन किया था. लेकिन कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि इस भोज के जरिए ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपनी ताकत दिखाने का प्रयास किया है. सिंधिया ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि यह समय कांग्रेस के लिए गंभीर है और जल्द से जल्द कोई फैसला होना चाहिए. राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट के बीच चल रही आपसी खींचतान किसी से छुपी हुई नहीं है.

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जनार्दन द्विवेदी भी पार्टी की मौजूदा स्थिति से दुखी हैं. उन्होंने राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद नया पार्टी अध्यक्ष चुनने के लिए अब तक कांग्रेस कार्य समिति की बैठक नहीं होने पर नाराजगी जाहिर की है. संकेत यही है कि कांग्रेस का नया अध्यक्ष नहीं चुना गया तो आगे पार्टी का अस्तित्व बनाए रखना मुश्किल हो जाएगा.

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