11 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान के साथ ही देश में चुनावी दंगल की शुरुआत हो चुकी है. पहले चरण में 18 राज्य और दो केंद्र शासित प्रदेशों की 91 सीटों पर वोटिंग हो चुकी है. छतीसगढ़ की नक्सल प्रभावित बस्तर लोकसभा सीट भी इसमें शामिल है. अब प्रदेश की तीन सीटों पर मतदान 18 अप्रैल और 7 सीटों पर 23 अप्रैल को वोट पड़ेंगे. 2014 के लोकसभा चुनाव में छतीसगढ़ भी पूर्णतया मोदी लहर पर सवार था. प्रदेश की 10 सीटों पर बीजेपी ने कब्जा किया था. कांग्रेस के हाथ केवल एक सीट लगी थी जिसपर ताम्रध्वज साहु ने कब्जा जमाया था. कयास लगाए जा रहे हैं कि विधानसभा के बाद अब लोकसभा चुनावों में भी छत्तीसगढ़ में बीजेपी के समीकरण पूरी तरह बदल सकते हैं.
विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का दमदार प्रदर्शन
कांग्रेस के हालात इस राज्य के गठन के बाद से ही इतने बदतर रहे है कि पार्टी कई बार इस राज्य में एक लोकसभा सीट से ज्यादा नहीं जीत पायी. लेकिन हालात इस बार विपरीत हैं और शायद झटका खाने की बारी बीजेपी की है. विधानसभा के नतीजे इस ओर इशारा कर रहे है. हाल ही में विधानसभा चुनाव में बीजेपी को यहां करारी हार का सामना करना पड़ा था. लगभग 15 साल सत्ता में रहने के बाद स्वयं बीजेपी को भी ऐसी करारी हार का अंदाजा नही था. वहीं कांग्रेस खुद चुनाव में जीत को लेकर तो आश्वसत थी लेकिन जीत इतनी बड़ी होगी नतीजे खुद कांग्रेस के लिए चौंकाने वाले थे.
कांग्रेस की मजबूती का अंदाजा इस चुनाव में इससे भी लगाया जा सकता है कि अजित जोगी और बसपा के साथ चुनाव लड़ने के बावजूद कांग्रेस ने बीजेपी को करारी मात दी. कांग्रेस ने प्रदेश की 90 सीटों में से 68 सीटों पर कब्जा किया और बीजेपी 15 सीटों पर ही सिमट कर रह गई. दोनों पार्टियों के वोट शेयर में भी 10 फीसदी का बड़ा अंतर था. विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 43 फीसदी तो वहीं भाजपा को 33 फीसदी वोट मिले थे. अब इतने कम समय में इस अंतर को पाटना बीजेपी के लिए लोहे के चने चबाने जैसा ही लग रहा है.
जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ ने किया चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान
जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के अजित जोगी ने ऐलान किया है कि उनकी पार्टी लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेगी. यह ऐलान बीजेपी के लिए पहाड़ टूटकर गिरने जैसा है क्योंकि विधानसभा चुनाव में जिन सीटों पर बीजेपी के प्रत्याशी जीते है, उनमें अहम योगदान जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़-बसपा गठबंधन का था. इन सीटों पर जितने वोट से कांग्रेस के उम्मीदवारों को हार का सामना करना पड़ा था. उससे अधिक वोट यहां गठबंधन के प्रत्याशियों को मिले थे.
बता दें, जनता कांग्रेस छतीसगढ़ को विधानसभा चुनाव में 7.6 फीसदी वोट और 5 सीटें हासिल की थी. अब इन वोटों का बड़ा हिस्सा कांग्रेस को मिलने के आसार है. विधानसभा चुनाव में बीजेपी को केवल बिलासपुर लोकसभा सीट पर बढ़त मिली है. बीजेपी ने इस सीट के वर्तमान सांसद लाखन लाल साहू का टिकट काट दिया है. अब इस सीट पर कांग्रेस के अटल श्रीवास्तव का मुकाबला बीजेपी के नए चेहरे अरुण साव से है.
बीजेपी में आंतरिक विरोध की संभावना
बीजेपी आलाकमान ने विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद खास रणनीति अपनाकर अपने सभी सांसदों के टिकट काट दिए हैं. माना जा रहा है कि पार्टी को इनकी ओर से बगावत या भीतरघात का सामना भी करना पड़ सकता है. पार्टी ने जिन नए चेहरों पर दांव खेला है, उनकी मतदाताओं पर कोई खास पकड़ नहीं है. ये सभी प्रत्याशी केवल प्रधाममंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम पर ही वोट मांगते नजर आएंगे. इसके विपरीत कांग्रेस ने मजबूत प्रत्याशियों को मैदान में उतारा है.
मोदी बनाम बघेल होगा चुनाव
लोकसभा चुनाव में जहां बीजेपी के प्रत्याशी मोदी सरकार के कामकाज पर छत्तीसगढ़ में वोट मांगते नजर आएंगे. विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी ने रमन सिंह सरकार के साथ-साथ मोदी सरकार के कामकाज के आधार पर भी वोट मांगे थे. लेकिन पार्टी राज्य की जनता का भरोसा नहीं जीत पाई. बीजेपी का मोदी सरकार के आधार पर वोट मांगना आसान नहीं होगा. इसी साल जनवरी में आदिवासी और वनवासियों को बड़ी संख्या में उनकी जमीन से विस्थापित करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट का एक आदेश आया था. इस पर केंद्र सरकार के ठंडे रवैए के चलते बीजेपी को आदिवासियों के एक बड़े तबके की नाराजगी झेलनी पड़ सकती है. इस राज्य में आदिवासियों की संख्या भारी तादाद में है.
वहीं कांग्रेस के प्रत्याशी भूपेश बघेल प्रदेश सरकार के 6 महीने के कार्यकाल के आधार पर वोट मांगेंगे. कांग्रेस की तरफ से दावा किया गया कि उसने विधानसभा चुनाव में किए गए वादों को पूरा कर दिया है. इनमें किसानों की कर्जमाफी, धान का सर्मथन मूल्य 2500 रू. प्रति क्विंटल करना, बस्तर में टाटा स्टील प्लांट के लिए अधिगृहीत 1764 हेक्टेयर जमीन आदिवासियों को वापस करना शामिल है.
आदिवासी सीटों पर कांग्रेस की पकड़ मजबूत
आदिवासियों के लिए प्रदेश की चार सीटें आरक्षित है जिन पर बीजेपी का कब्जा है. हालांकि विधानसभा चुनाव में बीजेपी की हालात इन क्षेत्रों में दयनीय रही है. विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने आदिवासियों के लिए सुरक्षित 29 में से 25 विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की थी. इसके अलावा पार्टी ने आदिवासियों के लिए सुरक्षित इन चार सीटों में पड़ने वाली कुल 32 विधानसभा सीटों में से 31 पर कब्जा किया था. आंकड़ों के अनुसार, इन क्षेत्रों में बीजेपी का सूपड़ा ही साफ हो गया था.